कानून को बदलते समाज के साथ बदलने में ही सार्थक माना जा सकता है. उदाहरण के लिए बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून पर अहम फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया. करीब 157 साल पुराने इस कानून के मुताबिक एक शादीशुदा पुरुष का किसी दूसरे शादीशुदा पुरुष की पत्नी से शारीरिक संबंध बनाना अपराध था.
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लेकिन यह प्रावधान केवल पुरुषों पर लागू था. महिलाओं पर इस कानून के तहत केस नहीं चलाया जा सकता था. यानी इस कानून के तहत सिर्फ उस शख्स के खिलाफ केस दर्ज हो सकता था जिसने शादीशुदा महिला से संबंध बनाए. उस महिला के खिलाफ नहीं जिसने ऐसे संबंध बनाने के लिए सहमति दी. अदालत ने कहा कि ऐसे कानून की समाज में जगह नहीं होनी चाहिए जो महिलाओं से पति की ‘संपत्ति’ की तरह पेश आता हो. इसी तरह देश की सर्वोच्च अदालत ने तीन तलाक़ को भी ग़ैरक़ानूनी ठहराया था.
लेकिन इस तरह के लीक से हटकर फैसले देने वाले जज कम ही होते हैं. इंग्लैंड के लार्ड अल्फ्रेड थॉमसन डेनिंग ऐसे ही जज हुए हैं जिन्होंने बार-बार कानून को बदलते समाज के साथ सार्थक बनाने के लिए काफ़ी कोशिश की. इसके चलते, उन्हें दुनिया के शीर्ष न्यायधीशों की श्रेणी में रखा जाता है.
डेनिंग पूर्व में दिए गए फ़ैसलों को नज़ीर नहीं मानते थे. एक केस में फ़ैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा था कि बदलते हुए समाज में क़ानून और न्याय की अवधारणायें बदलती रहती हैं. इंग्लैंड में ‘मास्टर ऑफ़ रोल्स’ का दर्ज़ा पाने वाले डेनिंग को जनता का जज कहा जाता था. ‘मास्टर ऑफ़ रोल्स’ का मतलब मुख्य न्यायाधीश के बाद दूसरा सबसे बड़ा न्यायाधीश होता है. डेनिंग निजी अधिकारों के सबसे बड़े पैरोकार थे. इंग्लैंड में बसे अश्वेत लोगों को समान अधिकार की बात कहकर उन्होंने न्याय को तर्कसंगत बनाया था.
डेनिंग को ‘प्रोफ्यूमो अफ़ेयर’ केस में दिए गए उनके फ़ैसले ने सबसे ज्यादा प्रसिद्धि दी. यह 1960 के दशक की बात है. जॉन प्रोफ्यूमो अफेयर हेरॉल्ड मैकमिलन सरकार में गृहमंत्री थे. मंत्री रहते उन्होंने एक ऐसी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे जो देह व्यापार का काम करती थी. इस महिला के सोवियत दूतावास के एक अधिकारी के साथ भी संबंध थे. इस वजह से जॉन प्रोफ्यूमो पर देश की संप्रुभता को ख़तरा पहुंचाने का इल्ज़ाम लगा. मामला डेनिंग की अदालत में आया. डेनिंग ने प्रोफ्यूमो को बरी कर दिया पर लड़की के चरित्र पर सवाल खड़े किए. यह मामला इतना तूल पकड़ गया कि प्रधानमंत्री हैरॉल्ड मैकमिलन को इस्तीफ़ा देना पड़ा.
डेनिंग कहते थे, ‘मेरे सहयोगी जज कानून की परवाह करते हैं, मैं न्याय की परवाह करता हूं.’ उनका एक और मशहूर कथन है कि बिना धर्म के नैतिकता नहीं हो सकती और बिना नैतिकता के कानून नहीं हो सकता. यह बड़ा महत्वपूर्ण सिद्धांत है. धर्म, राजधर्म और न्याय की अवधारणा रोमन साम्राज्य से शुरू होती है. रोमनवासियों ने धर्म और राजनीति को पृथक तौर पर रखा और वहीं से न्याय को धर्म के जंजाल से आज़ाद रखने की मुहिम शुरू हुई. पर तब भी राजधर्म और न्याय में खासा अंतर नहीं था. इसको अंग्रेज़ी के मुहावरे, ‘सीज़र्स वाइफ़’ से समझा जा सकता है.
