रविवार को लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण निपटने के बाद आए एग्जिट पोलों के नतीजे भाजपा के लिए मनचाही मुराद बनकर आए हैं. इनमें से ज्यादातर में उसकी अगुवाई वाले एनडीए को बहुमत मिलता दिख रहा है. भाजपा का कहना है कि इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में जारी जनसमर्थन की पुष्टि होती है. उधर, कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने एग्जिट पोल के इन नतीजों को खारिज कर दिया है.
I believe the exit polls are all wrong. In Australia last weekend, 56 different exit polls proved wrong. In India many people don’t tell pollsters the truth fearing they might be from the Government. Will wait till 23rd for the real results.
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) May 19, 2019
चर्चित चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव को एग्जिट पोलों के इन नतीजों में दम लगता है. एक समाचार वेबसाइट से बातचीत में वे कहते हैं कि ये नतीजे जो बता रहे हैं वह न मानने का कोई कारण नजर नहीं आता. उनका कहना था कि भाजपा को रोकने में क्षेत्रीय दल तो फिर भी थोड़ा बहुत विरोध करने में कामयाब हुए हैं, लेकिन कांग्रेस इसमें पूरी तरह से असफल हुई है.
लेकिन क्या एग्जिट पोलों पर इतना भरोसा किया जा सकता है? कई कारण हैं जिन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि नहीं.
अतीत की गलतियां
एग्जिट पोल की प्रक्रिया के तहत उन लोगों से बात की जाती है जो वोट देकर पोलिंग बूथ से बाहर निकले हों. उनसे कई सवाल पूछे जाते हैं जिनमें सबसे अहम होता है कि उन्होंने अपना वोट किसे दिया. एक निश्चित संख्या, जैसे सैंपल साइज कहा जाता है, में वोटरों से बात करके फिर उसका विश्लेषण किया जाता है और अंदाजा लगाया जाता है कि कितने फीसदी वोट किस पार्टी को जा रहे हैं. फिर भी ये गलत हो जाते हैं.
2004 का आम चुनाव इसका उदाहरण है. तब हुए तमाम एग्जिट पोलों का औसत निकालें तो एनडीए को 252 सीटें मिल रही थीं. लेकिन वास्तव में यह आंकड़ा रहा 187. साल 2009 में एनडीए को 187 सीटें मिलती दिखाई दीं और यूपीए को 196. लेकिन नतीजे आए तो एनडीए 159 पर सिमट गया था और यूपीए को 262 सीटें मिली थीं. बिहार में 2015 के चुनाव में एग्जिट पोल जदयू, राजद और कांग्रेस के महागठबंधन और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर बता रहे थे. नतीजे आए तो महागठबंधन ने 243 सीटों वाली विधानसभा में 178 सीटें जीत ली थी. भाजपा महज़ 53 सीटों पर सिमट गई थी.
उदाहरण भारत तक ही सीमित नहीं
ऐसा दुनिया में और भी कई जगहों पर हुआ है. ताजा उदाहरण ऑस्ट्रेलियाई चुनावों का ही है. जैसा कि कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपने एक ट्वीट में कहा है, ‘ऑस्ट्रेलिया में चुनावों के बाद 56 अलग-अलग एजेंसियों ने एग्जिट पोल के आंकड़े जारी किए, लेकिन सभी गलत साबित हुए हैं.’ ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने के मुद्दे यानी ब्रेक्जिट पर भी एग्जिट पोल गलत साबित हुए. अमेरिका में पिछले राष्ट्रपति चुनाव में वे हिलेरी क्लिंटन को जीतता दिखा रहे थे. आखिर में जीते डोनाल्ड ट्रंप.
सामाजिक जटिलताएं
भारत जैसे जटिल समाज में एग्जिट पोलों से सटीक अंदाजा लगाना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है. जानकारों के मुताबिक भारत में सामाजिक और राजनीतिक ताकत के बंटवारे में बहुत गैरबराबरी है. इसके चलते ज्यादातर लोग किसी अनजान व्यक्ति को इस सवाल का सीधा-सीधा जवाब देने से बचते हैं कि आपने किसे वोट दिया. कई मामलों में वे खुद को आम चलन के साथ जाता दिखाते हैं और फिर उसी तरह का जवाब देते हैं. अपने ट्वीट में शशि थरूर ने भी कहा है कि कई लोगों को लगता है कि सवाल पूछने वाला कोई सरकार का आदमी है और ऐसे में हिचक या डर के मारे वे सच नहीं बताते.
इसके अलावा कई हैं जो मानते हैं कि जमीन पर माहौल उससे काफी अलग है जैसा एग्जिट पोल्स में दिख रहा है. बीबीसी से बातचीत में लखनऊ में टाइम्स ऑफ़ इंडिया के राजनीतिक संपादक सुभाष मिश्र कहते हैं कि जमीन पर जो भी रुझान देखने को मिले हैं उन्हें देखते हुए सीटों की यह संख्या वास्तविक नहीं लग रही.
तकनीकी सीमाएं
कई बार ऐसा भी हो सकता है कि किसी उम्मीदवार को अपने करीबी प्रतिद्वंदी से ज्यादा वोट पड़े हों, लेकिन एग्जिट पोल में हिस्सा लेने वाले वोटरों में उसके समर्थक उतने न हों. जानकारों के मुताबिक ऐसे में भी एग्जिट पोल गलत साबित हो सकते हैं. कुछ जानकार मानते हैं कि अमेरिका में 2004 के राष्ट्रपति चुनाव में ऐसा ही हुआ था. तब एग्जिट पोल जॉन कैरी के जीतने की भविष्यवाणी कर रहे थे, लेकिन बाजी हाथ लगी जॉर्ज बुश के.
प्रक्रियाओं पर सवाल
सवाल एग्जिट पोल कराए जाने के तरीकों पर भी हैं. कुछ जानकारों का मानना है कि पहले एग्जिट पोल्स में उन प्रक्रियाओं का काफ़ी हद तक पालन किया जाता था जो कि सेफ़ोलॉजी में अपनाई जाती हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होता. उनके मुताबिक अब ज्यादातर सर्वेक्षण या तो काफी हल्के-फुल्के तरीके से किये जाते हैं या फिर प्रायोजित होते हैं. और ऐसी स्थिति में यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि उनके नतीजे सही होंगे.
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