नींद की समस्याएं प्राय: तीन तरह की होती हैं. एक तो यह कि नींद आए ही नहीं या फिर आने के बाद टूट जाए और वापस ही न आए, और ऐसी भी कि रातभर टूट-टूटकर आती रहे - सोए भी और नहीं भी. हम तकनीकी तौर पर इन सबको अनिद्रा (इन्सोमनिया) कहते हैं. इनमें से हर एक के कारण अलग हैं और इलाज भी.
दूसरी तरह की समस्या है दिनभर नींद आते रहना. बैठे-बैठे सो जाना. काम करते-करते ऊंघ जाना. गाड़ी चलाते वक्त झपकी आना. कुल मिलाकर देखें तो अनिद्रा के एकदम उलट नींद ज्यादा आने से परेशान. और तीसरी तरह की नींद की समस्याएं वे हैं जो मायावी सी लगती हैं, कहानियों तथा चुटकुलों का विषय बनती है. नींद में चलना, सोते-सोते चीखकर उठ जाना, जोर-जोर से लातें चलाना, खर्राटे मारना, नींद में दांत पीसना, सोते-सोते पेशाब कर देना आदि.

इनके अलावा ‘जेट लेग’ और ‘रात्रिकालीन शिफ्ट’ ड्यूटी करने वालों की नींद की अपनी समस्याएं हैं. यहां मैं नींद की समस्याओं को लेकर न्यूज चैनलों टाइप का फटाफट, दस मिनट में सौ खबरें जैसा कुछ पेश कर रहा हूं.
अनिद्रा से संबंधित तथ्य :
1. अनिद्रा यदि चंद दिनों से ही है तो यह प्राय: किसी घरेलू या दफ्तर के तनाव से है. घबराने की बात नहीं. शायद दवा की जरूरत भी नहीं.
2. यदि अनिद्रा दो-तीन-चार सप्ताह तक खिंच जाए तो कुछ दिनों के लिए डॉक्टर की नींद की दवा ले लें. ऐसा प्राय: तनाव से तो होता ही है, किसी बीमारी या सर्जरी से उठने के बाद भी हो सकता है.
3. हां, यदि अनिद्रा कई महीनों या सालों से है तो इसे पूरी जांच और इलाज की आवश्यकता है. इसमें मानसिक रोग विशेषज्ञ से मिलकर डिप्रेशन आदि की आशंका की जांच भी हो सकती है. थायरॉयड, अस्थमा, हृदय रोग, पार्किन्सोनिज्म, माइग्रेन, यहां तक कि असामान्य किस्म की मिर्गी तक की संभावना रहती है.
4. अनिद्रा का एक बड़ा कारण आपकी ‘खराब स्लीप हाइजीन’ भी हो सकती है. ‘स्लीप हाइजीन’ में बहुत सी बातें आती है. बिस्तर अधिक गद्देदार हो, सोने के कमरे में बहुत रोशनी या शोर हो, साथ वाला खर्राटे मारता हो, लात चलाता हो, यहां तक कि दीवार घड़ी जोर से टिकटिक करती हो तो यह खराब ‘स्लीप हाइजीन’ है. यदि सोने से पहले आप ऑफिस के तनाव में लगे रहें, ठूसकर खा लिया है, गर्म पानी से स्नान कर लिया है, कसरत कर ली है - तो ये सब भी निद्रा विरोधी हैं.
5. जहां तक दारू की बात है तो पीकर आप सो तो जाएंगे परंतु रातभर टूट-टूटकर ही नींद आएगी या आने के कुछ देर बाद जो टूटेगी तो फिर आएगी ही नहीं. आज दो पेग में आई है, बाद में तीन में आएगी और फिर चार पेग में भी नहीं आएगी.
6. क्या अनिद्रा किसी मानसिक रोग का लक्षण है? हां, यह संभव है. बेचैनी, अवसाद (डिप्रेशन) तथा मूड डिसऑर्डर में भी अनिद्रा हो सकती है. डिप्रेशन इस मामले में अनोखा है कि इसके रोगी को अनिद्रा भी हो सकती है और वह अति निद्रा का शिकार होकर दिन-रात सोता पड़ा भी रह सकता है. डिप्रेशन की दवाइयां भी अनिद्रा पैदा कर सकती है.
