एफटीआईआई विवाद एक तो फिल्मों से जुड़ा है और संस्कृति से जुड़ी हर चीज से इसे जोड़ा जा सकता है. इसीलिए यह नरेंद्र मोदी सरकार के गले की इतनी बड़ी हड्डी बन गया है.
लकड़ी का बना हुआ लाल रंग का बड़ा सा प्रश्न चिन्ह और उसके सामने रखी लाल रंग की कुर्सी जिस पर एक पत्थर रखा हुआ है, आजकल पुणे के लॉ कॉलेज रोड से गुजरने वालों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं. ये दोनों चीजें एक बड़े से लोहे के दरवाज़े के सामने रखी हुई हैं. दरवाज़े से सटे हुए खंभों पर लिखा है स्ट्राइक डाउन फासिज्म और गजेन्द्र रिजाइन एंड लीव. यह नज़ारा किसी ट्रेडयूनियन द्वारा की गई किसी मिल की हड़ताल का नहीं बल्कि भारतीय फिल्म और टेलीविज़न संस्थान का है. यहां के विद्यार्थी फिल्म संस्थान की नई बनी सोसाइटी में हुयी नियुक्तियों के विरोध में पिछले एक महीने से हड़ताल पर हैं. सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा की गई इन नियुक्तियों में कुछ ऐसे लोगों के नाम हैं जिन्हे एफटीआईआई के छात्र अयोग्य ही नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए भी घातक मानते है.एफटीआईआई के पूर्व छात्र शैलेश गुप्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'शपथ मोदी की' नाम की फिल्म बनाई है.सरकार द्वारा पुनर्गठित इस सोसाइटी और इसकी गवर्निंग काउंसिल का चेयरमैन भाजपा से जुड़े टीवी-फिल्म कलाकार गजेन्द्र चौहान को बनाया गया है. उनके अलावा जिन आठ लोगों का सदस्य के रूप में चयन किया गया है वे हैं विद्या बालन, पल्लवी जोशी, जानू बरुआ, उर्मिल थपलियाल, प्रांजल सैकिया, अनघा घैसास, नरेंद्र पाठक और राहुल सोलपुरकर. एफटीआईआई के पूर्व छात्रों की श्रेणी में राजकुमार हिरानी, शैलेश गुप्ता, संतोष सिवन और इमो सिंह को नामित किया गया है. विद्यार्थियों की हड़ताल के समर्थन में अब तक पल्लवी जोशी, संतोष सिवन और जानू बरुआ सोसाइटी से इस्तीफ़ा दे चुके हैं.
गजेन्द्र चौहान के अलावा जिन अन्य सदस्यों का एफटीआईआई के विद्यार्थी विरोध कर रहे हैं उनके नाम हैं अनघा घैसास, नरेंद्र पाठक, राहुल सोलपुरकर, प्रांजल सैकिया और शैलेश गुप्ता. इन पांचों में अनघा घैसास, नरेंद्र पाठक, राहुल सोलापूर और प्रांजल सैकिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी माने जाते हैं. एफटीआईआई के पूर्व छात्र शैलेश गुप्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'शपथ मोदी की' नामक फिल्म बनाई है. अनघा घैसास ने निर्माता की हैसियत से नानाजी देशमुख, नरेंद्र मोदी (गाथा असामान्य नेतृत्व की), राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (माय फ्लैग माय लाइफ) और राम मंदिर (राम मंदिर अदालत और आस्था) पर डॉक्यूमेंटरी फिल्में बनायीं हैं. राष्ट्रीय रक्षा अकादमी पर बनाई उनकी डॉक्यूमेंटरी - माय फ्लैग माय लाइफ - को लेकर वे कानूनी विवाद में भी उलझ रही हैं क्योंकि उन्होंने तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म निर्देशक नंदन कुडियाडी का मेहनताना अदा नहीं किया था. इस मामले में अदालत में चली बहस के दौरान यह तथ्य भी सामने आये थे कि फिल्म बनाना घैसास का मात्र व्यवसाय है और उन्होंने फिल्म शूटिंग, एडिटिंग और निर्देशन की तालीम नहीं ली है. यह भी कि उन्हें डाक्यूमेंटरी और काल्पनिक फ़िल्म के बीच का फर्क नहीं मालूम है (कोर्ट आर्डर की कॉपी सत्याग्रह के पास मौजूद है ). मेहनताने को लेकर कुडियाडी के पक्ष में अदालत के निर्देश के बावजूद घैसास ने उनका मेहनताना नहीं चुकाया. घैसास का एक परिचय यह भी है कि वे गुजरात में आरएसएस के पूर्व प्रांत प्रचारक विनय पत्राले की पत्नी हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात में 15 वर्षों तक कार्य किया है.
