राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर कोटपूतली तहसील के कई गांव धूल के गुबार में ढके नज़र आते हैं. यहां सड़क पर दौड़ते ट्रकों और दिन-रात चलते स्टोन क्रशर्स की कर्कश आवाज़ के पीछे बीमार और परेशान जनता की कराहें छुपी हैं. हाइवे से लगे चोटिया की ढाणी गांव में हमारी मुलाकात 25 साल के रामप्रसाद और उनके साथी महेन्द्र मीणा से होती है.
‘हमें लगातार 15 साल हो गये यहां पर धूल-मिट्टी खाते हुये. यहां बस चारों ओर स्टोन क्रशर ही हैं जिन्होंने हमें घेर रखा है. न यहां पर फसल होती है और न हम लोग सांस ले सकते हैं’ रामप्रसाद बताते हैं.
कोटपूतली के दर्जनों गांव आज अवैध खनन की मार झेल रहे हैं. नियमों को ताक पर रखकर की जा रही स्टोन क्रशिंग की वजह से यहां प्रदूषण का स्तर सामान्य से कई गुना अधिक रहता है. सत्याग्रह ने जयपुर और सीकर ज़िले में पड़ने वाले कई गांवों का दौरा किया जहां लोग दमघोंटू हवा में सांस लेने को मजबूर हैं.
‘शाम होती है तो इन स्टोन क्रशर्स से चलने वाली धूल चारों ओर छा जाती है. इसका गुबार हमारे गांव को ढक लेता है और हम लोग सांस भी नहीं ले सकते. यहां बच्चों को बहुत ज्यादा तकलीफ है. पिछले एक साल में 4-5 लोगों की मौत अस्थमा और टीबी जैसी बीमारियों से हो चुकी है.’ रामप्रसाद ने हमें बताते हैं
रामप्रसाद हमें आसपास के गांवों में बीमार लोगों से भी मिलवाते हैं. कोटपूतली में रहने वाले 40 साल के लक्ष्मीचंद पिछले डेढ़ साल से छाती में दर्द और सांस की तकलीफ का इलाज करवा रहे हैं. लेकिन बीमारी है कि उनका पीछा ही नहीं छोड़ रही. ऐसे कई बीमार इन गांवों में हैं और उनकी संख्या बढ़ती जा रही है.
भारत के प्रतिष्ठित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की रिपोर्ट कहती है कि प्रति लाख मौतों में वायु प्रदूषण से मरने वालों की गिनती करें तो राजस्थान इस मामले में अव्वल नंबर पर है. आईसीएमआर ने पिछले साल दिसंबर में जो रिपोर्ट जारी की उसके मुताबिक साल 2017 में पूरे देश में कुल 12.4 लाख लोग वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से मरे. राजस्थान में यह संख्या 90.5 हजार रही. यहां की हर एक लाख आबादी में से 112.5 लोगों की जान जाने के लिये वायु प्रदूषण ज़िम्मेदार रहा. यह पूरे देश में एक रिकॉर्ड है.

आईसीएमआर के अलावा लांसेट और स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (एसओजीए) की रिपोर्ट भी वायु प्रदूषण से भारत में मौतों की संख्या को सालाना 10 लाख से ऊपर ही बताती हैं. लांसेट काउंडडाउन की ताज़ा रिपोर्ट में आने वाले दिनों में इस ख़तरे के और बढ़ने की चेतावनी दी गई है. ज़ाहिर है राजस्थान जैसे राज्यों में वायु प्रदूषण कई गुना गंभीर खतरे पैदा कर रहा है.
‘दिल्ली से बुरे हाल में हैं हम’
दीवाली के बाद से राजधानी में वायु प्रदूषण के बढ़े स्तर को लेकर ख़ूब चर्चा हुई और दिल्लीवासियों की परेशानी सुर्खियों में है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण के बढ़े स्तर के बाद केंद्र और राज्यों को फटकार लगाते हुये कहा, ‘लोग घुट-घुट कर क्यों जियें? विस्फोटकों से उड़ाकर एक बार में ही खत्म कर दें किस्सा’
लेकिन सच्चाई यह है कि समस्या सिर्फ दिल्ली में नहीं है बल्कि उत्तर भारत के कई शहरों और ग्रामीण इलाकों में अलग-अलग वजहों से प्रदूषण हानिकारक स्तर पर रहता है. आंकड़े बताते हैं कि भारत की 90% से अधिक आबादी ऐसी हवा में सांस लेती है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के हिसाब से सुरक्षित नहीं है. दुनिया के 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं.
