2014 की बात है. साल शुरू ही हुआ था कि अचानक भारतीय कार बाज़ार में जबरदस्त हलचल देखी गई. इसकी वजह थी ग्लोबल न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम यानी जीएनसीएपी की तरफ से जारी की गई देश की कुछ प्रमुख कारों की क्रैश टेस्ट रिपोर्ट. इस टेस्ट में टाटा नैनो, डेटसन गो, मारुति-सुज़ुकी स्विफ्ट, मारुति-सुज़ुकी ऑल्टो, ह्युंडई आई-10, फोर्ड फीगो और फॉक्सवैगन पोलो को शामिल किया गया था. इन सभी कारों को वयस्कों की सुरक्षा के मामले में जीएनसीएपी ने पांच में से ज़ीरो रेटिंग दी थी.
यही वह समय था जब जीएनसीएपी ने भारत में ‘सेफर कार्स फॉर इंडिया’ कैंपेन की शुरुआत कर हम भारतीयों का नज़रिया कारों के प्रति हमेशा के लिए बदल दिया. सिर्फ माइलेज और कीमतों के फेर में उलझे भारतीय अब कार खरीदते वक़्त सुरक्षा से जुड़े सवाल भी करने भी लगे थे. भारतीय ऑटोसेक्टर से जुड़े सभी पक्षों के लिए यह बदलाव चौंकाने के साथ चौकन्ना करने वाला भी था.
जीएनसीएपी की इस रिपोर्ट ने वाहन सुरक्षा के मुद्दे पर गहरी नींद सो रही सरकार को भी झकझोर कर रख दिया. उसने वाहनों की सुरक्षा के लिए नए मानक तय करने के लिए ताबड़तोड़ नीतियां बनाना शुरु कर दिया. लेकिन वाहन निर्माता कंपनियां उससे पहले ही सतर्क हो चुकी थीं. भारत जैसे देश में जहां हर साल सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली डेढ़ लाख मौतों को नियति मानकर स्वीकार कर लिया जाता है, वहां यह बदलाव किसी क्रांति से कम नहीं था.
सवाल है कि यह जीएनसीएपी आख़िर है क्या, कैसे काम करता है, क्या इसके मानक हैं जिन पर हमारी कारों को खरा उतरना होता है और कार ख़रीदने से पहले इस पर कितना भरोसा किया जा सकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो हमारी कारों को प्रमाणपत्र बांटने वाले जीएनसीएपी की अपनी प्रामाणिकता क्या है?
ग्लोबल एनसीएपी क्या है?
न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम की शुरुआत 1978 में अमेरिका से हुई थी. इस प्रोग्राम के तहत यूएसए में कारों का क्रैश टेस्ट कराया जाता और उसकी जानकारी उपभोक्ताओं को दी जाती. इस प्रोग्राम की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए धीरे-धीरे दुनियाभर में ऐसे अलग-अलग प्रोग्राम चलाए जाने लगे. इनमें ऑस्ट्रेलियन एनसीएपी, यूरो एनसीएपी, जापान एनसीएपी, एशियन एनसीएपी, चाइना एनसीएपी, कोरिअन एनसीएपी और लैटिन एनसीएपी प्रमुख हैं. भारतीय कारों का सुरक्षा स्तर जांचने वाले ग्लोबल एनसीएपी को ब्रिटेन में रजिस्टर्ड एक चैरिटी ‘टूवर्ड्स ज़ीरो फाउंडेशन’ के तहत संचालित किया जाता है.
जीएनसीएपी के मुताबिक यह दुनियाभर के अन्य एनसीएपी प्रोग्राम्स के साथ जानकारी और सुरक्षा मानकों को साझा करते हुए कारों की जांच करता है. इसका उद्देश्य 2020 तक पूरी दुनिया में बनने वाली नई कारों में कम से कम यूनाइटेड नेशन (यूएन) द्वारा तय सुरक्षा मानकों को शामिल कराना है, ताकि दुनियाभर में सड़क हादसों की वजह से होने वाली जनहानि को रोका जा सके. इन मानकों में पैदल यात्रियों की सुरक्षा के लिए इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल (ईएससी) जैसे फीचर्स भी प्रमुखता से शामिल हैं. इस फीचर के तहत स्टीअरिंग से ड्राइवर का नियंत्रण खोने पर कार अपने-आप ही रुक जाती है.
