फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों बहुत युवा हैं. 21 दिसंबर को 42 साल के हो जायेंगे. उनमें राजनैतिक अनुभव की कमी हो सकती है. ‘राजनैतिक सहीपन’ (पोलिटिकल करेक्टनेस) की भी कमी हो सकती है. पर सही बात कहने के साहस की कमी नहीं है. 3-4 दिसंबर को लंदन में ‘उत्तर एटलांटिक संधि संगठन’ नाटो की 70वीं वर्षगांठ मनाने के लिए सदस्य देशों का शिखर सम्मेलन होने वाला था. ब्रिटेन की रानी रानी एलिज़ाबेथ के राजमहल बकिंघम पैलेस में एक रात्रिभोज रखा गया था. ठीक इससे पहले ब्रिटिश अख़बार ‘दि इकॉनॉमिस्ट’ के साथ एक भेंटवार्ता में माक्रों ने नाटो की रणनीतियों और अमेरिका तथा नाटो के सदस्य देशों के बीच घटते हुए तालमेल के परिप्रेक्ष्य में कह दिया कि नाटो तो ‘दिमाग़ी तौर पर मृत है.’ नाटो के मुखिया अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रम्प इस टिप्पणी से तिलमिला गये. उन्होंने इसे ‘सम्मानहीन’, ‘अपमानजनक’ और ‘ख़तरनाक़’ बताया.
‘श्रीमान माक्रों, सुनिये, मैं तुर्की से बोल रहा हूं’
इमानुएल माक्रों की इस टिप्पणी से सबसे अधिक बिफरे हुए थे तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोआन. वहां के इस्तांबूल विश्वविद्यालय में बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘क्या कहा, नाटो दिमाग़ी तौर पर मर गया है? श्रीमान माक्रों, सुनिये, मैं तुर्की से बोल रहा हूं और मैं इसे नाटो (शिखर सम्मेलन) में भी दोहराऊंगा - पहले आप अपने मृत मस्तिष्क की जांच करवा लें... आप आतंकवादियों से लड़ना नहीं जानते, बिल्कुल अनुभवहीन हैं!’
तु्र्की और फ्रांस भी 29 देशों वाले नाटो के सदस्य हैं. सैन्यबल की दृष्टि से तुकी की सेना अमेरिका के बाद नाटो की दूसरी सबसे बड़ी सेना है. इराक़ हो या सीरिया, यूनान (ग्रीस) हो या साइप्रस, तुर्की अपने पड़ोसियों को चैन की सांस नहीं लेने देता. अबूबकर अल बगदादी की ख़लीफ़त ‘आईएस’ के बनने व उसके नृशंस आतंकवादियों की सेना खड़ी करने में तु्र्की का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है. पिछले अक्टूबर महीने से तु्र्की की सेना, विभिन्न अरब और इस्लामी आतंकवादी गिरोहों के सहयोग से, उत्तरी सीरिया में कुर्दों की ‘वाईपीजी’ मिलिशिया के साथ लड़ रही है.
फ्रांस अमेरिका और तुर्की से दुखी
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों इस बात से नाराज़ हैं कि अमेरिका ने बगदादी के लड़ाकों से लड़ने में जिन कुर्दों का उपयोग किया, अपना मतलब पूरा होते ही उन्हें तुर्की के हाथों मरने के लिए अकेला छोड़ दिया. रजब तैय्यब एर्दोआन फ्रांसीसी राष्ट्रपति की इसी खरी सोच से खार खाये बैठे हैं. वे कुर्दों को बिल्कुल पसंद नहीं करते.
एर्दोआन चाहते हैं कि उत्तरी सीरिया के कुर्दों की ‘वाईपीजी’ मिलिशिया के पूरी तरह सफ़ाये में नाटो उसी तरह तुर्की का हाथ बंटाये, जिस तरह तालिबान और सद्दाम हुसैन से लड़ने में उसने अमेरिका का साथ दिया था. दूसरी ओर, माक्रों की शिकायत है कि बगदादी की ख़लीफ़त के इस्लामी आतंकवादियों से लड़ने में अब तक जो सफलता मिली थी, वह उत्तरी सीरिया में कु्र्दों के विरुद्ध तुर्की के सैन्य अभियान से ख़तरे में पड़ गयी है.
