मंत्रालयों के बंटवारे के साथ मोदी सरकार अपना दूसरा कार्यकाल शुरू कर चुकी है. इससे पहले आम में ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त कर नरेंद्र मोदी और भाजपा ने कई धारणाएं तोड़ीं. चुनाव से पहले कहा जा रहा था कि देश में ऐतिहासिक रूप से बढ़ती बेरोज़गारी, अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत, नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दे निश्चित ही नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे. लेकिन पिछली बार की 282 सीटों के मुक़ाबले इस बार भाजपा ने 303 सीटें जीत लीं. जानकारों के मुताबिक इससे नरेंद्र मोदी ने साबित किया है कि वे अपनी पसंद के मुद्दे को लोगों का मुद्दा बनाने की कला अच्छी तरह जानते हैं, भले ही उनका सीधे-सीधे जनता से कोई संबंध न हो.
पिछली बार नरेंद्र मोदी ने कालाधन, भ्रष्टाचार, महंगाई, रोज़गार को जनता का मुद्दा बनाया. लेकिन इस बार यही मुद्दे उनकी सरकार के ख़िलाफ़ उठाए गए तो ये कोई मुद्दा ही नहीं बन पाए. वहीं, इस समय नरेंद्र मोदी के क़द को देख कर यह भी नहीं कहा जा सकता कि आगे चल कर ये मुद्दे कोई परेशानी खड़ी करेंगे. जानकार कहते हैं कि इनमें से अधिकतर के लिए उनके दल ने बहाने के रूप में कई ‘नेरेटिव सेट’ कर दिए हैं. उनके मुताबिक़ ऐसे में अगले पांच सालों में नरेंद्र मोदी को उन्हीं मुद्दों पर घेरा जा सकता है, जिन्हें उन्होंने ख़ुद खड़ा किया.
किसानों की आय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में कहा था कि वे 2022 तक किसानों की आय दोगुना करना चाहते हैं. इस मामले में उन्होंने केवल ‘प्रतिबद्धता’ नहीं जताई, बल्कि यह भी बताया कि वे कितने में समय में किसानों की आय दोगुनी करना चाहते हैं. नरेंद्र मोदी के मुताबिक़ किसानों की आय बढ़ाने के लिए ‘कच्चे माल की लागत कम करनी होगी, उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करना होगा, फ़सलों की बर्बादी रोकनी होगी और आमदनी के वैकल्पिक स्रोत सृजित करने होंगे’. लेकिन जानकार पूछते हैं कि प्रधानमंत्री यह कारनामा करेंगे कैसे, जबकि बीते पांच सालों में देश में कृषि विकास दर तीन प्रतिशत से भी कम रही है और किसानों की आय दोगुनी करने के लिए उन्हें इस दर को बढ़ा कर 15 प्रतिशत प्रतिवर्ष करना होगा.
नेशनल बैंक फ़ॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट की 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2012-13 से 2016-17 के बीच देश में किसान परिवारों की आय में मात्र 2,505 रुपये की वृद्धि हुई. कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश का लगातार घटते जाना इसका प्रमुख कारण रहा है. हालांकि अब मोदी सरकार ने इसमें 25 लाख करोड़ रुपये का भारी-भरकम निवेश करने की बात कही है. लेकिन यह देखना होगा कि यह काम किस तरह और कितने समय में पूरा होगा.
समस्याएं और भी हैं. मसलन, किसानों के क़र्ज़ लगातार बढ़े हैं और पुराने लोन नहीं चुकाने के चलते बैंकों से नए लोन मिलना अब मुश्किल हो गया है. वे ज़मींदारों और ग़ैर-वित्तीय संस्थाओं से क़र्ज़ लेने पर मजबूर हो रहे हैं. सरकारें उन्हें बीमा देने का दावा करती हैं. लेकिन रिपोर्टें बताती हैं कि किसानों को बीमे का भी फ़ायदा नहीं मिलता है क्योंकि बीमा दावों के निपटारे की दर बहुत धीमी है. उधर, मोदी सरकार अपने कार्यकाल में महंगाई के स्थिर रहने का दावा करती रही है. लेकिन इसका नुक़सान किसानों को हुआ है, क्योंकि अनाज-सब्ज़ियों के दाम कम रहने से उन्हें लाभ नहीं मिलता है.