इसके अलावा जीएनसीएपी वाहनों में ईंधन की कम खपत और प्रदुषण घटाने से जुड़ी जानकारी भी मुस्तैदी के साथ उपभोक्ताओं से साझा करता है. जीएनसीएपी भारत के अलावा फिलहाल अफ्रीका में बेची जा रही कारों के लिए भी क्रैश टेस्ट रेटिंग देता है.
ग्लोबल एनसीएपी कारों का टेस्ट करता कैसे है?
दुनियाभर के प्रत्येक एनसीएपी ने कारों के क्रैश टेस्ट और उन्हें स्कोर देने के लिए अपने अलग-अलग मानक तय कर रखे हैं. यदि यूरो एनसीएपी की बात करें तो यह कार के क्रैश टेस्ट के दौरान फुल फ्रंट, फुल ऑफसेट (पहियों की स्थिति), साइड इंपैक्ट और साइड पोल की मजबूती को जांचती है. जबकि ग्लोबल एनसीएपी प्रोग्राम के तहत फ्रंट ऑफसेट क्रैश टेस्ट को ही अंजाम दिया जाता है. इस टेस्ट में कार को 64 किलोमीटर/घंटा की रफ़्तार और चालीस प्रतिशत ओवरलैप (ड्राइवर की तरफ गाड़ी का चालीस प्रतिशत हिस्सा) के साथ एक खास आकृति वाले बैरियर से टकराया जाता है. यह टकराव 50 किलोमीटर/घंटा रफ़्तार से विपरीत दिशा से आ रही दो बराबर वजन वाली कारों के बीच आमने-सामने हुई टक्कर के बराबर प्रभावी होता है.

भारत सरकार की तरफ़ से 2017 में जारी हुए नवीनतम सुरक्षा मानकों में बैरियर से होने वाली इस टक्कर के लिए 56 किलोमीटर/घंटा की रफ़्तार तय की गई है जो कि जीएनसीएपी से कम है. ये मानक फ्रंट इंपेक्ट प्रोटेक्शन के लिए यूनाइटेड नेशन के रेगुलेशन-94 से लिए गए हैं.
नतीजतन बीते कुछ वर्षों में भारत सरकार ने तो कारों को बिक्री योग्य मान लिया. लेकिन जीएनसीएपी के टेस्ट में उनमें से कईयों का प्रदर्शन बेहद लचर रहा. कुछ ऐसा ही मामला 2016 में सामने आया था जब महिंद्रा स्कॉर्पियो और रेनो क्विड को जीएनसीएपी के टेस्ट में ज़ीरो रेटिंग मिली थी. ग्राहकों के बीच जीएनसीएपी की बढ़ती पैठ को देखते हुए महिंद्रा और रेनो ने बकायदा बयान जारी कर अपनी कारों के भारत सरकार के मानकों पर खरे उतरने की सफाई दी थी. यह बात भी ध्यान देने लायक है कि कुछ वर्षों के अंतराल में एनसीएपी के सुरक्षा टेस्ट में कई नए फीचर्स जोड़ दिए जाते हैं.
जीएनसीएपी कारों को रेटिंग कैसे देता है?
जैसा कि हमने बताया कि जीएनसीएपी किसी भी कार को पांच स्टार में से रेटिंग देता है. किसी कार को जितनी ज्यादा रेटिंग मिलती है वह उतनी ही सुरक्षित मानी जाती है. क्रैश टेस्ट के दौरान किसी भी कार को वयस्क और बच्चों, दोनों के हिसाब से अलग-अलग रेटिंग दी जाती है. जैसे हाल ही में होंडा की कॉम्पैक सेडान अमेज़ को वयस्कों की सुरक्षा के मामले में पांच में से चार स्टार रेटिंग मिली थी. लेकिन बच्चों के लिहाज से यह कार सिर्फ़ एक स्टार रेटिंग ही हासिल कर पाई.
किसी दुर्घटना के समय कार में मौजूद सवारियों पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने के लिए क्रैश टेस्ट में कारों में पुतले यानी डमी बिठाए जाते हैं. जीएनसीएपी की तरफ़ से किसी भी कार को दी जाने वाली रेटिंग ड्राइवर (डमी) के सिर व गर्दन, सीना, घुटना, जांघ, पेडू और पैर पर लगने वाली चोटों को ध्यान में रखते हुए दी जाती है.कार को मिलने वाले स्कोर में सवारियों और बच्चों की सुरक्षा की भी अहम भूमिका रहती है. इसे जांचने के लिए क्रैश टेस्ट के दौरान गाड़ी में डेढ़ से लेकर तीन साल तक के बच्चों के आकार की डमी बिठाई जाती है.
