केंद्र सरकार साल में दस लाख रुपये की रकम निकालने वालों पर टैक्स लगाने का विचार कर रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार नकदी का इस्तेमाल कम करने, कालाधन पकड़ने और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह टैक्स लगा सकती है. इसके अलावा बड़ी नकदी पर आधार सत्यापन का नियम भी लाया जा सकता है. सरकार को विश्वास है कि इससे लेन-देन करने वालों को ट्रैक करना और उनके टैक्स रिटर्न का हिसाब लगाना आसान हो जाएगा.

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ‘मनरेगा (योजना) के एक लाभकारी को आधार के जरिये सत्यापन करना होता है. लेकिन पांच लाख रुपये निकालने वाले किसी व्यक्ति के लिए यह नियम लागू नहीं है.’ वहीं, एक सूत्र ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा, ‘डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दिया जा रहा है. ऐसे में किसी को दस लाख रुपये से ज्यादा की रकम निकालने की क्या जरूरत है?’

उधर, पिछले हफ्ते ही आरबीआई ने घोषणा की थी कि वह एनईएफटी और आरटीजीएस लेन-देन पर लगने वाले शुल्क को हटाएगा. वित्त मंत्रालय का सूत्रों का कहना है कि इससे अर्थव्यवस्था में गैर-नकदी और चेक से होने वाले लेन-देन को बढ़ावा मिलेगा.

दरअसल, सरकार का यह मानना है कि अधिकतर लोगों को और कामों के लिए साल में दस लाख रुपये निकालने की जरूरत नहीं होती. वह इस टैक्स को लेकर ऐसे समय में विचार कर रही है जब आगामी पांच जुलाई को पेश होने वाले बजट की तैयारी की जा रही है. हालांकि इस बारे में उसने कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है. वहीं, उसका यह भी कहना है कि वह ऐसा कुछ नहीं करना चाहती जिससे मध्यम वर्ग और गरीबों का बोझ बढ़े.