राज्यसभा ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद-370 में शामिल प्रावधानों को निष्प्रभावी करने संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इससे पहले राष्ट्रपति ने अनुच्छेद-370 (1) का इस्तेमाल करते हुए इससे संबंधित आदेश दिया था. साथ ही, संसद के उच्च सदन ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक (2019) पर भी अपनी मुहर लगा दी है. इसके तहत सूबे को विभाजित कर दो केंद्रशासित प्रदेश - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख - बनाये जाने हैं. राज्य सभा की मंजूरी मिलने के बाद इन्हें मंगलवार को पारित किए जाने के लिए लोकसभा में पेश किया गया है.

मई, 2019 में भारी बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में वापसी के बाद इन्हें मोदी सरकार का सबसे बड़ा फैसला माना जा रहा है. इससे पहले अनुच्छेद-370 को हटाना भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शामिल रहा है. लेकिन, 2014 में अकेले बहुमत हासिल करने के बाद भी भाजपा ने इस बारे में कोई कदम नहीं उठाया था. अब मोदी सरकार-2 की पहली तिमाही में ही इस ऐतिहासिक फैसले को लेकर कई तरह की बातें कही जा रही हैं. इनमें यह भी शामिल है कि इस फैसले से भाजपा को आने वाले दिनों में क्या-क्या फायदे हो सकते हैं. दूसरे शब्दों में इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि इस तीर के सहारे मोदी सरकार ने एक साथ कितने शिकार ढेर किए हैं. आइए, इन्हें एक-एक करके देखते हैं.

भारतीय राजनीति में अमित शाह का स्थापित होना

नई सरकार में गृह मंत्री का ओहदा हासिल करने से पहले तक अमित शाह को एक सफल चुनावी रणनीतिकार माना जाता रहा है. उनके अध्यक्ष रहते हुए भाजपा ने पहली बार लोकसभा चुनाव में 300 का आंकड़ा पार किया. साथ ही, पिछले पांच वर्षों के दौरान पार्टी के आधार में भी काफी बढ़ोतरी हुई. लेकिन, गृहमंत्री अमित शाह के प्रदर्शन पर उनके समर्थकों और आलोचकों दोनों की नजर बनी हुई थी. ऐसे में उन्होंने अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी करने को लेकर जिस तरह की तैयारी और तत्परता दिखाई उसकी हर तरफ चर्चा है.

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक को राज्यसभा की मंजूरी मिलने के बाद गृह मंत्री अमित शाह को शाबासी देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

सोमवार को जिस तरह से राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से संबंधित प्रस्तावों और विधेयकों को अमित शाह ने पेश किया और इन पर बहस की, उससे माना जा रहा है कि उन्होंने खुद को एक मजबूत गृह मंत्री के तौर पर स्थापित करने में सफलता हासिल की है. इन सभी बातों से यह भी साफ हो गया है कि भाजपा में नंबर दो नेता कौन है और आने वाले समय में कौन नंबर एक के तौर पर स्थापित हो सकता है.

मजबूर नहीं, मजबूत सरकार की धारणा को बल देना

लोकसभा चुनाव-2019 के दौरान भाजपा ने लोगों के बीच यह संदेश पहुंचाने की कोशिश की कि वह देश को एक बेहद मजबूत सरकार देने में सक्षम है. देश में अनुच्छेद-370 कई दशकों से विवादित मुद्दा बना रहा है. भाजपा इसे लेकर चुनावी वादा भी करती रही है. सोमवार को इस पर लिए गये ऐतिहासिक फैसलों के जरिये भाजपा देशवासियों को यह संदेश देने में सफल होती दिख रही है कि वह एक मजबूत सरकार है. एक मजबूत सरकार ही इतने बड़े फैसले लेने में सक्षम होती है. और यह फैसला भी ऐसी स्थिति में लिया गया, जब सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को राज्यसभा में बहुमत हासिल नहीं है. इस फैसले के बाद यह भी माना जा रहा है कि अब भाजपा अपने एक अन्य शाश्वत मुद्दे - पूरे देश में समान नागरिक संहिता - को लागू करवाने की दिशा में काम सकती है.