ट्रंप से और भी शिकायत है
माक्रों को नाटो के मुखिया और अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से एक और शिकायत है - वे कब क्या कह बैठेंगे और क्या कर बैठेंगे, कोई नहीं जानता. उन्होंने ही कहा था कि तुर्की ने यदि उत्तरी सीरिया के कुर्दों पर हमला किया, तो उसकी ‘’अर्थव्यवस्था को तहस-नहस’’ कर दिया जायेगा. कुछ दिन बाद उन्होंने ही तुर्की को वहां अपने सैनिक भेजने की अनुमति भी दे दी. इसके बाद नाटो के अन्य देश सकते में आ गये कि यदि तु्र्की और सीरिया के बीच इस वजह से लड़ाई छिड़ती है, और नाटो की संधि के अनुच्छेद पांच की दुहाई देते हुए तुर्की पूरे नाटो गठबंधन से साथ देने की मांग करता है, तब क्या होगा! एर्दोआन के विस्तारवादी अहम की तुष्टि के लिए कोई दूसरा नाटो देश अपने साधनस्रोतों की बलि नहीं देना चाहता.
ट्रंप से नाटो के सभी नेता परेशान
ट्रंप द्वारा तुर्की को सीरिया में हस्तक्षेप करने की अनुमति देने और मनमौज़ी ढंग से कभी दायें तो कभी बायें चलने से नाटो गठबंधन के सभी नेता परेशान हैं. ट्रंप ने एक समय नाटो को फ़ालतू बताते हुए कहा था कि वह तो ‘अप्रासंगिक’ हो गया है, अमेरिका पर बहुत बड़ा आर्थिक बोझ बन गया है. लेकिन अब उनका कहना है कि नाटो अच्छा काम कर रहा है. उसके सदस्य देशों को अपना रक्षा-बजट बढ़ाकर उसे अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के कम से कम दो प्रतिशत के बराबर लाना चाहिये.
फ्रांसीसी राष्ट्रपति की शिकायत मुख्य रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति से ही थी. नाटो के ‘दिमाग़ी तौर पर मृत’ होने का रूपक वे कई बार दोहरा चुके हैं. उनका कहना है कि वे इस अतिरंजना के द्वारा नाटो को जगाना चाहते हैं. जानना चाहते हैं कि नाटो का भविष्य आख़िर है क्या? उसका साझा शत्रु भला है कौन? यह नहीं हो सकता कि हम हमेशा यूरीपीय रक्षा-बजटों को बढ़ाने की अमेरिकी मांगों को लेकर ही बातें करते रहें. नाटो की 70वीं जयंती को मनाने के लिए लंदन में हुए शिखर सम्मेलन के दौरान इमानुएल माक्रों ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि (नाटो में) हमारे साथी अब समझ रहे हैं कि हमें अब अपने रणनीतिक लक्ष्यों के बारे में बात करनी चाहिये. मैंने अस्पष्टताओं और दोगलेपन के बारे में जो कुछ कहा है, उस पर पूरी तरह अटल हूं.’
‘मैं यूरोपीय संप्रभुता में विश्वास रखता हूं’
माक्रों ने अमेरिका पर यह आरोप भी लगाया कि उसने नाटो के अपने यूरोपीय साथियों से पूछे बिना ही रूस के साथ मध्यम दूरी के प्रक्षेपास्त्रों के परिसीमन की संधि का अंत कर दिया. अमेरिका ने इस बात की कोई परवाह नहीं की कि इस संधि का यूरोप की सुरक्षा से सीधा संबंध है. माक्रों ने मांग की कि रूस के साथ संवाद फिर से शुरू किया जाना चाहिये. रूस के साथ संबंधों के ‘हिमयुग’ से यूरोप में स्थिरता बढ़ी नहीं है. ‘मैं क्योंकि यूरोपीय संप्रभुता में विश्वास रखता हूं’ माक्रों का कहना था, ‘इसलिए मेरा मानना है कि हमें सुरक्षा और आपसी विश्वास के एक यूरोपीय वास्तुशिल्प की ज़रूरत है.’
माक्रों ने यह भी बल देकर कहा कि वे (इस्लामी) आतंकवाद को यूरोप का मुख्य शत्रु मानते हैं और चाहते हैं कि आतंकवाद की कोई ऐसी साझी परिभाषा तय की जानी चाहिये, जिसे नाटो के सभी देश मानें. यह मांग उन्होंने संभवतः इसलिए की कि तुर्की जिन कुर्दों को आतंकवादी कहता है, ठीक उन्हीं कुर्दों ने इस्लामी ख़लीफ़त वाले आतंकवादियों से लड़ने में पश्चिमी देशों के लिए अपना ख़ून बहाया. माक्रों यह भी चाहते हैं कि यूरोप को अपनी रक्षा स्वयं करने के लिए भी सक्षम बनना चाहिये.
