सोने की कीमतों में आग लगी हुई है. भारतीय बाजार में सोने की कीमतें अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर (38,470 प्रति दस ग्राम) पहुंच चुकी हैं. भारत में आभूषण संस्कृति के चलते सोने की स्थानीय मांग रहती ही है, लेकिन इस समय भारत के साथ-साथ दुनिया में भी सोने की कीमतें आसमान छू रही हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें बीते छह सालों के सर्वोच्च स्तर पर हैं.

सवाल उठता है कि दुनिया में इस कीमती धातु की मांग एकाएक क्यों बढ़ गई है. सोना परंपरागत तौर पर एक सुरक्षित निवेश रहा है, लेकिन पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं के जुड़ने के बाद निवेश सलाहकारों ने यह धारणा स्थापित की कि सोने में निवेश के मुकाबले इक्विटी और अन्य चीजों में निवेश में ज्यादा रिटर्न है. दुनिया की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में यह बात काफी हद तक सही भी थी, लेकिन इस सबके बावजूद जब भी दुनिया के आर्थिक हालात थोड़ा सुस्त होते हैं तो लोगों का रुख सोने की खरीद की ओर हो जाता है.

मौजूदा समय में भी सोने के प्रति आकर्षण और उसकी कीमतें बढ़ने की एक वजह दुनिया के आर्थिक हालात हैं. आईएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने अपने हालिया आकलन में वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को पहले से कम कर दिया है. इसके अलावा चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव ने भी आर्थिक अनिश्चिताओं को बढ़ा दिया है. दुनिया भर के शेयर बाजारों में निवेशकों का मुनाफा कम हुआ है. भारत में शेयर बाजार और म्यूचअल फंड जैसे निवेशों में रिटर्न पिछले एक साल से बेहद कम है और कई मामलों में तो यह ऋणात्मक स्तर पर है. ऐसे में निवेशक एक बार फिर सोने की ओर लौट रहे हैं. भारत में थोड़ा ज्यादा, लेकिन पूरी दुनिया में कमोबेश ऐसे ही हालात हैं, इसलिए बतौर निवेश विकल्प सोने की मांग बढ़ी है.

शेयर बाजार, म्यूचअल फंड और कर्ज बाजार में बनी अस्थिरता से आम निवेशक सोने में पैसा लगाने की सोच रहा है, यह तो समझ में आता है क्योंकि मौजूदा विकल्पों में सोने में किया गया निवेश अपेक्षाकृत सुरक्षित नज़र आ रहा है. लेकिन, आम निवेशकों के साथ दुनिया के कई सेंट्रल बैंक भी सोने की अपनी खरीद को लगातार बढ़ा रहे हैं. आधुनिक मुद्रा व्यवस्था में भी सेंट्रल बैंक अपने रिजर्व का एक हिस्सा सोने के रूप में रखते रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से देखा गया है कि कई केंद्रीय बैंक बड़ी मात्रा में सोना खरीद रहे हैं. इस साल सोने की कीमतों में 16 फीसद की उछाल आई है और जानकर मानते हैं कि इसकी एक वजह केंद्रीय बैंकों की सोने में बढ़ी दिलचस्पी भी है.

गोल्ड कॉउंसिल के अनुसार, पूरी दुनिया के सेंट्रल बैंक 2019 की पहली छमाही तक 374.1 टन सोना खरीद चुके हैं. केंद्रीय बैंकों ने इस साल अब तक जो 374.1 टन सोना खरीदा है उसमें से 224.4 टन साल की दूसरी तिमाही में खरीदा गया है. गौर करने वाली बात यह है कि इस साल की दूसरी तिमाही वही समय है जब चीन-अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध चरम पर पहुंच गया और समझौते की उम्मीद धूमिल हो गई. अमेरिका ने चीन के उत्पादों पर भारी टैक्स लगा दिया. पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए यह झटका देने वाली बात थी. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी दुनिया की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के अपने आकलन को घटा दिया था और भारत जैसे मुल्क में आर्थिक सुस्ती मंदी में बदलने लगी . यानी जैसे-जैसे दुनिया की अर्थव्यवस्था में नरमी के संकेत बढ़े दुनिया के केंद्रीय बैंकों ने भी अपना स्वर्ण भंडार बढ़ाना शुरू कर दिया.

अगर मौजूदा हालात को देखा जाय तो अमेरिका से व्यापारिक तनाव के चलते इसका सबसे ज्यादा असर चीन पर होने वाला है. व्यापार युद्ध को देखते चीन पिछले काफी दिनों से अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता और उसके दबदबे को कम करने की कोशिश कर रहा है. इन तमाम कोशिशों में से एक अपना स्वर्ण भंडार बढ़ाने की कोशिश भी है. यह कोशिश सतत लेकिन धीमी गति से काफी दिनों से चल रही है. अमेरिका द्वारा चीनी उत्पादों पर टैक्स लगाने के बाद अमेरिकी डॉलर से निपटने के लिए पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना सोने की जमकर खरीद कर रहा है. इसके पीछे मंशा यह है कि अपनी मुद्रा के अवमूल्यन की स्थिति में वह सोने के सहारे डॉलर से निपट सकता है. यही वजह है कि चीन ने 2019 के पहले सात महीनों में करीब 85 टन सोने की खरीद की है.

