सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पत्रकार प्रशांत कनोजिया को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है. इस मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि ‘पुलिस उनके खिलाफ केस चला सकती है, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकती.’ पुलिस ने प्रशांत कनौजिया को शनिवार को दिल्ली से गिरफ्तार किया था. उनके खिलाफ एक पुलिसकर्मी ने ही शिकायत दर्ज कराई थी. इसके आधार पर कनौजिया के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा- 500 (मानहानि) और 505 (अफवाह फैलाने) के तहत मामला दर्ज किया गया था. पुलिस ने उन्हें आईटी एक्ट की धारा- 67 के तहत भी आरोपित बनाया था. उनके खिलाफ यह मामला सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ टिप्पणियां करने के आरोप में दर्ज किया गया था.
गिरफ्तारी के बाद प्रशांत कनौजिया के समर्थन में कई लोग और संस्थाएं सामने आईं. पत्रकारों की संस्था एडिटर्स गिल्ड ने उनकी गिरफ्तारी को कानून का ‘खुल्लमखुल्ला दुरुपयोग’, ‘प्रेस को डराने का प्रयास’ और ‘अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने वाला’ बताया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे उन बुनियादी उसूलों के खिलाफ जाने वाला कहा जो इस देश की नींव हैं. कनौजिया की रिहाई की मांग को लेकर नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) से एक मार्च भी निकाला गया. इसमें शामिल पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भी उनकी गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बता रहे थे.
वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई को तो कठघरे में खड़ा करते हैं लेकिन, इसे अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ने की कोशिश को गलत करार देते हैं. वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं, ‘आरोपित को बचाने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई दी जा रही है. जिसकी (मुख्यमंत्री आदित्यनाथ) प्रतिष्ठा पर हमला हुआ है, क्या उसका कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है?’ साथ ही उन्होंने, प्रशांत कनौजिया ने जो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था, उसे देखते हुए कनौजिया के पत्रकार होने पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया है.
अगर प्रशांत कनौजिया के सोशल मीडिया अकाउंट्स को देखें तो ऐसे लोगों की बातें गलत नहीं लगती हैं. उन्होंने बीते हफ्ते एक वीडियो को अपनी टिप्पणियों के साथ सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था. इस वीडियो में एक महिला मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के साथ प्रेम संबंध होने का दावा करती दिखती है. कनौजिया ने इसे अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर करते हुए कैप्शन दिया था, ‘इश्क छुपता नहीं छुपाने से योगी जी.’ इस ट्वीट के एक जवाब में प्रशांत लिखते हैं, ‘संभालो कहीं योगी भी आसाराम (बलात्कार के आरोपित) न निकले.’ वहीं, फेसबुक पर इस वीडियो के साथ उन्होंने लिखा था, ‘योगी जी वीडियो चैटिंग कर सकते हो, तो इश्क़ का इज़हार क्यों नहीं? योगी जी आप डरो नहीं मत सोचो समाज क्या कहेगा बस भाग जाओ हम सब आपकी शादी करवा देंगे.’

प्रशांत कनौजिया ने इससे पहले भी सोशल मीडिया पर कई विवादित टिप्पणियां की हैं. एक ट्वीट में अमित शाह के शपथ ग्रहण वाली तस्वीर को इस कैप्शन के साथ शेयर किया था कि ‘मैं अमित शाह ईश्वर की सुपारी लेता हूं.’ इसके अलावा अपने एक ट्वीट में उन्होंने योगी आदित्यनाथ की ही एक एडिटेड तस्वीर को शेयर करते हुए काफी भद्दे तरीके से लिखा था, ‘योगी बचपन में भी दंगाई दिखता था.’ यहां यह जानना जरूरी है कि प्रशांत कनौजिया ने देश के सबसे प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थान, भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) से पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा की पढ़ाई की है. साथ ही, उनके फेसबुक अकाउंट पर दी गई जानकारी की मानें तो उन्होंने देश के कई बड़े मीडिया संस्थानों में भी काम किया है.


