एग्जिट पोल भले ही 2019 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की 2014 से भी बड़ी जीत का दावा कर रहे थे, पर अधिकांश पार्टी नेता ही इस बात को लेकर ज्यादा आश्वस्त नहीं थे. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भाजपा के उन नेताओं में शामिल नहीं थे. वे कह रहे थे कि 2019 में भाजपा 300 सीटों के पार पहुंच जाएगी. अंतिम परिणामों में उनकी यह बात सच साबित होती दिखी.

इस जीत को जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की योजनाओं की कामयाबी के तौर पर पेश किया जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा में संगठन के स्तर पर यह सोच भी है कि उसे 2014 से भी बड़ी जीत दिलाने में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की भी एक बहुत बड़ी भूमिका रही है. कई राजनीतिक जानकारों का भी मानना है कि पांच साल तक केंद्र की सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा को मिली जबर्दस्त जीत पर उन्हें अमित शाह की स्पष्ट छाप दिख रही है.

2014 के लोकसभा चुनावों में अमित शाह सिर्फ उत्तर प्रदेश में सक्रिय थे. वहां वे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी के नाते पार्टी का काम देख रहे थे. तब उत्तर प्रदेश में भाजपा को अपनी सहयोगी अपना दल के साथ मिलकर 80 में से 73 लोकसभा सीटों पर कामयाबी मिली थी. इसे अमित शाह की बड़ी सफलता के तौर पर पेश किया गया था. उनके भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने में उत्तर प्रदेश की इस कामयाबी को बड़ी वजह माना गया था.

इस बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते अमित शाह पूरे देश में सक्रिय थे. चुनावी नतीजे आने के पहले से पार्टी के अंदर यह बात चल रही थी कि अगर भाजपा अच्छा प्रदर्शन करती है तो इसके लिए संगठन के स्तर पर पूरे देश में अमित शाह ने जो कार्य किए हैं, उनकी बड़ी भूमिका होगी. जितनी यात्राएं और सभाएं उन्होंने चुनावों के दौरान की हैं, उससे संगठन के स्तर पर भाजपा इतनी मजबूत स्थिति में आ सकी कि वह 2014 से भी अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रही. संगठन के स्तर पर अमित शाह के कार्यों को कुछ राज्यों के उदाहरण के जरिए समझा जा सकता है.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के महागठबंधन के प्रयोग को भाजपा ने असफल कर दिया. वह भी तब जब ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली उनकी सहयोगी पार्टी भाजपा के विरोध में अलग से चुनाव लड़ रही थी. उत्तर प्रदेश भाजपा के लोग कहते हैं कि अमित शाह ने अति पिछड़ा वर्ग की विभिन्न जातियों को भाजपा में लाने के लिए उन जातियों के नेताओं को खड़ा किया और उनके जरिए भाजपा को इनके बीच पहुंचाया. पारंपरिक तौर पर ये जातियां मायावती की बसपा के पक्ष में वोट करती थीं. पार्टी सूत्रों का तो यह भी दावा है कि अमित शाह खुद अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने यह कहकर उन्हें गांधीनगर से चुनाव लड़ाने की बात कही कि पार्टी को उनकी सेवाओं की जरूरत पूरे देश में है और अमेठी से चुनाव लड़ने से इसमें दिक्कत आ सकती है.

इसी तरह का सफल प्रयोग अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में भी किया. भाजपा की राष्ट्रीय टीम में उनके विश्वस्त रहे राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को उन्होंने पश्चिम बंगाल की जिम्मेदारी दी. खुद अमित शाह ने वहां काफी वक्त दिया. जमीनी स्तर पर वाम दलों के साथ जो लोग थे, उन लोगों को भाजपा के पाले में लाने का काम उन्होंने किया. इसके जरिये उन्होंने भाजपा में एक ऐसा कैडर तैयार किया जो जमीनी स्तर पर तृणमूल कांग्रेस के कैडर से लोहा ले सकता था. इसका नतीजा यह हुआ कि पश्चिम बंगाल में बहुत बुरी स्थिति में रहने वाली भाजपा ने न सिर्फ वहां भारी कामयाबी हासिल की बल्कि वह तृणमूल के लिए भविष्य का एक बड़ा खतरा भी बनकर उभरी है.

बिहार में अमित शाह ने जो प्रयोग किया उससे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सीटों की संख्या बढ़ गई. नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड भाजपा के साथ इस बार आई तो अमित शाह ने भाजपा की जीती हुई सीटों में से पांच अपने सहयोगियों को दे दीं. इससे भाजपा की सीटें तो कम हुईं लेकिन बिहार से एनडीए की सीटें 2014 के मुकाबले और बढ़ गईं.

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में छह महीने पहले राज्य की सरकार गंवाने वाली भाजपा लोकसभा चुनावों में बहुत ही बढ़िया प्रदर्शन करने में कामयाब रही. कहा जा रहा है कि संगठन के स्तर पर अमित शाह ने इन राज्यों में कई प्रयोग किए जिसका लाभ पार्टी को मिला. मध्य प्रदेश में भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर को चुनाव लड़ाकर जहां अमित शाह ने आक्रामक हिंदुत्व को मुद्दा बनाया तो राजस्थान में टिकट बंटवारे में उन्होंने जातिगत समीकरणों का विशेष ध्यान रखा. इसी तरह से कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल सेकुलर के साथ होने के बावजूद भाजपा के पक्ष में पूरी बाजी पलटने में भी जमीनी स्तर पर अमित शाह द्वारा किए गए राजनीतिक प्रबंधन की अहम भूमिका बताई जा रही है.

पार्टी के अंदर इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया है कि अब अमित शाह पार्टी अध्यक्ष पद छोड़कर मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मंत्री बन सकते हैं. कुछ लोग कह रहे हैं कि उनकी दिलचस्पी गृह मंत्री बनने में है. लेकिन राजनाथ सिंह को गृह मंत्रालय से बेदखल करके उन्हें यह मंत्रालय दिया जाए, इसकी संभावना थोड़ी कम है. ऐसे में एक संभावना यह है कि अमित शाह को रक्षा मंत्री बनाया जाए. उन्हें मंत्रालय कौन सा मिलेगा, यह भले ही साफ न हो, लेकिन यह लगभग तय माना जा रहा है कि अमित शाह संगठन से सरकार की ओर रुख करेंगे और उनकी जगह पार्टी अध्यक्ष के तौर पर मोदी सरकार में मंत्री रहे जगत प्रकाश नड्डा ले सकते हैं.