बीते हफ्ते जापान में हुए जी-20 शिखर सम्मलेन से सबसे अहम खबर अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध को लेकर आई. अमेरिका ने चीन को राहत देते हुए पहली बार इस मसले पर अपने कदम पीछे खींचे. जापान में हुए एक शुरुआती समझौते के मुताबिक फिलहाल जब तक दोनों देश किसी बड़े समझौते पर नहीं पहुंचते तब तक अमेरिका चीनी उत्पादों पर कोई नया अतिरिक्त शुल्क नहीं लगाएगा. साथ ही टेलीकॉम और तकनीक से जुड़ी चीन की दिग्गज कंपनी ह्वावे को अमेरिका से उपकरण और सॉफ्टवेयर खरीदने की छूट देगा. अमेरिका से मिली इस रियायत के बदले चीन सोयाबीन जैसे प्रमुख अमेरिकी कृषि उत्पादों की खरीद फिर से शुरू करेगा.
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ह्वावे को अमेरिका से उपकरण और सॉफ्टवेयर खरीदने की छूट कंपनी के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं मानी जा रही. ट्रंप प्रशासन ने बीते दो सालों से ह्वावे के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. उसने न केवल अमेरिका में बल्कि दुनियाभर में इस चीनी कंपनी की सेवाओं पर रोक लगाने की मुहिम छेड़ दी है. इस साल की शुरुआत में अमेरिका ने इस चीनी कंपनी पर धोखाधड़ी, जासूसी और बौद्धिक संपदा की चोरी के कई मामले दर्ज किये. इसके बाद बीते मई में ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश जारी कर अमेरिका में ह्वावे के उपकरणों, वायरलेस और इंटरनेट नेटवर्क की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया. साथ ही इस चीनी कंपनी को ब्लैकलिस्ट करते हुए उसे अमेरिकी कंपनियों से उपकरण और सॉफ्टवेयर खरीदने से भी प्रतिबंधित कर दिया. अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने मीडिया को इसकी जानकारी देते हुए कहा था कि ह्वावे को ब्लैकलिस्ट किया गया है और अब किसी भी अमेरिकी कंपनी को उसे उपकरण और सॉफ्टवेयर बेचने से पहले सरकार से विशेष इजाजत लेनी होगी.
अमेरिका की इस कार्रवाई का दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्मार्टफोन निर्माता कंपनी के व्यापार पर बड़ा असर पड़ा. ह्वावे अमेरिकी एंड्रॉयड निर्माता कंपनी गूगल, चिप निर्माता कंपनी इंटेल, माइक्रोन और क्वालकॉम के साथ-साथ रेडियो फ्रीक्वेंसी से जुडी कंपनी स्काई वर्क्स के सबसे बड़े खरीददारों में शामिल है. ऐसे में इन कंपनियों से उपकरण और तकनीक न ख़रीद पाने के चलते दुनिया भर में उसके व्यापार को तगड़ झटका लगना स्वाभाविक था. उसे सबसे बड़ा झटका गूगल से मिला जिसने ह्वावे के लिए अपने एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम की सेवायें बंद कर दीं.
ह्वावे के स्मार्टफोन बिक्री का आधे से भी ज्यादा हिस्सा चीन के बाहर से आता है. इस साल मार्च तक स्मार्टफोन की बिक्री के मामले में उसने एप्पल जैसी दिग्गज कंपनी को पीछे छोड़ दिया था और इस मामले में वह केवल सैमसंग से पीछे रह गई थी. लेकिन, एंड्रॉयड लाइसेंस रद्द होने के बाद से अब तक दुनियाभर में उसकी बिक्री में 40 फीसदी की बड़ी गिरावट आयी है. यूरोप में कई जगह आलम यह है कि ह्वावे के हाल ही में लॉन्च स्मार्टफोन भी आधे से कम कीमत में बिक रहे हैं. यही वजह है कि जी-20 शिखर सम्मलेन में बीते हफ्ते डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ह्वावे को दी गई रियायत उसके लिए किसी संजीवनी से कम नहीं मानी जा रही.
हालांकि, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले का बड़ा विरोध हो रहा है. उनकी रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों के एक बड़े गुट का कहना है कि ह्वावे पर ट्रंप के यूटर्न से अमेरिकी सरकार की साख पर बट्टा लगेगा. इनके मुताबिक जिस कंपनी पर प्रतिबंध इसलिए लगाया गया था क्योंकि उससे अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा था तो फिर बिना किसी नीतिगत बदलाव के उसे छूट कैसे दी जा सकती है.
