मरीज मुझसे अक्सर यह पूछते हैं कि ‘हाइपोथायरॉडिज्म’ की बीमारी क्या आजकल ज्यादा होने लगी है, पहले तो हमने इसका नाम भी नहीं सुना था. वे जानना चाहते हैं कि इस बीमारी का ‘चक्कर’ क्या है. चलिए, आज इसी बारे में कुछ चर्चा करते हैं.

हाइपोथायरॉयड का मतलब यह होता है कि संबंधित मरीज की थायरॉयड नामक ग्रंथि ने काम करना बंद सा कर दिया है. यानी उसके शरीर में अब थायरॉयड हार्मोन नहीं बनते. याद रहे कि कुछ वर्षों पहले तक थायरॉयड हार्मोन का स्तर जांचने की सुविधा केवल महानगरों तक ही सीमित थी. बीमारी तो तब भी होती थी, परंतु उसका पता नहीं चल पाता था. मरीज इधर-उधर भटकता फिरता था. लक्षणों का इलाज लेता फिरता था. जोड़ दर्द है तो थायरॉयड की कमी से और खा रहे हैं दर्द की गोली! आज इसकी जांच की सुविधा कस्बों तक में है. बीमारी पता लग जाती है तो हमें भ्रम होता है कि यह बीमारी आजकल ज्यादा होने लगी है.

क्या होता है थायरॉयड हार्मोन? और इसकी कमी से शरीर पर क्या असर पड़ता है?

इन हार्मोंन्स का तकनीकी नाम T3 और T4 है. ये शरीर की हर कोशिका में प्रवेश करके उसके कंट्रोल स्टेशन अर्थात न्यूक्लियस को काम करने में मदद करते हैं. विशेषतौर पर मस्तिष्क की मांसपेशियों, गुदा, प्रजनन अंगों, हृदय तथा लीवर में. ये हार्मोन न हों तो शरीर की कोशिकाओं में चल रहा जीवन का कारखाना बेहद धीमी गति से चलने लगता है. ऊर्जा नहीं बनती. ये हार्मोन मनुष्य की गर्दन में टेंटुए के पास स्थित थायरॉयड ग्रंथि में पैदा होते हैं. TSH नामक एक और हार्मोन है जो पिट्यूटरी नामक ग्रंथि से पैदा होता है. अगर थायरॉयड में T3 और T4 कम पैदा हो रहे हों तो शरीर ज्यादा TSH पैदा करके थायरॉयड ग्रंथि को पर्याप्त हार्मोन पैदा करने की कोशिश करने को कहता है.

इसीलिए हाइपोथायरॉडिज्म में TSH का लेवल काफी ज्यादा हो जाता है, जबकि T3, T4 का कम होता है. T3, T4 पैदा करने के लिए थायरॉयड को आयोडीन की आवश्यकता होती है. हमें यह भोजन से मिलता है. इसलिए, आयोडीन की कमी हाइपोथायरॉडिज्म की स्थिति पैदा करने में महत्वपूर्ण कारक होती है. यह सब तो हुआ इस बीमारी को समझने के लिए बुनियादी ज्ञान.

लेकिन हमें यह सब समझने की जरूरत ही क्या है साब? कौन सी हमें थायरॉयड की गोली बेचनी है जो हम ग्राहक को यह सब समझाते फिरेंगे! समझने की जरूरत है. यह बीमारी इतने भेस धरकर आती है कि आपको कभी होगी भी तो पता ही नहीं चलेगा.

हाइपोथायरॉयड का मरीज दस तरह के विशेषज्ञ डॉक्टरों के पास भटक सकता है, फिर भी असली बीमारी छिपी रह सकती है. ऐसा इसलिए होता है कि थायरॉयड हार्मोन (T3, T4) की कमी से शरीर के हर सिस्टम पर असर पड़ता है. थायरॉयड की कमी से आदमी में किसी भी सिस्टम की खराबी के लक्षण शुरू हो सकते हैं. यदि शुरू में बीमारी का सही निदान न किया गया तो आखिरकार सारे सिस्टम ही गड़बड़ा सकते हैं. कैसे? चलिए, वह भी समझ लेते हैं.

