पिछले दिनों संसद भवन के बालयोगी सभागार में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश की एक किताब का विमोचन हुआ. ‘दि लास्ट आइकाॅन आफ आइडयोलाॅजिकल पाॅलिटिक्स’ नाम की यह किताब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पर है. बिहार-झारखंड के प्रमुख अखबार प्रभात खबर के पूर्व संपादक हरिवंश चंद्रशेखर के सहयोगी भी रहे हैं. किताब का विमोचन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. इस अवसर पर उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद मंच पर थे.
इस कार्यक्रम में बतौर दर्शक जमा हुए नेताओं और पत्रकारों में पूरे कार्यक्रम और उसके बाद भी एक बात को लेकर लगातार कानाफूसी चलती रही. सुनी-सुनाई पर जाएं तो सभी लोग इस बात पर हैरान थे कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस कार्यक्रम में नहीं हैं. पत्रकारिता जगत से हरिवंश को राज्यसभा लाने और बाद में राज्यसभा का उपसभापति बनवाने का काम नीतीश कुमार ने ही किया. इसके बावजूद पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में न तो नीतीश कुमार दिखे और न ही उनका जिक्र हरिवंश ने अपने संबोधन में किया.
कार्यक्रम में मौजूद नेताओं और पत्रकारों के बीच चल रही कानाफूसी के बारे में सुनी-सुनाई यह भी है कि वहां के कई लोग इसे दल-बदल के मौसम से भी जोड़कर देख रहे हैं. अगले साल हरिवंश का राज्यसभा सांसद के तौर पर कार्यकाल खत्म हो रहा है. उनके साथ ही जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के दो और राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है. लेकिन, पार्टी अगले साल इन तीन में से सिर्फ दो सांसदों को ही फिर से राज्यसभा भेज सकती है. ऐसे में कहा जा रहा है कि राज्यसभा का उपसभापति होने के बावजूद हरिवंश का फिर से राज्यसभा में पहुंचना अभी निश्चित नहीं है.
कई लोग मानते हैं कि भाजपा और नीतीश कुमार के बीच संबंधों में जिस तरह का तनाव लोकसभा चुनावों के परिणाम के बाद दिख रहा है, उसमें यह अच्छा होता कि पुस्तक विमोचन के गैर राजनीतिक कार्यक्रम में वे अपनी पार्टी के अध्यक्ष नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी को एक मंच पर लाते. इससे दोनों पक्षों के बीच संबंधों में सहजता की राह बनती. लेकिन हरिवंश ने ऐसा नहीं किया तो इसकी कुछ वजह भी होगी.
इसके अलावा नीतीश कुमार ने चंद्रशेखर के साथ काम किया था. चंद्रशेखर की तरह वे भी समाजवादी धारा के नेता हैं. इसलिए कुछ लोग मानते हैं कि नीतीश कुमार का चंद्रशेखर से जुड़े किसी कार्यक्रम में आना काफी उपयोगी साबित हो सकता था. इन लोगों के मुताबिक बिहार के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर के बारे में मंच पर मौजूद अन्य नेताओं के मुकाबले अधिक प्रासंगिक बातें कर सकते थे. इसके बावजूद नीतीश कुमार का कार्यक्रम में नहीं आना कई लोगों को अखरा तो हरिवंश द्वारा अपने संबोधन में उनका जिक्र नहीं करना इन लोगों के लिए खटकने वाली बात थी.
ऐसे में सुनी-सुनाई यह भी है कि हरिवंश अगले कार्यकाल के लिए अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए भी भाजपा के साथ संबंध मजबूत करने की कोशिश में हैं. कहा जा रहा है कि वे एक ऐसी राजनीतिक स्थिति बनाना चाहते हैं जिसमें भाजपा भी उनकी दावेदारी के पक्ष में आ जाए और उन्हें फिर से राज्यसभा में आने में कोई खास दिक्कत न हो.
दिल्ली से लेकर पटना तक कई लोग एक और बात भी कहते हैं. उनके मुताबिक प्रभात खबर छोड़ने के बाद अब हरिवंश नीतीश कुमार के लिए उतने उपयोगी नहीं हैं, इसलिए हो सकता है कि नीतिश खुद ही उनसे दूर होते जा रहे हों.
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें | सत्याग्रह एप डाउनलोड करें
Respond to this article with a post
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.