महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों को लेकर जब प्रचार अभियान चल रहा था तो उस वक्त जो भी पत्रकार वहां चुनाव को कवर कर रहे थे, उन सभी का कहना था कि निश्चित तौर पर महाराष्ट्र में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा प्रभावी है लेकिन इस प्रदेश में लोग भारतीय जनता पार्टी को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की वजह से भी वोट देंगे. महाराष्ट्र में जमीनी स्तर पर देवेंद्र फडणवीस के व्यक्तिगत प्रभाव को देखते हुए उनके बारे में यह कहा जाने लगा था कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा में वे पहले क्षत्रप के तौर पर उभर रहे हैं.
2014 में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने के मामले में नितिन गडकरी और एकनाथ खड़से जैसे नेताओं की अनदेखी करके जब मोदी-शाह की जोड़ी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया तो कहा गया कि ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि उनका कोई जनाधार नहीं है. कहा गया कि इस वजह से फडणवीस को दिल्ली से जो भी काम करने को कहा जाएगा, उसे वे चुपचाप करते रहेंगे. लेकिन 2019 आते-आते देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र में अपना खुद का जनाधार तैयार किया.
2019 के विधानसभा चुनावों के दौरान फडणवीस की बढ़ी हुई राजनीतिक हैसियत को देखते हुए बहुत सारे लोगों को यह लगने लगा था 49 साल के देवेंद्र फडणवीस में काफी राजनीतिक संभावनाएं हैं. कुछ लोग तो यह भी कह रहे थे कि अगर एक बार फिर से महाराष्ट्र जैसे संसाधन संपन्न राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर देवेंद्र फडणवीस अपना कार्यकाल पूरा करते हैं तो नरेंद्र मोदी के बाद भाजपा में नेतृत्व को लेकर जो संघर्ष होगा, उसमें वे भी एक प्रमुख दावेदार के तौर पर शामिल हो सकते हैं. उनके बारे में कहा जाने लगा था कि उनकी राजनीतिक पारी सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी भविष्य में वे बेहद मजबूत भूमिका में आ सकते हैं. कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं जो उन्हें भविष्य में प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी मान रहे थे.
लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद प्रदेश में जो राजनीतिक घटनाक्रम चला और उसमें देवेंद्र फडणवीस की जिस तरह की भूमिका रही, उसे देखकर तो यही लगता है कि देवेंद्र फडणवीस ने संभावनाओं से भरी अपनी राजनीतिक पारी को खुद ही आशंकाओं के घेरे में ला खड़ा किया है. जिन देवेंद्र फडणवीस को भविष्य के प्रधानमंत्री के तौर पर देखा जा रहा था, आज उन्हीं देवेंद्र फडणवीस के बारे में पक्के तौर पर कोई यह तक नहीं कह सकता कि आने वाले समय में अगर महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनने की स्थिति पैदा होती है तो वे मुख्यमंत्री भी बन सकेंगे या नहीं.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो फडणवीस ने चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के पहले से लेकर अब तक एक के बाद एक कई ऐसी गलतियां कीं जिनकी वजह से आज वे इस स्थिति में पहुंच गए हैं. खुद फडणवीस की पार्टी भाजपा के अंदर भी उन्हें लेकर इसी तरह की सोच है.
महाराष्ट्र भाजपा के एक नेता इस बारे में बताते हैं, ‘टिकटों के बंटवारे से ही उन्होंने अपना खेल शुरू कर दिया था. टिकटों के बंटवारे में उन्होंने कुछ प्रमुख नेताओं का टिकट काटा और कुछ नेताओं की सीटों की अदला-बदली कर दी. कुछ सीटों पर वे एकदम से नए और उनके प्रति व्यक्तिगत निष्ठा रखने वाले नेताओं को लेकर आ गए. यहां तक की टिकटों के बंटवारे में हमारे प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल तक की देवेंद्र फडणवीस ने नहीं सुनी. पंकजा मुंडे जैसी नेता के चुनाव हार जाने को भी फडणवीस की नाकामी के तौर पर देखा गया. शिवसेना को भी कई बार उन्होंने नाराज किया. सरकार चलाने से लेकर सीटों के बंटवारे तक में उन्होंने शिवसेना के कुछ नेताओं को नाराज किया.’
