कंप्यूटर के विकास में पीढ़ी दर पीढ़ी तेजी से बदलाव हुए हैं. 1985 के बाद कंप्यूटरों की पांचवीं पीढ़ी का दौर शुरू हुआ जो अभी भी चल रहा है. जिस तरह के लैपटॉप और डेस्कटॉप हम इस्तेमाल कर रहे हैं, इसी पीढ़ी में विकसित हुए हैं. पांचवीं पीढ़ी की एक और बड़ी देन है, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआई). एआई का मतलब एक ऐसी मशीन जो खुद से समझ और सीख सके. बहुत से लोग रोबोट को ही एआई मान लेते हैं लेकिन ऐसा नहीं है. रोबोट एक ऐसा सिस्टम है जिसमें एआई प्रोग्राम डाले जाते हैं जिसकी वजह से ही वह प्रतिक्रिया दे पाता है. तकनीक के विशेषज्ञों की मानें तो अभी इस क्षेत्र में काफी कुछ हासिल करना बाकी है. लेकिन, अब तक इस क्षेत्र में जो प्रगति हुई है उसे कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं
· जब हम कंप्यूटर या मोबाइल पर शतरंज या लूडो जैसे गेम खेलते हैं तब सिस्टम पर एआई तकनीक का इस्तेमाल होता है. एआई के चलते ही हमारा सिस्टम हर चाल को काटने, अगली चाल चलने और हर नयी चाल को अगली बार याद रखने में सक्षम होता है.
· सिस्टम को बोल कर कमांड देना (वॉइस रिकग्नाइजेशन) एआई की ही देन है. उदाहरण के तौर पर एलेक्सा जोकि एक स्मार्ट क्लाउड सर्विस है. इसे इको स्पीकरों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. इसकी वजह से स्पीकर बोलकर कमांड देने पर गाने प्ले करता है. विंडोज कॉर्टेना, सिरी, गूगल नाउ भी इस श्रेणी में आते हैं.
· ऑटोमेटिक यानी स्वतः चलने वाली गाड़ियों में भी एआई का इस्तेमाल होता है. अपने आप चलने वाली ये गाड़ियां किसी भी एंगल पर चल सकती हैं और अपने आप पार्क भी हो जाती हैं. आपके बुलाने पर ये आपको पिक करने आ सकती हैं.
· पिछले कुछ समय से सोफिया नाम की रोबो काफी चर्चा में है जिसे डेविड हैनसन (हैनसन रोबोटिक्स के संस्थापक) ने बनाया है. सोफिया की शक्ल एकदम इंसानों जैसी है. यह रोबोट चेहरे पर आने वाले भावों को पहचान और किसी के साथ सामान्य बातचीत कर सकती है. इसके साथ ही इसने कई मीडिया चैनलों को इंटरव्यू भी दिये हैं.
भविष्य में एआई तकनीक कैसे कायापलट कर सकती है?
इस समय वैज्ञानिक ऐसी एआई तकनीक विकसित करने पर काम कर रहे हैं जिसमें एक मशीन इंसान की तरह ही सोच-समझ सके और आस-पास हो रही गतिविधियों से सीख सके और इंसान के मुकाबले काफी तेज भी हो. दिमाग पर जोर दें तो रजनीकांत की एक फिल्म आई थी, रोबोट. इस फिल्म में चिट्टी नाम का रोबो होता है जिसके अंदर बहुत सारे प्रोग्राम इंस्टॉल होते हैं और इनके जरिए वह अलग-अलग तरह के टास्क परफॉर्म करता है. फिल्म में चिट्टी को गाना गाते, डांस करते, फाइट करते, मेंहदी लगाते, खाना बनाते, महिला की डिलीवरी कराते और सेकेंडों में किताबें पढ़ते दिखाया जाता है. यह सब कुछ पॉसिबल होता है एआई से.
इस समय जो एआई तकनीक विकसित करने की कोशिश की जा रही है वह कुछ ऐसी ही होगी. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें कम से कम दो दशक का समय लग सकता है. लेकिन इसके बाद कई क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिल सकते हैं
· एआई में होने वाले इस विकास का बड़ा फायदा चिकित्सा क्षेत्र को मिल सकता है. ऑपरेशन जैसे कामों के लिए रोबोट या रोबो की मदद ली जा सकती है. इससे कम समय में ज्यादा लोगों का इलाज संभव हो पाएगा.
· आर्मी में इंसानों की जगह रोबो इस्तेमाल किये जा सकते हैं. ऐसा होने से फौजियों की जान पर चौबीसों घंटे बना रहने वाला खतरा कम हो जाएगा. इसके साथ ही रोबो एआई प्रोग्राम की वजह से खतरों का अंदेशा भी लगा सकेंगे.
· घर के रोजमर्रा के काम जिनके लिए हम दूसरों पर निर्भर रहते हैं, जैसे सफाई, इलेक्ट्रिसिटी के काम या फिर कुकिंग, एक रोबो ये सारे काम आसानी से कर देगा. इसके साथ ही सुरक्षा के लिहाज से भी रोबो मददगार साबित होंगे.
