भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में संगठन महामंत्री के तौर पर बीएल संतोष की नियुक्ति ने न सिर्फ राजनीतिक जानकारों बल्कि भाजपा नेताओं को भी हैरान किया है. पिछले 13 साल से इस पद पर रहे रामलाल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने वापस संघ में बुलाने का निर्णय लिया. इसके बाद से नए संगठन महामंत्री की नियुक्ति को लेकर कई नामों की चर्चा थी. इनमें सह संगठन मंत्री वी सतीश का नाम भी शामिल था जो काफी समय से वे संयुक्त संगठन महामंत्री के तौर पर काम कर रहे थे. वरिष्ठता के आधार पर भी उनकी दावेदारी मजबूत मानी जा रही थी. लेकिन आखिर में बाजी बीएल संतोष के हाथ लगी.
रामलाल के संघ में वापस जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए बीएल संतोष का कहना था, ‘2006 से लेकर 12 सालों तक रामलाल से काफी कुछ सीखने को मिला. राजनीति क्षेत्र में मेरी नियुक्ति उनके साथ की गई थी. शांतचित्त से काम करना उनकी पहचान रही है. वे मेरे लिए पिता तुल्य थे. संघ के काम में वापस जा रहे हैं. हम आपको याद करते रहेंगे.’
भाजपा में संगठन के स्तर पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद संगठन महामंत्री का माना जाता है. इस पद पर उन्हीं संघ प्रचारकों में किसी की नियुक्ति होती है जिसे संघ खुद भाजपा में भेजता है. रामलाल के पहले इस पद पर केएन गोविंदाचार्य और संजय जोशी जैसे दिग्गज काम कर चुके हैं. संगठन महामंत्री भाजपा और संघ के बीच सबसे प्रमुख कड़ी के तौर पर काम करते हैं. संघ और भाजपा में समन्वय का काम संगठन उनका ही होता है. संगठन महामंत्री को संगठन महासचिव भी कहा जाता है और पार्टी के जितने महासचिव होते हैं, उनमें संगठन महासचिव का पद सबसे प्रमुख माना जाता है.
भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किए गए बीएल संतोष के बारे में कुछ बातें जानना प्रासंगिक है. बीएल संतोष कर्नाटक के शिमोगा जिले के रहने वाले हैं. उन्होंने कैमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद कुछ सालों तक निजी क्षेत्र में काम किया. बाद में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए. 1993 से वे लगातार संघ में काम कर रहे हैं.
संघ ने बीएल संतोष को कर्नाटक और दूसरे दक्षिण भारतीय राज्यों में कई जिम्मेदारियां दीं. उन्होंने इस दौरान संघ और उसके सहयोगी संगठनों के लिए खूब काम किया. बाद में बीएल संतोष को संघ ने भाजपा में भेज दिया. भाजपा में भी उन्हें जिम्मेदारी कर्नाटक में ही मिली. वे कर्नाटक प्रदेश संगठन मंत्री के तौर पर काम करने लगे. आठ साल तक वे इस पद पर रहे. कर्नाटक में भाजपा के विस्तार में जिन दो लोगों को पार्टी के अंदर सबसे अधिक श्रेय दिया जाता है, उनमें एक तो पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा हैं और दूसरे बीएल संतोष हैं.
लेकिन पार्टी के लिए परेशानी की बात यह रही कि समय के साथ इन दोनों नेताओं के आपसी संबंध खराब होते चले गए और शीर्ष नेतृत्व के दखल के बावजूद ये आज तक नहीं सुधरे हैं. 2014 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह बीएल संतोष को राष्ट्रीय टीम में लेकर आए. उन्हें संयुक्त संगठन महामंत्री का दायित्व दिया गया. उन्हें राष्ट्रीय टीम में लाने के बावजूद अमित शाह ने उन्हें दक्षिण भारत का ही काम दिया. कर्नाटक के साथ-साथ अमित शाह ने उन्हें तमिलनाडु, केरल और गोवा का भी दायित्व दिया.
आम तौर पर संयुक्त संगठन महामंत्री चुनावी राजनीति से खुद को दूर रखते हैं. लेकिन कर्नाटक भाजपा के नेता बीएल संतोष पर आरोप लगाते रहे हैं कि उनकी नजर हमेशा से कर्नाटक के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रही है और जब भी उन्हें लगता है कि वे मुख्यमंत्री बन सकते हैं तब वे अतिसक्रिय हो जाते हैं. इस बारे में बीएस येदियुरप्पा उन पर खुल कर आरोप लगा चुके हैं.
पार्टी के अंदर बीएल संतोष के बारे में यह बात भी चल रही है कि उन्होंने ही कर्नाटक के दिग्गज भाजपा नेता रहे अनंत कुमार की पत्नी को टिकट नहीं देने की सलाह दी. उनका कहना था कि तेजस्वी सूर्या को टिकट देना चाहिए. इस मामले में उनकी चली और तेजस्वी सूर्या बेंगलुरु दक्षिण की वह सीट जीतने में कामयाब हुए जहां से अनंत कुमार सांसद थे.
बीएल संतोष के बारे में बताया जा रहा है कि वे पांच भाषाएं बोल सकते हैं. इनमें हिंदी, अंग्रेजी और कन्नड़ के अलावा तमिल और तुलू भी शामिल हैं. पार्टी में उनकी पहचान आधुनिक तकनीक का सहजता से इस्तेमाल करने वाले नेता की भी है.
बीएल संतोष को यह जिम्मेदारी मिलने की कई वजहें बताई जा रही हैं. सबसे पहली तो यह कि वे कर्नाटक के हैं. भाजपा को लगता है कि उन्हें इस अहम पद पर बैठाकर पार्टी दक्षिण भारत में अपने विस्तार की योजना को अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ा सकती है. संयुक्त संगठन महामंत्री के तौर पर वे दक्षिण भारतीय राज्यों का ही काम देख रहे थे. पार्टी को लगता है कि बीएल संतोष के इस पद पर होने की वजह से भाजपा केरल और तमिलनाडु में भी पैठ जमा सकती है. मोदी लहर के बावजूद कर्नाटक के अलावा दूसरे दक्षिण भारतीय राज्यों में न तो 2014 में भाजपा का प्रदर्शन ठीक था और न ही 2019 में इसमें खास सुधार हुआ.
बीएल संतोष के पक्ष में दूसरी बात यह गई कि वे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के विश्वस्त हैं. अमित शाह ही उन्हें 2014 में कर्नाटक से सह संगठन मंत्री बनाकर दिल्ली लाए थे. पार्टी के अंदर कहा जाता है कि बीएल संतोष की कार्यशैली से अमित शाह प्रभावित रहते हैं. उनको यह जिम्मेदारी मिलने की तीसरी वजह यह बताई जा रही है कि वे आक्रामक ढंग से हिंदुत्व के मुद्दों को उठाते रहे हैं. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की शैली भी यही है.
चुनाव प्रबंधन के मामले में भी बीएल संतोष को माहिर माना जाता है. यह बात भी उनके पक्ष में गई. जानकारों के मुताबिक भाजपा के अंदर हर स्तर पर जिस तरह से नई पीढ़ी के लोगों को लाया जा रहा है, उस वजह से भी किसी पुराने नेता पर बीएल संतोष को तरजीह देकर पार्टी ने उन्हें संगठन महामंत्री बनाया.
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