कुछ साल पहले एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कल्कि केकलां ने अपनी पहली फिल्म ‘देव डी’ से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा साझा किया था. उन्होंने बताया था कि उनका पोर्टफोलियो देखकर इस फिल्म के निर्देशक अनुराग कश्यप ने उन्हें लेने से इंकार कर दिया था. अनुराग का कहना था कि कल्कि केकलां के विदेशी नैन-नक्श उन्हें चंदा के उस घोर भारतीय किरदार के लिए अनफिट बनाते हैं जो शरतचंद्र चटर्जी की चंद्रमुखी से प्रेरित है.


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बाद में यह हुआ कि ‘देव डी’ की प्रोडक्शन टीम ने निर्देशक को बताए बगैर चुपचाप कल्कि का ऑडिशन ले लिया और इसके फुटेज उन्हें भेज दिए. फुटेज में कल्कि का अभिनय का देखने बाद खुद अनुराग कश्यप भी उनके चेहरे को भूल गए और तुरंत उन्हें फोन कर फिल्म में लेने की बात कही. और दिलचस्प यह रहा कि कल्कि के लुक को जस्टिफाई करने के लिए कश्यप ने पटकथा में कुछ जरूरी बदलाव भी करवाए.

‘देव डी’ के करीब 40 मिनट गुजरने के बाद चंदा यानी कल्कि केकलां स्कूल यूनिफॉर्म में परदे पर नज़र आती हैं. यहां पर वे एक ऐसी किशोरी की भूमिका में दिखती हैं जो जिंदगी में आज़ादी और उससे भी पहले आशिकी चाहती है और इसके लिए सेक्सी बनने की कोशिश में पहले से छोटी अपनी स्कर्ट को थोड़ा और चढ़ा लेती है. यहां पर कल्कि अपने स्टूडेंट लुक से ज्यादा अपने चेहरे की मासूमियत और निश्छल मुस्कुराहट से इस बात का पक्का यकीन दिला देती हैं कि असल में वे सोलह बरस की ही हैं. बाद में उनका रोल एक कॉलेज गोइंग गर्ल कम सेक्स वर्कर में बदल जाता है जिसे वे इस ईमानदारी से निभाती हैं कि अब उनकी जगह किसी और को सोच पाना भी मुश्किल लगता है.

पहली फिल्म के बाद कल्कि केकलां के बारे में ज्यादातर फिल्म समीक्षकों की राय यही थी कि वे अपनी परफॉर्मेंस से लस्ट-मीटर को जितना ऊपर ले जा सकती थीं, ले गईं यानी वे फिल्म में काफी सेंशुअस दिखी थीं. सिनेमा के जानकारों ने यह भी माना कि ऐसा करते हुए उन्होंने अपना असल काम ईमानदारी से किया और इस मॉडर्न चंद्रमुखी के भीतर की औरत को सटीकता से दिखा पाने में सफल रहीं. इससे अलग दर्शकों ने उन्हें वन-फिल्म वंडर की तरह देखा और यही माना कि आने वाले वक्त में किसी एंग्लो-इंडियन लड़की या दोयम दर्जे की भूमिकाओं में यह सेक्सी चेहरा उन्हें कभी-कभार ऩज़र आता रहेगा. कल्कि कभी आम भारतीय लड़की का रोल निभाएंगी और सेंशुअसनेस से इतर अपने अभिनय से कोई बड़ा मुकाम हासिल कर सकेंगी, यह बात उस समय शायद ही किसी के दिमाग में आई होगी. ‘देव-डी’ के बाद उन्हें मिली ‘शैतान’ और ‘इमोशनल अत्याचार’ जैसी फिल्में इस बात की तस्दीक भी करती हैं.

आज ‘देव डी’ को देखते हुए आपको शिद्दत से इस बात का एहसास होता है कि कल्कि केकलां ने अपनी पहली फिल्म का हर शॉट पूरे परफेक्शन के साथ दिया था और उसमें आप कोई खोट निकाल सकें, इसकी गुंजाइश न के बराबर छोड़ी थी. साथ ही यह भी पता चलता है कि यह उनका परफेक्शन ही था जो इस किरदार को याद रखने की वजह बना था. फिल्मों से पहले थिएटर करके आई यह इस अभिनेत्री के चेहरे पर मासूमियत के साथ-साथ एक समझदारी की झलक भी मिलती है जिसे अब ज्यादा अच्छे से उनके चेहरे पर आते-जाते देखा जा सकता है. ‘देव-डी’ के समय जरा-जरा नज़र आने वाली इस झलक ने ही बाद में उन्हें ‘वेटिंग’ और ‘शंघाई’ जैसी इंटेंस फिल्मों के काबिल साबित किया है.

अपनी पहली फिल्म के लिए कल्कि केक्लां ने बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का आइफा, फिल्मफेयर और प्रोड्यूसर गिल्ड अवॉर्ड जैसे पुरस्कार जीते थे. अब जब इस फिल्म को रिलीज हुए लगभग एक दशक बीत चुका है और कल्कि राष्ट्रीय पुरस्कार सहित जाने कितने देसी-विदेशी सम्मान अपनी झोली में समेट चुकी हैं, यह कहा जा सकता है कि उनके मामले में शायद सबसे बड़ा सम्मान भारतीय दर्शकों द्वारा उन्हें स्वीकार कर लिया जाना ही होगा. यह क्यों जरूरी था इसे ‘देव-डी’ से उनके साथ ही डेब्यू करने वाली माही गिल से तुलना करके भी समझा जा सकता है, वह भी तब जब माही परंपरागत बॉलीवुड हिरोइनों के हिसाब से परफेक्ट भी थीं. लेकिन फिर भी करियर और स्टारडम के मामले में कल्कि से काफी पीछे रह गईं.

एक वक्त टाइपकास्ट होने से बाल-बाल बचीं कल्कि के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वे एक दिन ‘स्मोक’ और ‘नेकेड’ जैसी वेबसीरीज या शॉर्ट फिल्म करेंगी और लोग घर बैठकर इन्हें सिर्फ उनके लिए इन्हें देखेंगे. यह भी नहीं कि ‘ये जवानी है दीवानी’ जैसी घोर मसाला फिल्म में हिरोइन न होते हुए भी उन्हें और उनके निभाए किरदार को याद किया जाएगा. और यह तो बिल्कुल नहीं कि आने वाले वक्त में उन्हें कुछ ऐसे किरदारों भी निभाने को मिलेंगे जिन्हें लेनी, सोफी और रूथ के साथ-साथ अदिति, शालिनी और विशाखा जैसे नाम दिए गए होंगे!