आरएसएस का सरकार पर विश्वास मजबूत करना

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के साथ अनुच्छेद-370 हटाना भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की प्रमुख मांग रही है. बताया जाता है कि पिछली बार बहुमत हासिल करने के बाद भी इनमें से किसी पर भी मोदी सरकार द्वारा कोई ठोस पहल नहीं किए से संघ में काफी नाराजगी थी. यह नाराजगी कई आतंरिक बैठकों और सार्वजनिक मंचों पर संघ के नेताओं में दिखती भी रही थी. लेकिन, अनुच्छेद 370 पर मोदी सरकार ने जो कदम उठाया है उसके बाद आरएसएस का अपनी राजनीतिक शाखा पर विश्वास और मजबूत हुआ है.

राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर से संबंधित प्रस्तावों और विधेयकों को पेश किए जाने के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत और सरकार्यवाह सुरेश (भय्याजी) जोशी का एक संयुक्त बयान भी आया था. इसमें उन्होंने कहा था कि ‘सरकार के साहसपूर्ण कदम का हम हार्दिक अभिनंदन करते हैं. यह जम्मू-कश्मीर सहित पूरे देश के हित के लिए अत्यधिक आवश्यक था. सभी को अपने स्वार्थों एवं राजनीतिक भेदों से ऊपर उठकर इस पहल का स्वागत और समर्थन करना चाहिए.’

राजनीतिक फायदा

आम तौर पर मौजूदा भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में यह बात करीब-करीब स्थापित हो चुकी है कि भाजपानीत मोदी सरकार के किसी भी फैसले के पीछे उसके राजनीतिक हित भी शामिल होते हैं. और वह ऐसे फैसलों का चुनावों में भरपूर इस्तेमाल करती है. साल 2016 में नोटबंदी के फैसले को लेकर भी पार्टी का यही रूख रहा था. उस फैसले के कुछ महीने बाद हुए उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा ने नोटबंदी को एक प्रमुख मुद्दा बनाया था और भारी जीत भी हासिल की थी.

राजनीतिक पंडितों के एक तबके का मानना है कि इस फैसले को भी भाजपा अक्टूबर-नवंबर में होने वाले महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा के चुनाव में इस्तेमाल करने से नहीं चूकेगी. साथ ही, माना जा रहा है कि इसका राजनीतिक असर भी एक लंबे समय तक बना रहेगा और इसका फायदा भी भाजपा को तब तक मिलता रह सकता है. अनुच्छेद-370 के निष्प्रभावी होने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने से इन पर केंद्र सरकार की पकड़ भी काफी मजबूत होने की संभावना है. इन सभी वजहों के चलते पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी का इस फैसले को लेकर कहना था, ‘मेरे विचार से इसमें कुछ भी क्रांतिकारी नहीं है. यह एक राजनीतिक फैसला है.’

आर्थिक संकट के मुद्दे को किनारे करना

हालिया दिनों में कई आर्थिक संकेतक इस बात की ओर इशारा करते हुए दिख रहे हैं कि देश आर्थिक मंदी की चपेट में जाता हुआ दिख रहा है. बीते हफ्ते लारसन एंड टूब्रो के मुखिया एएम नाइक और एचडीएफसी के प्रमुख दीपक पारेश ने भी मौजूदा आर्थिक हालातों को चुनौतियों भरा बताया है. आर्थिक जानकारों का कहना है कि इस हालत में अगर वक्त रहते सही और प्रभावी कदम नहीं उठाये गये तो मंदी और भी गहरा सकती है. इनकी मानें तो जम्मू-कश्मीर पर लिया गया सरकार का यह फैसला आर्थिक मोर्चे पर सामने आने वाली चुनौतियों से लोगों का ध्यान कुछ दिनों के लिए दूर करने वाला भी साबित हो सकता है. राज्यसभा में आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह ने अर्थव्यवस्था की स्थिति पर ऐसा ही कुछ कहा भी है. उनका कहना था, ‘डालर के मुक़ाबले रुपया बुरी हालत में देश की अर्थ व्यवस्था लगातार गिरती जा रही है थोड़ी फ़ुर्सत हो तो इस ख़बर पर भी ध्यान दें वैसे क्या फ़र्क़ पड़ता है? देश हित में आर्थिक संकट बर्दाश्त कर लिया जायेगा।