एपल के संस्थापक स्टीव जॉब्स भारत आए थे, यह बात सभी मानते हैं. लेकिन खुद उन्होंने कहीं इसका जिक्र नहीं किया है कि वे किस साल भारत आए थे. इंटरनेट खंगालने पर पता चलता है कि 1974 से 1976 के बीच कुछ महीनों के लिए स्टीव जॉब्स का भारत आना हुआ था. इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. जिस तरह फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग कहते हैं कि उन्हें स्टीव जॉब्स ने भारत आने की सलाह दी थी उसी तरह जॉब्स को भी उनके एक दोस्त और मार्गदर्शक रॉबर्ट फ्रीडलैंड ने यही सलाह दी थी.

2011 में आई किताब ‘स्टीव जॉब्स’ में वॉल्टर आईजेक्सन लिखते हैं कि रॉबर्ट 1973 में भारत आए थे और नीम करौली बाबा के भक्त बन गए थे. उन्होंने ही स्टीव को सलाह दी थी कि उन्हें बाबा से मिलना चाहिए. रॉबर्ट इस समय खनन क्षेत्र की कंपनी इवान्हो माइन्स के सीईओ हैं और फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार तकरीबन करीब एक से डेढ़ अरब डॉलर के मालिक हैं.

स्टीव जॉब्स एपल शुरू करने के पहले वीडियो गेम बनाने वाली कंपनी अटारी में काम करते थे. कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर उन्हें यहां नौकरी करते हुए कुछ वक्त ही बीता था कि रॉबर्ट से उनकी मुलाकात हो गई. फिर उन्होंने भारत घूमने की चाह में नौकरी छोड़ दी. ‘स्टीव जॉब्स’ में जिक्र है कि उनके लिए भारत की यात्रा एडवेंचर नहीं थी. उन्हें अपने लिए गुरू की तलाश थी और वे यहां आध्यात्मिक यात्रा पर आना चाहते थे.

स्टीव जॉब्स ने भारत की यात्रा शुरू की तो उनका पहला पड़ाव दिल्ली थी. यहां वे पहाड़गंज के एक होटल में रुके और तुरंत ही खादी का कुर्ता और लुंगी पहनकर साधारण भारतीय लिबास में आ गए. स्टीव जॉब्स पहले से ही भारत और भारतीय दर्शन से काफी प्रभावित थे, लेकिन ‘गुरू’ की खोज के क्रम में जब वे यहां रहे तो भारत से जुड़ी उनकी कई धारणाएं टूटीं. इनमें से पहली तो भारतीयों के बहुत सज्जन होने से जुड़ी थीं. इसका पहला अनुभव उन्हें तब हुआ जब होटल वाले ने उनसे वादा किया कि वे जब तक यहां रुकेंगे उन्हें पीने के लिए फिल्टर्ड पानी मिलेगा, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. इससे स्टीव की तबीयत काफी खराब हो गई.

स्टीव की सेहत जब ठीक हुई तो वे पहले हरिद्वार पहुंचे. यहां कुछ दिन रुकने के बाद वे कैंचीधाम आ गए. हालांकि जब वे नीम करौली बाबा के आश्रम में आए तो उन्हें पता चला कि बाबा का देहांत तो कई दिन पहले हो चुका है. स्टीव जॉब्स के दोस्त डेनियल कोट्टके जो बाद में एपल के पहले कर्मचारी भी बने, ने इस यात्रा में कुछ वक्त स्टीव के साथ बिताया था. वे एक इंटरव्यू में कहते हैं, ‘जब हम नीम करौली बाबा आश्रम पहुंचे तो वह काफी सूनी-सूनी सी जगह थी. बाबा के जो हिप्पी भक्त थे अब उनका वहां जमावड़ा नहीं लगता था.’ अब स्टीव जॉब्स को ‘आत्म साक्षात्कार’ की कोई उम्मीद नहीं रही. इस आश्रम को देखकर उन्हें काफी झटका भी लगा.

स्टीव जॉब्स और डेनियल कोट्टके कुछ दिन यहीं रुके और फिर हरियाखान बाबा के आश्रम चले गए. उनकी भी ख्याति थी कि वे अवतार हैं. कोट्टके एक इंटरव्यू में कहते हैं, ‘हरियाखान बाबा अपेक्षाकृत युवा थे. हमने उनके बारे में भी कई बातें सुनी थीं लेकिन उनसे मिलकर हमें ऐसा नहीं लगा कि वे परमज्ञानी हैं.’

स्टीव जॉब्स ने उत्तराखंड की इस यात्रा में कई गांवों और कस्बों को करीब से देखा था. माइकल मोरित्ज ने उनकी एक जीवनी लिखी है. इसमें वे कहते हैं कि स्टीव के दिमाग में जो छवि थी उस हिसाब से उन्हें भारत में ज्यादा गरीबी देखने को मिली. वे देश की इस हालत और इसके ‘माहौल में पवित्रता’ के विरोधाभास से हैरान थे. उनकी आधिकारिक जीवनी ‘स्टीव जॉब्स’ में स्टीव के हवाले से कहा गया है, ‘हमें ऐसी कोई जगह नहीं मिलने वाली थी जहां हम आत्मसाक्षात्कार के लिए महीनेभर रुक सकते हों. इस समय पहली बार मैंने सोचना शुरू किया कि नीम करौली बाबा और कार्ल मार्क्स, दोनों ने दुनिया की बेहतरी के लिए शायद उतना नहीं किया जितना थॉमस अल्वा एडीसन ने किया है.’

स्टीव जॉब्स भारत में तकरीबन सात महीने तक रुके. अपनी यात्रा के अंतिम दिनों में वे बौद्ध धर्म से काफी प्रभावित हो गए थे. एपल के संस्थापकों में शामिल स्टीव वोजिनियाक एक इंटरव्यू में बताते हैं कि स्टीव जॉब्स जब भारत से लौटे तो उनका सिर मुंडा हुआ था और वे बौद्ध धर्म के अनुयायी बन चुके थे.

ऊपर लिखे उदाहरण और उद्धरण बस ये बताने के लिए हैं कि सीधे-सीधे यह मान लेना कि स्टीव जॉब्स ‘भारतीय अध्यात्म’ से बहुत प्रभावित थे, सही नहीं है. इसकी एक बानगी 2005 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के उस भाषण से भी मिलती है जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी भारत यात्रा कोई बहुत खुशनुमा यात्रा नहीं थी.

अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को पाने में असफल रहे स्टीव जॉब्स यह जरूर कहते थे कि भारत आकर उन्होंने आत्मप्रेरणा की शक्ति को समझा. उन्होंने सार्वजनिक रूप से कई बार कहा कि अमेरिकी या पश्चिमी देशों के लोग कामों में बुद्धिमत्ता को तरजीह देते हैं, लेकिन भारतीय आत्मप्रेरणा को तरजीह देते हैं और यह ज्यादा प्रभावशाली है. यह अनुभव उन्हें भारत के गांव-कस्बों में घूमते हुए मिला था. इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि यदि उन्होंने मार्क जुकरबर्ग को भारत आने की सलाह दी होगी तो वह भारतीय जनजीवन के इसी पहलू को समझने के उद्देश्य से दी होगी. इसके लिए उन्होंने शायद ही ये कहा हो कि मार्क को कैंचीधाम जाना चाहिए.