दीवाली के जश्न के बाद गुरुवार सुबह दिल्ली सहित पूरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) धुएं और धुंध की चपेट में आ गया. इससे हवा में प्रदूषण की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक गुरुवार सुबह छह बजे दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 325 दर्ज किया गया. यह स्तर ‘बेहद खतरनाक’ माना जाता है. भारत के कई और शहरों में भी हवा का हाल कमोबेश ऐसा ही है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वायु प्रदूषण को इस प्रकार परिभाषित किया है, ‘वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है जिसमें वातावरण में मनुष्य और पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले तत्व ज्यादा मात्रा में जमा हो जाते हैं.’ वैसे तो आज पूरी दुनिया वायु प्रदूषण का शिकार का शिकार है, लेकिन भारत के लिए यह समस्या कुछ ज्यादा ही घातक होती जा रही है. डब्लूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के ही हैं.
हमारे वातावरण में कई गैसें एक आनुपातिक संतुलन में होती हैं. इनमें ऑक्सीजन के साथ कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड आदि शामिल हैं. इनकी मात्रा में थोड़ा भी हेरफेर से संतुलन बिगड़ने लगता है और हवा प्रदूषित होने लगती है. मानवजनित गतिविधियों के चलते वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों की मात्रा बढ़ने लगी है. साथ ही फैक्ट्रियों-वाहनों का धुआं और निर्माण कार्यों से उठने वाली धूल इस संतुलन को और बिगाड़ने पर तुली हुई है. सर्दियों में यह स्थिति और भी घातक होने लगती है. इस दौरान हवा में मौजूद नमी के चलते ये गैसें और धूल वातावरण में धुंध की एक मोटी चादर फैला देती है जिससे हालात किसी गैस चैंबर की तरह हो जाते हैं. यह स्थिति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इन आंकड़ों से भी लगता है.
1. डब्लूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 90 प्रतिशत से भी ज्यादा बच्चे जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं. संस्था के अनुमान के मुताबिक 2016 में 15 वर्ष से कम की उम्र के करीब छह लाख बच्चों को वायु प्रदूषण से होने वाले श्वास नली के संक्रमण के चलते जान गंवानी पड़ी. इस मामले में भारत शीर्ष पर था. रिपोर्ट के मुताबिक यहां पांच साल से कम उम्र वाले हर दस में से एक बच्चे की मौत का कारण वायु प्रदूषण होता है.
2. डब्लूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू वायु प्रदूषण से हर साल 38 लाख लोगों की मौत हो जाती है. ये प्रदूषण खाना बनाने या लालटेन जलाने के लिए लकड़ी या केरोसीन जैसे ईंधनों के इस्तेमाल से होता है. दुनिया भर में करीब तीन सौ करोड़ से ज्यादा लोग इस तरह के ईंधनों पर निर्भर हैं.
3. बाहरी वातावरण में मौजूद वायु प्रदूषण दुनियाभर में हर साल करीब 42 लाख लोगों की मौत का कारण बनता है. दुनिया की आबादी का करीब 91 प्रतिशत हिस्सा ऐसी जगहों पर रह रहा है जहां हवा की गुणवत्ता डब्लूएचओ के मानकों पर खरी नहीं उतरती. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 66 करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रहने को मजबूर हैं जहां हवा में प्रदूषण की मात्रा राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है.
4. वायु प्रदूषण के कारण सबसे अधिक मौतें (43 प्रतिशत) फेफड़ों से संबंधित बीमारियों से होती हैं. इनमें कैंसर से 14 और फेफड़ों से संबंधित दूसरी बीमारियों से 29 प्रतिशत मौतें होती हैं. इसके अतिरिक्त ब्रेन स्ट्रोक से 24 और हृदय संबंधी बीमारियों के चलते 25 प्रतिशत मौतें होती हैं.
5. वायु प्रदूषण पर आयोजित पहले वैश्विक सम्मेलन में पेश विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते देश में मानसून के दौरान होने वाली बारिश में कमी आ सकती है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा है कि भारत में घरेलू कारणों की वायु प्रदूषण में हिस्सेदारी 22-52 प्रतिशत है. इसके मुताबिक अगर घरों में ईंधन के रूप में केरोसीन या लकड़ी का इस्तेमाल बंद कर दिया जाए तो इस तरह के प्रदूषण को काफी कम किया जा सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा करने से हर साल 20 लाख लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है.
6. एशिया में वायु प्रदूषण के होने वाली अकाल मौतों के मामले में भारत शीर्ष पांच देशों में शामिल है. इस सूची में सबसे ऊपर उत्तर कोरिया है और फिर चीन.
7. डब्लूएचओ की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत के हैं. इस सूची में उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा शहर कानपुर पहले स्थान पर है. इसके बाद फरीदाबाद, वाराणसी, गया, पटना, दिल्ली, लखनऊ, आगरा, मुजफ्फरपुर, श्रीनगर, गुड़गांव, जयपुर, पटियाला और जोधपुर हैं.
8. वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान व शोध प्रणाली ‘सफर’ के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण में वाहनों की भागीदारी 41 प्रतिशत है. इसके बाद हवा में मौजूद धूल के कण प्रदूषण में वृद्धि के लिए उत्तरदायी हैं. हवा को दूषित करने में इनकी भागीदारी 21.5 प्रतिशत है. वहीं, उद्योगों की वायु प्रदूषण में हिस्सेदारी 18.6 प्रतिशत है.
9. भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने पिछले साल दिल्ली में वायु प्रदूषण को देखते हुए स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा करते हुए लोगों से घरों के बाहर न निकलने की अपील की थी. रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल दिल्ली की हवा में सांस लेना दिनभर में 44 सिगरेट पीने जितना खतरनाक बताया गया था.
भारत में बड़े शहरों से इतर अब छोटे-छोटे शहरों में भी हवा सांस लेने लायक नहीं है. उसमें घुला जहर लोगों को न सिर्फ धीरे-धीरे बीमार कर रहा है बल्कि उनकी मौत की वजह भी बन रहा है. जानकारों का मानना है कि आने वाले समय में यह प्रदूषण और अधिक बढ़ सकता है. अक्सर हर साल यह देखने को मिलता है कि वायु की गुणवत्ता घटते ही सरकार हरकत में आने लगती है और जैसे स्थिति सामान्य होती है तो मामला शांत पड़ जाता है. जानकारों के मुताबिक सरकारों के प्रदूषण से लड़ने के लिए दीर्घकालीन नीतियां बनाने की जरूरत है तो वहीं लोगों को अपने स्तर पर वे सभी जतन करने की जरूरत है जो हवा को जहरीली होने से रोकें.
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें | सत्याग्रह एप डाउनलोड करें
Respond to this article with a post
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.