बीते गुरुवार का दिन कानपुर में हंगामे का रहा. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने बंदी के आदेश के बावजूद चोरी-छिपे चल रही 225 टैनरियों के बिजली के कनेक्शन काटने की योजना बनाई थी. लेकिन टेनरी मालिकों ने इसका तीखा विरोध किया. यही नहीं, उन्होंने और कर्मचारियों ने मिलकर लखनऊ-कानपुर हाईवे जाम कर दिया और इसे खुलवाने आई पुलिस पर पथराव भी किया. अब खबर है कि टैनरी मालिकों को रमजान तक का वक्त दे दिया गया है.

गुरुवार की इस घटना ने एक बार फिर कानपुर में चमड़ा उद्योग पर छाए संकट की तरफ ध्यान खींचा है. दरअसल कानपुर में लाखों लोगों को यह सवाल परेशान करने लगा है कि क्या जिस कारोबार से उनकी रोजी-रोटी जुड़ी है, वह बंद होने वाला है. शहर में चमड़ा कारोबार से लगभग चार लाख लोग प्रत्यक्ष और करीब तीन लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. यह उद्योग लगभग 20 हजार करोड़ रुपये का कारोबार करता है और इसमें एक बड़ा हिस्सा विदेशी मुद्रा का भी होता है.

इधर कई वर्षों से कानपुर के चमड़ा उद्योग पर प्रदूषण फैलाने का आरोप लगता रहा है. प्रदूषण के सवाल से छुटकारा पाने में चर्म उद्यमियों की कोशिशें जितनी नाकाफी रही हैं उससे ज्यादा सरकारी मशीनरी ने इस समस्या को और अधिक बढ़ाने का काम किया है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण संरक्षण के लिए जिम्मेदार संस्थाओं के भ्रष्ट तौर तरीकों ने समस्या को खत्म करने के बजाय येन-केन प्रकारेण इसे टालते रहने की शैली को बढ़ावा दिया है. यानी जब कोई अदालती आदेश आए या सरकार की ओर से कोई बड़ा निर्देश आए तो किसी भी तरह से कुछ दिन के लिए सख्ती का दिखावा कर दिया जाए और उद्यमियों से वसूली कर अपनी जेबें भर ली जाएं. कुछ दिनों बाद स्थितियां फिर जस की तस.

लेकिन योगी आदित्यनाथ सरकार के आने के बाद तो सरकार ने जिस तरह की वक्र दृष्टि दिखानी शुरू की है उसने चमड़ा कारोबार का दम ही घोंटना शुरू कर दिया है. योगी सरकार के आने के बाद बूचड़खानों पर लगे प्रतिबन्धों कारण कानपुर के चमड़ा उद्योग को एक बड़ा झटका लगा था. लेकिन जुलाई 2018 में केंद्र सरकार ने जब चमड़ा उद्योग के लिए 2600 करोड़ का पैकेज घोषित किया तो कानपुर के चमड़ा कारोबारियों के मन में भी उम्मीदें जगीं कि शायद उनके दिन भी दिन बहुरने वाले हैं. वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु ने कानपुर में जब इस पैकेज की घोषणा की थी तो उन्होंने कहा था कि यह पैकेज चमड़ा उद्योग का नया जीवन देने के लिए याद रखा जाएगा.

लेकिन ऐसा न हो सका. देश के अन्य हिस्सों में इस पैकेज से चर्म उद्योग को पुर्नजीवन मिला हो या न मिला हो, लेकिन कानपुर के लिए तो यह पैकेज भी कोई राहत नहीं ला सका. फुटवेयर निर्माण से जुड़ी कुछ कंपनियों ने इससे थोड़ा लाभ जरूर उठाया लेकिन, नवंबर 2018 से शुरू हुई बंदी के बाद से स्थितियां और बिगड़ गई. केंद्र के पैकेज से 70-75 हजार नई नौकरियों की उम्मीद लगाए कानपुर के चमड़ा कारोबार में इस बंदी के कारण तीन लाख से ज्यादा लोगों के रोजगार खत्म हो गए हैं.