कई रिपोर्टें बताती हैं कि साल 2000 से 2017 के बीच उपभोक्ताओं को किसानों से ज़्यादा महत्व देते हुए उन्हें तीन लाख करोड़ से ज़्यादा की मदद प्रतिवर्ष दी गई है. यानी उपभोक्ताओं को थोड़ा-बहुत नाराज़ किए बना किसानों की आय बढ़ाना एक बड़ी चुनौती हो सकता है. इसके अलावा देश के अधिकतर किसान या तो भूमिहीन हैं या उनके पास खेती के लिए पर्याप्त ज़मीन नहीं है. इसके चलते खेती अब मुलाफ़े का काम नहीं रह गया है. ऐसी और कई चुनौतियां हैं जिनसे पार पाए बिना किसानों की आय दोगुनी करना संभव नहीं होगा.
राष्ट्रीय सुरक्षा-आतंकवाद
देश की सुरक्षा और आतंकवाद को राष्ट्रीय मुद्दा बना कर भाजपा ने लोकसभा चुनाव जीता है. अपने घोषणा-पत्र (जिसे संकल्प-पत्र नाम दिया गया) में उसने आतंकवाद को लेकर ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति पर चलते रहने का वादा किया है और ‘सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक’ का उदाहरण भी दिया है.
लेकिन उसके इस वादे को दो सच्चाइयों से चुनौती मिलती है. पहली यह कि उसकी ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ वाली नीति से आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगना मुश्किल है. अगर ऐसा होता तो उड़ी हमले के बाद पुलवामा हमला नहीं होता. कई पूछते हैं कि क्या सर्जिकल स्ट्राइक और उसके बाद बालाकोट हवाई हमले के बाद भी यह गारंटी दी जा सकती है कि अब कोई आतंकी हमला नहीं होगा? दूसरी बात यह कि हर बड़े आतंकी हमले का जवाब सैन्य कार्रवाई से ही देना मोदी सरकार के लिए संभव नहीं होगा.
इसके अलावा इस मुद्दे पर भाजपा और उनके सहयोगियों के बयान भी पार्टी के लिए आगे चल कर मुसीबत बन सकते हैं. मसलन, यह नरेंद्र मोदी ने ही कहा है कि उनके नेतृत्व में ‘देश सुरक्षित हाथों में है’. वहीं, उनकी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि भारत की रक्षा नीति का अब उसकी कूटनीति से कोई संबंध नहीं रह गया है. वहीं, शिवसेना कह चुकी है कि उसने भाजपा से दोबारा गठबंधन इसलिए किया कि उसे पाकिस्तान पर हमला करने की हिम्मत रखने वाला प्रधानमंत्री चाहिए. कई जानकार मानते हैं कि इससे अब हर आतंकी हमले (जो नहीं होना चाहिए) के साथ नरेंद्र मोदी पर दबाव पहले से ज़्यादा होगा.
धारा 370 और 35ए
भाजपा केंद्र की सत्ता में आने पर जम्मू-कश्मीर से जुड़ी धारा 370 को ख़त्म करने का वादा करती रही है. 2014 के घोषणा-पत्र में भी उसने यह वादा किया था. हालांकि पांच सालों में वह ऐसा नहीं कर पाई. बजाय इसके उसने पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बना ली जिससे उसने बाद में समर्थन वापस ले लिया. 2019 के आम चुनाव में उसने धारा 370 को लेकर अपना वादा फिर दोहराया. लेकिन इस बार उसने धारा 35ए को भी ख़त्म करने का वादा किया है.
