पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अभी डेढ़ साल से अधिक का वक्त बाकी है लेकिन, इसे लेकर राज्य की राजनीति में तेजी से हलचलें होती दिख रही हैं. लोकसभा चुनाव-2019 के नतीजे से उत्साहित भाजपा इसके लिए अपनी कमर और कसने की तैयारी में है. वहीं, सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की कोशिश लगातार तीसरी बार राज्य की सत्ता हासिल करना है. इसके लिए टीएमसी सुप्रीमो ने प्रशांत किशोर को अपना रणनीतिकार बनाया है. बताया जाता है कि प्रशांत किशोर ने इसके लिए काम भी शुरू कर दिया है. इसका असर सूबे की राजनीति के साथ-साथ तृणमूल कांग्रेस और खुद ममता बनर्जी के कामकाज पर होता हुआ दिखता है. इसका अंदाजा भाजपा के ममता बनर्जी सरकार पर लगाए गए कुछ आरोपों से भी लग जाता है.

प्रशांत किशोर को लेकर पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है, ‘खुद सरकार चलाने की योग्यता तृणमूल कांग्रेस में नहीं है, इसलिए उसने प्रशांत किशोर को राज्य सरकार लीज पर दे रखी है. सरकारी बिल्डिंग में उनकी टीम ने कार्यालय खोला है. प्रशांत किशोर सरकारी अधिकारियों को नोटिस दे रहे हैं.’ दिलीप घोष का आगे कहना है, ‘ममता बनर्जी प्रशांत किशोर की बातों पर चल रही है, इसलिए वे दुर्गा पूजा समितियों को आयकर विभाग के नोटिस का विरोध कर रही हैं.’

इससे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट कर विभाग के इस नोटिस का विरोध किया था. उन्होंने कहा था, ‘यह त्योहार सभी के लिए है और हम नहीं चाहते हैं कि इस पर कोई टैक्स लगाया जाए.’ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता इस मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं. हालांकि, आयकर विभाग ने साफ किया है कि उसने इस साल के लिए ऐसा कोई नोटिस जारी नहीं किया है. बताया जाता है कि इस मामले में ममता बनर्जी का सख्त रूख उनकी बदली हुई रणनीति का ही नतीजा है. लेकिन, प्रशांत किशोर के साथ आने के बाद इस तरह के बदलाव केवल ‘दीदी’ में ही नहीं दिख रहे हैं. बल्कि, उनकी पार्टी और सरकार पर भी इसका असर साफ-साफ दिख रहा है.

जनता से जुड़ाव की रणनीति

राजनीतिक पंडितों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि ममता बनर्जी के साथ प्रशांत किशोर के जुड़ने का ही नतीजा है कि तृणमूल कांग्रेस ने सूबे की जनता से सीधे जुड़ाव के लिए ‘दीदी के बोलो’ (दीदी से बोलो) अभियान की शुरूआत की है. इसके तहत पार्टी के जनप्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं को लोगों से सीधा संवाद करने का निर्देश दिया गया है. साथ ही, इस अभियान के लिए एक वेबसाइट और मोबाइल नंबर भी जारी किया गया है. इस मंच पर राज्य का कोई भी व्यक्ति अपनी समस्या के बारे में सीधे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जानकारी दे सकता है. साथ ही, यहां पर लोगों से सुझाव भी आमंत्रित किए गए हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स - फेसबुक और ट्विटर - पर भी सरकार की उपलब्धियों और कामकाज को पहले से अधिक दर्ज किया जा रहा है और इसके जरिए लोगों से जुड़ने की कोशिश की जा रही है.

इससे पहले प्रशांत किशोर वाईएसआर कांग्रेस से साल 2017 में जुड़े थे. आंध्र प्रदेश स्थित इस पार्टी के लिए भी उन्होंने चुनावी रणनीति तैयार की थी. वहां जनता से जुड़ाव के लिए वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख जगनमोहन रेड्डी ने 3,000 किलोमीटर की प्रजा संकल्प पदयात्रा की थी. साथ ही वहां ‘रावाली जगन, कावाली जगन’ यानी जगन आएं, जगन की जरूरत है, का नारा भी दिया गया था. ममता बनर्जी की छवि पहले से ही जमीन पर जनता से जुड़ने वाली रही है. लेकिन, इसे कभी एक अभियान का रूप नहीं दिया गया था. प्रशांत किशोर की वजह से न केवल इसे पूरी योजना के साथ चलाया जा रहा है बल्कि पार्टी के अन्य जनप्रतिनिधि भी लोगों के बीच दिख रहे हैं. हालांकि अभी चुनाव होने में काफी वक्त है, शायद इसलिए ममता बनर्जी से जुड़ा कोई नारा अभी नहीं दिया गया है.

