बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद देश का दूसरा सबसे ताकतवर व्यक्ति मानते हैं. मोदी सरकार में मंत्री बनने से पहले वे पार्टी के कर्ताधर्ता तो थे लेकिन तब सरकार में शामिल कुछ मंत्रियों की गिनती भी देश के सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों में होती रहती थी.
2014 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर जब 80 में से 73 सीटें जीतने का कारनामा अमित शाह ने किया तो राष्ट्रीय स्तर पर उनका कद काफी बड़ा हो गया. बाद में राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने भाजपा का जिस ढंग से विस्तार किया उसने उन्हें यहां तक पहुंचा दिया. मीडिया का एक बड़ा वर्ग अमित शाह को इस दौर की ‘राजनीति का चाणक्य’ कहता है. एक ऐसा राजनेता जिसने भाजपा को इतना ताकतवर बना दिया है कि कुछ राज्यों को छोड़कर उसे कहीं और हरा पाना आसान नहीं रहा.
नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर भाजपा को इस स्थिति में पहुंचाने वाले अमित शाह और उनकी कार्यशैली क्या है, इन सवालों का जवाब ‘अमित शाह और भाजपा की यात्रा’ से मिलता है. अनिर्बान गांगुली और शिवानंद द्विवेदी की यह पुस्तक अमित शाह की समग्र जीवनी तो नहीं है लेकिन उनके कार्यकाल में भाजपा कैसे आगे बढ़ी, उसके बारे में कई जानकारियों से भरी हुई है.
पुस्तक: अमित शाह और भाजपा की यात्रा
लेखकः अनिर्बान गांगुली और शिवानंद द्विवेदी
प्रकाशकः ब्लूम्सबरी
मूल्यः 299 रुपये
आम तौर पर धारणा यह है कि भाजपा अक्सर ऐसे धार्मिक मुद्दों को उठाती है हुए जो लोगों को भावनात्मक तौर पर अपील करें और लोगों का ध्रुवीकरण हो. माना जाता है कि भाजपा ऐसी स्थिति बनाकर वह नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे रखती है और चुनावों में जीत हासिल करती है. लेकिन इस पुस्तक से पता चलता है कि भाजपा यह काम तो करती ही है लेकिन इसके अलावा चुनाव लड़ने की एक वैज्ञानिक पद्धति भी उसने विकसित की है. इसमें संगठन के लोगों को लगातार सक्रिय रखना और जरूरी मुद्दों को सही समय पर सही ढंग से उठाने की सुनियोजित तकनीकें शामिल हैं.
बतौर अध्यक्ष अमित शाह के कार्यकाल में भाजपा कैसे आगे बढ़ी, इसका विस्तार से जिक्र इस पुस्तक में है. अपने दम पर चुनाव लड़ने के लिहाज से मुश्किल माने जा रहे उत्तर प्रदेश में न सिर्फ 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जबर्दस्त प्रदर्शन किया बल्कि तीन साल बाद विधानसभा चुनावों में भी भारी जीत हासिल की. अमित शाह ने इसे संभव बनाने के लिए किस ढंग से काम किया, इसका विवरण इस पुस्तक में मिलता है. इसी तरह असम से लेकर त्रिपुरा और अन्य राज्यों में भी भाजपा को सरकार बनाने की स्थिति में लाने के लिए अमित शाह की ओर से किए गए कार्यों को भी इस किताब में दिया गया है. भाजपा विश्व में सबसे अधिक सदस्यों वाली राजनीतिक पार्टी कैसे बनी, इसकी कहानी भी इसमें है.
अगर आप इस पुस्तक को अमित शाह की राजनीतिक कार्यशैली और अभी की भाजपा की कार्यपद्धति को समझने की इच्छा से पढ़ेंगे तो इसमें काफी जानकारियां हैं. लेकिन अगर इसे अमित शाह की जीवनी समझकर पढ़ना चाहेंगे तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी. अमित शाह जिन बातों को लेकर विवादों में रहे हैं, उन्हें इस पुस्तक में विपक्ष की साजिश और मीडिया के आरोप कहकर खारिज कर दिया गया है. एक तरह से कहें तो अमित शाह का आलोचनात्मक मूल्यांकन इस पुस्तक में नहीं है. इसकी वजह भी इस पुस्तक को पढ़ते हुए समझ में आती है. ऐसा लगता है कि यह अमित शाह की सहमति से लिखी गई किताब है. इस पुस्तक के संदर्भ में उनसे हुई बातचीत का ब्यौरा है और इसके लेखक अनिर्बान गांगुली भाजपा से संबद्ध हैं. ऐसी पुस्तकों में आलोचनात्मक मूल्यांकन की संभावना नहीं बन पाती. फिर भी यह अभी की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए पढ़ने लायक है.
