इस पुस्तक के शीर्षक अध्याय ‘काली औरत का ख़्वाब’ का एक अंश -

‘मुझे नहीं पता था ये मेरा पहला क़दम था उस औरत की तरफ़ जो मेरे सपनों में आती थी. वो काली औरत जो पिछले 60-65 साल से एक हाथ ऊपर करके नृत्य की मुद्रा में खड़ी है. जिसका ख़्वाब हर वो इनसान देख रहा है जो अपने गांव से बॉम्बे की फ़िल्म इण्डस्ट्री में कुछ बनने की गरज़ से रेलगाड़ी में बैठा है. जिसने इस महानगर में मुश्किल रातें बिताई हैं. जो दिन भर मारा-मारा फिरा है निर्माता, निर्देशकों के दफ़्तरों के चक्कर काटता हुआ...

...मैंने दूसरी धुन पे गाना लिख दिया जिसकी वजह से, एक बहुत छोटे क़स्बे से रेलगाड़ी में बैठकर बॉम्बे आने वाले एक अदना से लड़के का ख़्वाब पूरा हुआ. काली औरत का ख़्वाब’


पुस्तक : काली औरत का ख़्वाब

लेखक : इरशाद कामिल

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन

कीमत : 299 रुपए


‘काली औरत के ख़्वाब’ को मोटे तौर पर दो तरह से समझा जा सकता है. एक काले रंग की किसी औरत का ख़्वाब. या दूसरा किसी के ख़्वाब में आने वाली काली औरत. लेकिन काले रंग के प्रति हमारे समाज में जो पूर्वाग्रह हैं, ऐसे में इस बात की संभावना लगभग न के बाराबर ही है कि इस रंग की किसी औरत के सपने को इतनी अहमियत दी जाए कि उस पर बात हो. दूसरा हमारे मन में जाति, धर्म, वर्ग की तरह रंग को लेकर भी इतने गहरे पूर्वाग्रह हैं कि इन सबका गणित बैठाए बिना हम अक्सर ही प्यार में आगे नहीं बढ़ते. ऐसे में प्रबल संभावनाएं है कि ऐसी औरत शायद ही किसी के ख़्वाबों में आती हो (अपवादों का सम्मान करते हुए).

लेकिन बॉलीवुड में काम करने वालों के लिए ‘काली औरत’ का संदर्भ बिल्कुल अलग है. बॉलीवुड में काम करने वालों के लिए काली औरत का मतलब है फिल्मफेयर अवॉर्ड में दी जाने वाली ट्रॉफी जो काले रंग की होती है और जिसमें एक स्त्री बनी है. यह किताब बॉलीवुड के आलातरीन गीतकार इरशाद कामिल की नजर से उनके उस ख़्वाब के बारे में बताती है जिसने सालों उन्हें बेचैन रखा. ‘काली औरत का ख़्वाब’ इरशाद कामिल के कुछ मिनट के गीतों के पीछे की हफ़्तों लंबी कहानियों का शायराना बयान है.

मुम्बई में सबसे चमकीला है बॉलीवुड और बॉलीवुड से भी ज्यादा चमकीले हैं इसमें काम करने वाले अभिनेता-अभिनेत्रियां यानी स्टार्स. हालांकि नायक-नायिकाओं की सिर्फ अच्छा अभिनय करने की क्षमता उन्हें स्टार नहीं बना देती. वह बहुत सारी चीजों और लोगों का सबसे बेहतरीन मेल है जो उन्हें उस मुकाम तक पहुंचाता है. इसमें निर्देशक, प्रोड्यूसर, गायक, लेखक, गीतकार, संगीतकार से लेकर कॉस्टयूम डिजाइनर और मेकअप मैन तक सब शामिल हैं. अपने-अपने क्षेत्र में उस्ताद इन सभी लोगों की चमक मिलकर किसी फिल्म या स्टार की किस्मत लिखती है. लेकिन जैसे हर चिराग के नीचे अंधेरा होता है, वैसे ही बॉलीवुड नाम के इस चमकीले द्वीप के अपने कुछ स्याह कोने भी हैं. इरशाद बॉलीवुड के ऐसे ही एक अंधेरे हिस्से से हमें रूबरू कराते हुए लिखते हैं –

‘मुम्बई में क्रेडिट्स को लेकर कैसे-कैसे घपले हो सकते हैं. कैसे आपका हक़ मारा जा सकता है. कैसे आपको इस्तेमाल करके छोड़ा जा सकता है. पहली बार ‘चमेली’ फ़िल्म ने ही अहसास करवाया कि गला-काट प्रतियोगिता किसे कहते हैं? इस फ़िल्म में शुरू के क्रेडिट्स में मेरा भी बतौर गीतकार नाम नहीं है. इसकी वजह से निर्माता और मुझमें बहुत झगड़ा हुआ, इसी झगड़े की वजह से पहली बार मेरी मुम्बई के टाइम्स ऑफ इंडिया में फोटो छपी थी.’