· रेस्टोरेंट में केटरिंग से लेकर घरों में सामान की डिलिवरी और स्कूल और कॉलेजों में लेक्चर देने तक सारे काम एआई के जरिए हो सकेंगे.
एआई के खतरे और इसकी सीमाएं
एआई का सबसे बड़ा फायदा मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्शन से जुड़े क्षेत्रों को होने वाला है. इसी वजह से पिछले कुछ सालों में इन क्षेत्रों से कई कंपनियों ने एआई से जुड़े रिसर्च पर करोड़ों रुपए खर्च किए हैं. दरअसल, एआई मशीन द्वारा गलतियों की गुंजाइश कम होती है. मजबूत धातु से बने होने के करण इनकी प्रतिरोध क्षमता इंसानों के मुकाबले अधिक होती है. सबसे बड़ी खासियत यह है कि मशीनों को लंबे समय तक काम में लाया जा सकता है इन्हें हमारी तरह ब्रेक की जरुरत नहीं पड़ती है. जहां हम एक तरह के काम से बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं. एआई मशीनें एक ही काम को बार-बार और अधिक तेजी से पूरा कर सकती हैं.
लेकिन, जहां इन कंपनियों को एआई के फायदे दिख रहे हैं, वहीं इसकी सबसे ज्यादा मार आम आदमी को झेलनी पड़ रही है. एआई का बढ़ता जाल न सिर्फ धीरे-धीरे इंसानों को अपना आदी और सुस्त बना रहा है बल्कि इसकी वजह से रोज हजारों लोग अपनी नौकरियां खो रहे हैं. बीते साल आई वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट की मानें तो 2020 तक दुनिया भर में 20 लाख नई नौकरियां पैदा होंगी, लेकिन 70 लाख से ज्यादा लोग अपनी नौकरी एआई के कारण खो देंगे. भारत में भी इस का प्रभाव नजर आने लगा है. उदहारण के तौर पर देखें तो कुछ भारतीय बैंकों द्वारा कार्यस्थल में एआई मशीनों के इस्तेमाल के कारण इस क्षेत्र की नौकरियों में सात फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
हालांकि, बैंकों के लिए भी एआई पूरी तरह फायदेमंद साबित होगा ही इस पर भी संशय है. जानकारों की मानें तो बैंकों की एआई पर बहुत अधिक निर्भरता नुकसानदेह हो सकती है क्योंकि रोबो, ग्राहकों को संतुष्ट रखने का काम इंसानों से बेहतर शायद ही कर पाएं. एक साधारण निवेश को हैंडल करने के लिए रोबो सस्ते और तेज साबित हो सकते हैं लेकिन बाजार में उतार-चढ़ाव जैसी असामान्य स्थितियों को संभालना रोबो के लिए मुश्किल हो सकता है.
इसके अलावा मशीनें डाटा स्टोर यानी मेमोरी के मामले में इंसान का मुकाबला कर पाएंगी इस पर भी संदेह है. तकनीक से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो भविष्य में जिस तरह की एआई तकनीक तैयार करने की बात हो रही है उसके लिए बड़े स्टोरेज की जरुरत होगी, जबकि इंसानी दिमाग में स्टोरेज की कोई लिमिट नहीं होती. साथ ही इंसान को अपनी जरूरत और समयानुसार पुरानी बातें भूलती और नई बातें याद होती जाती हैं. लेकिन, एआई मशीन के लिए कौन सा डाटा याद रखना है और कौन सा नही यह खुद तय कर पाना आसान नहीं होगा.
एआई तकनीक में जिस स्तर का विकास होता जा रहा है, उस स्तर पर अपनी तरह की नई चुनौतियां भी सामने आ रही हैं. उदहारण के लिए वॉइस रिकग्नाइजेशन वाली मशीनों में यूजर की प्राइवेसी जाने का खतरा बना रहता है. वॉयस कमांड के जरिए काम करने वाले एलेक्सा स्पीकर में कई तरह की शिकायतें मिली हैं. इनमें से एक यह थी कि यह बिना कमांड के ही यूजर की बातें रिकॉर्ड करने लगता है. यानी एआई तकनीक के लिए यूजर द्वारा दी गई कमांड और सामान्य बातचीत में फर्क समझ पाना आसान नहीं होगा.
तकनीक के बारे में हमेशा से कहा जाता रहा है कि इस पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता नुकसानदेह साबित हो सकती है. यह भी कहा गया है कि तकनीक ही इंसान के अंत की भी वजह बनेगी. देखा जाए तो एआई तकनीक के विकास का वह चरम है, जो इस कथन को सही साबित कर सकता है. भौतिक शास्त्री स्टीफन हॉकिन्स ने भी कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानव इतिहास में सबसे बढ़िया और सबसे घातक खोज साबित हो सकती है. उनका कहना था ‘चूंकि जैविक रूप से इंसान का विकास धीमा होता है, वह मशीनों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएगा. इसका असर उसकी बुनियादी जरूरतों पर पड़ेगा और यहीं से उसके पतन की शुरुआत हो सकती है.’
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