सालाना 26 हजार करोड़ रु के कारोबार वाला कानपुर का चमड़ा उद्योग अब तक के सबसे बड़े संकट से जूझ रहा है. शहर की 260 टेनरियों में से 90 फीसदी बीते नवंबर में बंद करवा दी गई थीं. वजह थी प्रयागराज में होने वाला कुंभ. लेकिन वह 15 मार्च को खत्म हो चुका है और इन टेनरियों के दरवाजे अब भी बंद हैं क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कामबंदी का आदेश वापस नहीं लिया है. इसके चलते प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से करीब चार लाख लोगों की जिंदगी मुश्किल में है. यही नहीं, योगी आदित्यनाथ सरकार के इस रवैय्ये का फायदा पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों को हो रहा है क्योंकि खरीददारों के ऑर्डर अब वहां जा रहे हैं.

वैसे तो कानपुर के चमड़ा उद्योग को गंगा में प्रदूषित करने वाले सबसे बड़े कारणों में एक माना जाता है. इसी वजह से कानपुर के चमड़ा उद्योग को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) और गंगा की सफाई से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं के तरह-तरह के प्रतिबंधों तथा नियम-कानूनों को झेलना पड़ता रहा है. इस कारण कानपुर की चमड़ा इकाइयों यानी टेनरियों के कारोबार में बार-बार बाधाएं भी आती रही हैं. इसी वजह से कई वर्षों के दबाव के कारण कानपुर के जाजमऊ की सभी छोटी-बड़ी चमड़ा इकाइयों को प्रदूषण नियंत्रण प्लांट लगाने पड़े. इसके अलावा भी उन्हें कई अन्य उपाय करके सरकारी महकमों को संतुष्ट करना पड़ा.

इस तरह के प्रतिबंधों से जूझते हुए कानपुर का चमड़ा कारोबार किसी तरह अपना अस्तित्व बचा रहा था. लेकिन पिछले साल 16 नवम्बर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के कानपुर दौरे ने उस पर आफत ही बरपा दी. मुख्यमंत्री ने कानपुर में गंगा में गिर रही गंदगी पर नाराजगी जाहिर की और अधिकारियों और अभियंताओं को डांट पिलाई. अधिकारियों ने खुद को घिरता देखकर इसके लिए कानपुर जाजमऊ के चमड़ा उद्योग को जिम्मेदार ठहरा दिया. इसके बाद कानपुर के क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय ने टेनरियों को बंद करने का आदेश जारी कर दिया.

इस एकतरफा कार्रवाई से टेनरी मालिकों में हड़कंप मच गया. यह एक लिहाज से उनके साथ नाइंसाफी ही थी. इसलिए कि कानपुर में जाजमऊ चमड़ा उद्योग के उत्सर्जन को साफ करने की जिम्मेदारी निभाने वाले जल निगम का कहना था कि अभी ट्रीटमेंट प्लांट की मरम्मत का काम चल रहा है, इसलिए गंदगी गंगा में गिर रही है. उसका यह भी कहना था कि मरम्मत का काम 30 नवंबर तक पूरा हो जाएगा और फिर गंगा में टैनरियों का प्रदूषित उत्सर्जन गिरना खुद ही बंद हो जायेगा.

लेकिन इस बात को अनसुना करके सारा अपराध टेनरियों पर मढ़ दिया गया. 16 नवंबर से अचानक बंदी का आदेश हो गया. हालांकि काफी विवाद के बाद नौ दिसंबर को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य पर्यावरण अधिकारी टीयू खान ने 1200 पेज के एक अन्य आदेश में जाजमऊ की 250 टेनरियों को चालू करने की अनुमति दे दी. लेकिन इसके साथ एक शर्त थी. शर्त यह थी कि अगले आदेश तक उन्हें 50 फीसदी से कम क्षमता पर चलाया जाएगा.

वैसे हैरानी की बात यह भी है कि कुंभ के दौरान गंगा में प्रदूषण न बढ़े, इसके लिए मुख्यमंत्री ने जाजमऊ की सभी टेनरियों को 15 दिसंबर 2018 से 15 मार्च 2019 तक यानी तीन महीनों के लिए बंद करने के आदेश दिए थे. मगर अधिकारियों ने अधिक चापलूसी दिखाते हुए 16 नवंबर से ही टेनरियों को बंद करवा दिया था. मुख्यमंत्री के आदेश का असर जाजमऊ की 268 टेनरियों पर पड़ा है. उन्हें अपना सारा काम एक झटके में बंद करना पड़ गया.

