जुलाई के आखिरी शुक्रवार को कंगना रनोट और राजकुमार राव के अभिनय वाली फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ रिलीज हो रही है. बीते हफ्ते इस फिल्म का ट्रेलर और एक गाना जारी कर दिया गया है. जाहिर है कि इसके लिए कंगना रनोट हमेशा की तरह ढेर सारी तारीफें बटोर रही हैं. लेकिन साथ ही एक प्रेस इवेंट के दौरान एक पत्रकार से जबरन उलझने को लेकर वे आलोचनाओं के घेरे में भी हैं.

यह झगड़ा तब शुरू हुआ जब प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कंगना रनोट ने समाचार एजेंसी पीटीआई के पत्रकार जस्टिन राव पर उनके खिलाफ ‘स्मीयर कैंपेन’ चलाने का आरोप लगाया. उनका कहना था कि राव ने उनकी फिल्म मणिकर्णिका की बेवजह आलोचना की थी और उन्हें अंध-राष्ट्रवादी बताया था. इस झगड़े के अगले दिन खबर आई कि फिल्म पत्रकारों के एक समूह ने कंगना रनोट का बहिष्कार करने की बात कही है और उनसे माफी की मांग की है. इसके जवाब में कंगना की बहन और मैनेजर रंगोली चंदेल ने अपने ट्विटर अकाउंट से उनका एक वीडियो ट्वीट किया है. इसमें वे बड़े तीखे तेवरों और कड़वे बोलों में पत्रकारों की आलोचना करती हुई दिखाई दे रही हैं.

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इस वीडियो में क्या है, इस पर विस्तार से बात करने से पहले कंगना रनोट से जुड़ी कुछ और बातों पर गौर कर लेते हैं. मसलन, अब यह एक रुटीन सा बन चुका है कि जब भी कंगना की कोई फिल्म रिलीज होती है, उनसे जुड़ा कोई न कोई विवाद भी सर उठा ही लेता है. यहां पर कंगना सरीखी ही साफगोई बरती जाए तो कहा जा सकता है कि ज्यादातर मौकों पर वे कोई पुरानी बात नए सिरे से शुरू कर खुद ही विवादों को आमंत्रित करती दिखती हैं. उनकी पिछली तीन फिल्मों को देखें तो ‘सिमरन’ के समय वे ऋतिक रोशन पर लगाए गए आरोपों को लेकर चर्चा में थीं, वहीं ‘मणिकर्णिका’ की रिलीज से पहले ‘मणिकर्णिका’ और ‘सिमरन’ में अपने वर्क क्रेडिट से जुड़े विवाद को लेकर सुर्खियों में रहीं. अब ‘जजमेंटल है क्या’ की बारी आने पर वे उन पत्रकारों से उलझ बैठी हैं जिन्होंने अपने लेखों और सोशल मीडिया पर ‘मणिकर्णिका’ की आलोचना की थी.

यहां पर यह बताते चलते हैं कि कंगना रनोट खुद किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नहीं हैं. फेसबुक और इंस्टाग्राम पर उनकी टीम के हैंडल से उनसे जुड़ी जानकारी पोस्ट की जाती है. और ट्विटर पर उनकी बहन रंगोली चंदेल हर समय और हर विषय पर उनकी प्रवक्ता होने की भूमिका निभाती नजर आती हैं. पिछले दिनों रंगोली ने लगातार कई फिल्मी सितारों पर कंगना के साथ पक्षपात करने का आरोप लगाया था. रंगोली की बेजा तीखी टिप्पणियों के निशाने पर आने वालों में दीपिका पादुकोण, आलिया भट्ट, तापसी पन्नू से लेकर करण जौहर और अनुराग कश्यप जैसे नाम शामिल हैं.

कंगना रनोट ने बहुत मुश्किलों और संघर्षों का सामना कर बॉलीवुड में अपनी जगह बनाई है, इसलिए फिल्मी दुनिया से उनकी नाराजगी जायज़ लग सकती है, लेकिन रंगोली इस मामले में उनसे भी दो कदम आगे क्यों है यह कुछ लोगों को थोड़ा कम समझ आ सकता है. इसके अलावा, दोनों बहनें समय-समय पर बॉलीवुड में पसरे नेपोटिज्म की भी भर-भरकर बुराइयां करती दिखती रहती हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि अपनी बहन को अपना मैनेजर बनाकर कंगना भी तो इसी परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं. सोशल मीडिया पर कुछ लोग अक्सर उन्हें यह सलाह देते दिखते हैं कि कंगना को सबसे पहले रंगोली की जगह एक प्रोफेशनल मैनेजर की जरूरत है.

अब उस वीडियो पर आते हैं जिसमें कंगना रनोट फिल्म पत्रकारों पर हमलावर हुई हैं. इसमें उन्होंने पत्रकारों के लिए दीमक, देशद्रोही, दोगले, बिकाऊ, चिंदी जर्नलिस्ट जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है. उनका कहना यह भी था कि पत्रकार देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा हैं, वे फर्जी उदारवादी हैं और धर्म से जुड़ी बातों को बेवजह बुरा बताते हैं. इसके साथ वे यह भी जोड़ती हैं कि दसवीं तक पास ना कर सकने वाले ये पत्रकार हर जगह केवल मुफ्त का खाना खाने के लिए जाते हैं और ऐसे ‘नालायक’ ‘गद्दार’ पत्रकार उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं.