अदालत में यह तथ्य भी सामने आये कि फिल्म बनाना घैसास का मात्र व्यवसाय है और उन्होंने फिल्म शूटिंग, एडिटिंग और निर्देशन की तालीम नहीं ली है. यह भी कि उन्हें डाक्यूमेंटरी और काल्पनिक फ़िल्म के बीच का फर्क तक नहीं मालूम हैअनघा घैसास से इस मुद्दे पर उनकी राय जानने के लिए कई बार प्रयास किया गया लेकिन संपर्क स्थापित नही हो सका.
नरेंद्र पाठक की बात की जाए तो वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की महाराष्ट्र इकाई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं. अगस्त 2013 में जब कबीर कला मंच (पूर्व में कबीर कला मंच पर नक्सल समर्थक होने के आरोप लगे हैं) नामक संस्था का एक कार्यक्रम एफ़टीआईआई द्वारा आयोजित किया गया था तो विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने यहां के विद्यार्थियों के साथ मार-पीट तक की थी.
'विद्यार्थी हड़ताल पर हैं लेकिन उनका मकसद क्या है यह मैं नहीं जानता, सरकार ने मुझे एक ज़िम्मेदारी दी है जिसे मैं अच्छी तरह से निभाऊंगा. एफटीआईआई कला का केन्द्र हैं और ऐसी जगह धर्म, जात-पांत, विचारधारा जैसी चीजों से ऊपर होती है. हर राजनैतिक दल जब सत्ता में आता तो अपने लोगों की उनकी प्रतिभा के अनुसार संबंधित क्षेत्रों में नियुक्तियां करता है और उसमें कोई ग़लत बात नही है' सत्याग्रह से बात करते हुए नरेंद्र पाठक कहते हैं, 'मैं मानता हूं कि मेरी सोच संघ से प्रेरित है लेकिन इसका मतलब यह नही कि मैं अपनी विचारधारा एफटीआईआई पर थोपूं. अभी तक हमने कार्यभार संभाला भी नही और हम पर भगवाकरण के आरोप लगा दिए गए हैं.'
नरेंद्र पाठक की बात की जाए तो वे उसी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की महाराष्ट्र इकाई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं जिसने अगस्त 2013 में एफटीआईआई के एक कार्यक्रम में उसके छात्रों से मारपीट की थीनेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के पूर्व छात्र रहे फ़िल्म अभिनेता प्रांजल सैकिया जो कि आरएसएस की संस्था संस्कार भारती के पदाधिकारी भी हैं. अपनी राय रखते हुए कहते हैं, 'मैंने अपना संपूर्ण जीवन रंगमंच को अर्पित किया, मैँ एक कलाकार हूं और तब से अभिनय कर रहा हूं जब फिल्में ब्लैक एंड व्हाइट हुआ करती थी. मैंने कला के जरिये हमेशा समाज को बेहतर बनाने कि कोशिश की है. यह पहला मौका नही है कि एफटीआईआई में हड़ताल हो रही है. 1990 में भी विद्यार्थियों और शिक्षको के बीच तनाव की स्थिति रहा करती थी. लेकिन जो भी हो हम सब को मिलकर संस्थान की बेहतरी के लिए कम करना है.'
मराठी फ़िल्म कलाकार राहुल सोलापुरकर जो कि अपने आपको संघ का सदस्य बताते हैं, 'मै अभी तक 90 मराठी और 6 हिन्दी फिल्मों में काम कर चुका हूं, ये नियुक्तियां बिलकुल भी राजनैतिक नही हैं, अगर ऐसा है तो फिर क्या यह माने कि विद्या बालनजी को इसलिए सदस्य बनाया गया है कि वे सरकार के साफ़-सफाई अभियान के तहत शौचालय का विज्ञापन कर रही हैं.
लेकिन जाहिर सी बात है कि एफटीआईआई के विद्यार्थी इन नियुक्तियो को संस्थान के लिए नुकसानदेह मानते हैं इसलिए वे हड़ताल से टस से मस होने को तैयार नहीं. संस्थान के एक छात्र रंजीत नायर कहते हैं, 'इस संस्थान ने चेयरमेन के रुप में अडूर गोपालकृष्णन, श्याम बेनेगल, गिरीश कर्नाड, यूआर अनंतमूर्ति और सईद मिर्जा जैसी हस्तियों को देखा है. गजेंद्र चौहान से हमारा कोई भी व्यक्तिगत् मतभेद नही है, लेकिन वे ख़ुद सोचें कि क्या इस संस्थान के साथ चेयरमेन के रुप में न्याय कर पायेंगे.'