रिपब्लिकन पार्टी के दिग्गज नेता और सीनेटर मार्को रुबियो ने एक ट्वीट में लिखा, ‘ह्वावे के खिलाफ लगाए गए हालिया प्रतिबंधों को राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा पलटना एक भयावह गलती होगी. इससे सबसे बड़ा नुकसान यह होगा कि अब तक राष्ट्रपति प्रशासन ने ह्वावे को लेकर जो खतरे और चेतावनियां जारी की हैं, उन पर कोई विश्वास नहीं करेगा, फिर कभी कोई उन्हें गंभीरता से नहीं लेगा.’
If President Trump has agreed to reverse recent sanctions against #Huawei he has made a catastrophic mistake.
— Marco Rubio (@marcorubio) June 29, 2019
It will destroy the credibility of his administrations warnings about the threat posed by the company,no one will ever again take them seriously. https://t.co/jEhHcblsVG
डोनाल्ड ट्रंप ने इतनी जल्दी यूटर्न क्यों लिया?
अमेरिकी जानकार ह्वावे को लेकर डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कुछ महीनों के अन्दर ही यूटर्न लेने के पीछे कई वजहें बताते हैं. इनके मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की लाख चेतावनियों के बाद भी अमेरिका के सहयोगी देश 5-जी तकनीक को लेकर ह्वावे से समझौते कर रहे हैं. इस साल ही अब तक दुनिया भर में उसने 50 समझौते कर लिए हैं और इनमें आधे से ज्यादा यूरोप में हुए हैं. 5-जी तकनीक को लेकर ह्वावे की सबसे प्रमुख प्रतिद्वंदी कंपनी नोकिया को दुनिया भर में अब तक केवल 42 कॉन्ट्रैक्ट ही मिले हैं और ऐसा तब है जब अमेरिका ने ह्वावे के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. जानकारों की मानें तो इस वजह से भी ट्रंप प्रशासन ह्वावे को लेकर कमजोर पड़ा है.
इसके अलावा खुद अमेरिकी कंपनियां ने भी डोनाल्ड ट्रंप पर ह्वावे को लेकर दबाव बनाया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कंपनियों ने 2018 में उपकरण बेचने को लेकर ह्वावे के साथ 11 अरब डॉलर के सौदे किए हैं. अब अगर ये सौदे टूटते हैं तो इन कंपनियों का बड़ा नुकसान होगा. हाल में हुए एक अमेरिकी सर्वेक्षण के मुताबिक अगर ह्वावे जैसी कंपनियों को उपकरण और तकनीक बेचने पर लगा प्रतिबंध जारी रहता है तो अगले पांच सालों में अमेरिकी निर्यात में 56 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है और इससे 70 हजार से ज्यादा अमेरिकी अपनी नौकरियां भी खो सकते हैं. बताते हैं कि इन्हीं वजहों के चलते डोनाल्ड ट्रंप से ह्वावे को राहत देते हुए उसे अमेरिकी उपकरण और सॉफ्टवेयर खरीदने की छूट फिर बहाल कर दी.
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा व्यापार युद्ध में चीन को इतनी जल्दी रियायत देने की एक वजह अमेरिकी सोयाबीन को भी माना जा रहा है. बीते महीने जब अमेरिका ने चीन के 200 अरब डॉलर के उत्पादों पर आयात शुल्क में ढाई गुना तक बढ़ोतरी की थी तब चीन ने भी उसके 60 अरब डॉलर के उत्पादों पर 25 फीसदी का आयात शुल्क लगा दिया. साथ ही चीनी सरकार ने अमेरिकी सोयाबीन का आयात बंद करने का फैसला किया था.
अमेरिका इस समय दुनिया का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक देश है. सोयाबीन की खेती उसकी कृषि की रीढ़ की तरह मानी जाती है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन अकेले अमेरिका का 60 फीसदी सोयाबीन खरीदता है. बीते साल के अंत में जारी आंकड़ों को देखें तो 2017 में अमेरिका से चीन जाने वाले सबसे ज्यादा कीमत के उत्पादों में हवाई जहाज के बाद सोयाबीन ही था. यही वजह है कि जब चीन ने अमेरिकी सोयाबीन न खरीदने का फैसला किया तो यह ट्रंप प्रशासन के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था.
अमेरिकी जानकारों की मानें तो अमेरिका से चल रहे व्यापार युद्ध में चीन ने सोयाबीन का आयात बंद करने की चाल काफी सोच समझकर चली थी. चीन अच्छे से जानता था कि अमेरिका से आने वाले उत्पादों में सोयाबीन ही ऐसा उत्पाद है जिससे अमेरिकी सरकार को दबाव में लाया जा सकता है. जी-20 शिखर सम्मलेन के दौरान व्यापार युद्ध को लेकर हुई बातचीत में डोनाल्ड ट्रंप का पहली बार एक कदम पीछे हटना साफ़ बताता है कि चीन अपनी इस चाल में फिलहाल तो कामयाब हो गया है.
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