इस संग्रह की कविता ‘मैं तुमसे प्यार नहीं करता’ की कुछ पंक्तियां -
मैं तुझसे प्यार नहीं करता / पर कोई ऐसी शाम नहीं जब मैं आवारा सड़कों पर तेरा / इंतज़ार नहीं करता...
बेमक़सद-सा मैं गलियों में मारा-मारा फिरता हूं / जिन रास्तों से वाकिफ़ हूं, वहीं ठोकर खा के गिरता हूं
मुझे कुछ भी ध्यान नहीं रहता कब दिन डूबा कब रात हुई / अभी कल की बात है, घण्टों तक मेरी दीवारों से बात हुई
जो होश ज़रा-सा बाक़ी है लगता है खोने वाला हूं / अफ़वाह उड़ी है यारों में मैं पागल होने वाला हूं
मैं तुझसे प्यार नहीं करता / पर शहर में जिस दिन तू ना हो ये शहर पराया लगता है / मैं बातें करूं फकीरों सी, संसार ये माया लगता है
वो अलमारी कपड़ों वाली लावारिस हो जाती है / ये पहनूं या वो पहनूं ये उलझन भी खो जाती है
मुझे ये भी याद नहीं रहता रंग कौन से मुझको प्यारे हैं / मेरी शौक़ पसन्द मेरी, बिन तेरे सब बंजारे हैं
मैं तुझसे प्यार नहीं करता / पर ऐसा कोई दिन है क्या / जब याद तुझे तेरी बातों को, सौ-सौ बार नहीं करता / मैं तुझसे प्यार नहीं करता!

कविता संग्रह : मेरी फ़ितरत है मस्ताना
कवि : मनोज ‘मुंतशिर’
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
कीमत : 199 रुपए
प्रेम को जीना जितना सहज, सरल और स्वाभाविक है, उस पर लिखना उतना ही मुश्किल काम है, क्योंकि जब तक प्रेम की अभिव्यक्ति पाठक को भी उसी रेशमी, रूमानी ख्याल में न लपेट ले, तब तक उसका लिखा जाना सार्थक नहीं कहा जा सकता. हालांकि एक बार जिसने अपने शब्दों से दिल धड़काने की कला को सीख लिया, फिर वह हर बार अपने शब्दों से पाठकों की धड़कनों की रफ्तार को नियंत्रित करने लगता है. मनोज ‘मुंतशिर’ का यह कविता संग्रह पढ़कर अहसास होता है कि वे पढ़ने वालों की धड़कनों को बढ़ाने और दिल थामने के उस्ताद हो गए हैं. ‘मेरी फितरत है मस्ताना’ कविता संग्रह इश्क की ऐसी नदी में आपको डुबाता-उतराता है जो कभी मद्धम-मद्धम शांत बहती है, कभी अठखेलियां करती है, तो कभी अपने तटबंध तोड़कर सब कुछ अपने साथ बहा ले जाने पर अमादा होती है. सीधे कहें तो यह कविता संग्रह इश्क के बेहद रूमानी सफर पर पाठकों को ले जाता है.
यूं तो मनोज पूरे संग्रह में मोहब्बत की मीठी से धूनी रमाते हुए ही दिखते हैं. लेकिन प्रेम से इतर भी जिन विषयों पर उन्होंने लिखा है वे भी गहरी संवेदना लिए हुए हैं. ऐसी ही एक कविता है ‘औरत.’ यहां स्त्री के पूरे व्यक्तित्व के विरोधाभासों को कवि बहुत गहराई से पहचानता है और बड़े सम्मानित और सकारात्मक तरीके से उसे दर्ज करता है. एक झलक –
‘कौन हो तुम? / इस कदर नाज़ुक हो कि हाथ लगने से बिखर जाती हो / और इस कदर मज़बूत हो कि पर्वतों को चीर के नदियों की तरह गुजर जाती हो / तुम्हारी आवाज़ इतनी मध्यम है की तहज़ीब को भी तहज़ीब सिखा दे / और वही आवाज़ जब हक़ की गूंज बन जाये / तो जुल्म की चट्टानें तिनके की तरह उड़ा दे / ऐसी ठोकर नहीं बनी जो तुम्हें गिरा सके / फिर रोज़ हाथों से गिरती हो दुआओं जैसी / धूप जैसे तपते हौसले हैं तुम्हारे और खुद नज़र आती हो छाओं जैसी / हैरान हूं मैं / कैसे कुदरत ने तुम्हें इतने सारे जादू दे दिये / एक ही इन्सान को मरियम का दिल और लक्ष्मीबाई के बाजू दे दिये.’
