लोकसभा चुनाव 2019 में अकेले 300 सीटों का आंकड़ा पार कर भाजपा ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है. पिछले तीन दशकों में इस मुकाम को हासिल करने वाली यह अकेली पार्टी है. वहीं, भाजपा के अलावा नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के लिए यह चुनाव बड़ी उपलब्धि लेकर आया. उत्तर-पूर्व के राज्यों को छोड़ दें तो देश के बाकी हिस्से के लोग शायद ही इस नाम से परिचित होंगे. लेकिन, इस पार्टी ने अब राष्ट्रीय दलों की सूची में अपनी जगह बना ली है. यानी कांग्रेस, भाजपा, बसपा,एनसीपी, सीपीआई, सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस के बाद एनपीपी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली देश की आठवीं पार्टी बन गई है.

बीते सात जून को एनपीपी प्रमुख कोनरॉड संगमा ने इसकी जानकारी ट्विटर पर साझा की. साथ ही, उन्होंने इसके जरिए पार्टी संस्थापक पीए संगमा को श्रद्धांजलि भी दी. इस पार्टी की स्थापना लोकसभा अध्यक्ष रहे पीए संगमा ने जुलाई, 2012 में की थी. इससे पहले संगमा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल थे. फिलहाल एनपीपी भाजपा के सहयोग से मेघालय की सत्ता पर काबिज है. साथ ही, 2019 के लोकसभा चुनाव में इसने राज्य की दो में से एक सीट पर कब्जा किया है. वहीं, पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में इसे क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल है.

पूर्वोत्तर के आधे से अधिक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी होने के बाद जब एनपीपी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला तो यह खबर कई लोगों के लिए चौंकाने वाली थी. लेकिन, चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश-1968 के प्रावधानों की मानें तो एनपीपी इसकी पूरी हकदार दिखती है. इस आदेश के तहत राजनीतिक पार्टियों को सूचीबद्ध किया जाता है. इसके अलावा कौन सी पार्टी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय होने की योग्यता रखती है, इसके लिए भी यह शर्तें तय करता है. इसके तहत राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए तीन शर्तें तय की गई हैं. कोई पार्टी यदि इनमें से किसी भी एक को पूरा करती है तो वह इसकी हकदार हो जाती है.

अब इस बात को समझते हैं कि जो एनपीपी एक भी राज्य में अपने दम पर सत्ता में नहीं है, उसने यह उपलब्धि आखिर कैसे हासिल कर ली.

जैसा कि हमने पहले जिक्र किया है चुनाव चिह्न आदेश में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए तीन शर्तें निर्धारित की गई हैं. इनमें पहली है - चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में छह फीसदी वोट शेयर के अलावा लोकसभा चुनाव में चार सीटें हासिल करना. दूसरी शर्त में कहा गया है कि पार्टी के उम्मीदवारों को कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों में लोकसभा चुनाव में कुल सीटों की दो फीसदी सीटों पर जीत हासिल होनी चाहिए. इनके अलावा आखिरी शर्त में कहा गया है कि पार्टी को कम से कम चार राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो.

एनपीपी इनमें से केवल तीसरी शर्त को पूरा करती है. पार्टी को मेघालय, मणिपुर और नगालैंड में पहले से क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल था. अब अरुणाचल प्रदेश में भी पार्टी ने क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया है. देश के सबसे पूर्वी छोड़ पर स्थित इस राज्य में विधानसभा का चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ ही हुआ था. इसमें एनपीपी ने 60 में से पांच सीटों पर जीत दर्ज की है. साथ ही, पार्टी का वोट शेयर भी 14.56 फीसदी रहा.

इस तरह क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए तय पांच शर्तों में से एनपीपी एक शर्त को पूरा करती है. इसके मुताबिक यदि कोई पार्टी संबंधित विधानसभा चुनाव में दो सीटों के साथ छह फीसदी वोट शेयर हासिल कर लेती हो तो वह उस राज्य में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के योग्य है. क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए भी किसी पार्टी को पांच में से कम से कम एक शर्त पूरी करनी होती है.

एनपीपी ने इसी शर्त को साल 2018 में मेघालय और नगालैंड में पूरा किया था. मेघालय चुनाव में पार्टी ने 59 में से 19 और नगालैंड की 60 में से पांच सीटें हासिल की थीं. इन दोनों राज्यों में ही एनपीपी का वोट शेयर छह फीसदी से अधिक (20.6 फीसदी और 6.9 फीसदी) रहा था. मेघालय में विधानसभा की कुल 60 सीटें हैं. लेकिन, उस वक्त एक सीट पर मतदान नहीं हुआ था.

इससे पहले एनपीपी ने मणिपुर में क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर चुकी थी. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 60 में से चार सीटों पर कब्जा किया था. चुनाव चिह्न आदेश में कहा गया है कि यदि कोई पार्टी संबंधित राज्य के विधानसभा चुनाव में कुल सीटों का तीन फीसदी हिस्सा या तीन सीटें, इनमें जो भी अधिक हो हासिल करती है, वह उस सूबे में क्षेत्रीय पार्टी का तमगा हासिल करने के योग्य है. यानी यह आंकड़ा भी इस शर्त पर पूरी तरह खरा उतरता है.

राष्ट्रीय दल होने के फायदे

अब यहां एक और सवाल उठता है कि एनपीपी राष्ट्रीय दल का तमगा तो हासिल कर चुकी है. लेकिन, इससे उसे किस तरह के फायदे या सुविधाएं हासिल हो सकती हैं. इस तमगे को हासिल करने के बाद एनपीपी पूरे देश में एक चुनाव चिह्न पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है. इससे पहले उसे यह सुविधा केवल उन्हीं राज्यों में हासिल थी, जहां वह क्षेत्रीय पार्टी है.

वहीं, लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों को आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारण की सुविधा भी मिलती है. इसके अलावा ऐसी राजनीतिक पार्टियों को आम चुनाव के दौरान अपने स्‍टार प्रचारक नामित करने की सुविधा भी प्राप्‍त हो जाती है. एक मान्‍यता प्राप्‍त राष्‍ट्रीय पार्टी अपने लिए अधिकतम 40 स्‍टार प्रचारक रख सकती है. एक गैर-मान्‍यता प्राप्‍त पंजीकृत दल के लिए यह आंकड़ा 20 है. साथ ही, इन स्‍टार प्रचारकों का यात्रा खर्च उस उम्‍मीदवार के खर्च में नहीं जोड़ा जाता, जिसके पक्ष में ये प्रचार करते हैं.