पहले नकद भुगतान का चलन था, हर छोटे-बड़े लेन-देन के लिए नकदी ही चलती थी. इस वजह से लोगों को कई तरह की मुसीबतें झेलनी पड़ती थीं, जैसे बैंकों के चक्कर काटना, पैसे समय पर न मिलना और पैसे न होने की वजह से काम अटक जाना आदि. लेकिन, देश अब डिजिटल हो चला है, लोग नकद पैसे रखने के बजाय डेबिट और क्रेडिट कार्ड रखना आसान समझते हैं. कारण है कि लोगों का समय और मेहनत दोनों बचते हैं.

क्रेडिट कार्ड का काम बिल्कुल पुरानी फिल्मों के लालाजी की तरह होता है. वही लालाजी जो लोगों को ब्याज पर पैसे उधार देते थे. बस अब आपको पैसों के लिए उनके सामने गिड़गिड़ाना नहीं पड़ता. बैंक की शर्तों पर खरा उतरने पर आप मनचाहे बैंक से क्रेडिट कार्ड प्राप्त कर सकते हैं. क्रेडिट कार्ड की लिमिट अलग-अलग पैमानों पर तय की जाती है.

लेकिन, बीते कुछ सालों में देखा गया है कि जैसे-जैसे क्रेडिट कार्ड से भुगतान का प्रतिशत बढ़ा है, वैसे ही इससे जुड़ी ठगी के मामलों में भी इजाफा हुआ है. एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में क्रेडिट और डेबिट कार्ड से जुड़ी धोखाधड़ी के चलते लोगों को साल 2015 तक 21 अरब अमेरिकी डॉलर की चपत लग चुकी है जो 2010 तक आठ अरब अमेरिकी डॉलर थी. बताते हैं कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो 2020 तक यह आंकड़ा 31 अरब तक पहुंचने की आशंका है.

आइये जानते हैं कि क्रेडिट कार्ड से ठगी किस तरह से होती है

बिना क्रेडिट कार्ड के ठगी

यह धोखाधड़ी का सबसे आम प्रकार है. इसमें कार्डधारक की जानकारी (नाम, कार्ड नंबर, सीवीवी, और लास्ट डेट) चोरी हो जाती है और कार्ड की उपस्थिति के बिना ही इसका अवैध रूप से इस्तेमाल किया जाता है. यह हैकरों द्वारा की जाने वाली एक ऑनलाइन जालसाजी है जिसमें हैकर फिशिंग (ओरिजनल वेबसाइट की तरह दिखने वाली नकली वेबसाइट) के जरिए आपके क्रेडिट या डेबिट कार्ड की जानकारी चोरी कर लेते हैं.

आजकल बिना कार्ड के धोखाधड़ी का एक और तरीका भी चर्चा में है. इसमें यूजर को फर्जी कॉल आते हैं, फोन करने वाला खुद को बैंक का कर्मचारी बताता है और बातों-बातों में यूजर से कार्ड की डिटेल्स निकलवा लेता है. इसके साथ ही ये लोग आपका फोन हैक करके फोन पर आने वाला ओटीपी नंबर जान जाते हैं और इतनी जानकारी इकट्ठा होने के बाद मिनटों में आपके अकाउंट से पैसे गायब कर देते हैं. इस प्रक्रिया को ‘स्पूफिंग’ कहते हैं.

क्रेडिट या डेबिट कार्ड के साथ ठगी

आमतौर पर इस तरह की धोखाधड़ी कम ही देखने को मिलती है. लेकिन, फिर भी कभी-कभार ऐसे मामले सामने आ जाते हैं. होता यूं है कि कुछ चालाक दुकानदार स्वैप मशीन से जुड़े कंप्यूटर में की-लॉगर (डाटा स्टोर करने वाला सॉफ्टवेयर) का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में जब किसी शॉप पर यूजर बिल का भुगतान करने के लिए कार्ड स्वैप करता है तो की-लॉगर द्वारा उसकी पासवर्ड और कार्ड से जुड़ी अन्य जानकारी सेव कर ली जाती है. यह पूरी प्रक्रिया ‘स्कीमिंग’ कहलाती है. इसके बाद ये बेईमान दुकानदार यूजर के डाटा का गलत इस्तेमाल करते हैं.