इस कविता संग्रह का नाम यदि ‘मेरी फ़ितरत है मस्ताना’ के बजाय ‘मेरी फ़ितरत है आशिकाना’ रखा जाता तो सम्भवतः ज्यादा सटीक होता. यह इसलिए क्योंकि मनोज ‘मुंतशिर’ ने पूरे संग्रह में प्रेम की कुछ ऐसी मिठास बिखेरी है कि देर तक स्वाद लेने के बाद भी जिससे मन न भरे! उनके इश्क का सौंधापन कुछ ऐसा महकता है कि उसकी खुशबू में पाठकों को बार-बार प्रेम में पगा अपना अतीत और वर्तमान याद आएगा और दिल जोर से धड़कने लगेगा. ऐसे ही इश्क के कुछ नगमे –
‘चटक गया है मेरे जिस्म का हर एक टांका / ये जान छूटने वाली है अब हिरासत से / जो आसमान से गिरता तो बच गया होता / मैं गिरा हूं तेरे इश्क की इमारत से ...
खींच ले जाती हैं मुझको तेरे ही घर की तरफ / शहर की सारी सड़कें जैसे पागल हो गईं...
और बरसेगा तू मुझमें तो मैं भर जाऊंगा / इससे ज्यादा तुझे चाहूंगा तो मर जाऊंगा / मेरी मिट्टी में मेरी आग में शामिल है तू / तू मेरे साथ ही जायेगी जिधर जाऊंगा..
मैं खंडहर हो गया पर तुम न मेरी याद से निकले / तुम्हारे नाम के पत्थर मेरी बुनियाद से निकले.
यूं तो इस संग्रह में अपने हमराज के प्रति मोहब्बत की ही सबसे ज्यादा नगमें हैं. लेकिन कवि के दिल में अपने मुल्क, उसके सैनिकों, सरहदों पर शहीद होने वाले जवानों के प्रति भी गहरा प्रेम है. इस विषय पर लिखी महज चंद कविताएं ही उनके देशप्रेम और देशभक्ति के जज्बे को बहुत गहरे और प्रभावी तरीके से उजागर कर देती हैं. ऐसी ही दो पंक्तियों की एक कविता है ‘ नेशनल एंथम’ –
‘बावन सेकण्ड खड़े होने में तुमको हैं ऐतराज बड़े / सियाचिन की सरहद पर कोई बर्फ़ हो गया खड़े-खड़े’
इसी जज्बात की एक अन्य कविता ‘मेरा नाम सिपाही है’ की कुछ पंक्तियां –
‘सरहद पे गोली खा के जब टूट जाये मेरी सांस / मुझे भेज देना यारों मेरी बूढ़ी मां के पास / बड़ा शौक था उसे / मैं घोड़ी पर चढूं, धमाधम ढोल बजें / तो ऐसा ही करना..मुझे घोड़ी पे ले के जाना / पूरे गांव में घुमाना / ढोलकें बजाना / और मां से कहना.../ बेटा दूल्हा बन के आया है / बहू नहीं ला सका तो क्या, बारात तो लाया है’
‘तेरे संग यारा’ ‘कौन तुझे यूं प्यार करेगा’ ‘मेरे रश्के-कमर’ ‘मैं फिर भी तुमको चाहूंगा’ जैसे दर्जनों बेहद लोकप्रिय गीत लिखने वाले मनोज ‘मुंतशिर’ फिल्मों में शायरी और साहित्य की अलख जगाए रखने वाले चुनिंदा कलमकारों में से एक हैं. ‘मेरी फ़ितरत है मस्ताना’ बहुत दिल से लिखी गई कविताओं और गज़लों का संग्रह है. मनोज कहते हैं, ‘प्रेम में दो तरह के हादसे होते हैं. एक, जिसे हम चाहें वो न मिले. और दूसरा जिसे हम चाहें वो मिल जाए.’ वैसे तो इस संग्रह में दोनों ही हादसों से गुजरने की जोरदार आहटें हैं. लेकिन बिछोह की प्रेम कविताएं कुछ ज्यादा ही तीव्र प्रेम का अहसास कराती हैं.
यह पूरा कविता संग्रह प्रेम की तीव्र संवेदना से भिगोने का माद्दा रखता है. प्रेम कविताएं पसंद करने वालों के लिए यह इस साल का बेहतरीन तोहफा कहा जा सकता है.
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