पिछले दिनों सूखे की समस्या पर नज़र रखने वाली व्यवस्था ‘ड्रॉट अर्ली वॉर्निंग सिस्टम’ के हवाले से ख़बर आई कि भारत का 42 प्रतिशत हिस्सा ‘असामान्य सूखे’ की चपेट में है. यह आंकड़ा पिछले साल के मुक़ाबले क़रीब छह प्रतिशत ज़्यादा है. वहीं, छह प्रतिशत से थोड़ा कम हिस्सा ‘विशेष रूप से’ सूखाग्रस्त है. इस स्थिति से सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाक़ों में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्य शामिल हैं.

देश में बढ़ते जल संकट की ओर इशारा करती यह इस साल की एकमात्र रिपोर्ट नहीं है. बीते कुछ दिनों से ऐसी कई ख़बरें सामने आई हैं जो भारत में पानी के मुद्दे को लेकर गंभीर चिंता पैदा करती हैं. इन रिपोर्टों पर ग़ौर करें तो यह साफ़ दिखता है कि देश बहुत तेज़ी से भयावह जल संकट की ओर बढ़ रहा है. जानकार इसकी चेतावनी काफ़ी समय से दे रहे हैं. ऐसे में यह सवाल ग़ैर-मुनासिब नहीं लगता कि क्या आने वाले समय में देश में पानी के लिए बड़े पैमाने पर हिंसा भी हो सकती है या कहें कि क्या भारत एक ‘जल युद्ध’ की तरफ बढ़ रहा है? इस संभावना को समझने के लिए जल संकट से जुड़ी कुछ मौजूदा परिस्थितियों पर ग़ौर करना चाहिए जो हमारे भविष्य को प्रभावित करती दिखती हैं.

2030 तक 40 प्रतिशत भारतीयों के पास पानी नहीं होगा

नीति आयोग की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ 2020 तक देश में दस करोड़ लोग पानी की कमी की समस्या का सामना कर रहे होंगे. इनमें दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में रह रहे लोग काफ़ी बड़ी संख्या में शामिल रहेंगे. चेन्नई के हालात तो अभी से भयावह हैं. वहीं, 2030 तक देश के 40 प्रतिशत नागरिक पीने के पानी की समस्या से बुरी तरह प्रभावित होंगे. जानकारों के मुताबिक़ इस स्थिति से निपटने के लिए अभी से आपातकालीन क़दम उठाने होंगे. लेकिन क्या इस दिशा में कुछ सार्थक काम हो पा रहा है?

हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करने के बाद भी नदियों का पानी पीने लायक़ नहीं

सरकारें दावा कर रही हैं कि वे नदियों के प्रदूषण की समस्या को दूर करने के लिए हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च कर रही हैं. लेकिन हक़ीक़त यह है कि तमाम कोशिशों के बाद भी अपेक्षित और जरूरी बदलाव नहीं हो पा रहा है. हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने कहा कि गंगा नदी का पानी सीधे पीने योग्य नहीं है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ जिस रास्ते से गंगा नदी गुज़रती है, वहां अलग-अलग फ़ासले पर लगाए गए 86 लाइव निरीक्षण केंद्रों में से केवल सात पर गंगा का पानी योग्य पाया गया है. उसे भी छानने या स्वच्छ किए बिना नहीं पिया जा सकता. बाक़ी 79 जगहों का पानी सफ़ाई के बाद भी नहीं पिया जा सकता. वहीं, उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा नदी का पानी नहाने के लायक़ भी ठीक नहीं है.

हालात नर्मदा नदी के भी अच्छे नहीं हैं. मध्य प्रदेश और गुजरात के लोगों के लिए जीवनदायनी यह नदी प्रदूषण के साथ अब अपने वजूद के संकट से भी गुज़र रही है. स्थानीय रिपोर्टों की मानें तो नर्मदा का पानी पहली बार अपने उद्गम स्थल अमरकंटक पर ही घट गया है. बताया जा रहा है कि गायत्री और सावित्री सरोवर के पास नर्मदा का पानी पूरी तरह सूख गया है. वहीं, नर्मदा कुंड का पानी तीन सीढ़ी नीचे खिसक गया है. उधर, नर्मदा के प्रदूषण को लेकर सरकारें अभी भी केवल विचार कर रही हैं. ख़बरों के मुताबिक़ गंगा की तर्ज पर देश की 13 नदियों को फिर से ‘जीवित’ करने की योजना बनाई जा रही है. इस संबंध में केंद्र को सुझाव भेजे जा रहे हैं. लेकिन यह काम कब तक पूरा होगा, इस बारे में फ़िलहाल कोई दावा नहीं किया जा सकता.

गर्मी भी बढ़ रही है और प्यासे लोग भी

एक तरफ़ जल-स्रोतों का ह्रास हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ़ देश में गर्मी हर साल बढ़ती जा रही है. इसकी ज़द में उत्तर भारत के साथ अब दक्षिण भारत भी आ गया है. ख़बरों के मुताबिक़ इस साल तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु के कई इलाक़ों में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया है. इसके अलावा मसूरी जैसे हिल स्टेशनों वाले इलाक़ों में भी पारा 38 डिग्री को पार कर गया. जानकारों के मुताबिक़ बीते 50 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है.

वहीं, ज़्यादा गंभीर बात यह सामने आई है कि अब गर्मी पहले से ज़्यादा दिनों तक रहती है. ऊपरी तौर पर देखें तो यह पर्यावरण की समस्या लगती है. लेकिन इसकी जड़ राजनीति और कॉर्पोरेट के गठजोड़ से भी जुड़ी है. देश के बड़े कारोबारी पैसा बनाने के चक्कर में अंधाधुंध जंगलों का सफ़ाया करने पर तुले हुए हैं. इससे आदिवासियों के पलायन की समस्या तो बढ़ी ही है, साथ में पर्यावरण को भी बहुत ज़्यादा नुक़सान हुआ है और गर्मी बढ़ी है. उदाहरण के लिए, दस साल पहले तक छत्तीसगढ़ के पहाड़ी इलाक़े बैलाडीला में पारा कभी 35 डिग्री से ऊपर नहीं जाता था. आज यहां 44 डिग्री सेल्सियस के तापमान वाली गर्मी पड़ रही है. वजह है लौह अयस्क के लालच में खनन के लिए लाखों पेड़ों की कटाई.

वहीं, देश की बढ़ती जनसंख्या भी जल संकट के मुद्दे का अहम पहलू है जिस पर न के बराबर चर्चा होती है. इस हिसाब से गर्मी के साथ देश में प्यासे लोगों की तादाद बढ़ती जा रही है. रिपोर्टें बताती हैं कि 2030 तक भारत डेढ़ अरब से ज़्यादा की जनसंख्या वाला देश बन जाएगा. यहां वर्तमान में ही लोग असमान जल वितरण की समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में 2030 में सभी को बराबर पानी मिल पाएगा, यह दावा नहीं किया जा सकता.

पीने योग्य पानी कम हो रहा है

जहां पीने के पानी में बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय है, वहीं जिन जल स्रोतों में पीने योग्य पानी है, वे भी घटते जा रहे हैं. पीटीआई की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ केंद्रीय जल आयोग ने कहा है कि देश में 91 प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर पिछले 10 साल के औसत से कम हो गया है. ये जलाशय अधिकतर पश्चिम और दक्षिण भारत के राज्यों में हैं. आयोग की मानें तो इतने बड़े स्तर पर जलाशयों का घटना देश के इन हिस्सों में बढ़ते जल संकट का संकेत है.