जाजमऊ इलाके में छोटी-बड़ी लगभग 400 टेनरियां हैं. इनमें से सवा सौ से अधिक अलग-अलग कारणों से पहले ही बंद हैं. लेकिन बाकी 268 पर कुंभ के कारण अस्थाई रूप से बंदी की मार पड़ रही है. कानपुर के टेनरी उद्यमी मानते हैं कि सरकार के इस कदम ने उद्योग की कमर तोड़ दी है. उनके मुताबिक बंद पड़ी इकाइयों को बिजली, सफाई मशीनों के रखरखाव आदि के लिए लगभग 10 लाख रुपये प्रति माह का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ रहा है. चमड़े का कारोबार करने वाले शहर के छोटे-बड़े सभी उद्यमी दिन गिन रहे थे कि किसी तरह कुम्भ मेला खत्म हो और उनकी बंद पड़ी फैक्ट्रियां फिर चालू हो सकें. अब बहुतों ने पूरी तरह उम्मीद छोड़ दी है.

चमड़ा कारोबारी हफीजुर्ररहमान उर्फ बाबू भाई कहते हैं, ‘चमड़ा साफ करने वाली सभी टेनरियों में चमड़े को कई तरह की रसायनिक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. इसके लिए लकड़ी के बड़े-बड़े ड्रम इस्तेमाल होते हैं. यह सतत प्रक्रिया होती है. बंदी के आदेश के वक्त जो माल अलग-अलग चरणों में शोधित हो रहा था वह सब तो बेकार हो ही गया, अब ड्रम भी नए सिंरे से तैयार करने पड़ेंगे.’ बाबू भाई आगे कहते हैं, ‘यह सब हमारे लिए लाखों की चपत है. इस अवधि में कारोबार का जो नुकसान हुआ है वह तो बहुत होगा. इन पांच महीनों में जाजमऊ की टेनरियों का कुल नुकसान 7000 करोड़ से ज्यादा का हुआ है.’

कानपुर के प्रदूषण विशेषज्ञ भी मानते हैं कि इस मामले में सिर्फ टेनरियों को अपराधी ठहराना उचित नहीं है. जाजमऊ की सारी टेनरियों में सरकारी निर्देशों के अनुसार प्राइमरी ट्रीटमेंट प्लांट लगे हैं. इन प्लांटों से निकले उत्सर्जन को कनवर्स के जरिए कामन इन्फ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट यानी सीईटीपी तक पहुंचाया जाता है. सीईटीपी का प्रबंध जल निगम करता है. इसलिए अगर सीईपीटी से कोई गंदगी गंगा में जा रही है या सिंचाई के लिए छोड़े जा रहे पानी में जा रही है तो उसके लिए टेनरियों को कैसे जिम्मेदार माना जा सकता है? कनवर्स से उत्सर्जन को सीईटीपी तक पहुंचाने के लिए चार पंपों का इस्तेमाल होता है. लेकिन ये चारों खराब पड़े थे. मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान यह बात सामने आई तो उन्होंने नए पंपों के लिए 17 करोड़ रु की रकम भी जारी कर दी. लेकिन इनको भी लगाने में काफी समय लग गया. कानपुर के चमड़ा कारोबारी इस बात से भी आहत हैं कि कानपुर के सबसे बड़े प्रदूषित जल वाले सीसामऊ नाले की गंदगी को भी टेनरियों के नाम कर दिया जाता है.

उत्तर प्रदेश लेदर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (यूपीएलआईए) के उपाध्यक्ष इफ्तिखारुल अमीन कहते हैं, ‘यहां कानपुर में चमड़ा उद्योग में करीब एक लाख लोग काम करते हैं. हजारों दैनिक वेतनभोगी कर्मी इस दौरान खाली बैठे हैं. विदेशों से हमें 12,000 करोड़ के जो निर्यात आर्डर मिले थे वे भी रद्द हो गए हैं. हमारा कारोबार छह महीने पीछे चला गया है.’

