पिछले दिनों देश के एक प्रमुख अखबार ने भारत के 100 सबसे ताकतवर लोगों की सूची जारी की. इस सूची में भारत के 20 सबसे ताकतवर लोगों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के दो मंत्री पीयूष गोयल और धर्मेंद्र प्रधान को भी जगह मिली. इससे यह अंदाजा लगता है कि केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की नई पीढ़ी के नेताओं की सूची में इन दोनों का क्या स्थान है.
पीयूष गोयल रेल मंत्रालय के अलावा वाणिज्य मंत्रालय भी संभाल रहे हैं. वहीं धर्मेंद्र प्रधान पेट्रोलियम मंत्रालय के साथ-साथ इस्पात मंत्रालय का भी काम बतौर कैबिनेट मंत्री देख रहे हैं. 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने से पहले तक इन दोनों में से किसी ने भीे न तो केंद्र की किसी सरकार में बतौर मंत्री काम किया था और न ही राज्य की किसी सरकार में. इसके बावजूद 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इन दोनों ने स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री के तौर पर शपथ ली. पहले कार्यकाल में ही मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में दोनों को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट मंत्री बना दिया.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में यह धारणा बनी कि चोटी के कुछ मंत्रियों को छोड़ दें तो नई पीढ़ी के नेताओं में सबसे ताकतवर मंत्री यही दोनों हैं. इन दोनों को ताकतवर माने जाने के पीछे कई वजहें थीं. इनमें से पहली वजह तो यह थी कि दोनों के पास बड़े-बड़े मंत्रालय थे. और दूसरी यह कि दोनों एक से अधिक मंत्रालयों का काम संभाल रहे थे.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में इन दोनों के ताकतवर होने का प्रमाण इस बात से भी मिलता था कि कुछ मौकों पर इन दोनों को दूसरे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया. उदाहरण के तौर पर मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली की गैरमौजूदगी में पीयूष गोयल वित्त मंत्रालय भी संभालने लगे थे. एक बार तो उन्हें आम बजट पेश करने का भी अवसर मिला. इसी तरह जब कौशल विकास मंत्रालय का काम प्रधानमंत्री की उम्मीदों के अनुरूप नहीं चल रहा था तो इस मंत्रालय को संभाल रहे राजीव प्रताप रूडी से लेकर यह मंत्रालय धर्मेंद्र प्रधान को दे दिया गया.

ये दोनों नेता सरकार के साथ-साथ संगठन में भी बेहद ताकतवर थे. यही वजह है कि दोनों को समय-समय पर चुनावों में जाने वाले राज्यों का प्रभार भी मिलता रहा. दक्षिण भारत के कई राज्यों में चुनाव प्रभारी के तौर पर पीयूष गोयल को नियुक्त किया गया तो वहीं दूसरी तरफ धर्मेंद्र प्रधान को भी समय-समय पर इस तरह की जिम्मेदारियां मिलती रहीं. इन दोनों के बारे में एक धारणा यह भी रही कि ये दोनों नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के भी चहेते हैं.
लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अब तक का जो समय गुजरा है, उसमें इन दोनों के बारे में पार्टी के अंदर ही कुछ दूसरी तरह की बातें चलने लगी हैं. कहा जा रहा है कि ये दोनों अपने इस कार्यकाल में उतने ताकतवर नहीं हैं जितने अपने पहले कार्यकाल में हुआ करते थे. इस बारे में पार्टी के अलग-अलग नेताओं से बातचीत करने पर अलग-अलग तरह की बातें सामने आती हैं.
इस बारे में भाजपा के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी कहते हैं, ‘पिछले कार्यकाल में अस्थायी तौर पर वित्त मंत्रालय संभालने वाले पीयूष गोयल को इस बात की पूरी उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री इस बार उन्हें पूर्णकालिक वित्त मंत्री बनाएंगे. लेकिन पीयूष गोयल की जगह निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्रालय दे दिया गया. ऐसा करके एक तरह से प्रधानमंत्री ने यह संकेत दे दिया कि पीयूष गोयल के बारे में जिस तरह की धारणा सार्वजनिक तौर पर बनी हुई है वह सही नहीं है.’
वे आगे कहते हैं, ‘मंत्रालयों का बंटवारा तो बाद में हुआ लेकिन जिस दिन शपथ ग्रहण समारोह हो रहा था उसी दिन जिस क्रम में शपथ लेने वाले नेता बैठे, उससे भी साफ हो गया था कि पहले कार्यकाल में बेहद ताकतवर बनकर उभरे इन दोनों नेताओं को शीर्ष के कुछ नेताओं में शामिल होने के लिए अभी और इंतजार करना पड़ेगा. अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और उमा भारती जैसे बड़े नेता जब शपथ नहीं ले रहे थे तब भी इन दोनों नेताओं को दूसरी पंक्ति में बैठाया गया. जबकि इन दोनों से कम ताकतवर माने जाने वाले कुछ नेता पहली पंक्ति में बैठाए गए थे.’
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ये दोनों पहले जैसे ताकतवर नहीं है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि चार चुनावी राज्यों - महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली - के लिए जब पार्टी ने चुनाव प्रभारियों की घोषणा की तो इन दोनों में से किसी को भी चारों में से एक भी राज्य में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई. जबकि पांच साल पहले जब इन राज्यों में चुनाव हुए थे तो ये दोनों नेता यहां पर प्रमुख भूमिकाओं में थे. चुनावी राज्यों में जिम्मेदारी नहीं मिलने का एक मतलब यह भी निकाला जाता है कि सरकार के साथ-साथ संगठन के स्तर पर भी ये दोनों कमजोर पड़े हैं.
वहीं पीयूष गोयल और धर्मेंद्र प्रधान जिन मंत्रालयों का काम देख रहे हैं, उन मंत्रालयों में भी इन दोनों को लेकर बहुत सकारात्मक माहौल नहीं है. इस बारे में पार्टी के एक नेता कहते हैं, ‘दोनों नेताओं के एक-एक मंत्रालय में कामकाज को लेकर तो संतोषजनक माहौल है लेकिन इनके दूसरे मंत्रालय को लेकर स्थिति ठीक नहीं है. पीयूष गोयल को बतौर रेल मंत्री ठीक माना जा रहा है लेकिन वाणिज्य मंत्रालय में उनके कामकाज पर आंतरिक स्तर पर सवाल उठ रहे हैं. यही हाल धर्मेंद्र प्रधान का भी है. पेट्रोलियम मंत्रालय में तो उनके कामकाज को लेकर संतोषजनक माहौल है लेकिन इस्पात मंत्रालय में उनके कामकाज को लेकर लोगों को शिकायतें हैं. चर्चा तो ये भी चल रही है कि जब प्रधानमंत्री अपने इस कार्यकाल में पहली बार अपनी टीम में फेरबदल करेंगे तो पीयूष गोयल से वाणिज्य मंत्रालय और धर्मेंद्र प्रधान से इस्पात मंत्रालय लेकर किसी और को दिया जा सकता है.’
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