राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल तकरीबन तीन साल बाद यानी 2022 में खत्म होगा. लेकिन जब से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार केंद्र की सत्ता में वापस आई है तब से एक सीमित दायरे में ही सही, लेकिन एक बात की चर्चा जरूर चल रही है कि तीन साल बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के नए राष्ट्रपति के तौर पर किसका नाम आगे बढ़ाएंगे.

जब भी इस संदर्भ में कोई बात होती है तो भाजपा के दो वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का नाम सहज ही ध्यान में आता है. 2017 में हुए राष्ट्रपति चुनाव से पहले इस बात को लेकर काफी अटकलें लगाई जा रही थीं कि लालकृष्ण आडवाणी को भाजपा राष्ट्रपति बनाएगी या नहीं. अगर आडवाणी राष्ट्रपति बनते तो ऐसी स्थिति में कुछ लोग यह भी मान रहे थे कि मुरली मनोहर जोशी उपराष्ट्रपति बनाए जा सकते हैं.

लेकिन इन तमाम अटकलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उस वक्त बिहार के राज्यपाल रहे रामनाथ कोविंद का नाम आगे करके सभी को हैरान कर दिया. भाजपा के अंदर किसी भी नेता ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर लालकृष्ण आडवाणी का नाम आगे नहीं किया.

2022 में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनावों में भाजपा 2017 के मुकाबले ज्यादा मजबूत स्थिति में रहेगी. इसकी वजह यह है कि इस बार लोकसभा में उसे पहले के मुकाबले ज्यादा बड़ा बहुमत मिला है. राज्यसभा में भाजपा सांसदों की संख्या लगातार बढ़ रही है. कई राज्यों में भी भाजपा ने सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की है. तो ऐसे में क्या कोई ऐसी संभावना है कि 2022 में राष्ट्रपति की कुर्सी पर देश लालकृष्ण आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी को देख पाए?

प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक नरेंद्र मोदी के लालकृष्ण आडवाणी के साथ संबंधों को देखें तो पता चलता है कि ये संबंध बहुत सहज नहीं हैं. 2002 में गुजरात दंगों के बाद जब उस समय सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर काम कर रहे नरेंद्र मोदी की कुर्सी खतरे में थी तो तब आडवाणी ने ही उन्हें बचाया था. उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे.

लेकिन जब जून, 2013 में गोवा में आयोजित भाजपा कार्यकारिणी में नरेंद्र मोदी को 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाने की योजना बनी तो आडवाणी नाराज हो गए. इसके बाद से दोनों के रिश्ते खराब होते चले गए. जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा 2014 में अपने दम पर बहुमत हासिल करने में कामयाब हो गई तब भी लालकृष्ण आडवाणी ने अपने सधे अंदाज में यह संकेत दिया कि इसमें एक व्यक्ति के करिश्मे का कितना असर है, इसकी विवेचना की जानी चाहिए. भाजपा सांसदों के बीच संसद भवन में कही गई उस बात को ऐसे देखा गया कि आडवाणी इस जीत का पूरा श्रेय मोदी को नहीं देना चाहते. उनकी इस बात का जवाब नरेंद्र मोदी ने तुरंत वहीं दे दिया था.

2019 में चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी सबसे पहले लालकृष्ण आडवाणी से ही मिलने गए. लेकिन दोनों के आपसी संबंधों की असहजता का पता इस बैठक से भी लगता है. इस बैठक के बारे में भाजपा के एक नेता बताते हैं, ‘जब भी नरेंद्र मोदी लालकृष्ण आडवाणी से मिलने जाते हैं तो दोनों में सीधी बातचीत काफी कम होती है. दोनों लोग या तो वहां मौजूद दूसरे लोगों से बात करते हैं या एक-दूसरे को कुछ कहना चाहते हैं तो यह भी वहां मौजूद दूसरे लोगों के जरिए ही करते हैं.’

इस तरह के संबंधों को देखते हुए अभी की स्थिति तो यह नहीं लग रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति पद के लिए आडवाणी का नाम आगे करेंगे. लालकृष्ण आडवाणी अभी 91 साल के हैं. जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होंगे तो उस वक्त उनकी उम्र 93 साल से अधिक होगी. इसे देखते हुए भी इस बात की संभावना कम ही है कि आडवाणी का नाम 2022 में राष्ट्रपति पद के लिए चलेगा.

अब राष्ट्रपति पद पर मुरली मनोहर जोशी की दावेदारी को समझने की कोशिश करते हैं. वे अभी 85 साल के हैं. लेकिन 2022 में जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होंगे तो उस वक्त तक वे अपनी उम्र के 88 साल पूरे कर चुके होंगे. ऐसे में उम्र के मामले में तो वे आडवाणी से बेहतर स्थिति में हैं, लेकिन राष्ट्रपति के पांच साल के कार्यकाल को देखते हुए 88 साल की उम्र को भी अधिक ही माना जाएगा.

मुरली मनोहर जोशी के लिए भी समस्या उम्र से अधिक अपनी राजनीतिक स्थिति की है. अभी की जो भाजपा है, उसमें मुरली मनोहर जोशी का कोई खास दखल नहीं है. यही वजह है कि वे 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन, भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया. भाजपा के एक नेता बताते हैं, ‘ 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी मुरली मनोहर जोशी ने कुछ लोगों को टिकट दिलाने की कोशिश की थी लेकिन, उनकी सुनी नहीं गई.’

हालांकि, इस बार चुनाव जीतने के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुरली मनोहर जोशी से मिलने उनके घर गए तो जोशी ने मोदी का स्वागत बेहद गर्मजोशी के साथ किया. इस स्वागत के वीडियो को लोगों ने देखा. इसको देखकर कई लोगों को यह लग सकता है कि मोदी और जोशी के संबंध अच्छे हैं और संभव है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति पद के लिए 2022 में मुरली मनोहर जोशी के नाम पर विचार करें.

लेकिन भाजपा नेताओं से बातचीत करने पर ही दूसरी ही तस्वीर उभरकर सामने आती है. पार्टी के नेता ये दावा करते हैं कि मुरली मनोहर जोशी न तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह को पसंद करते हैं और न ही मोदी-शाह जोशी को पसंद करते हैं. अगर यह स्थिति है तो 2022 के राष्ट्रपति चुनाव के लिहाज से मुरली मनोहर जोशी की दावेदारी भी काफी कमजोर दिखती है.

इन बातों के आधार पर क्या यह मान लेना चाहिए कि अब भाजपा के दो सबसे वरिष्ठ नेताओं, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के लिए राष्ट्रपति बनने की कोई संभावना नहीं बची है? मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए तो यही लगता है. लेकिन यह भी सच है कि राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है और इसमें कई बार हैरान करने वाले कुछ निर्णय भी दिख जाते हैं.