कुंभ में गंगाजल को स्वच्छ रखने के लिए 250 से ज्यादा टैनरियों पर लादी गई इस बंदी की मार अब भी जारी है. राज्य सरकार ने कुंभ के तीन महीनों के लिए जो कानपुर की टैनिरियों पर जो प्रतिबंध लगाए थे उनको समाप्त करने के लिए अब तरह-तरह के बहाने बनाए जा रहे हैं. जाजमऊ में टैनरियों से निकलने वाले कचरे यानी उत्प्रवाह को साफ करने के लिए नए कंबाइंड एफ्ल्यूएंट ट्रीटमेंट प्लांट का शिलान्यास मार्च 2019 में हो गया था. लेकिन चुनाव आचार संहिता के चलते आगे का कार्य लटका हुआ है.

एनजीटी ने भी अब उत्प्रवाह की शुद्धता के मानक बदल दिए हैं. अब सिंचाई के लिए छोड़े जाने वाले उत्प्रवाह की सांद्रता और शुद्धता के मानक बदल गए हैं इसलिए जाजमऊ में बनने वाले नए ट्रीटमेंट प्लांट में कौन सी तकनीक इस्तेमाल की जाएगी इस पर भी अभी अनिश्चिय बना हुआ है. सरकारी महकमे ही जब इस बात पर एकमत नहीं हो सके हैं कि कौन सी तकनीक कानपुर की टैनरियों से निकलने वाले प्रदूषित उत्प्रवाह को शुद्ध करने में सर्वश्रेष्ठ होगी तो यह समझा जा सकता है कि सरकार इस मामले में कितनी गंभीर है. सरकारी तंत्र की इस अनिश्चितता का खामियाजा भी चमड़ा कारोबार को ही झेलना पड़ रहा है.

दूसरी तरफ एनजीटी ने कानपुर में चमड़ा उद्योग से जुड़े प्रदूषण के हर मामले को जुलाई 2019 तक पूरा करने की समय सीमा निर्धारित की हुई है. उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री और कानपुर से भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार सत्यदेव पचैरी कानपुर के चमड़ा उद्योग के बारे में कहते हैं, ‘कानपुर में चमड़ा उद्योग चले या न चले, प्रदूषण नियंत्रण के सारे उपायों और नियमों का तो उन्हें पालन करना ही होगा.’ लेकिन इस बारे में सरकारी जिम्मेदारियों की बात आने पर वे बगलें झांकने लगते हैं. सरकार की ओर से बंदी हटाने मे क्यों ना-नुकुर की जा रही है, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं है.

उधर, कानपुर के चमड़ा कारोबारी कहते हैं कि वे हर नियम का पालन करने को तैयार हैं लेकिन ट्रीटमेंट प्लांट तो सरकार को ही बनवाना पड़ेगा. इन कारोबारियों के मुताबिक वे जीरो लिक्विड डिस्चार्ज के लिए भी तैयार हैं, मगर पहल तो सरकार को ही करनी होगी. उनके मुताबिक टैनरियों पर प्रतिबंध खत्म नहीं होगा तो चमड़ा कारोबार खुद ही खत्म हो जाएगा. टैनरियों से प्रतिबंध हटाने की मांग को लेकर चमड़ा कारोबारी अब हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.

कानपुर की टैनरियों में जिस कच्ची खाल को चमड़े का रूप दिया जाता है वह कानपुर में ही फुटवेयर निर्माताओं और चमड़े के अन्य सामान तैयार करने वाले उद्योगों में खप जाता है. टैनरियों के बंद हो जाने से इन उद्योगों को तैयार चमड़ा मिल नहीं पा रहा है. कानपुर में इस समय मानक पूरे करने वाली कुल 30 के आसपास टैनरियां चालू हालत में हैं. इसके अलावा गलियों में छिटपुट रूप से भी कुछ अवैध टैनरियां चल रही हैं लेकिन इनसे भी कानपुर की जरूरतें पूरी नहीं हो सकतीं. इसलिए कानपुर के चमड़ा कारोबारियों को अपनी फैक्ट्रियां चलाने के लिए चेन्नई, कोलकाता आदि जगहों से चमड़ा मंगाना पड़ रहा है. जो उन्हें बहुत महंगा पड़ता है. इसलिए उनकी उत्पादन लागत बढ़ रही है और कारोबार घाटे का सौदा बनता जा रहा है. टैनरियों की बंदी ने कच्ची खालों की कीमत भी बहुत गिरा दी है. 2000 रुपये से ज्यादा दाम पर बिकने वाली कच्ची खालें अब 200 से 400 के बीच भी बिक नहीं पा रही हैं.