स्कीमिंग के अलावा आजकल ‘कार्ड क्लोनिंग’ की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं. कार्ड क्लोनिंग यानी डुप्लीकेट कार्ड का इस्तेमाल. शातिर और जालसाज़ लोग कार्ड ‘स्किमर डिवाइस’ का उपयोग कर डुप्लीकेट कार्ड तैयार करते हैं. ऐसी डिवाइस के अंदर क्रेडिट या डेबिट कार्ड स्वाइप करने के दौरान कार्ड की मैगनेटिक स्ट्रिप पर दर्ज सारा डेटा उनके कंप्यूटर या लैपटॉप में आ जाता है. इसके बाद एक एडवांस्ड तरह के प्रिंटर के जरिए क्लोन किए गए कार्ड की सारी जानकारी एक खाली कार्ड के ऊपर इस तरह से प्रिंट कर दी जाती है कि ये कार्ड बिल्कुल ओरिजनल कार्ड जैसे दिखते हैं. इसके बाद इन कार्ड के जरिए आपके पैसे उड़ाए जाते हैं. खासतौर पर पेट्रोल पंप, होटल-रेस्टोरेंट और एटीएम जैसी जगहों पर क्लोनिंग के मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं.

हालांकि, इस समस्या के समाधान के लिए कार्ड निर्माता कंपनियों ने कार्ड में मैग्नेटिक स्ट्रिप की जगह एक माइक्रो चिप लगाना शुरू किया है. इस चिप में मैग्नेटिक स्ट्रिप में दी जाने वाली जानकारी को एन्क्रिप्टेड रूप में दिया गया है. इसका मतलब है कि माइक्रो चिप वाले कार्ड की जानकारी को चुराया नहीं जा सकता है. अगर कोई स्किमर डिवाइस के जरिए चिप लगे कार्ड की क्लोनिंग का प्रयास करता है तो उसे केवल एन्क्रिप्टेड जानकारी ही मिल सकेगी. माइक्रो चिप वाले कार्ड के ज्यादा सुरक्षित होने के कारण ही बीते महीने भारतीय रिजर्ब बैंक ने लोगों से अपने मैग्‍नेटिक स्ट्रिप वाले कार्ड को चिप वाले कार्ड से बदलने की अपील की है.

क्रेडिट और डेबिट कार्ड कैसे काम करते हैं?

दुनियाभर के बैंक वीजा या मास्टरकार्ड जैसी कार्ड निर्माता कंपनियों से अपने ग्राहकों के लिए कार्ड बनवाते हैं. जब ग्राहक क्रेडिट या डेबिट कार्ड से खरीददारी करता है तो इस दौरान कुछ सेकेंड्स की एक प्रक्रिया होती है. इसमें सबसे पहले कार्ड का डेटा मर्चेंट बैंक को भेजा जाता है. बैंक इस जानकारी को अप्रूवल के लिए कार्ड निर्माता कंपनी के पास भेजता है. कंपनी इस अप्रूवल को स्वीकार या अस्वीकार करने के बाद अपने निर्णय की जानकारी मर्चेंट बैंक और विक्रेता दोनों को वापस भेजती है. कार्ड निर्माता कंपनी की स्वीकृति आते ही ग्राहक के खाते से पैसे कटकर दुकानदार के खाते में पहुंच जाते हैं.

अगर स्वीकृति का मैसेज नहीं आता है यानी कार्ड निर्माता कंपनी अप्रूवल को अस्वीकार कर देती है तो इसके दो कारण हो सकते हैं. पहला कार्डधारक के खाते में अपर्याप्त राशि होना, दूसरा मर्चेंट बैंक द्वारा दिए गए डेटा में गड़बड़ी होना. यहां एक बात गौर करने वाली यह है कि किसी भी तरह के फ्रॉड से बचने का मौका सिर्फ डेटा अप्रूव होने से पहले ही होता है, उसके बाद आप कुछ नहीं कर सकते.

कैसे बचें?

