एक बड़े फैसले में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को अप्रभावी बनाते हुए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया है. इसके साथ ही उसने ने जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने का निर्णय भी लिया है. इस निर्णय के बाद माना जा रहा है कि भाजपा को राम मंदिर जैसा ही राजनीतिक लाभ दिलाने वाला एक और मुद्दा मिल गया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के आनुषंगिक संगठन के तौर पर जनसंघ ने राजनीति में कदम रखा था. कुछ राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से जनसंघ खत्म हुआ और बाद में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ. लेकिन भाजपा अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए तब तक संघर्ष करती रही, जब तक उसने राम मंदिर का मुद्दा मजबूती से नहीं उठाया. राम मंदिर आंदोलन ने भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर एक राजनीतिक ताकत के तौर पर स्थापित किया. लंबे समय तक पार्टी को इसका राजनीतिक लाभ मिलता रहा. अब भी गाहे-बगाहे भाजपा राम मंदिर का मुद्दा उठाकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करती है.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जम्मू कश्मीर पर मोदी सरकार ने जो निर्णय लिया है, उससे भाजपा को एक बार फिर राम मंदिर के मुद्दे जैसा राजनीतिक लाभ दिला सकने वाला दूसरा राजनीतिक मुद्दा मिल गया है. जनसंघ के जमाने से ही भाजपा अनुच्छेद 370 को खत्म करने की बात करती आई है. भाजपा लोकसभा चुनावों के लिए अपना जो घोषणापत्र जारी करती आई है, उसमें अनुच्छेद 370 को हटाने की बात की जाती रही है. 2019 के लोकसभा चुनावों में भी अपने घोषणापत्र में भाजपा ने ऐसा करने का वादा किया था.

लेकिन जब पहली बार केंद्र में भाजपा की गठबंधन सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में आई तो उसके हाथ बंधे हुए थे. तब सहयोगियों की ओर से यह शर्त रख दी गई कि भाजपा अनुच्छेद 370, राम मंदिर और समान नागरिक संहिता के मुद्दों को सरकार के एजेंडे से बाहर रखेगी. ऐसे में अनुच्छेद 370 पर वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में भाजपा अपने हिसाब से आगे नहीं बढ़ सकी. लेकिन जब 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की अपनी बहुमत वाली सरकार बनी तो एक बार फिर भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों में उम्मीद जगी कि अनुच्छेद 370 पर बात कुछ आगे बढ़ेगी. लेकिन राज्यसभा में पार्टी की स्थिति बेहद कमजोर थी इसलिए ऐसा न हो सका.

2019 में जब एक बार फिर से मोदी सरकार वापस आई तो उसके बाद से भाजपा ने राज्यसभा में संख्या बल अपने पक्ष में करने की दिशा में लगातार काम किया. अपनी स्थिति मजबूत होते देख पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान अनुच्छेद 370 पर किए गए वादे को पूरा करने का निर्णय ले लिया. जानकार मानते हैं कि अनुच्छेद 370 को अप्रभावी करने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को बांटने के निर्णय को भाजपा पूरे देश में एक बड़ी जीत के तौर पर पेश करेगी.

माना जा रहा है कि भाजपा जिस तरह के राष्ट्रवाद की राजनीति कर रही है, उसे आगे बढ़ाने में जम्मू-कश्मीर पर लिए गए निर्णय काफी मददगार साबित होंगे. यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर भाजपा न सिर्फ अपने समर्थकों को गोलबंद किए रखेगी बल्कि अपने समर्थकों की संख्या में विस्तार भी कर सकेगी, क्योंकि देश के अलग-अलग हिस्सों के लोगों और खासकर युवाओं में इस बात को लेकर एक नाराजगी रही है कि आखिर अपने ही देश के हिस्से जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान और अलग झंडा क्यों है? क्यों वहां हर भारतीय नागरिक को वे अधिकार हासिल नहीं हैं, जो देश के दूसरे राज्यों में उपलब्ध हैं? ऐसे में जम्मू कश्मीर पर भाजपा के निर्णय से उसे अपने आधार विस्तार में भी मदद मिल सकती है.

इस निर्णय से भाजपा को एक बड़ा राजनीतिक लाभ यह भी है कि यह मुद्दा दूसरे मुद्दों पर लंबे समय तक हावी रह सकता है. विपक्ष जिन मोर्चों पर सरकार की नाकामी को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा था, अब भाजपा अपने इस निर्णय की बात करके उन्हें भी बेअसर कर सकती है. विपक्ष की ओर से आर्थिक मोर्चे पर खराब प्रदर्शन की बात होने लगी थी. कॉरपोरेट जगत के कई प्रमुख लोग और कई अर्थशास्त्री भी अर्थव्यवस्था की खराब हालत की बात कर रहे थे. कई आर्थिक संकेतक भी नकारात्मक संकेत दे रहे थे. लेकिन जम्मू कश्मीर पर इस निर्णय के बाद ये सारे मुद्दे पीछे छूट सकते हैं. माना जा रहा है कि अब जब भी विपक्ष की ओर से सरकार की नाकामियों का जिक्र होगा तब भाजपा जम्मू-कश्मीर के फैसले को आगे करके अपना बचाव करने की कोशिश कर सकती है.

लोकसभा चुनाव तो अभी काफी दूर हैं, लेकिन माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में जो भी विधानसभा चुनाव होंगे, वहां भाजपा जम्मू-कश्मीर पर लिए गए निर्णय को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश करेगी. ऐसे में माना जा रहा है कि उन चुनावों में पार्टी को इसका लाभ भी मिलेगा. छह महीने के अंदर महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके अलावा जो भी पार्टी इस निर्णय का अभी विरोध करेगी, चुनाव के वक्त उसके खिलाफ भाजपा विशेष तौर पर लाभ की स्थिति में रह सकती है. भाजपा और उसके समर्थक ऐसी पार्टियों को ‘राष्ट्रविरोधी’ कहकर प्रचारित कर सकते हैं.

भाजपा को जम्मू-कश्मीर पर लिए गए निर्णय का एक और बड़ा राजनीतिक लाभ आंतरिक स्तर पर मिल सकता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके तमाम आनुषंगिक संगठन चुनावों में भाजपा का साथ देते हैं. पहले भी जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में और 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी तो इन संगठनों की शिकायत रहती थी कि भाजपा अपने मूल मुद्दों पर काम नहीं कर रही. राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता को आरएसएस और भाजपा समेत इनके सभी सहयोगी संगठन मूल मुद्दा मानते हैं. इन मुद्दों पर काम नहीं करने की वजह से भाजपा नेतृत्व पर आरएसएस और सहयोगी संगठनों का दबाव रहा है. अब अनुच्छेद 370 पर निर्णायक ढंग से आगे बढ़ने से भाजपा को आंतरिक स्तर पर सहयोगी संगठनों का साथ और बढ़ेगा. इससे पार्टी और सहयोगी संगठनों के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की स्थिति पहले के मुकाबले और मजबूत होगी.