इस पुस्तक में अमित शाह से संबंधित कई दिलचस्प किस्से हैं. इनमें से कुछ ऐसे रोचक किस्सों का जिक्र यहां किया जा रहा है जिनके जरिए अमित शाह के व्यक्तित्व के कुछ जरूरी आयामों की झलक हमें मिल सकती है.
1. अमित शाह के बारे में यह धारणा है कि वे दिन-रात राजनीति में ही लगे रहते हैं. लेकिन इस पुस्तक में यह उल्लेख आया है अमित शाह नियमित तौर पर डायरी लिखते हैं. ब्रिटेन के लेखक पैट्रिक फ्रेंच के एक साक्षात्कार का हवाला देते हुए इस किताब में अमित शाह को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि ‘मैं नियमित डायरी लिखता हूं लेकिन यह प्रकाशित कराने के लिए नहीं है. यह मैं अपने अनुभव और स्व-मूल्यांकन के लिए करता हूं.’
2. बहुत लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि अमित शाह ज्योतिष शास्त्र के भी जानकार हैं. इस बारे में पुस्तक में लिखा गया है, ‘बचपन में शाह नियमित सभी बच्चों की तरह खेलने जाते थे. वहां वे एक ज्योतिष शास्त्री के संपर्क में आए और उनसे नियमित चर्चा होने लगी. शाह ने ज्योतिष के विषय पर उनसे काफी कुछ सीखा और ज्योतिष ज्ञान हासिल किया. बहुत कम लोग जानते हैं कि अमित शाह ज्योतिष विद्या पर न सिर्फ भरोसा करते हैं बल्कि स्वयं भी इसके अच्छे जानकार हैं. शाह के एक करीबी ने बताया कि अपनी पोती के जन्म से पूर्व शाह ने कहा था कि घर में लक्ष्मी आ रही है.’
3. अमित शाह के बारे में यह धारणा बनी है कि वे राजनीतिक चाल शतरंज की चाल की तरह चलते हैं. इस पुस्तक से पता चलता है कि अमित शाह शतरंज के अच्छे खिलाड़ी भी रहे हैं. इस बारे में उनके एक पुराने करीबी को यह कहते हुए उदघृत किया गया है, ‘अमित भाई शतरंज खेलते समय चाल गिनते थे, मिनट नहीं. कितने चाल में विरोधी को परास्त करना है, यह उनका लक्ष्य होता है और इसी लक्ष्य को लेकर वे हर चाल चलते हैं.’
4. बहुत कम लोगों ने यह ध्यान दिया होगा कि अमित शाह घड़ी नहीं पहनते हैं. अनुशासन और समयबद्ध कार्य करने वाले व्यक्ति का घड़ी नहीं पहनना रोचक है. इस बारे में भाजपा के एक शीर्ष नेता से अमित शाह की बातचीत का हवाला इस पुस्तक में दिया गया है. उनके मुताबिक अमित शाह ने उन्हें इस बारे में यह कहा था कि ‘सार्वजनिक, खासकर राजनीतिक जीवन में उपहार लेने-देने की संस्कृति घड़ी और कलम से शुरू होती है. मैंने अपने लिए राजनीतिक जीवन में उपहार की संस्कृति को रोक देने के लिए यह निर्णय लिया.’
5. उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान अमेठी के जगदीशपुर में अमित शाह ने एक बैठक बुलाई थी. यह बैठक अमेठी में स्थित डालडा फैक्ट्री के गोदाम पर बुलाई गई थी. इस घटना के बारे में पुस्तक में लिखा गया है, ‘संभवतः यह आकस्मिक बुलाई गई बैठक हो. बैठक देर रात दो बजे तक चली. अमेठी के भाजपा कार्यकर्ताओं ने यह सोचकर अमित शाह के रुकने की व्यवस्था नहीं कराई कि बैठक के बाद वे वापस चले जाएंगे. लेकिन उन्हें इसका अनुमान नहीं रहा कि शाह संगठन प्रवास में रात्रि निवास को लेकर अत्यंत प्रतिबद्ध हैं. बैठक के बाद जब सभी पदाधिकारी लखनऊ लौटने लगे, तो पता चला कि वहां भाजपा अध्यक्ष के ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं हुई है. अमेठी से लखनऊ डेढ़ घंटे का रास्ता है. देर रात हो चुकी थी. शाह ने उसी गोदाम में ठहरने का निश्चय किया. वे छत पर गए और रात्रि विश्राम के लिए माकूल स्थान तलाशने लगे. वहां एक छोटा सा कमरा था, अव्यवस्थित ढंग से रात्रि विश्राम की थोड़ी गुंजाइश थी. शाह ने डालडा फैक्ट्री के उसी गोदाम में रात्रि निवास किया.’
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