वैसे कानपुर के चमड़ा उद्योग का प्रदूषण से पुराना नाता रहा है. गंगा की सफाई के अभियानों के शुरू होने के साथ ही लगभग डेढ़ सौ साल पुराने इस उद्योग पर प्रतिबंध लागू होने शुरू हुए. 50 से ज्यादा टेनरियां कानपुर से हटाकर उन्नाव पहुंचाई गईं. कुछ कानपुर के ही बनथर में पहुंचाई गईं. लेकिन इससे भी प्रदूषण की स्थिति में बहुत सुधार नहीं आया. ट्रीटमेंट प्लांट भी स्थाई समाधान नहीं बन सके. फिर जाजमऊ से सभी टेनरियों को हटाकर रमईपुर में स्थापित करने में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर काम शुरू हुआ. मगर वह भी परवान नहीं चढ़ पाया.

कानपुर की टेनरियों में ऑर्गेनिक डाई के इस्तेमाल के बजाय रासायनिक डाई से चमड़े का शोधन होता है. इस प्रक्रिया में अनेक हानिकारक रसायनों और क्रोमियम आदि का भी का उत्सर्जन होता है. लखनऊ के केंद्रीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान और कानपुर के आईआईटी के शोध में यह बात सामने आई है कि टेनरियों से निकलने वाले प्रति लीटर उत्सर्जन में 192 मिली ग्राम क्रोमियम की मात्रा मौजूद है. यह अधिकतम सीमा से 90 गुना अधिक है.

कानपुर के चमड़ा कारोबारी प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए हर तरह के प्रयास करने को तैयार हैं. लेदर एक्सपोर्ट काउंसिल के स्थानीय अध्यक्ष जावेद इकबाल कहते हैं, ‘हम पर्यावरण के सारे मानक पूरे करने को तैयार हैं लेकिन सरकारी मशीनरी सहयोग नहीं करती. हमें सुविधाएं देने के बजाय तरह-तरह की बाधाएं डालती है जबकि हम उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े निर्यातकों में एक हैं.’ बाबू भाई को शिकायत है कि उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं. वे कहते हैं, ‘हम रोते हैं, चिल्लाते हैं. कोई सुन नहीं रहा. अधिकारी मनमानी कर रहे हैं. जब तक सरकार नहीं चाहेगी हमारी दशा सुधरने वाली नहीं.’

योगी सरकार के आने के बाद बूचड़खानों पर लगे प्रतिबंधों के कारण कानपुर के चमड़ा उद्योग पर बड़ी चोट हुई थी. कुंभ के प्रतिबंधों ने उसके अस्तित्व पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. ऐसे में कानपुर में चमड़ा उद्यमी दूसरे स्थानों की ओर देखने लगे हैं. कुछ ने तमिलनाडु में जगह ढूंढ़ी तो ज्यादातर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने डोरे डालने शुरू कर दिए हैं. इसी वर्ष जनवरी में कोलकाता में हुई बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट में कानपुर के चमड़ा कारोबारियों को लुभाने के लिए अनेक छूटों की घोषणा की गई. इस समिट में कानपुर के 11 कारोबारियों को तीन से पांच हजार वर्ग मीटर जमीन टेनरी लगाने के लिए दी गई है. 40 से ज्यादा कारोबारी भी अब पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मिश्रा के सम्पर्क में हैं और वहां जाने की तैयारियां करने लगे हैं. यानी अगर सरकार की ओर से संवेदनशीलता नहीं दिखाई गई तो कानपुर का चमड़ा उद्योग इतिहास भी बन सकता है. अभी भी कई खरीददार पाकिस्तान और बांग्लादेश में चलने वाली इकाइयों को ऑर्डर देना शुरू कर चुके हैं.

ऐसे में अब राज्य सरकार पर यह जिम्मेदारी है कि वह सूबे के सबसे पुराने उद्योग को बर्बाद होने या कहीं और जाने से बचाने के लिए आगे आए. चमड़ा उद्योग को पर्यावरण प्रतिबंधों के साथ-साथ विकसित होने के अवसर दे.