कंगना की इन बातों को समझ पाना काफी मुश्किल है. फिल्मों को कवर करने वाले पत्रकार आम तौर पर हल्की-फुल्की बातें ही लिखते हैं जिनके चलते फिल्मों का बिजनेस तो प्रभावित हो सकता है लेकिन इससे देश की एकता-अखंडता को खतरा कैसे पहुंच सकता है? दूसरी बात, कंगना रनोट भी फिल्में केवल देश प्रेम के चलते नहीं बनाती हैं, वे इनसे पैसा कमाना चाहती हैं, ठीक वैसे ही जैसे पत्रकार इन फिल्मों पर टिप्पणी कर. इसके अलावा अभिनेता और नेता बनने के लिए दसवीं पास होना भले ही जरूरी न हो लेकिन पत्रकारिता का कोर्स करने के लिए कम से कम ग्रेजुएट होना जरूरी है. अगर उन्हें यह पता नहीं है तो वे किसी और बात के लिए न भी हों तो भी बिना जाने इतनी हल्की बात कहने की दोषी तो हैं ही. कुल मिलाकर इस वीडियो में उनके द्वारा पत्रकारों के लिए इस्तेमाल किए गए संबोधन और बोलने का तरीका किसी देसी यूट्यूब चैनल या सड़कछाप झड़पों की ही याद दिलाता है. यह तमाम संघर्षों के बाद किसी क्षेत्र के शीर्ष पर पहुंचे किसी देशभक्त का भारतीय संस्कृति से निकला तरीका कैसे हो सकता है?

कंगना रनोट लगातार कहती रहती हैं कि बॉलीवुड में हमेशा उनकी फिल्मों के खिलाफ अभियान चलाया जाता है. इसके लिए वे ‘स्मीयर कैंपेन’ शब्द का इस्तेमाल करती हैं. उनका कहना है कि मीडिया भी अब इस अभियान में शामिल हो चुका है. दरअसल, रनोट बहनों के हर दूसरे दिन नया विवाद मोल लेने वाले रवैये को देखते हुए, बीते कुछ समय से मीडिया अब उनके साथ उतनी मजबूती से खड़ा नहीं दिखाई देता जितना ऋतिक रोशन या अध्ययन सुमन से जुड़े विवादों के समय नज़र आया था. बहुत संभावना है कि मीडिया के प्रति उनकी नाराजगी की वजह यही हो. वे बड़े अजीबो-गरीब तरीके से इसे देशभक्ति का मसला बना रही हैं और आश्चर्य यह है कि कुछ लोग इसे वैसा मान भी रहे हैं.

तकरीबन साढ़े चार मिनट के उनके इस वीडियो में कुछ ऐसे कीवर्ड्स की पहचान की जा सकती है, जो बताते हैं कि कंगना बहती गंगा में हाथ धोने का काम कर रही हैं. इस पूरे वीडियो में कंगना लगातार अपनी फिल्म की आलोचना को देशद्रोहिता के विचार बताती हैं, उनसे सवाल पूछने वाले पत्रकारों को देशद्रोही कहती हैं और उनका बहिष्कार करने वालों को भी एंटीनेशनल ठहराती हैं. वे भली तरह से जानती हैं कि राष्ट्रवाद, देश, गौरक्षा, शहीद, फौजी, धर्म, देशद्रोही जैसे कीवर्ड्स का इस्तेमाल कर वे सोशल मीडिया पर एक तबके को आसानी से अपनी तरफ कर लेंगी और इनके चलते किसी के लिए उनकी आलोचना कर पाना भी उतना आसान नहीं होगा. उनके वीडियो पर सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया देखकर लगता है कि वे इसमें बहुत हद तक सफल भी हुई हैं.

वीडियो के आखिर में कंगना रनोट बताती हैं कि मणिकर्णिका ने 150 करोड़ रुपए की कमाई की है और इसके लिए उन्हें देश के युवा वर्ग पर गर्व है. यह कहते हुए शायद यह बात उनके ध्यान में नहीं रही होगी कि यही देशभक्त युवावर्ग साल दर साल सलमान खान की कचरा फिल्मों को 300-400 करोड़ की कमाई करवाता रहा है, क्या वे इस पर भी गर्व करेंगी?

कुल मिलाकर कंगना रनोट का कुछ विशेष परिस्थितियों में विवादों में घिरना एक तो उनकी व्यावसायिक समझ से निकला हो सकता है. दूसरा, यह इस तरफ भी इशारा करता है कि कंगना कहीं न कहीं अपने आपको असुरक्षित महसूस करती हैं. शायद वे यह मानती हैं कि उनका काम और परंपरागत तरीकों से किया गया प्रमोशन उनकी फिल्मों के काफी नहीं है. असुरक्षा की इस भावना से निपटने के लिए वे बीते कुछ समय से उस रास्ते पर जाती दिख रही हैं जिसे सही कह पाना मुश्किल है.