फ़िल्मों की कहानी में गाने होते हैं यह तो हर कोई जानता है. लेकिन हर गाने के पीछे भी कोई कहानी होती है, यह कुछेक लोग ही जानते हैं. ‘काली औरत का ख़्वाब’ हमारे दौर के फख्र से भरने वाले गीतकार इरशाद कामिल के गीतों के पीछे की कहानियों से हमें मिलवाती है. यह किताब उनके गीतों के बहाने थोड़ा-थोड़ा इरशाद कामिल से, उनके जगजाहिर कृतित्व के साथ उनके छिपे हुए व्यक्तित्व से हमें रूबरू कराती है. इस किताब से गुजरते हुए पता चलता है कि कहीं किसी गीत के पीछे की कहानी ज्यादा हसीन है, तो उससे निकलने वाला गीत कुछ फीका रह गया. तो कहीं उसके पीछे की कहानी बेदम है लेकिन उससे जन्म लेने वाला गीत तहलका मचा गया!

संगीत की भूमिका हमारी ज़िन्दगी में सांस और धड़कन जैसी तो नहीं है, लेकिन इसकी भूख जरूर होती है हर एक के दिल दिमाग में. खाना यदि जिस्म की जरूरत है तो संगीत रूह की. और यही कारण है कि रूहानी संगीत हमेशा आपको एक जन्नत के से सफर पर ले जाता है. रूह को सुकून देने वाला संगीत इस आपाधापी, तनाव, हिंसा, संत्रास से भरी जिंदगी में कुछ वैसा ही काम करता है जैसे जख्म के लिए मरहम.

अच्छे संगीत के साथ अच्छे बोल एक ऐसा कॉकटेल है जो किसी की भी उदास से उदास शाम को रूमानी या रूहानी बना सकता है. संगीत और गाने के बेहतरीन बोलों के इसी शानदार कॉकटेल के बारे में एक बार इरशाद कामिल को एक डॉक्टर की प्रतिक्रिया मिलती है. वह प्रतिक्रया कितनी ईमानदार थी, इसका पता तब चलता है जब डॉक्टर इरशाद कामिल की एक्सीडेंट में टूटी टांग का पूरा इलाज मुफ्त में कर देता है. उसी किस्से का जिक्र करते हुए इरशाद लिखते हैं –

‘क्या... क्या बात कर रहे हैं आप? इन्होंने लिखे हैं वो सब गाने?’...

डॉक्टर की एक आंख में हैरानी थी और दूसरी आंख में शक़. उसने होंठों की तह में कहा, ‘सच?’...पल भर बाद उसने कहा. ‘हॉस्पिटल आते हुए और हॉस्पिटल से घर जाते हुए उसी फ़िल्म के गाने सुनता हूं आजकल. आपके लिखे गानों से सारी टेंशन दूर हो जाती है. मैं तो कहता हूं सरकारी छुट्टी आप जैसे समाज सेवकों के जन्मदिन पर होनी चाहिए.

मैंने थोड़ा हिचकिचाहट के साथ दोहराया, ‘समाज सेवक’?

डॉक्टर ने जवाब दिया, ‘जी, समाज सेवक. आपको नहीं पता इस तनावभरी ज़िन्दगी में अगर संगीत न हो तो क्या हो जाए. म्यूज़िक न बने, अच्छे-अच्छे गाने न लिखे जाएं तो क्या रह जायेगा ज़िन्दगी में?’

उस पल मुझे अच्छे गीत संगीत पर सचमुच फख्र हुआ...मैंने एक्सीडेण्ट की हालत में लिखा था ‘ये चोर बज़ारी गाना’ जिसने मुझे मेरी ज़िन्दगी का पहला अवॉर्ड यानी स्क्रीन अवॉर्ड दिलाया था.’

जैसे अच्छा गाना सुनने की भूख होती है वैसे ही अच्छा गाना लिखने की भी अपनी एक भूख होती है. इरशाद कामिल कुछ उसी किस्म के भुक्खड़ हैं जिन्हें प्रेम की तीव्र संवेदना से भरे, तड़पाने वाले, दिल धड़काने वाले या सुलगाने वाले, भीतर गहरे तक उतर जाने वाले, बस एक ही बार में सुनकर ठहरा देने वाले, बेहतरीन गाने लिखने की हवस सी है!

‘काली औरत का ख़्वाब’ हमें उस इरशाद कामिल से मिलवाती है, जिससे हम उनके गीतों में नहीं मिल पाते. इस किताब से गुजरना एक बेहतरीन गीतकार के बनने के सफर का साक्षी होना है. यहां न सिर्फ गीतों के पीछे की कहानियां हैं, बल्कि बॉलीवुड के नर्म-गर्म मिजाज भी हमारे सामने आते हैं. कुल मिलाकर ‘काली औरत का ख़्वाब’ पाठकों के भीतर इरशाद के अन्य गीतों के पीछे की भी कहानियां जानने की भूख पैदा करती है.