सोना खरीदने से अमेरिकन डॉलर पर निर्भरता कैसे कम होती है, इसे मोटे तरीके से यूं समझा जा सकता है. ज्यादातर देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को अमेरिकी डॉलर में रखते हैं. कोई देश अपनी मुद्रा खर्च कर डॉलर लेता है. ऐसे में अगर डॉलर मजबूत होता है या उस देश की मुद्रा कमजोर (अवमूल्यन) होती है तो उसे डॉलर की खरीद करने में या अन्य देनदारियां डॉलर में चुकाना खासा महंगा पड़ता है. इसके बदले सोने के पर्याप्त भंडारण की स्थिति में केंद्रीय बैंक सोने को मुद्रा में बदलकर अपनी देनदारियां चुका सकता है. इससे डॉलर पर आत्मनिर्भरता भी घटती है और सोने के दामों में अपेक्षाकृत स्थायित्व के कारण नुकसान भी कम होता है.

अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का हिस्सा बढ़ाने की रणनीति पर रूस भी चल रहा है. हालांकि, वह फिलहाल सीधे किसी व्यापार युद्ध जैसी स्थिति में नहीं है, लेकिन वह बहुत सतर्क तौर पर अमेरिकी डॉलर पर अपनी आत्मनिर्भरता कम कर रहा है. हालांकि, जानकार कहते हैं कि इसकी वजह आर्थिक से ज्यादा सामरिक है. शीत युद्ध खत्म होने के बाद भी रूस हमेशा इस बात के प्रति सचेत रहता है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में अमेरिका कुछ करता है तो वहां रूस का हित क्या होगा. मसलन अगर ईरान को लेकर अमेरिका आक्रामक रुख अख्तियार करता है और रूस उसका विरोध करता है तो पश्चिम के कई देश उस पर प्रतिबंध लगा सकते हैं. क्रीमिया जैसे कई मसलों को लेकर उस पर कई प्रतिबंध पहले से ही लगे हैं. ऐसे में डॉलर पर कम से कम आत्मनिर्भरता रूस की नीति का स्थायी हिस्सा है जिस वजह से रूस का केंद्रीय बैंक सोने की खरीद कर रहा है. जानकारों के मुताबिक रूस जिस रफ्तार से सोना खरीद रहा है, उस हिसाब से वह साल के अंत तक वह अपने भंडार में 150 टन से ज्यादा सोना बढ़ा लेगा.

वर्ल्ड गोल्ड कॉउंसिल के मुताबिक, तुर्की, कज़ाकिस्तान, चीन और रूस के सेंट्रल बैंक सोने के चार सबसे बड़े खरीददार हैं. चीन तात्कालिक आर्थिक वजहों से और रूस सामरिक वजहों से सोने की खरीद कर रहा है, लेकिन सवाल उठता है कि तुर्की और कज़ाकिस्तान जैसे देश बड़े पैमाने पर सोना क्यों खरीद रहे हैं. इसकी वजह यह है कि ये देश डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा को गिरने से रोकना चाहते हैं. बीते साल तुर्की की मुद्रा लीरा डॉलर के मुकाबले खासी कमजोर हो गई थी. जानकर मानते हैं कि ज्यादातर देशों के केंद्रीय बैंक दुनिया के आर्थिक हालात और अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए सोना खरीद रहे हैं. भारत के रिजर्व बैंक ने भी 2019 के वित्तीय वर्ष में सोने की खरीद बढ़ाई है और अब आरबीआई का स्वर्ण भंडार दुनिया के सेंट्रल बैंकों में दसवें नंबर पर आ चुका है.

वर्ल्ड गोल्ड कॉउंसिल के मुताबिक, 2019 में सोने की जो कुल मांग रही है, उसमें से 16 फीसदी केंद्रीय बैंकों की ओर से रही. आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के नौ केंद्रीय बैंकों ने काफी तेजी से सोने की खरीद की है. यानी डांवाडोल आर्थिक नीति और सामरिक चिंताओं के चलते आम निवेशक के साथ केंद्रीय बैंक भी सोने की ओर रुख कर रहे हैं. जानकर मानते हैं,सोने के भाव ने कई सालों बाद उछाल पकड़ा है और हाल-फिलहाल इसके घटने की कोई वजह भी नहीं दिख रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत 1500 डॉलर प्रति औंस है, विशेषज्ञ मानते हैं कि सोने का आकर्षण ऐसा ही बना रहा तो अगले दो सालों में सोना 2000 डॉलर प्रति औंस के पार भी जा सकता है.