कहते हैं एक बार जूलियस सीज़र ने एक धार्मिक अनुष्ठान करवाया जिसके तहत उसकी पत्नी पॉम्पिया को किसी भी मर्द से मिलने की इज़ाज़त नहीं थी, यहां तक कि सीज़र भी उससे नहीं मिल सकता था. एक रोज़ कुछ लोगों ने एक व्यक्ति को पॉम्पिया के महल से निकलते देखा. देखने वालों में ख़ुद सीज़र भी था. पॉम्पिया पर मुक़दमा चलाया गया जिसमें सीज़र को भी गवाही देनी पड़ी. पर सीज़र ने यह कहते हुए मामला रफ़ा-दफ़ा करवाया कि सीज़र की पत्नी हर शक़ से परे है और उस पर शक़ नहीं किया जा सकता. इसके बाद ही ‘सीज़र्स वाइफ़’ मुहावरा प्रचलन में आया. इससे ज़ाहिर होता है कि तब भी राजधर्म न्याय से ऊपर का दर्ज़ा रखता था.
डेनिंग के न्याय के साथ धर्म और राजधर्म कई बार टकराए और अंततः जीत न्याय की हुई. डेनिंग ने राजद्रोह पर भी बड़ी अहम बात कही थी. उनका कहना था कि इंग्लैंड के समाज में राष्ट्रद्रोह राजधर्म से जुड़ता है और न्याय से इसका कोई संबंध नहीं हो सकता. उनका यह भी मानना था कि कई देशों में राजधर्म की आड़ में नागरिकों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए हैं.
लार्ड डेनिंग जब फ़ैसला सुनाते थे तो अभियुक्तों को ‘वादी’ या ‘परिवादी’ कहकर संबोधित नहीं करते थे. वे उनके नाम लिखते थे. डेनिंग के फ़ैसले कहानीनुमा होते और इसकी वजह से वे बड़े चाव से सुने जाते. तलाक़शुदा महिलाओं को संपत्ति और अपने पूर्व पति के घर में रहने के अधिकार दिलाने के लिए भी उनको याद किया जाता है.
लार्ड डेनिंग को अकसर मर्दों के कोप का भाजन बनना पड़ता था. उन्हें कई ख़त आते थे जिनमें मर्द उन्हें कोसते और ईश्वर से डेनिंग को अगले जन्म में उनके जैसी पत्नी मिलने की प्राथना करते. एक बात किसी मर्द ने उन पर कोर्ट में जूता फेंक दिया. इस बात से डेनिंग नाराज़ नहीं हुए. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि गुस्सा एक मानवीय भावना है जो कभी-कभी ऐसे भी बाहर आती है. आज जब आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को कानून के साथ मिलाने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है, लार्ड डेनिंग जैसे न्यायाधीश के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लग सकता है. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के पैरोकार कह रहे हैं कि इस संगम के बाद जजों द्वारा लिए गए फ़ैसलों में उनकी भावनाएं आड़े नहीं आएंगी.
हालांकि लॉर्ड डेनिंग रूढ़िवादी भी कम नहीं थे. एक बार उनके सामने के एक महिला शिक्षक और उसके छात्र के बीच हुए शारीरिक संबंधों का मसला आया. डेनिंग ने महिला को दोषी मानते हुए उसे नौकरी से बर्खास्त करने का फ़ैसला सुना दिया. इससे उनकी काफ़ी किरकिरी हुई. अपने अंतिम दिनों में डेनिंग और भी रूढ़िवादी हो गए थे. इसके चलते वे घोर आलोचना के भी शिकार हुए. उन्होंने अश्वेत लोगों को जूरी न बनाये जाने का समर्थन किया. डेनिंग को लगता था कि सिर्फ़ गोरे ही निष्पक्ष रह पाने की काबिलियत रखते हैं. इस सबके बावजूद वे इंग्लैंड के सबसे चहेते जज थे और आज भी उन्हें विश्व के सबसे महान न्यायाधीशों की सूची में रखा जाता है.
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