संविधान के अनुच्छेद 370 (जिसे अब धारा 370 भी कहते हैं) को हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के असल हालात क्या हैं, इसे लेकर कई तरह के दावे मीडिया और सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहे हैं. केंद्र की भाजपा सरकार और उसका समर्थक वर्ग दावा कर रहा है कि कश्मीर में इक्का-दुक्का विरोध प्रदर्शन को छोड़ कोई बड़ा विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ है. राज्य की पुलिस का भी यही कहना है. वहीं, दूसरी तरफ़ कुछ (विदेशी) मीडिया संस्थानों समेत अनुच्छेद 370 के समर्थकों का कहना है कि घाटी के असल अंदरूनी हालात सबके सामने नहीं लाए जा रहे हैं. इस सिलसिले में भारतीय मीडिया पर भी आरोप है कि उसने कश्मीर को लेकर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग की है.
इस बीच शनिवार को बीबीसी ने एक वीडियो रिपोर्ट दिखाई. इसमें बताया गया कि शुक्रवार को कश्मीर के श्रीनगर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के ख़िलाफ़ बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था, जिसमें कथित रूप से सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग भी किया था. सोशल मीडिया पर इस वीडियो ने बहस छेड़ दी है. बड़ी संख्या में लोगों ने इसमें दी गई जानकारी पर संदेह जताया है. कइयों ने तो यहां तक कहा कि यह वीडियो भारत के हिस्से वाले कश्मीर का नहीं, बल्कि पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) का है. इस बारे में आगे जानकारी देने से पहले वीडियो को ग़ौर से देख लिया जाना चाहिए.
वीडियो देख कर यह तो साफ़ है कि इस विरोध प्रदर्शन में काफ़ी संख्या में लोग शामिल थे. यह बात सरकार के उस दावे के उलट है जिसमें उसने कहा था कि घाटी में ‘ऐसा कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ जिसमें 20 से ज़्यादा लोग शामिल हुए हों’. लेकिन क्या इस विरोध प्रदर्शन का अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से कोई संबंध नहीं है और क्या यह घटना श्रीनगर में नहीं हुई.
यह सवाल इसलिए, क्योंकि सरकार समर्थक वर्ग का कहना है कि यह वीडियो ‘पुराना’ या ‘एडिटेड’ है या ‘श्रीनगर का ही नहीं है’. हालांकि वीडियो पर ग़ौर करने के बाद कई बातें सामने आती हैं जो इन दावों पर दो बार सोचने पर मजबूर करती है. मसलन, वीडियो में एक गली में प्रदर्शनकारी मार्च करते दिख रहे हैं. उस गली के आख़िर में एक गुंबदनुमा इमारत (नीचे की तस्वीर में लाल घेरे में) देखी जा सकती है. यह श्रीनगर के सौरा इलाक़े में बनी ऐतिहासिक असर-ए-शरीफ़ जेनाब दरगाह है जहां हज़रत मुहम्मद साहब से जुड़ी चीज़ें रखी हुई हैं. हमने इसी गली का एक पुराना वीडियो नीचे दिया है जिसमें अलगाववादी नेता यासीन मलिक सौरा इलाक़े के लोगों को संबोधित करते दिख रहे हैं. इसमें भी इस इमारत को देखा जा सकता है.
वही, बीबीसी के वीडियो में प्रदर्शनकरियों के हाथों में बैनर भी दिख रहा है जिसमें इंग्लिश में लिखा है, ‘जम्मू-कश्मीर के लोगों को अनुच्छेद 370 का हटना मंज़ूर नहीं है.’ इसे देख कर यही संकेत मिलता है कि यह विरोध प्रदर्शन धारा 370 को हटाए जाने के बाद का ही है.


वीडियो के एक और हिस्से में कई लोगों को एक सड़क से गुज़रते देखा जा सकता है. वहां रमज़ान मेमोरियल नाम का एक बोर्ड है जिसके नीचे सौरा लिखा दिख रहा है. यह बताता है कि यह प्रदर्शन पीओके में नहीं, बल्कि भारत के हिस्से वाले कश्मीर में ही हुआ है. लिहाज़ा, यह बात सही नहीं लगती कि वीडियो में दिख रहा इलाक़ा भारत प्रशासित कश्मीर नहीं है.

यहां यह भी उल्लेख करना ज़रूरी है कि वीडियो नकारने के चक्कर में कई लोगों ने पीओके को आज़ाद कश्मीर बताया है जो कश्मीर को लेकर भारत के रुख़ के ख़िलाफ़ है. बता दें कि भारत की तमाम सरकारें कहती रही हैं कि पीओके भी भारत के कश्मीर का ही हिस्सा है जहां पाकिस्तान ने अवैध क़ब्ज़ा किया हुआ है.
उधर, इस मामले को लेकर कई लोगों का कहना है कि कश्मीर के असल हालात की कोई मुकम्मल तस्वीर अभी तक सामने नहीं आई है, इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि वहां सब कुछ ठीक है या कुछ भी ठीक नहीं है. इस बीच रविवार को बीबीसी ने कहा कि वह अपनी रिपोर्ट पर क़ायम है और कश्मीर को लेकर किसी भी तरह की ग़लत रिपोर्टिंग के आरोप का खंडन करता है. सत्याग्रह ने भी इस बारे में जम्मू-कश्मीर के एक आईएएस अधिकारी से सवाल किया था, जिसका जवाब हमें यह रिपोर्ट लिखने तक नहीं मिला.
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