भाजपा के अंदर तो यह बात भी चल रही है कि पिछले कुछ महीनों से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी देवेंद्र फडणवीस से बहुत प्रसन्न नहीं रहे हैं. इस बारे में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, ‘पार्टी में चर्चा इस बात की है कि लोकसभा चुनावों के पहले ही शिवसेना की बातों से तंग आकर अमित शाह ने मन बना लिया था कि भाजपा को महाराष्ट्र में अकेले चुनाव लड़ना चाहिए. यह बात उन्होंने फडणवीस को बता भी दी. लेकिन फडणवीस विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा-शिवसेना गठबंधन को बनाए रखना चाहते थे. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसके लिए तैयार किया और अमित शाह को बता दिया गया कि गठबंधन में ही चुनाव लड़ना है.’
जाहिर है कि इससे अमित शाह के मन में देवेंद्र फडणवीस के लिए नाराजगी पैदा हुई होगी. बताया जाता है कि इसी वजह से महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद सरकार बनाने के लिए जो भी कोशिशें भाजपा के स्तर पर हुईं, उनमें अमित शाह खुद शामिल नहीं हुए. इस मामले में न तो उन्होंने एक बार भी शिवसेना से बात की और न ही किसी दूसरी पार्टी को अपने पाले में लाने की पहल की. जबकि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने चुनाव परिणाम वाले दिन ही यह कहा था कि जो बातचीत चुनाव के पहले हुई थी, अब उसे आगे बढ़ाने के लिए अमित शाह को आगे आना चाहिए. लेकिन इसके बावजूद अमित शाह के स्तर पर कोई पहल नहीं की गई.
इस दौरान अपने बचकाने व्यवहार के चलते सबसे अधिक किरकिरी देवेंद्र फडणवीस उन पर विश्वास करने वालों की हुई. सिर्फ एक व्यक्ति अजित पवार के पास एक पत्र होने भर से उन्होंने यह मान लिया कि उनके पास जरूरी संख्या बल है. आनन-फानन में राष्ट्रपति शासन हटवाकर जिस तरह से गुपचुप ढंग से देवेंद्र फडणवीस ने दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की और सिर्फ 80 घंटों में इस्तीफा देने को बाध्य हुए, उससे उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी को भारी धक्का देने का काम किया.
इस बारे में भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता कहते हैं, ‘देवेंद्र फडणवीस ने दिल्ली के नेताओं को संख्या बल को लेकर आश्वस्त किया था. उन्होंने इस बात को लेकर प्रधानमंत्री को भी भरोसा दिलाया. प्रधानमंत्री ने देवेंद्र फडणवीस की बातों पर यकीन करके अपने विशेषाधिकार का प्रयोग किया और राष्ट्रपति शासन को रातों-रात हटवा दिया. देवेंद्र फडणवीस ने अपनी नासमझी की वजह से राज्यपाल, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी मजाक बना दिया. जाहिर है कि इस घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देवेंद्र फडणवीस पर उस तरह से यकीन नहीं कर पाएंगे जिस तरह से पहले करते थे. अमित शाह तो उनसे नाराज हैं ही.’
इन परिस्थितियों में यह सवाल उठना लाजिमी है कि अपनी गलतियों की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को नाराज करने वाले देवेंद्र फडणवीस की राजनीतिक पारी का आगे क्या होगा? फिलहाल वे महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनकर बतौर मुख्यमंत्री अपने वापस लौटने की बात कर रहे हैं. लेकिन जिस तरह से उन्होंने अपनी और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की फजीहत कराई है, उसमें ऐसा कर पाना तब भी आसान नहीं है जब उनकी पार्टी के लिए ऐसा कर पाना मुश्किल नहीं होगा.
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