इसके अलावा कार को सीट बेल्ट रिमाइंडर, थ्री पॉइंट सीट बेल्ट रिमाइंडर, आईएसओफिक्स, 4-चैनल एंटीलॉक ब्रेकिंग सिस्टम (एबीएस) और साइट इंपैक्ट प्रोटेक्शन फीचर के लिए भी अतिरिक्त पॉइंट मिलते हैं. जीएनसीएपी की तरफ से न्यूनतम एक स्टार रेटिंग पाने के लिए किसी कार में कम से कम ड्राइवर साइड एयरबैग होना ज़रूरी है. यही कारण था कि अपने टेस्ट में जीएनसीएपी ने बिना एयरबैग वाली फॉक्सवैगन पोलो और टाटा ज़ेस्ट को ज़ीरो और एयरबैग से लैस होने के बाद दोनों ही गाड़ियों को चार स्टार रेटिंग दी थी. जानकारों का कहना है कि जल्द ही जीएनसीएपी न्यूनतम सुरक्षा मानकों को अपडेट कर सकता है. इनमें ईएससी के प्रमुखता से शामिल होने की संभावना है.
जीएनसीएपी के लिए कारों का चयन कैसे होता है?
जीएनसीएपी के टेस्ट में इस्तेमाल की जाने वाली कारों को सीधे कंपनी से लेने की बजाय किसी शोरूम से खरीदा जाता है. इस टेस्ट की खास बात यह है कि इसे किसी भी कार के बेस वेरिएंट पर आजमाया जाता है. इसके पीछे जीएनसीएपी की दलील है कि उसके लिए कार के सबसे सस्ते वेरिएंट को खरीदने वाले ग्राहक की भी सुरक्षा समान रूप से महत्व रखती है.
हालांकि जीएनसीएपी की तरफ़ से कार निर्माताओं को उनकी कारों के हाई स्पेसिफिकेशन और सेफ्टी फीचर्स वाले मॉडल भेजने और उनको रेटिंग दिलवाने का भी विकल्प दिया गया है. टाटा ज़ेस्ट, फॉक्सवैगन पोलो और होंडा मोबिलियो को इसी तर्ज पर दो बार रेटिंग दी गई थी. जबकि रेनो क्विड 2016 के बाद अब तक चार बार इस टेस्ट का सामना कर चुकी है. 2018 तक जीएनसीएपी के तहत भारत में बनी 32 कारों का क्रैश टेस्ट किया जा चुका है. यह बात आपको चौंका सकती है कि इन 32 कारों में से 19 को ज़ीरो रेटिंग मिली थी.

कुछ और पहलु!
अमेरिका में किसी भी कार को बेचते समय उस पर क्रैश टेस्ट की रेटिंग का ज़िक्र करना आवश्यक है. वहीं यूरोप में यह बात ज़रूरी तो नहीं, लेकिन रेटिंग का ज़िक्र न होना ग्राहकों द्वारा संदेह की नज़र से देखा जाता है. यही कारण है कि यूरोप में बेची जाने वाले 80 फीसदी से ज्यादा कारों के साथ उनके निर्माताओं द्वारा क्रैश टेस्ट रेटिंग की जानकारी दी जाती है. 2014 में जीएनसीएपी की भारत में एंट्री के बाद से ही यहां एक स्वदेशी एनसीएपी- ‘भारत न्यू व्हीकल असेसमेंट प्रोग्राम’ (बीएनवीएसएपी) कार्यक्रम शुरू किए जाने से जुड़े कयास लगाए जा रहे हैं. लेकिन बीते पांच साल में यह प्रक्रिया कहां तक पहुंची, कहना मुश्किल है.
भारतीय ग्राहकों को यह बात संतोष दे सकती है कि देश के ऑटोसेक्टर से जुड़ी कंपनियां आगे बढ़कर जीएनसीएपी को अपनी गाड़ियों को रेटिंग देने के लिए आमंत्रित करने लगी हैं. भारत में जीएनसीएपी के सफ़र से जुड़ी एक दिलचस्प बात यह भी है कि इसके तहत सबसे पहले टाटा मोटर्स की नैनो को परखा गया था जिसे ज़ीरो रेटिंग मिली थी. लेकिन इसी टेस्ट में भारत की अब तक की सर्वाधिक सुरक्षित कार साबित हुई नेक्सन भी टाटा मोटर्स का ही उत्पाद है.
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