ममता बनर्जी के चिर-परिचित अंदाज का बदलना

भारतीय राजनीति में ममता बनर्जी की छवि आक्रामक और अस्थिर नेता की रही है. लोकसभा चुनाव के दौरान कई मौकों पर अपनी किसी बात के लिए उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. उदाहरण के लिए, उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान लोगों द्वारा ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाए जाने पर सख्त प्रतिक्रिया दी थी. भाजपा ने इसे हिंदू विरोध के रूप में प्रचारित करने की कोशिश की और इसे लेकर ममता बनर्जी के खिलाफ एक अभियान भी चलाया था.

चुनाव के दौरान कई मौकों पर भाजपा के साथ उनका तीखा टकराव भी खुलकर लोगों के सामने आया था. कोलकाता स्थित एक स्थानीय पत्रकार ने सत्याग्रह को बताया कि भले ही ममता बनर्जी नरेंद्र मोदी सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाती रही हैं. लेकिन, राज्य में खुद उनकी सरकार इस तरह के आरोपों का सामना कर रही हैं. साथ ही, एक तबके में इसे लेकर नाराजगी भी है. और इसका नुकसान तृणमूल कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा था.

लेकिन पिछले कुछ समय की बात करें तो ममता बनर्जी का मिजाज बदला-बदला सा दिखता है. यहां तक कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने से संबंधित अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी करने के फैसले पर भी काफी संयमित प्रतिक्रिया दी थी. बीते गुरुवार को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्होंने कहा, ‘मैं अनुच्छेद-370 के मेरिट पर नहीं जाऊंगी. लेकिन, मैं ये जरूरी कहूंगी कि जो तरीका अपनाया गया वह गलत था. शांतिपूर्ण बातचीत की गुंजाइश थी लेकिन, उन्होंने (मोदी सरकार) इसे पूरी तरह दबा दिया.’ इसके अगले दिन ममता बनर्जी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उनके शब्दों को याद करते हुए ट्वीट किया, ‘बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकती है. इसका रास्ता तीन सिंद्धातों- इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत से निकल सकता है.’

एक धर्म विशेष से लगाव और दूसरे से अलगाव की छवि से छुटकारा

बीती नौ अगस्त को तृणमूल नेता राजीब बनर्जी ने बताया कि उनकी सरकार हिंदू पुजारियों के लिए मासिक भत्ते की लंबे समय से लंबित मांग पर विचार कर रही है. ममता बनर्जी की सरकार में मंत्री राजीब ने कहा, ‘हमें लगता है, सैकड़ों पुजारी हैं जिन्हें अपने परिवार को चलाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.’ सत्याग्रह ने लोकसभा चुनाव से पहले जब राज्य का दौरा किया था, उस दौरान कई हिंदू मतदाताओं ने ममता सरकार की एक विशेष समुदाय को लेकर तुष्टिकरण की नीति का विरोध किया था. उनका कहना था कि यदि ममता बनर्जी मौलवियों को भत्ते दे सकती हैं तो पुजारियों को क्यों नही दे रहीं?

इससे पहले ममता बनर्जी की सरकार ने हिंदुओं के पर्व गंगासागर मेले पर से कर हटाने का फैसला भी किया था. दुर्गा पूजा समिति को आयकर नोटिस भेजे जाने के मामले में भी ममता बनर्जी बार-बार अपने इस फैसले का जिक्र करती रही हैं. इसके अलावा उनकी पार्टी सनातन ब्राह्मण सभा का भी आयोजन कर रही है. वहीं, हालिया दिनों में हिंदू समुदाय के त्योहारों में खुद ममता बनर्जी सक्रिय रूप से शामिल होती हुई दिखी हैं. राज्य में इस समुदाय के साथ भेदभाव के आरोपों के बीच इन सभी मामलों को सरकार और पार्टी के रूख में बदलाव के रूप में ही देखा जा रहा है.