आंखें होने का सबसे बड़ा फायदा क्या है? अगर यह प्रश्न आज की दुनिया के किसी आदमी से कोई पूछें तो हो सकता है वह कहे, ‘आंखों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इनसे हम कंप्यूटर देख पाते हैं.’ कल के दिन शायद मेरे नाती-पोते विश्वास ही न करें और यह सुनकर अविश्वासपूर्वक हंसे कि कभी ऐसा भी समय था जब आदमी बिना कंप्यूटर या लैपटॉप के जीता था. वे मानेंगे ही नहीं.
जब हमारा जीवन इतना कंप्यूटरमय तथा कंप्यूटरग्रस्त हो चुका हो, तब शरीर में सबसे ज्यादा दबाव अगर किसी पर आया है तो वे हैं हमारी आंखें. कंप्यूटर को देखना किसी अन्य चीज को देखने की तरह आम घटना नहीं है. यह किताब को पढ़ने या टाइपिंग मशीन पर टाइप करने जैसा काम नहीं है. आंखें इन सब कामों में भी लगातार काम लाई जा सकती है. कई बार घंटों तक लिखा-पढ़ी करते ही हैं. पर कंप्यूटर पर लिखी इबारत को पढ़ना कागज पर लिखे को पढ़ने से एकदम अलग किस्म का ‘मैकेनिज्म’ है. कैसे? वह यूं कि कंप्यूटर स्क्रीन पर जो भी आकृतियां बन रही हैं, वे बहुत सारे बिंदुओं को मिलाकर बन रही हैं. और ये ‘इलेक्ट्रॉनिक बिंदु’ लगातार हिल रहे हैं.

आंखों को इन निरंतर दोलायमान बिंदुओं का पीछा करना पड़ता है. आंखें लगातार हिलकर इन बिंदुओं की गति के साथ तालमेल बनाए रखती हैं ताकि हम कंप्यूटर पर ठीक से देख सकें. नतीजा? आंखे घूम घूमकर थक जाती हैं. नेत्र तनाव के लक्षण उभर आते हैं. कंप्यूटर स्क्रीन के आसपास ‘स्टेटिक इलेक्ट्रिकल चार्जेज’ भी पैदा होते हैं जो आसपास की धूल के कणों को अपनी तरफ खींचते हैं. यह धूल भी नेत्रों में जा सकती है. फिर प्राय: कंप्यूटर छोटे-छोटे दड़बेनुमा केबिनेट में रखे होते हैं. आंखों में दर्द होता है. आंखें सूखी-सूखी लगती हैं. आंखों में खुजली होती है. एलर्जी भी औरों की तुलना में ज्यादा होने लगती है. आंखें थकी-थकी रहती हैं. नींद बिगड़ जाती है. मन बेचैन रहता है. कंधे दर्द करने लगते हैं. गर्दन दर्द करती है. सिरदर्द हो सकता है. आदमी चिड़चिड़ाने लगता है. बिना बात के गुस्सा होता है. थका रहता है.
बच्चों में तो ये नेत्र तनाव के लक्षण और भी गुल खिला सकते हैं. उनकी आंखें कंप्यूटर की मद्धम रोशनी की ऐसी आदी हो जाती हैं कि बच्चे को फिर सूर्य की रोशनी ही नहीं भाती. फिर वह बाहर नहीं रहना चाहता. उसके दोस्त कम हो जाते हैं. बाहर नहीं खेलेंगे तो दोस्त कहां रह जाएंगे? आंखों के निरंतर तनाव से वह इस कदर थक सकता है कि उसका खाना खाने का मन ही न करे.
बच्चे का चिड़चिड़ा होना, लड़ाकू होना, किसी की बात को बर्दाश्त ही न करना आदि लक्षण भी अंतत: ‘कंप्यूटर विजन सिंड्रोम’ के ही भाग हैं. कंप्यूटर के सामने बैठकर जो समय बिताया, खराब किया वह तो एक अलग विषय है परंतु उसके असर की चपेट में शेष बचा समय भी आ जाता है. यहां हम यह तो चर्चा तो कर ही नहीं रहे हैं कि कंप्यूटर पर जो अनाप-शनाप चीजें बच्चा देखता/देख सकता है उसके दुष्प्रभाव से व्यक्तित्व में क्या-क्या गलत परिवर्तन होते हैं? वह तो विषय ही अलग है. अभी तो हम लगातार कंप्यूटर पर काम करने वाले बच्चे में मात्र कंप्यूटर देखने से ही होने वाले बदलावों की चर्चा कर रहे हैं जो नेत्र तनाव से पैदा होते हैं.
तो क्या कंप्यूटर पर काम करना तज दें? तज तो दें परंतु फिर आजकल का जीवन कैसे चलेगा? तो कंप्यूटर तो छोड़ा नहीं जा सकता. कंप्यूटर आधुनिक जीवन की अपरिहार्य बुराई है. तो कुछ बातों का ख्याल करके यदि कंप्यूटर/लैपटॉप पर काम करेंगे तो नेत्र तनाव से बचा जा सकता है. ये बातें सिलसिलेवार इस प्रकार हैं :
(1) कंप्यूटर का स्क्रीन अपनी आंखों के लेवल से छ: से आठ इंच तक नीचे रखें.
(2) कंप्यूटर को सूरज की रोशनी में रखकर काम न करें. न ही तेज रोशनी में कहीं अन्यत्र बैठकर भी. सिर के ऊपर से भी तेज, तीखी रोशनी न हो. चमकदार रोशनी में कंप्यूटर पर काम करना नेत्र तनाव पैदा करता है.
(3) कभी लगातार कंप्यूटर पर काम न करें. आधे घंटे के बाद पांच एक मिनट का ‘ब्रेक’ अवश्य ले लें. पांच मिनट में पहाड़ न टूट पड़ेगा.
(4) कंप्यूटर स्क्रीन से अपनी आंखों को कम से कम बीस इंच की दूरी पर रखकर काम करें’
(5) नेत्रों का ‘कनवर्जेंस’ व्यायाम किया करें. ‘त्राटक क्रिया’ इसी तरह का व्यायाम है. किसी भी नेत्र विशेषज्ञ से ‘कनवर्जेंस एक्सरसाइज’ समझ सकते हैं. यह व्यायाम विशेष तौर पर ‘मायोपिक’ चश्मा (जिन्हें दूर का देखने में दिक्कत होती है) लगाने वाले तो जरूर करें.
(6) यदि किसी लिखित दस्तावेज के साथ कंप्यूटर पर काम कर रहे हों तो दस्तावेज को भी कंप्यूटर स्क्रीन के लेवल पर ही रखकर काम करें. दोनों के लेवल अलग-अलग होंगे तो आंखों को बार-बार दस्तावेज तथा स्क्रीन के बीच घुमाना होगा जो नेत्र तनाव पैदा करेगा.
(7) कुछ ‘एंटी ग्लेयर’ चश्मे भी बाजार में उपलब्ध हैं - वे कुछ फायदा कर सकते हैं.
(8) आंखें सूखी लगें, या खुजली होने लगे तो किसी नेत्र विशेषज्ञ की सलाह पर ही ‘आई ड्रॉप्स’ डालें.
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