जानकार मानते हैं कि वक्त के साथ सोशल मीडिया कई लोगों के लिए अभिव्यक्ति का एक बहुत बड़ा माध्यम और यहां तक कि पारंपरिक मीडिया का विकल्प तक बन गया है. लेकिन, इसके साथ कई बुराइयां भी जुड़ी हुई हैं. इनमें एक-दूसरे या किसी सलेब्रिटी के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना भी बड़े पैमाने पर शामिल है. सोशल मीडिया पर इस तरह की गतिविधि को ट्रोल करना कहते हैं और ऐसा करने वालों को ट्रोलर्स.
आम तौर पर माना जाता है कि इनमें से अधिकांश किसी विशेष राजनीतिक दल या विचारधारा के कट्टर समर्थक होते हैं. इनमें से अधिकांश ट्रोलर्स अपनी पहचान छिपाकर फर्जी अकाउंट बनाते हैं और उनके जरिए ही भड़काऊ और आपत्तिजनक पोस्ट लिखते हैं. इनमें से कई लोगों के बड़ी संख्या में फॉलोवर्स होते हैं जो उनकी टिप्पणियों को लगातार रिट्वीट या शेयर करते रहते हैं. ऐसे कई लोगों को कई महत्वपूर्ण लोग भी फॉलो करते हैं. इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक शामिल हैं.
साल 2017 में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद निखिल दधीच नाम के एक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट किया गया, ‘एक कुतिया कुत्ते की मौत क्या मरी सारे पिल्ले एक सुर में बिलबिला रहे हैं.’ उस समय प्रधानमंत्री भी निखिल को फॉलो किया करते थे लेकिन विवाद होने के बाद उन्होंने दधीच को अनफॉलो कर दिया.
अब इन ट्रोलर्स की सूची में चाहे-अनचाहे पत्रकार भी शामिल होते दिखने लगे हैं. लोकसभा चुनाव-2019 के दौरान टीवी पत्रकार निशांत चतुर्वेदी ने बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को लेकर एक ‘आपत्तिजनक’ ट्वीट किया था. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी वाले राबड़ी देवी के एक ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा था, ‘अच्छा जी राबड़ी देवी जी भी ट्वीट करती है. कोई इनसे बोले कि ये तीन बार ट्विटर बोलकर बता दें.’ इस विवादित ट्वीट को लेकर निशांत चतुर्वेदी को सोशल मीडिया पर काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.

आम तौर पर माना जाता है कि सोशल मीडिया ने आम आदमी के साथ पत्रकारों को भी ऐसा मंच उपलब्ध कराया है जहां बिना किसी दबाव के किसी मुद्दे पर अपनी राय जाहिर की जा सकती है. लेकिन जब कोई खुद को सोशल मीडिया पर बतौर पत्रकार पेश करता है तो उससे कई अपेक्षाएं भी की जाती है. लोगों को उम्मीद होती है कि ट्रोलर्स के उलट उनकी टिप्पणियों और आलोचनाओं में भद्र भाषा के साथ तर्कों और तथ्यों का समावेश भी होगा. लेकिन, सोशल मीडिया पर अब कई बार पत्रकार और ट्रोलर्स के बीच का अंतर काफी कम होता दिखने लगा है.
मीडिया को भारतीय लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है. लेकिन इस पर पिछले काफी दिनों से पक्षकार बनने यानी किसी खास पार्टी या विचारधारा की ओर झुकने के आरोप लगते रहे हैं. इन्हें लगाने वालों में पत्रकार भी शामिल हैं. लेकिन जब कुछ पत्रकार ही ट्रोलर्स की तरह अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए दिखते हैं तो इससे केवल उनकी व्यक्तिगत छवि ही धूमिल नहीं होती बल्कि, मीडिया की विश्वसनीयता पर एक नया संकट खड़े होने का खतरा भी खड़ा हो जाता है.
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