डोनाल्ड ट्रंप ने तुर्की का बचाव किया
अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपनी तरह से इन आरापों से तुर्की का बचाव किया. डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उत्तरी सीरिया से अमेरिकी सैनिकों को हटाने के बारे में तुर्की के साथ सहमति ने बहुत अच्छा काम किया. इस्लामी ख़लीफ़त के मुखिया अबू बकर अल बगदादी को मारने के अभियान में भी तुर्की ‘बहुत सहायक रहा.’
अमेरिका ही नहीं, नॉर्वे के प्रधानमंत्री रह चुके नाटो के महासचिव येन्स स्टोल्टनबेर्ग ने भी माक्रों से असहमति जताते हुए कहा, ‘’यूरोपीय संघ यूरोप की रक्षा नहीं कर सकता. यूरोपीय एकता एटलांटिक-पारीय एकता का स्थान नहीं ले सकती.’’ यानी, यूरोप को अपनी आत्मरक्षा के लिए एटलांटिक महासागर के पश्चिमी तट पर बसे अमेरिका की हमेशा ज़रूरत पड़ेगी.
अमेरिका के बिना यूरोप असहाय
नाटो के महासचिव का यह कहना सरासर ग़लत भी नहीं है. अमेरिकी सहायता के बिना पश्चिमी यूरोपीय देश न तो दोनों विश्वयुद्ध जीत पाये होते और न ही यूरोपीय संघ 1990 वाले दशक में युगोस्लाविया के गृहयुद्ध का वैसा अंत कर पाता, जैसा आधा दर्जन देशों में उसे बांटने के लिए वह चाहता था. यूरोपीय संघ अपने आप को चाहे जितना महान समझे, अमेरिका के बिना वह किसी युद्ध का निपटारा नहीं कर पाता.
हालांकि यूरोप की रक्षा और उसमें नाटो की भूमिका के प्रश्न पर नाटो के यूरोपीय देश दो खेमों में बंटे दिखे. पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देश कुल मिलाकर फ्रांस के राष्ट्रपति से सहमत लगे. जबकि भूतपूर्व सोवियत संघ की छत्रछाया भुगत चुके पूर्वी यूरोप के भूतपूर्व कम्युनिस्ट देश उनसे असहमत दिखे. एस्तोनिया के प्रधानमंत्री यूरी रातास ने कहा, ‘एटलांटिक-पारीय रिश्ते एटलांटिक महासागर के दोनों ओर की सुरक्षा के आधारस्तंभ हैं.’ पड़ोसी देश लिथुआनिया के राष्ट्रपति गितानास नाउसेदा का मत था कि यूरोप के लिए ख़तरा ‘केवल आतंकवाद की तरफ से ही नहीं, मॉस्को की तरफ़ से कहीं अधिक है.’ उनके विचार से दुनिया उतनी सरल नहीं है, जितना हम चाहते हैं.
तुर्की के राष्ट्रपति की धमकी
रजब तैय्यब एर्दोआन धमकी दे रहे थे कि यदि उन्हें कुर्दों की पार्टी ‘पीकेके’ और उत्तरी सीरिया की कुर्द मिलिशिया ‘वाईपीजे’ से लड़ने में नाटो की सहायता नहीं मिली, तो तुर्की पूर्वी यूरोप के देशों की रक्षा के लिए नाटो की योजनाओं में सहभागी नहीं बनेगा. एर्दोआन इन दोनों कुर्द संगठनों को आतंकवादी बताते हैं. बाल्टिक सागरीय देशों की रक्षा के लिए नाटो को नयी योजनाएं इसलिए बनानी पड़ रही हैं, क्योंकि अमेरिका और रूस के बीच का मध्यवर्ती दूरी वाला परमाणु अस्त्र परिसीमन समझैता ‘आईएनएफ़’ पहले अमेरिका ने और बाद में रूस ने भी रद्द घोषित कर दिया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने लंदन में घोषित किया कि वे रूस के साथ, और हो सका तो चीन को भी मिलाते हुए, एक नया निरस्त्रीकरण समझौता करना चाहते हैं. इस समझौते में परमाणु प्रक्षेपास्त्रों के परिसीमन का भी प्रावधान होगा. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन से वे इस बारे में बात कर चुके हैं. ट्रंप के ही शब्दों में, ‘उनकी (पूतिन की) इसमें भारी दिलचस्पी है. हमारी भी भारी दिलचस्पी है. यह एक प्रकार का ऐसा परमाणु अस्त्र समझौता होगा, जो संभतः कभी चीन को भी अपने दायरे में लायेगा.’