एक मरीज है जिसकी चमड़ी रूखी-सूखी रहने लगी है, बाल झड़ते हैं, चमड़ी पतली-सी प्रतीत हो रही है. पसीना बहुत कम आता है. ऐसा मरीज कहां जाएगा? या तो वह स्यवं ही तेल-मायस्चराइजर आदि लगाएगा या त्वचा विशेषज्ञ की सलाह लेगा. पर मामला त्वचा में नहीं, थायरॉयड की कमी का है, मित्र. एक मरीज वह हो सकता है जो जल्दी थक जाता है, उसकी सांस जरा-सी मेहनत में भर आती है, उसके हाथ-पांव ठंडे रहते हैं, उसे ‘धड़कन टाइप’ कुछ लगता है. सांस वाले डॉक्टर से गोलियां खा रहा है, ताकत की दवाइयां खा रहा है, टॉनिक ले रहा है पर ठीक नहीं हो रहा क्योंकि हो सकता है कि उसे हाइपोथायरॉयड हो. पांवों पर सूजन-सी लगे, चेहरे पर सूजन-सी लगे, वजन बढ़ रहा हो, आंखों के पपोट सूजे-सूजे लगें और आदमी किडनी की जांचें कराता फिरे. ऐसा मरीज वजन कम करने के लिए किसी वजन घटाने वाले महंगे क्लीनिक पर हजारों रुपया खर्च करने को तैयार हो पर बीमारी की जड़ में तो T3, T4 की कमी हो!

जोड़-जोड़ सूजा सा लगे, जोड़ों में दर्द हो, जोड़ जकड़े-से लगें, और मरीज कई हड्डी रोग विशेषज्ञों के चक्कर काटकर भी इसीलिए ठीक न हो पा रहा हो कि मामला जोड़ों की बीमारी का है ही नहीं. ऐसा भी हाइपोथायरॉडिज्म में खूब देखा गया है.

इस बीमारी का मरीज किसी भी विशेषज्ञ डॉक्टर के पास पहुंच सकता है. वह कान से कम सुनने के कारण कान विशेषज्ञ के पास बैठा मिल सकता है. माहवारी कम या ज्यादा भी होने के कारण, बांझपन के इलाज के लिए, बार-बार गर्भपात होने के कारण वह स्त्रीरोग विशेषज्ञ के चक्कर में घूम सकता है.

सेक्स की इच्छा खत्म या कम हो जाने के कारण वह नीम-हकीम या अन्य विशेषज्ञों से इलाज या शर्तिया काम करने वाले तेल खरीदता मिल सकता है. आवाज बैठी सी हो जाए या मोटी-खुरदुरी-सी हो जाए तो वह गले वाले डॉक्टर से गले का इलाज कराता मिलता है.

हो सकता है वो खून की कमी का इलाज करवा रहा हो. याददाश्त कमजोर होने, मन न लगने, लड़खड़ाने, पगलाने या जानलेवा बेहोशी हो जाने पर उसे न्यूरोलॉजिस्ट या मानसिक रोग विशेषज्ञ की सेवाएं भी प्राप्त हो सकती हैं.

यह बीमारी औरतों को ज्यादा होती है और कतई जरूरी नहीं कि इसके साथ गले में थायरॉयड की गांठ या सूजन दिखे. बिना थायरॉयड ग्रंथि के बढ़े भी यह बीमारी खूब होती है. कई बार परिवार में यह आपके भाई-बहनों या अन्य रक्त संबंधियों को भी निकल सकती है क्योंकि यह आनुवांशिक होती है.

अब सवाल है कि अगर यह हो ही जाए तो क्या करें? सबसे पहले तो किसी अच्छे डॉक्टर की सलाह लें. वह आपको थायरॉयड हार्मोन की गोलियां देगा जो सुबह-सुबह एकदम खाली पेट लेनी होती हैं. इनका डोज आपका डॉक्टर तय करता है. हो सकता है कि वह कम से शुरू करे, फिर बाद की रिपोर्टों के आधार पर जब तक डोज़ बढ़ाए जब तक कि रिपोर्ट ठीक न आ जाए.

एक बार रिपोर्ट ठीक आ जाए और आपका TSH दो-तीन के आसपास होने लगे तो फिर थायरॉयड की जांच एक साल में एक बार जरूर कराएं.

क्या रिपोर्ट ठीक आने पर दवाई बंद कर दूं? नहीं. यह दवाई तो जीवनभर चलेगी. इसे भोजन मानकर खाएं. कमी भी जीवनभर के लिए है तो आपूर्ति जीवनभर ही चलानी होगी. तो दवा बंद न करें. हां, जो करें, अपने डॉक्टर की सलाह पर करें.