छात्रों का आरोप है कि जेटली ने उनकी हड़ताल न खत्म होने पर संस्थान का निजीकरण कराने की धमकी दी और उनकी मांग को सिरे से खारिज कर दिया.तीन जुलाई को सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली और एफटीआईआई के वर्तमान और पूर्व छात्रों के दस सद्स्यीय दल के बीच दिल्ली में बैठक हुयी थी. इसके बाद छात्रों का आरोप है कि जेटली ने उनकी हड़ताल न खत्म होने पर संस्थान का निजीकरण कराने की धमकी दी और उनकी इन नियुक्तियों को बदलने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया.
'निजी फ़िल्म स्कूलो में एक साल की फीस 20-25 लाख होती है, अगर इस संस्थान का निजीकरण हो जयेगा तो यहां आम लोगों के कभी भी पढने के लिए नही आ पायेंगे' संस्थान में अभिनय के छात्र यशस्वी मिश्रा कहते हैं, 'हम ख़ुद यह हड़ताल खत्म करना चाहते हैं लेकिन उसके लिए सरकार को यह साबित करना पड़ेगा कि नियुक्त हुए लोग योग्य हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही देख् लीजिए जिन्होंने ख़ुद एक चाय वाले से लेकर प्रधान मंत्री का सफर तय किया, विश्वास नही होता कि इतने योग्य व्यक्ति ने ऐसी अयोग्य नियुक्तियों के लिए हामी भर दी. इसलिए गेट के बाहर हमने प्रश्न चिन्ह लगाया है.'
संस्थान के गेट पर एक जगह अंग्रेजी के बड़े-बड़े अक्षरों में 'स्ट्राइक, फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन और विजडम ट्री' भी लिखा हुआ है. विजडम ट्री यानी एक आम का पेड़ जिसे यहां के छात्र अपनी ऐतिहासिक धरोहर मानते है. संस्थान के छात्र बताते हैं कि मशहूर फिल्मकार और लेखक ऋत्विक घटक जब एफटीआईआई में अध्यापक थे तो विद्यार्थियों को इसी पेड़ के नीचे बैठ कर जीवन और फिल्मों के बारे में पढ़ाते थे. उन्होंने भारत सरकार की नज़र में पॉलिटेक्निक कॉलेज के बराबर महत्व वाले एक संस्थान को यहीं से अंतर्राष्ट्रीय स्तर की ख्याति दिलाई.
गजेंद्र चौहान से पहले सूचना मंत्रालय एफटीआईआई के अध्यक्ष पद के लिए अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और विधु विनोद चोपड़ा और इसकी सोसायटी के सदस्यों के लिए राकेश ओमप्रकाश मेहरा आदि के नामों पर विचार कर रहा था.अखबार की रिपोर्टों के मुताबिक गजेंद्र चौहान से पहले सूचना मंत्रालय एफटीआईआई के अध्यक्ष पद के लिए अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और विधु विनोद चोपड़ा और इसकी सोसायटी के सदस्यों के लिए राकेश ओमप्रकाश मेहरा आदि के नामों पर विचार कर रहा था. लेकिन सूचना मंत्रालय के जूनियर मंत्री राज्यवर्धन राठौर के प्रयासों से इन बड़े नामों को किनारे कर गजेंद्र चौहान को संस्थान का अध्यक्ष बना दिया गया. इसके पीछे राठौर का तर्क था कि 'चौहान की नियुक्ति इसलिए की गई क्योंकि सरकार एक ऐसा अध्यक्ष चाहती थी जो इसे अच्छे से चलाने के लिए ठीक से वक्त निकाल सके.' हालांकि संस्थान के छात्र और यहां के कार्यप्रणाली को ठीक से जानने वाले लोग उनकी राय से इत्तेफाक नहीं रखते. जानकारों के मुताबिक संस्थान के प्रशासनिक कामों को यहां का अध्यक्ष नहीं बल्कि निदेशक देखता है. ऐसे में ज्यादा उपलब्धता के आधार पर गजेंद्र चौहान को अध्यक्ष बनाने का तर्क इन्हें ठीक नहीं लगता.
ऐसी बातों से आक्रोशित और ऋषि कपूर और अनुपम खेर जैसे अभिनेताओं से मिल रहे समर्थन से उत्साहित निर्देशन के छात्र राकेश शुक्ला कहते हैं, 'हड़ताल तब तक नही खत्म होगी जब तक सरकार हमारी मांगें नही पूरी करेगी, हम संसद के आने वाले मानसून सत्र में लोकप्रतिनिधियों से निवेदन करेंगे कि वे यह मुद्दा संसद में उठाएं. हड़ताल अब और उग्र और व्यापक होगी, हमें देश भर के छात्रों का समर्थन मिल रहा है. फिल्मों के अलावा भी कई क्षेत्रों की बड़ी हस्तियां हमें समर्थन दे रही हैं. यह हड़ताल अगर अब तक चल पायी है तो इसलिए कि लोग हमें समर्थन दे रहे हैं.'
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