बीते हफ्ते बच्चों से जुड़े दो वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बने रहे. इनमें से पहले वीडियो ने तब ध्यान खींचा जब रोमन एथलीट नादिया कोमनेच ने इसे रिट्वीट किया. इस वीडियो में तकरीबन 11-12 साल की उम्र के दो बच्चे, एक लड़का और एक लड़की - स्कूल यूनिफॉर्म में पक्की सड़क पर जिम्नास्टिक्स करते नज़र आ रहे हैं. वीडियो की खास बात यह है कि इन बच्चों के लिए यह चलते-फिरते मजे के लिए कर देने वाले करतब सरीखा है. नादिया कोमनेच जो दुनिया की अब तक की सबसे बेहतरीन एथलीट हैं और उन्होंने इसे रिट्वीट करते हुए लिखा - ‘दिस इज ऑसम.’ इसके बाद यह वीडियो चर्चा में आ गया. ध्यान देने लायक बात यह है कि बच्चों को शायद ही अभी इस बात का एहसास हो कि उन्हें कितनी बड़ी हस्ती से इतनी तारीफ मिली है. किसी भी आम एथलीट के लिए यह जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक हो सकती है.
इस मामले में दूसरी अच्छी बात यह है कि खेल राज्यमंत्री किरेन रिजिजु भी इस वीडियो को रिट्वीट कर चुके हैं. साथ उन्होंने यह आश्वासन भी दिया है कि अगर कोई इन प्रतिभाओं को उन तक पहुंचा सकेगा तो वे इन बच्चों जिम्नास्टिक एकेडमी में भेजने का इंतजाम कर सकते हैं. उनके इस ट्वीट के जवाब में कुछ लोगों ने इन बच्चों से जुड़ी जानकारी दी है. बताया जा रहा है कि ये बच्चे दीमापुर, नागालैंड के एक सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं.
This is awesome pic.twitter.com/G3MxCo0TzG
— Nadia Comaneci (@nadiacomaneci10) August 29, 2019
दूसरा वीडियो फरीदाबाद के नौ साल के नारायण बांगा का है. इस वीडियो में यह बेहद मासूम और प्यारा बच्चा ‘हिंदू जनजागृति समिति’ के एक आयोजन में बोल रहा है. नन्हा नारायण इस मंच पर बोलते हुए अपना परिचय देता है और कहता है ‘मैं एक हिंदू बच्चा हूं.’ वह जिस मासूमियत भरे आत्मविश्वास से यह बात कहता है, उस पर मुग्ध हुए बिना नहीं रहा जा सकता है. लेकिन यह बच्चा जिस तरह की बातें कहता है, वे आपको क्षोभ से भर देती हैं. दो मिनट की लंबाई वाले इस वीडियो में यह बच्चा धर्म से जुड़ी ऐसी बातें करता है जो यह समझने के लिए काफी हैं कि उसके बचपन और भविष्य के साथ कितना बड़ा छल किया जा रहा है. नन्हे बच्चे के बारे में यह सोचने भर से आपके भीतर डर और गुस्से की झुरझुरी दौड़ जाती है.
𝗧𝗵𝗶𝘀 𝗶𝘀 𝗵𝗼𝘄 𝗛𝗶𝗻𝗱𝘂 𝗝𝗮𝗻𝗮𝗷𝗮𝗴𝗿𝘂𝘁𝗶 𝗦𝗮𝗺𝗶𝘁𝗶 𝗶𝘀 𝗿𝗮𝗱𝗶𝗰𝗮𝗹𝗶𝘇𝗶𝗻𝗴 𝘆𝗼𝘂𝗻𝗴 𝗜𝗻𝗱𝗶𝗮
— Desi Bhai | Desh Bhakt 🇮🇳 (@DesiPoliticks) August 28, 2019
Mai jab yaha araha tha..tab mai dekh raha tha jagah jagah cross ✝ k symbol the..tab mere mann me chal raha tha ki..ye cross k symbol swastik 卍 nahi ban sakte pic.twitter.com/PF6KobRa6b
वीडियो से पता चलता है कि नारायण बांगा क्रॉस और स्वास्तिक के चिन्ह पहचानता है, यह उसके सामान्य ज्ञान के लिहाज से अच्छी बात लगती है. वह इन्हें धर्मों से जोड़कर देख सकता है, यह भी उसकी बढ़िया समझ का इशारा हो सकता है. लेकिन जब वह यह कहता है कि क्रॉस के निशान को देखकर उसे उन्हें स्वास्तिक में बदलने का विचार आया तो बात जरा गरिष्ठ हो जाती है. जिस उम्र के बच्चे आम तौर पर कल के पहने हुए कपड़े भी आज नहीं बदलना चाहते हैं, उस उम्र में यह बच्चा एक धर्म के चिन्हों को दूसरे से बदले जाने की बात कर रहा है.