क्रेडिट कार्ड से हो रही जालसाजी बढ़ जाने का मतलब यह कतई नहीं है कि आप क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करना ही बंद कर दें. बस जरूरत है तो थोड़ा सतर्क रहने की. सुरक्षा संबंधी थोड़ी सी जानकारी आपको इस तरह की ठगी से बचा सकती है.

क्या करें, क्या ना करें

· अपना कार्ड किसी के हाथ न लगने दें. बहुत से लोग कार्ड पर ही पासवर्ड लिखकर रखते हैं, यह चोरों का काम और भी आसान कर देता है. इस तरह की गलती, गलती से भी न करें.

· अपने बैंक अकाउंट से जुड़े नंबर और ई-मेल को हमेशा चालू रखें और समय पर जांचते रहें.

· एटीएम से पैसे निकालते वक़्त पहले से जांच लें कि कोई ‘स्किमर’ तो नहीं है. स्वैपिंग पॉइंट के अगल-बगल हाथ लगाकर देखें और कोई वस्तु नजर आए तो सावधान हो जाएं. स्किमर का डिजाइन ऐसा होता है कि वह मशीन का पार्ट जैसा लगता है. कीपैड में भी स्किमर लगाया जा सकता है इसलिए उसका एक कोना दबाकर देखें, अगर कीपैड में स्किमर लगा होगा तो उसका एक सिरा उठ जाएगा.

· आजकल नई-नई शॉपिंग वेबसाइट आ रही हैं जो काफी सस्ते दामों में सामान बेचती हैं. कई बार ये वेबसाइट फर्जी होती हैं और लोग सस्ते के चक्कर में लूट का शिकार हो जाते हैं. इसलिए, जब भी कोई नयी वेबसाइट दिखे तो एक बार गूगल पर उसे जांच लें और हो सके तो कैश ऑन डिलीवरी का ऑप्शन ही चुनें.

· होटल, पेट्रोल पंप, मेडिकल, दुकान जैसी जगहों पर सावधानी बरतें. अपना कार्ड कहीं दूर न ले जाने दें, बल्कि सामने खड़े होकर कार्ड पेमेंट करें.

· मैसेज या ई-मेल पर आए लिंक के जरिए कोई भी ऑनलाइन पेमेंट न करें, और करें भी तो यह देख लें कि वेबसाइट के यूआरएल में https:/ जरुर लगा हो (जैसे https:/abcexample.com) सिर्फ http:/ वाली वेबसाइट सुरक्षित नहीं होती हैं.

· क्रेडिट कार्ड से इंटरनेशनल ऑनलाइन शॉपिंग करने पर पॉसवर्ड या ओटीपी की जरूरत नहीं पड़ती है. सिर्फ कार्ड नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी होने पर भी आसानी से खरीदारी की जा सकती है. इसलिए जब आप किसी दुकान पर बिल का भुगतान करने के लिए क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करें तो कार्ड हमेशा सीधी तरफ घुमाकर रखें ताकि आपका सीवीवी नंबर छुपा रहे.

· बैंक की तरफ से आये हुए कॉल में अगर आपका कार्ड पिन पूछा जाए तो कभी न बताएं, भले ही सामने वाला स्वयं को बैंक का मैनेजर ही क्यों ना कहे.

धोखाधड़ी में फंसने के बाद क्या करें?

अनजाने में तमाम सावधानियों के बावजूद अगर आपके क्रेडिट कार्ड का दुरुपयोग कर ही लिया गया है, तो बिना समय गंवाए क्रेडिट कार्ड जारी करने वाले बैंक से संपर्क कर कार्ड ब्लॉक करा दें और इस मनमाने भुगतान की शिकायत दर्ज कराएं. अगर की गई शिकायत पर संतोषजनक कार्रवाई न की जाए तो रिजर्व बैंक की तरफ से जारी की गई इस वेबसाइट bankingombudsman.rbi.org.in पर संपर्क करें. इसके अलावा आप अपने शहर में साइबर क्राइम शाखा से संपर्क कर शिकायत दर्ज करा सकते हैं और अगर शहर में साइबर क्राइम शाखा न हो तो नजदीकी पुलिस स्टेशन जा सकते हैं.