कानपुर की टैनरियों की बंदी के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कानपुर की लेदर इंडस्ट्री की साख पर धब्बा लग रहा है. बड़े पैमाने पर खाड़ी, यूरोप और चीन से मिलने वाले आर्डर कम होते जा रहे हैं. खरीददारों ने ब्राजील व थाईलैंड जैसे नए देशों में अपनी सम्भावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं. हॉलैंड सरकार कानपुर में क्लीनर टेक्नॉलॉजी पर एक सेमीनार करना चाहती थी, लेकिन कानपुर में चमड़ा उद्योग की हालत देख कर इसे अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया. इसी तरह इटली में जून में होने वाले व्यापार मेले में इस बार कानपुर को एक भी आर्डर नहीं मिला. उसका हिस्सा चीन के पास चला गया है. कानपुर के बड़े निर्यातक इससे निराश हैं, क्योंकि उनके मुताबिक इस व्यापार मेले में शामिल होने से कानपुर के चमड़ा उद्योग को यूरोप में काफी प्रसिद्धि मिलती थी.

कानपुर के चमड़ा कारोबारियों के संगठन काउंसिल फाॅर लेदर एक्सपोर्ट के आकड़ों के अनुसार बन्दी के कारण अब तक 3000 करोड़ से अधिक के कारोबार को चपत लगी है और इसका आधा हिस्सा निर्यात होने वाले कारोबार का है. कानपुर की टैनरियों में तैयार होने वाले चमड़े का 38 फीसदी हिस्सा फुटवेयर उद्योग में खप जाता है. अन्य तरह के सामान बनाने में करीब 25 फीसदी और लगभग इतना ही तैयार चमड़े के रूप में दूसरे शहरों को भेजा जाता है, लेकिन अब स्थिति यह है कि कानपुर में चल रहे चमड़ा उद्योग को अपनी फैक्ट्रियां चलाने के लिए चेन्नई से चमड़ा मंगवाना पड़ रहा है जिसकी गुणवत्ता कानपुर के चमड़े से कमतर है.

मध्यम व छोटी टैनरी वाले कारोबारी इस बंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. बैंकों के कर्ज की अदायगी, ट्रीटमेंट प्लांट व बिजली के बिल और खाली बैठने के बाद भी तकनीकी तौर पर कुशल कारीगरों को दिए जाने वाले वेतन आदि के बोझ ने उनकी कमर तोड़ दी है. बिहार आदि राज्यों के 70-80 हजार मजदूर काम बंद होने पर वापस चले गए हैं. हजारों कर्मी अब मजदूरी या ऐसे ही अन्य कार्य तलाश कर अपना गुजारा कर रहे हैं. कानपुर के स्माल टैनर्स एसोसिएशन के नैयर जमाल बताते हैं, ‘पिछले दिनों हमने जिलाधिकारी से मिलकर यह गुजारिश की थी कि बंदी के दिनों में हमारे कर्ज की किश्तें, बिजली व ट्रीटमेंट प्लांट के बिल माॅफ कर दिए जाएं. मगर आश्वासन के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ.’

एक तरफ बांग्लादेश और पाकिस्तान से कड़ी प्रतिस्पर्धा तो दूसरी तरफ राज्य सरकार के असहयोग भरे रुख ने कानपुर के प्रतिष्ठित चमड़ा कारोबार पर बड़ी चोट की है. इस समस्या का कोई हल न निकलने के कारण न सिर्फ चमड़ा कारोबारियों के हौसले पस्त हो रहे हैं और इस उद्योग से जुड़े कई लाख लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहरा रहा है बल्कि कानपुर की अर्थव्यवस्था पर भी इसका बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है. सरकार को करोड़ों के राजस्व की चपत लग रही है सो अलग.