यह थोड़े संतोष की बात हो सकती है कि एक खास लहजे और क्रम में अपनी बातें बोलते हुए नारायण कई बार अटकता है. यह बताता है कि ये बातें अभी उसकी समझ में नहीं आई हैं और फिलहाल उसने किसी तरह से इन्हें रट लिया है. लेकिन इतने के बाद भी यह डर बना ही रहता है कि वह जिस ‘आज़ाद हिंदू देश’ और ‘धर्म-अधर्म के महायुद्ध’ की बातें कर रहा है, वे ना समझ आते हुए भी क्या कभी उसके मन से निकल पाएंगी? एक छोटे बच्चे के मुंह से निकली ये बातें बताती हैं कि वह एक बेहद पिछड़ी सोच का शिकार बन रहा है.
दोनों ही वीडियो में नज़र आने वाले बच्चे प्रतिभाशाली हैं. पहले वीडियो में जहां कॉन्क्रीट की रोड पर दो ऊंची-ऊंची गुलाटियां खा लेने वाले बच्चे साहस दिखाते हैं, वही दूसरे में एक नन्हा बच्चा सैकड़ों लोगों की भीड़ के आगे बुलंद आवाज में बिना डरे, मुस्कुराते हुए अपनी बात कहने की हिम्मत करता है. यहां पर पहले वीडियो को देखकर आपको लगता है कि देश-समाज और परिवारों को अपने बच्चों पर ध्यान देना चाहिए. उन्हें अपनी ऊर्जा और प्रतिभा का इस्तेमाल करने की राह दिखानी चाहिए ताकि वे सड़क पर नही, सही मंचों पर इसका प्रदर्शन कर सकें. लेकिन दूसरे वीडियो को देखते ही लगता है कि अगर हम अपने बच्चों को धर्म और युद्ध की बातें ही सिखा सकते हैं तो इससे अच्छा है कि हम उन्हें उनके हाल पर ही छोड़ दें. इन बातों के बजाय सड़क पर बेवजह गुलाटियां मारना या मिट्टी में खेलना ही उनके हित में ज्यादा होगा. भले ही, इनसे वे कोई बहुत बड़े एथलीट या वक्ता न बन पाएं लेकिन इतनी बड़ी सामाजिक विकृतियों के शिकार तो नहीं होंगे.
फिलहाल, ये दोनों वीडियो एक समाज के तौर पर हमारे लिए चुनौती हैं कि हम अपने बच्चों को कौन से वीडियो में देखना चाहते हैं? संसाधनों से हीन सड़क पर गुलाटियां मारते हुए या तमाम संसाधनों के साथ जहर बुझी बातें करते हुए?
फिलहाल तो बस यह दुआ की जानी चाहिए कि पहले वीडियो में नजर आने वाले बच्चों को सब तरह की सुविधा-सुरक्षा मिले जिससे वे नादिया कोमनेच बनने के सपने पाल सकें. वहीं दूसरे वीडियो का बच्चा इस समझ के साथ बड़ा हो कि किसी मंच पर खड़ा होकर इतनी ही हिम्मत के साथ यह सवाल पूछ सके कि क्यों किसी क्रॉस को स्वास्तिक में बदला जाए, जब उसके बगल में इसे बनाने लिए ढेर सारी जगह छूटी है?
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