कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बार के लोकसभा चुनाव से जुड़े एक्ज़िट पोलाें को ‘फ़र्ज़ी’ करार दिया है. उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे इनसे निराश न हों और उनकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी. राहुल गांधी ने बुधवार को ट्वीट किया, ‘कांग्रेस पार्टी के प्रिय कार्यकर्ताओ, अगले 24 घंटे महत्वपूर्ण हैं. सतर्क और चौकन्ना रहें. डरे नहीं. आप सत्य के लिए लड़ रहे हैं. फ़र्ज़ी एक्ज़िट पोल के दुष्प्रचार से निराश न हों. ख़ुद पर और कांग्रेस पार्टी पर विश्वास रखें. आपकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी. जय हिंद.’ ज्यादातर एक्जिट पोल फिर मोदी सरकार की वापसी की भविष्यवाणी कर रहे हैं.
इससे पहले चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए ताबड़तोड़ साक्षात्कारों में भी राहुल गांधी कहते रहते हैं कि 23 मई के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे, कोई और आएगा और भाजपा को सेकुलर ताकतें अलग-अलग राज्यों में रोकेंगी. राहुल की टीम का कहना है कि उनके विरोधी यह कह सकते हैं कि वे तो ऐसा कहेंगे ही. लेकिन यह सिर्फ जुमला नहीं है. राहुल गांधी को यकीन है कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी तो बन सकती है लेकिन वह नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री नहीं बना पाएगी.
अब सवाल यह है कि राहुल के अंदर आए इस आत्मविश्वास की वजह क्या है?
कांग्रेस के नेताओं के मुताबिक 2014 में भाजपा को 282 सीटें अपने दम पर मिली थी. अब अगर अलग-अलग राज्यों की सीटों का हिसाब देखें तो इनमें काफी कमी देखने को मिल सकती है. जैसे उत्तर प्रदेश में भाजपा और अपना दल को पिछली बार 80 में से 73 सीटें मिली थी. मायावती शून्य पर पहुंच गई थीं और समाजवादी पार्टी के पास सिर्फ पांच सीटें ही थीं. इस बार महागठबंधन जितना बढ़ेगा उतना ही नुकसान भाजपा को होगा.
बिहार में भी भाजपा और सहयोगियों के पास चालीस में से 31 सीटें थी. नीतीश कुमार की दो सीटें जोड़ दें तो 33 सीटें हो गई. अब यहां भी नंबर घट सकते हैं. गुजरात और राजस्थान में तो भाजपा का स्ट्राइक रेट 100 फीसदी था. और मध्य प्रदेश में भाजपा सिर्फ कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की सीटें ही हारी थी. लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों में राजस्थान के साथ-साथ मध्य प्रदेश भी भाजपा के हाथों से फिसल चुका है. तो कम से कम इन दोनों राज्यों में भाजपा की सीटें कम जरूर होंगी.
भाजपा के नेता यह दलील देते हैं कि उत्तर प्रदेश में अगर कुछ सीटें कम हुई तो पश्चिम बंगाल और ओडिशा से इसकी भरपाई हो जाएगी. लेकिन सुनी-सुनाई है कि कांग्रेस के नेताओं ने जब तृणमूल और बीजेडी के नेताओं से संपर्क किया तो उन्हें यह फीडबैक मिला कि बंगाल में भाजपा कोई चमत्कार नहीं कर सकती और ओडिशा में भी मोदी लहर का अकाल ही दिख रहा है. दक्षिण में भी कोई नरेंद्र मोदी की सूनामी नहीं दिख रही है.
इसलिए जब भाजपा नेताओं से राज्यवार डाटा पूछेंगे तो वे जवाब देने से हिचकने लगते हैं. वे इसका साधारण सा एक जवाब देते हैं कि पत्रकार इसे आंकड़ों में देख रहे हैं और हम इसे कैमिस्ट्री के फॉर्मूले की तरह ले रहे हैं.
राहुल गांधी के करीबी कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में आखिरी दिनों में जो हुआ उससे एक बात साफ हो गई है. मोदी विरोधी नेता अब आपस में कम भिड़ेंगे और 23 तारीख से पहले ही एक साझा समझौता करने की कोशिश होगी. सोनिया गांधी अभी से मुख्य विरोधी दलों के नेताओं के संपर्क में हैं. दस जनपथ के एक करीबी यहां तक बताते हैं कि कर्नाटक का फॉर्मूला दिल्ली में भी लागू हो सकता है. वहां भाजपा सबसे बड़ी पार्टी थी और कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी. लेकिन बीएस येदियुरप्पा और सिद्धारमैया के बजाय एचडी कुमारस्वामी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन गए. इसी तरह अगर भाजपा अकेले या सहयोगियों के बूते 272 का आंकड़ा पार नहीं कर पाई तो सभी विपक्षी दल कुछ घंटों में ही एक मोर्चा बनाकर एकजुट हो जाएंगे. अभी इस मोर्चे का नाम सेक्युलर मोर्चा सोचा जा रहा है.
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें | सत्याग्रह एप डाउनलोड करें
Respond to this article with a post
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.