साल 2000 से 2015 के बीच दुनियाभर में सी-सेक्शन (सिजेरियन ऑपरेशन) से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में लगभग दोगुनी वृद्धि हुई है. यह दावा लैंसेट पत्रिका ने गुरुवार को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित तीन शोधपत्रों की श्रृंखला के आधार किया है. साथ ही इन वर्षों के दौरान भारत में भी ऑपरेशन से होने वाले प्रसव (डिलीवरी) के मामलों में खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
ये शोध 169 देशों के आंकड़ों पर आधारित हैं. इनके अनुसार बीते 15 सालों में हर साल सी-सेक्शन से होने वाली डिलीवरी में 3.7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. साल 2000 में ऑपरेशन से पैदा होने वाले जीवित बच्चों की संख्या एक करोड़ 60 लाख थी, जो कुल पैदा हुए बच्चों (मृत और जीवित) की संख्या का 12 फीसदी थी. 2015 में यह संख्या बढ़कर लगभग तीन करोड़ हो गई जो इस साल पैदा हुए कुल बच्चों की संख्या की 21 फीसदी रही.
एक अनुमान के मुताबिक पूरी दुनिया में केवल 10 से 15 फीसदी मामले ही ऐसे होते हैं जहां सामान्य प्रसव (नॉर्मल डिलीवरी) में आ रही जटिलताओं के कारण ऑपरेशन का सुझाव दिया जाता है. लेकिन लैंसेट द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट की मुख्य लेखिका और कीनिया की आगा खान यूनिवर्सिटी में महिला एवं बाल विकास केंद्र की अध्यक्ष डॉक्टर मर्लिन तेमेरमेन बताती हैं कि दुनिया में कम से कम 15 देश ऐसे हैं जहां प्रसव के 40 फीसदी से भी अधिक मामलों में सी-सेक्शन का सहारा लिया जाता है.
शोध के मुताबिक भारत में भी सी-सेक्शन के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी हुई है. हमारे यहां वर्ष 2005-06 में सी-सेक्शन से जहां केवल नौ फीसदी बच्चों ने ही जन्म लिया था, वहीं 2015-16 में यह संख्या बढ़कर 18.5 फीसदी तक पहुंच गई. यह रिपोर्ट भारत के राज्यों के अलग-अलग आंकड़े भी पेश करती है. भारत के पूर्वोत्तर राज्य नगालैंड में 15 सालों के दौरान सी-सेक्शन के सबसे कम, केवल सात फीसदी मामले ही दर्ज किए गए. वहीं दूसरी तरफ दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में इन 15 सालों के दौरान सबसे ज्यादा 49 फीसदी बच्चों का जन्म मां के ऑपरेशन के बाद हुआ.
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