भारत के मेरठ में जन्मीं मशहूर पाकिस्तानी शायरा और सामाजिक कार्यकर्ता फहमीदा रियाज़ ने बीती 22 नवंबर को, 73 साल की उम्र में इस दुनिया से रुखसत ले ली. वे एक ऐसी प्रगतिशील नारीवादी शायरा थी जिन्होंने अपनी शायरी से पाकिस्तान में महिलाओं, धर्म और सांप्रदायिकता की स्थिति की तरफ सबका ध्यान खींचा. खासकर महिलाओं से जुड़े मुद्दों और उनकी परेशानियों को लेकर वे सदैव मुखर रहीं.
यह वीडियो उनकी इसी मिजाज की एक बानगी पेश करता है. इसमें वे महिलाओं को समर्पित अपनी एक कविता पूरे पूरे नाजो-अंदाज और जोश के साथ पढ़ रही हैं. इसमें वे औरत की उन इच्छाओं के बारे में बताती हैं जिनको वो अपनी जवानी में तो पूरा नहीं कर सकी पर बुढ़ापे में पूरा करने की ठानती है. लेकिन तभी उसे इस बात का एहसास होता है कि उम्र की सीमा उसके शरीर और विचारों पर हावी हो चुकी है. उसे याद आता है कि कैसे उसने अपना सारा जीवन दूसरों के ऊपर ही खुशी के लिए न्यौछावर कर दिया. यह कविता अपने इरादों में इतनी खरी है कि आज भी औरतों के जीवन पर जस की तस फिट बैठती है, मानो इसे लिखने के बाद बीत गए सालों का इस पर कोई असर ही नहीं हुआ हो.
भारत के साथ भी फहमीदा का रिश्ता काफी गहरा रहा. उनका जन्म तो भारत में हुआ ही था, इसके अलावा करीब सात सालों तक वे भारत में शरण लेकर भी रहीं थीं. शायद ये भारत से उनका जुड़ाव ही था जिसकी वजह से उन्होंने भारत में बढ़ते संप्रदायवाद को निशाना बनाते हुए एक कविता लिखी. इस कविता का शीर्षक था ‘तुम बिल्कुल हम जैसे निकले’. साल 2013 में ‘अपने आप विमेन वर्ल्डवाइड’ द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में बांची गई यह कविता फहमीदा रियाज़ की सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है. तल्ख अंदाज में भार- पाकिस्तान की समानताएं बताने वाली इस कविता को फहमीदा के दार्शनिक विचारों के साथ-साथ उनकी अच्छी हिंदी के लिए भी सुना जाना चाहिए.
इन सबसे इतर हिंदुस्तान के अदबी तबके में फहमीदा रियाज़ हमेशा अदब से लिया जाने वाला ही नाम रहीं. इस बात का पता इस वीडियो से भी चलता है जिसे भारत के लोकप्रिय यूट्यूब चैनल उर्दू स्टूडियो ने सालों पहले बनाया था. पाकिस्तान की मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और थिएटर डॉयरेक्टर शीमा केरमानी ने इस कविता को पढ़ा है, जिसका शीर्षक है ‘संगदिल रवाजों की.’ इसे सुनते हुए अक्सर दोहराई जाने वाली एक लाइन याद आती है कि ‘आपके किए हुए कर्म हीआपको अमर बनाते हैं,’ और इस बात का यकीन होता है कि फहमीदा रियाज़ के संदर्भ में ये काम उनकी कविताएं करेंगी.
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