भारत के तेजी से डिजिटल होने के साथ-साथ एक नई समस्या भी पैर पसारती जा रही है. यह समस्या है तेजी से बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा). ई-कचरे के तहत वे तमाम इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आते हैं जो हम खराब होने पर फेंक देते हैं. मसलन कंप्यूटर, मदरबोर्ड, रेडियो, टीवी, बल्ब, मोबाइल फोन, चार्जर, बैटरी वगैरह-वगैरह. ये उपकरण खराब होने के साथ ही ई-कचरे में तब्दील हो जाते हैं. यही कचरा अब भारत के लिए बड़ा खतरा बन गया है.

ऐसा इसलिए कि इस कचरे को निपटाना पूरी दुनिया के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है. भारत के अलावा चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी ऐसे देश हैं जहां ई-कचरे का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है. भारत में हर साल करीब 22 लाख टन ई-कचरा पैदा होता है. 2018 के अंत तक यह आंकड़ा 33 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है.

एसोचैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पैदा होने वाले ई-कचरे का 20 प्रतिशत हिस्सा महाराष्ट्र से आता है. दूसरे नंबर पर तमिलनाडु है जो कुल 13 प्रतिशत ई-कचरा पैदा करता है. इसके बाद इस सूची में उत्तर प्रदेश (10 प्रतिशत), पश्चिम बंगाल (9.8 प्रतिशत) और दिल्ली (9.5 प्रतिशत) हैं. चिंता की बात यह है कि जो 22 लाख टन कचरा अभी पैदा हो रहा है उसमें से करीब चार लाख टन ही रिसाइकल किया जा रहा है.

जानकारों का मानना है कि ई-कचरे में लेड, मरकरी, कैडमियम और कोबाल्ट जैसे खतरनाक तत्व होते हैं. ई-कचरे के उपचार यानी रिसाइकलिंग के दौरान निकलने रसायनों और विकिरण से न सिर्फ पर्यावरण बल्कि इंसानों के लिए भी खतरा पैदा होता है. इसके संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र (न्यूरो), सांस, त्वचा, कैंसर, दिल संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

इसे देखते हुए जाहिर है कि भारत के सामने ई-कचरे को रिसाइकल करने की बड़ी चुनौती है. देश में अभी मात्र पांच प्रतिशत ई-कचरा संगठित क्षेत्र द्वारा रिसाइकल किया जाता है. बचा हुआ 95 प्रतिशत ई-कचरा असंगठित क्षेत्र के हवाले है. यानी इसे मजदूर असुरक्षित तरीके से हाथ से ही बटोरते, छांटते और फिर गलाते हैं. इससे उन्हें स्वास्थ्य संबंधी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

भारत में यह समस्या इसलिए भी बड़ी है कि यहां अधिकतर ई-कचरे को कबाड़ के साथ ही निपटाया जाता है. ई-कचरे से धातुएं निकालने के बाद बचे हुए कचरे को ऐसे ही खुले में फेंक दिया जाता है. इससे यह हवा, पानी और मिट्टी के लिए गंभीर प्रदूषण का कारण बनता है. खुले में फेंके जाने के कारण इस कचरे में मौजूद लेड और मरकरी जैसे जहरीले तत्व हवा और पानी में घुल कर न सिर्फ पर्यावरण बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर डालते हैं.

नियम और लापरवाही

अक्टूबर 2016 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ई-कचरा प्रबंधन नियम के तहत इस कचरे के निपटान की जिम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाने वाली कंपनियों पर डाला था. इसके तहत कंपनियों को कहा गया था कि कि वे एक साल में बेचे गए इलेक्ट्रॉनिक सामान के 20 प्रतिशत तक ई-कचरे का खुद निपटारा करें. इस आंकड़े को हर पांच साल बाद हर साल दस प्रतिशत बढ़ाया जाना है. नियमों के मुताबिक कंपनियों को न सिर्फ ई-कचरे को इकट्ठा करना है, बल्कि इसको वैज्ञानिक तरीके से उपचारित करने वाली इकाइयों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर डाली गई है. ई-कचरे का निस्तारण करने वाली ये इकाइयां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से मान्यता प्राप्त होनी चाहिए. नियमों के मुताबिक कंपनियों को हर साल अपने उत्पादन और संग्रहण की रिपोर्ट सीपीसीबी को जमा करनी होगी.

लेकिन क्या ऐसा हो रहा है? इन कंपनियों की मानें तो वे ई-कचरे को उपचारित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करने का दावा करती हैं. लेकिन यहां झोल यह है कि उनके दावों की जांच करने वाला कोई तंत्र अभी मौजूद नहीं है. डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बारे में सीपीसीबी के पास कोई आंकड़े ही मौजूद नहीं हैं. सीपीसीबी के अनुसार भारत में 214 अधिकृत रीसाइकलर और डिस्मेंटलर्स हैं जिन्होंने 2016-17 में भारत के 20 लाख टन ई-कचरे में से केवल 36 हजार टन कचरे को ही रीसाइकल किया है.

भारत के सामने यह समस्या ई-कचरे के आयात से और अधिक बढ़ जाती है. हालांकि, नए कानून के मुताबिक रीसाइकलिंग ई-कचरे के आयात पर सरकार ने भले ही पूरी तरह से रोक लगा दी है, लेकिन यह अब भी बदस्तूर जारी है. इसकी वजह भी है. भारत ई-कचरे को रीसाइकल करने के लिए भले ही इसके आयात की मंजूरी न देता हो, लेकिन वह ई-कचरे से नए उत्पाद बनाने यानी नवीनीकरण की मंजूरी जरूर देता है. इसके चलते रोक के बावजूद इसका आयात जारी है. वहीं, ई-कचरे को आयात कर नए उत्पाद बनाने वाली कंपनियों पर भी कोई निगरानी तंत्र नहीं है जो यह पता लगाए कि वे सच में नए उत्पाद बना रही हैं या कचरा पहले की तरह ही निपटा रही हैं. विदेशों से कितना ई-कचरे का आयात हो रहा है, इसके आंकड़े भी सरकार के पास नहीं हैं.

कचरा प्रबंधन भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक है. ई-कचरे ने भारत की इस समस्या को और बढ़ा दिया है. भारत अपने 100 शहरों को स्मार्ट शहरों के रूप विकसित करने की तैयारी रहा है. ऐसे में उसे कचरा प्रबंधन के लिए एक ठोस रणनीति बनाने की आवश्यकता है. भारत में 80 प्रतिशत कचरे का निपटारा उसे बीनकर किया जाता है. भारत में लोगों को कचरों के प्रकार को लेकर जागरूकता फैलाने की भी आवश्यकता है. इसके साथ ही लोगों को ई-कचरे के सही प्रबंधन के बारे में भी बताना होगा. ई-कचरे को वैज्ञानिक तरीके से उपचारित करने वाली इकाइयों को प्रोत्साहन देने की भी जरूरत है. ताकि इसका सुरक्षित समाधान खोजा जा सके.