आजकल की लघु फिल्में अनूठे और मुश्किल विचारों को अमलीजामा पहनाने के लिए खासतौर पर सराही जाती हैं. ‘रोगन जोश’ से लेकर ‘चटनी’ तक के तमाम उदाहरण हमारे पास हैं. लेकिन कभी-कभी, कोई सरल-सी लघु फिल्म देखकर सिनेमा के परदे से गायब हो रही सादगी का महत्व वापस से पहचान में आने लगता है.
लार्ज शॉर्ट फिल्म्स के यूट्यूब चैनल पर हाल ही में अपलोड की गई ‘खातून की खिदमत’ प्रेमचंद जैसे लेखकों की कहानी सा स्वाद देती है. पार्श्व संगीत की टेक लेकर रोजमर्रा के एक मसले को खूबसूरती से उकेरती है और अपने अंजाम में सरल-सहज कहानियों वाली शैतानी रखती है. कुछ-कुछ दूरदर्शन के उस सुनहरे दौर की याद दिलाती है जब प्रेमचंद जैसे लेखकों की सरल-सहज और सच्ची-प्यारी कहानियां देखकर हमारी पीढ़ी को बड़ा होने का खुशनसीब मौका मिला था. गुलजार रचित धारावाहिक ‘तहरीर – मुंशी प्रेमचंद की’ खास तौर पर याद आता है.
‘खातून की खिदमत’ का निर्देशन और लेखन सहीम खान नाम के युवा अभिनेता ने किया है. वे ही इस 26 मिनट की शॉर्ट के मुख्य नायक हैं. इन्हें शायद आप सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाले क्राइम पेट्रोल से पहचानेंगे जिसके कई सारे एपीसोड में ये ही मुख्य नकारात्मक भूमिका निभाते थे. हाल ही में इनकी निर्देशित व अभिनीत एक अप्रदर्शित फीचर फिल्म ‘इकराम’ को कनाडा के क्रिएशन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत किया गया है. खुद सहीम खान को सिस्टम के सताए मुस्लिम युवक की मुख्य भूमिका निभाने के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है. ‘खातून की खिदमत’ में भी इनका काम सराहनीय है और यहां एक अनजान अभिनेता का यूं लंबा-चौड़ा विवरण दिए जाने को जस्टीफाई करता है.
ग्रामीण परिवेश की गुम होती सिनेमैटिक कहानियों के बीच गांव-कस्बे में स्थापित सलीके से कही गई कहानी देखने का अलग ही सुकून होता है. नकलीपन की बू जब नहीं आती तो बहुत अच्छा लगता है. ऊपर से मामूली रोजमर्रा के एक मसले को जब कहानी की मुख्य चकरघिन्नी बनाया जाता है और आप घर में टीवी चाहने की जिद करने वाली सादी-सी कहानी में आखिर तक दिलचस्पी लेते चलते हैं, तो ये आज के दौर में लेखक-निर्देशक की बहुत बड़ी सफलता मानी जाएगी. गुदगुदी करते संवादों के बीच समाज की रूढ़ियों पर चोट करने का मौका निकालने का हुनर भी इस शॉर्ट में नजर आता है और तीन तलाक के राजनीतिक हो चुके मसले को सलीके से छूकर भर निकल जाने की समझ भी यह दिखाती है. खुद को अगर यह व्यंग्यात्मक कॉमेडी कहती है, तो व्यंग्य और कॉमेडी के बीच ठीक संतुलन बनाकर भी चलती दिखती है.
‘खातून की खिदमत’ देखते वक्त याद आता है कि हाल ही में एक और प्रभावी लघु फिल्म ने मुस्लिम मुख्य किरदार को केंद्र में रखकर अपनी कहानी कही थी, लेकिन वह फिल्म ज्यादा चर्चा नहीं बटोर सकी. ‘तू’ नामक यह शॉर्ट फिल्म लार्ज शॉर्ट फिल्म्स के ही यूट्यूब चैनल पर करीब एक महीने पहले रिलीज हुई और अपनी हिंदू-मुस्लिम प्रेम-कहानी के बहाने हमारे दौर की रगों में बहते अविश्वास को परदा देकर चली गई.
‘तू’ की हिंदू नायिका (बेहद प्रभावी शायोनी गुप्ता) और मुस्लिम नायक (अर्जुन राधाकृष्णन) बंद कमरे में मिलते हैं और असहिष्णु परिवारों और समाज के बीच डरते-डरते पास आने की कोशिश करते हैं. लेकिन, नहीं जानते कि बाहर खड़ा घोर जंगली समाज उन्हें अलग कर देना चाहता है, और आप हैरान होंगे कि केवल सात मिनट में ये लघु फिल्म हमारे दौर की इस कड़वी सच्चाई को बिना हिंसा का सहारा लिए बखूबी दिखा जाती है.
जरूर देखें, हमारे वक्त के इस आईने को. दरवाजा पीटने की आवाज कई दिनों तक आपके कानों में भी गूंजती रहेगी.
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