जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में दूसरी बार सरकार बनी तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार के भाजपा अध्यक्ष भी मोदी मंत्रिमंडल का हिस्सा बन गए. इसके बाद पार्टी ने पिछली मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जगत प्रकाश नड्डा को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया. जिन तीन राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष मोदी मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे, उनके लिए नए अध्यक्ष की तलाश शुरू हुई. इस प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के लिए भाजपा ने नए अध्यक्ष की नियुक्ति कर दी. लेकिन बिहार के मामले में अब तक ऐसा नहीं हो सका है.

ऐसे में सियासी जगत में इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय के गृह राज्य मंत्री बनने के बाद बिहार भाजपा की कमान किसे मिलेगी. सवाल यह भी उठ रहा है कि इस बारे में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को निर्णय लेने में देरी क्यों हो रही है. इस बारे में प्रदेश भाजपा और पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों से बातचीत करने पर यह समझ में आ रहा है कि पार्टी के किसी अंतिम निर्णय तक न पहुंच पाने के पीछे कई कारण हैं.

भाजपा के एक पदाधिकारी इस बारे में बताते हैं, ‘मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय यादव समाज से हैं. ऐसे में पार्टी के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि अगला अध्यक्ष किस समाज से हो. अन्य पिछड़ा जाति और उसमें से भी यादव प्रदेश अध्यक्ष के पक्ष में कई बातें कही जा रही हैं. कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल जिस बुरी स्थिति में है, वैसे में अगर एक यादव को अध्यक्ष बनाकर अगर भाजपा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में लगती है तो उससे लालू यादव के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाकर वह अपनी स्थिति मजबूत कर सकती है.’

वे आगे बताते हैं, ‘इसी तरह से दूसरी पिछड़ी जातियों में से नया अध्यक्ष बनाने पर भी खूब बहस हो रही है. प्रदेश भाजपा में एक तबका ऐसा है जो यह कहता है कि इस वर्ग का प्रतिनिधित्व खुद बिहार भाजपा के सबसे बड़े नेता और मौजूदा उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी करते हैं, इसलिए अगड़ी जाति के किसी व्यक्ति को प्रदेश की कमान सौंपनी चाहिए. इसके पक्ष में यह कहा जा रहा है कि अगड़ी जातियां प्रदेश में भाजपा के साथ रही हैं और बिहार में कांग्रेस के लगातार कमजोर होने की स्थिति में यह वर्ग पूरी तरह से भाजपा के साथ आ सकता है. पर अगर इस वर्ग को यह लगा कि भाजपा पिछड़ों की राजनीति के चक्कर में अगड़ों को नजरंदाज कर रही है तो इससे भाजपा के इस पारंपरिक समर्थन वर्ग के दूर छिटकने का जोखिम भी है.’

बिहार प्रदेश अध्यक्ष के चयन में भाजपा की दिक्कत सिर्फ ओबीसी बनाम सवर्ण से जुड़ी नहीं है. अनुसूचित जाति के जो नेता हैं, वे भी लगातार पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष का पद इस वर्ग के किसी नेता को मिलना चाहिए. बिहार प्रदेश भाजपा के एक नेता इस बारे में बताते हैं, ‘केंद्रीय मंत्रिमंडल में बिहार भाजपा के पांच नेता मंत्री हैं. इनमें से कोई भी अनु​सूचित जाति का नहीं है. सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान इस वर्ग के हैं और केंद्र में मंत्री हैं. उनकी सेहत ठीक नहीं है और बिहार में लोग यह मान रहे हैं कि उनका प्रभाव कम हो रहा है. ऐसे में दलितों के सामने उनके बाद के नेतृत्व का संकट है.’

वे आगे कहते हैं, ‘लंबे समय तक इस वर्ग को लालू यादव सामाजिक न्याय के नाम पर अपने साथ जोड़े रखने में कामयाब रहे. लेकिन दलितों में नेतृत्व को लेकर बिहार में जो संकट पैदा हो रहा है, वह भाजपा के लिए एक बड़ा अवसर है. अगर पार्टी बिहार में दलित नेतृत्व देती है तो इससे जमीनी स्तर पर उसको अपनी पैठ मजबूत करने में मदद मिलेगी. अगर किसी वजह से भाजपा और जनता दल यूनाइटेड का साथ छूटता है तो उस स्थिति में भाजपा के लिए दलित समाज का विश्वास जीतने के लिए किया गया काम काफी उपयोगी साबित होगा.’

कुल मिलाकर बिहार भाजपा के अध्यक्ष के चयन को लेकर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उलझन में है. इस पद को लेकर हर वर्ग की दावेदारी और इसके नफे-नुकसान पर पार्टी के बड़े नेताओं में चर्चा चल रही है. भाजपा सूत्रों की मानें तो बीते मंगलवार को दिल्ली में इस संबंध में एक बैठक भी हुई थी. इस बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल थे. लेकिन फिर भी बिहार के भाजपा अध्यक्ष को लेकर कोई अंतिम निर्णय नहीं हो पाया. इस बैठक की जानकारी रखने वाले एक भाजपा नेता ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘इस बारे में अंतिम घोषणा कभी भी हो सकती है लेकिन किसके नाम की घोषणा होगी, यह कहना मुश्किल है.’

अलग-अलग सामाजिक वर्गों के भाजपा नेताओं की दावेदारी और इस वजह से केंद्रीय नेतृत्व में बनी भ्रम की स्थिति की वजह से बिहार भाजपा अध्यक्ष के लिए कई नामों को लेकर चर्चा चल रही है. यादव अध्यक्ष की स्थिति में पहले बिहार भाजपा के कद्दावर नेता नंदकिशोर यादव के नाम को लेकर भी चर्चा थी. कहा जा रहा था कि अगर यादव समाज से ही किसी को अध्यक्ष बनाना हो तो वे सबसे विश्वसनीय चेहरा होंगे. लेकिन झारखंड विधानसभा चुनावों के लिए सह प्रभारी के तौर पर उनकी नियुक्ति के बाद अब उनके नाम की चर्च पर विराम लग गया है. इस कड़ी में अब सीवान के पूर्व सांसद ओमप्रकाश यादव का नाम भी चल रहा है. लेकिन, भाजपा के कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि वे संघ की प्रक्रिया के तहत भाजपा में नहीं आए बल्कि पहले निर्दलीय सांसद थे और बाद में भाजपा में आए, इसलिए उनकी नियुक्ति की संभावना कम है. चर्चा पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव के नाम की भी चल रही है. लेकिन राष्ट्रीय जनता दल से आए रामकृपाल यादव की दावेदारी के बारे में भी वही बात कही जा रही है जो ओमप्रकाश यादव के बारे में कही जा रही है.

अगड़ी जातियों की बात की जाए मिथिलेश तिवारी, राजेंद्र सिंह और देवेश कुमार जैसे नेताओं का चर्चा में है. उधर, ओबीसी से जो नाम चर्चा में हैं उनमें संजय जायसवाल, राजेंद्र गुप्ता और संजीव चौरसिया प्रमुख हैं. पार्टी के लोगों से इन नामों की संभावनाओं पर बात करने पर पक्ष-विपक्ष दोनों तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि संभव है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इनसे अलग भी कोई नाम प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर तय कर दे.