7. कई बीमारियों में अनिद्रा एक महत्वपूर्ण कारक तथा लक्षण हो सकता है. सांस की बीमारी, हार्ट के पंप के कमजोर हो जाने पर होने वाला फेफड़ों का कंजेशन, मेनोपॉज (रजोनिवृत्ति), किडनी व लीवर खराब होने में अनिद्रा ही एक प्रमुख शिकायत हो सकती है.
8. नींद की दवाई डॉक्टर की सलाह पर ही लें. हो सके तो बस कुछ समय के लिए ही. यदि अनिद्रा की क्रॉनिक बीमारी है और नींद की दवाएं लंबे समय तक लेनी पड़ें तो इन्हें बीच-बीच में रोक लें. इन्हें लगातार लेंगे तो इनका असर खत्म हो जाएगा.
9. नई जगह पर, होटल के कमरे में, अस्पताल में, जीवन में कुछ नया घट जाने पर, कोई महत्वपूर्ण तारीख पास आने पर नींद गड़बड़ हो ही सकती है. इसे ‘एडजस्टमेंट अनिद्रा’ कहते हैं. यह स्वत: ठीक हो जाती है.
10. ऊंचे पहाड़ों पर पहुंचने पर नींद डिस्टर्ब हो सकती है. इसे ‘एल्टीट्यूड अनिद्रा’ कहते हैं. इसके लिए नींद दवा नहीं बल्कि डायमोक्स नामक दवा लेनी पड़ती है. जो इन स्थानों से एडजस्ट करने के लिए दी जाती है.
दिन के समय उनींद रहना
दिन के समय नींद के झोंके आने की बात प्राय: मरीज स्वयं नहीं मानता. साथ वाले बताते हैं. ऐसे लोग मीटिंग में, गाड़ी चलाते हुए, मशीन पर काम करते हुए अचानक झपकी ले लेते हैं. यह ‘स्लीप एपनिया’ नाम की बीमारी हो सकती है जिससे आदमी रात में खर्राटे मारता है, सोते हुए उसकी सांस तेज होती-रुकती है और मरीज को पता भी नहीं होता. वह बस दिन भर उनींदा रहता है. यदि ऐसा है तो इसे नजरअंदाज न करें. जांच से एक बार इसका कारण पता चल जाएगा तो फिर इसे ठीक भी किया जा सकता है.
कुछ अन्य रोचक तथ्य
1. नींद में चलने की बीमारी का न तो कारण पता है, न इलाज. एक तिहाई केसों में यह खानदानी बीमारी हो सकती है.
2. बच्चा रात में नींद में उठकर चीखें, पसीने से नहा जाए, तेज सांसें ले, फिर वापस सो जाए, और सुबह उठने पर उसे कुछ याद ही न रहे तो यह कोई भूत-प्रेत बाधा नहीं है. यह भी नींद की एक बीमारी है जो उम्र के साथ स्वत: ठीक हो जाती है.
3. पांच-छह वर्ष तक का बच्चा यदि सोते में पेशाब करे तो यह नॉर्मल बात मानी जाती है. बाद मे ऐसा करे तो फिर इलाज की जरूरत है. गोलियां-दवाइयां तो हैं ही. बच्चे का पूरा यूरोलॉजी चेकअप जरूरी है.
4. ‘जेट लेग’ अर्थात अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के बाद नींद न आना, टूट-टूटकर आना. इसके नॉर्मल होने में दो दिन से लगाकर दो सप्ताह तक लग सकते हैं. यदि यात्रा में ज्यादा ‘टाइम-जोन’ से गुजरे होंगे तो ज्यादा दिन तक ‘जेट-लेग’ चलेगा.
5. रात की शिफ्ट में काम करने वालों की दिन में भी नींद ठीक से नहीं हो पाती. वे लेटे रहें पर नींद नहीं आती. फिर वापस रात में ड्यूटी करते समय वे उतने अलर्ट नहीं रह पाते जिससे ड्यूटी पर गलतियां और दुर्घटनाएं भी होती है. रात में काम की जगह पर अच्छी तेज रोशनी हो तो ऐसा कम होता है. कोशिश यह भी हो कि रात की शिफ्ट दो-तीन सप्ताह के अंतराल पर बदलती रहे.
नींद की कथा लिखते-लिखते स्वयं मुझे नींद आने लगी है. पढ़ते-पढ़ते, शायद आपको भी. तो ठाठ से सोइए, यही सबसे बड़ा राजसी विलास है. याद है न? ‘के सोये राजा का पूत, के सोये जोगी अवधूत.’
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