रक्षा ख़र्च बढ़ाने का बार-बार आग्रह
डोनाल्ड ट्रंप ने यूरोपीय देशों को एक बार फिर याद दिलाया कि उन्हें अपने रक्षा बजट को बढ़ाकर अपनी जीडीपी के दो प्रतिशत के बराबर करना है. यानी नाटो के बजट के लिए और अधिक पैसा देना है. यह मांग बराक ओबामा भी किया करते थे, किंतु ट्रंप जैसी हठधर्मिता के साथ नहीं. यूरोपीय सरकारों का सिरदर्द यह है कि उनकी जनता सेना के लिए ख़र्च बढ़ाना कतई पसंद नहीं करती.
लंदन शिखर सम्मेलन की समापन घोषणा में पहली बार उभरती हुई नयी सैनिक महाशक्ति चीन की ओर से हो सकने वाले ख़तरों के प्रति भी आगाह किया गया है. घोषणा में कहा गया है, ‘हम देख रहे हैं कि चीन का बढ़ता हुआ प्रभाव और उसकी विदेशनीति अवसर भी प्रदान करती है और चुनौतिया भी हैं, जिनसे एक गठबंधन के तौर हमें मिलकर निपटना होगा.’
नाटो का 5जी डर
यह भी कहा गया है कि 5जी कहलाने वाला नया मोबाइल दूरसंचार मानक नाटो गठबंधन के लिए बड़ी समस्या बन सकता हैः ‘चीन की ह्वावे कंपनी इस नयी तकनीक में सबसे अग्रणी है. हम पाते हैं कि हमें एक सुरक्षित प्रतिरोधी तकनीक अपनाने की ज़रूरत है.’ नाटो को डर है कि ह्वावे की तकनीक अपनाने पर चीन को नाटो देशों की जासूसी करने की कुंजी मिल जायेगी.
सम्मेलन से पहले और उसके दौरान भी नाटो के महासचिव येन्स स्टोल्टनबेर्ग ने कहा कि टहमें अंतरिक्ष को भी रणभूमि के तौर पर देखना चाहिये...अपने बचाव और दूसरों को डराने के लिए अंतरिक्ष का उपयोग अपरिहार्य है.’ उनका कहना था कि इस समय विभिन्न देशों के क़रीब 2000 सक्रिय उपग्रह अंतरिक्ष में पृथ्वी के चक्कर लगा रहे हैं. उनमें से लगभग आधे नाटो के सदस्य देशों के हैं. नाटो को उनकी रक्षा करनी होगी.
अंतरिक्ष बनेगा रणभूमि
नाटो का मानना है कि वे उपग्रह, जो सैन्य कार्रवाइयों के समय संचार-संपर्क, नेविगेशन (मार्गदर्शन) और रॉकेटों की टोह लगाने के काम आते हैं, उनकी रक्षा सबसे ज़रूरी है. नाटो के दायरों में इस बात पर चिंता व्यक्त की जा रही है कि अमेरिका के बाद अब रूस, चीन और भारत ने भी अंतरिक्षयुद्ध की क्षमताएं प्राप्त कर ली हैं. वे इन क्षमताओं को निरंतर सुधार और बढ़ा रहे हैं.
भारत ने 2019 के आरंभ में अपने ही एक उपग्रह को उपग्रह-भेदी रॉकेट से ध्वस्त कर देने का जो सफल परीक्षण किया था, नाटो में उसे गंभीरतापूर्वक नोट किया गया है. 1970 और 1990 वाले दशकों में नाटो ने अपने भी कई सैन्यसंचार उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित किये थे. अब वह अपने अलग उपग्रह भेजने के बदले सदस्य देशों के उपग्रह इस्तेमाल करता है.
इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि जुलाई 2019 में फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने घोषित किया था कि फ्रासीसी वायुसेना के अंतर्गत एक अंतरिक्षयात्रा इकाई का गठन किया जा रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अगस्त में सैनिकों के एक ‘अंतरिक्ष कमांडो’ का शुभारंभ किया. उन्होंने कहा कि यह कमांडो दस्ता सुनिश्चित करेगा कि अंतरिक्ष में अमेरिकी वर्चस्व को कोई आंच न पहुंचे. अंतरिक्ष युद्ध की इन तैयारियों को देखते हुए भारत ने जो उपग्रह-भेदी परीक्षण किया, उसे अत्यंत सामयिक और दूरदर्शितापूर्ण कहा जाना चाहिये.
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