वहीं, लोगों ने भी उस पर फिर विश्वास जताते हुए 12 प्रतिशत अधिक वोट देकर राज्य की छह में से तीन सीटों पर जीत दिलाई है. लेकिन राज्य की बाक़ी तीनों सीटों पर जीतने वाली नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने चुनौती दे दी है कि नरेंद्र मोदी कितने ही ताक़तवर हो जाएं, धारा 370 और 35ए को नहीं हटा पाएंगे. उधर, एनडीए के ही कुछ सहयोगी दल 370 को ख़त्म करने के ख़िलाफ़ हैं. ऐसे में नरेंद्र मोदी के लिए अपना यह वादा निभाना मुश्किल हो सकता है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो कश्मीरी पंडितों और महिलाओं से किए अपने वादे को लेकर वे आने वाले वक़्त में घिर सकते हैं.
एनआरसी
बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा के बेहतरीन प्रदर्शन के पीछे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) का मुद्दा अहम कारणों में से एक बताया गया है. विश्लेषक मानते हैं कि भारत में अवैध घुसपैठ के मुद्दे को भाजपा ने जिस आक्रामकता से उठाया, उसका उसे चुनाव में फ़ायदा मिला है. एनआरसी को लेकर अपने ही सहयोगियों के विरोध के बावजूद वह आमजन के दिमाग़ में यह बात बिठाने में कामयाब रही कि पड़ोसी देशों के नागरिकों (यानी रोहिंग्या या बांग्लादेशी मुसलमान) ने भारत में घुस कर यहां के लोगों के अधिकार (जैसे रोज़गार) छीने हैं और सेक्युलर राजनीति करने वाले दलों ने अपने हित के लिए उन्हें यहां पनाह दी है. भाजपा का वादा है कि वह एनआरसी के ज़रिये ऐसे लोगों को देश से निकाल बाहर करेगी.
लेकिन दिक़्क़त यह है कि एनआरसी के लागू होने का काम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है. ऐसे में नागरिकों की पहचान की प्रक्रिया में उनका धर्म नहीं, बल्कि 24 मार्च, 1971 की तारीख़ देखी जाएगी. कोर्ट इस तारीख़ के बाद भारत में घुसे किसी भी पाकिस्तानी, बांग्लादेशी या अफ़ग़ानी नागरिक को उसके हिंदू या मुसलमान होने पर रियायत नहीं देगा.
वहीं, इससे देश के बहुसंख्यक नाराज़ न हो जाएं, इसलिए भाजपानीत सरकार ने नागरिक अधिनियम में बदलाव कर ग़ैर-भारतीय हिंदू, जैन, सिख, ईसाई और बौद्ध घुसपैठियों (जिन्हें भाजपा शरणार्थी बताती है) को भारत की नागरिकता देने का वादा किया है. उसने मुसलमानों को इसमें शामिल नहीं किया है. जानकारों के मुताबिक़ इससे साफ़ संकेत मिलते हैं कि यह मामला कोर्ट के हस्तक्षेप और सत्तारूढ़ दल की राजनीति के चलते पेचीदा हो सकता है. बहुतों के मुताबिक संभव है कि भाजपा का यह दाव भविष्य में बैकफ़ायर कर जाए.
महिला आरक्षण
महिला आरक्षण लागू करना का मोदी सरकार के बड़े चुनावी वादों में से एक है. इसके लिए उसने संविधान में संशोधन करने की बात कही है. लेकिन यह काम वह कब तक कर देगी, इस बारे में कोई समयसीमा तय नहीं की गई है. केवल इतना कहा गया है कि भाजपा महिला आरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध है. बता दें कि महिला आरक्षण बिल संसद में कई बार लाया जा चुका है, लेकिन यह आज तक पारित नहीं हो पाया है. ऐसे में कोई समयसीमा न तय करना इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर तो सवाल खड़े करेगा ही, साथ ही उसकी ‘प्रतिबद्धता’ को कांग्रेस के घोषणा-पत्र से चुनौती भी मिल सकती है. अपने घोषणा-पत्र में कांग्रेस ने वादा किया था कि सरकार बनने पर संसद के पहले ही सत्र में वह संविधान संशोधन विधेयक पास करवाकर, लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करेगी. इसके अलावा पार्टी ने केंद्र सरकार के सेवा नियमों में संशोधन करके केंद्रीय नौकरियों में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा किया था.
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