कोटपूतली के 90 से अधिक गांवों जैसा हाल ही यहां से कुछ दूरी पर बसी नीम का थाना तहसील का भी है. यह सीकर ज़िले में पड़ती है. यहां टोडा गांव में फौज से रिटायर हुये हरी सिंह अपने साथियों के साथ पिछले चार सालों से साफ हवा और पानी की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं.
‘हमें इस धरने पर बैठे 1500 से अधिक दिन हो गये हैं. दिल्ली में बड़े अफसर और पैसे वाले लोग रहते हैं लेकिन हम लोग वहां से कई गुना अधिक प्रदूषण झेल रहे हैं. यहां हमारे गांवों में हवा ज़हरीली हो गई है और पानी भी इतना गंदा है कि आरओ इस्तेमाल करने का भी कोई फायदा नहीं है. हम इन्हीं अधिकारों की मांग को लेकर विरोध कर रहे हैं.’ हरी सिंह बताते हैं.
इस बात की पुष्टि तहसील के अन्य गांवों में घूमने पर भी होती है जहां तमाम लोग सांस से जुड़ी दिक्कतों की शिकायत करते हैं. ‘यहां इतनी धूल उड़ती है कि आप रह नहीं सकते. तकरीबन हर आदमी को दमे की शिकायत है’ 65 साल की संतोष देवी कहती हैं.

कोटपूतली के 90 से अधिक गांवों जैसा हाल ही यहां से कुछ दूरी पर बसी नीम का थाना तहसील का भी है. यह सीकर ज़िले में पड़ती है. यहां टोडा गांव में फौज से रिटायर हुये हरी सिंह अपने साथियों के साथ पिछले चार सालों से साफ हवा और पानी की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं.
‘हमें इस धरने पर बैठे 1500 से अधिक दिन हो गये हैं. दिल्ली में बड़े अफसर और पैसे वाले लोग रहते हैं लेकिन हम लोग वहां से कई गुना अधिक प्रदूषण झेल रहे हैं. यहां हमारे गांवों में हवा ज़हरीली हो गई है और पानी भी इतना गंदा है कि आरओ इस्तेमाल करने का भी कोई फायदा नहीं है. हम इन्हीं अधिकारों की मांग को लेकर विरोध कर रहे हैं.’ हरी सिंह बताते हैं.
इस बात की पुष्टि तहसील के अन्य गांवों में घूमने पर भी होती है जहां तमाम लोग सांस से जुड़ी दिक्कतों की शिकायत करते हैं. ‘यहां इतनी धूल उड़ती है कि आप रह नहीं सकते. तकरीबन हर आदमी को दमे की शिकायत है’ 65 साल की संतोष देवी कहती हैं.
राजस्थान के इन गांवों की अर्थव्यवस्था पशुपालन पर निर्भर रही है लेकिन अरावली में अवैध खनन और स्टोन क्रशर्स की वजह से पशुओं के चरागाहों पर या तो कब्ज़ा हो रहा है या फिर वे बंजर हो रहे हैं. हरीसिंह और उनके साथी सवाल उठाते हैं कि अगर चरागाह नहीं रहेंगे तो लोग पशुओं को कैसे जीवित रखेंगे और अगर पशु नहीं रहे तो ग्रामीणों का जीवन कैसे चलेगा.
‘दिल्ली में लोगों को इंसान समझा जाता है लेकिन सरकार हम लोगों को शायद पशु समझती है इसलिये हमारे जीवन का कोई मोल नहीं है’ हरीसिंह के साथ धरने पर बैठे उनके एक साथी कहते हैं.
खनन विस्फोटकों से घर को नुकसान
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तय नियमों के मुताबिक माइनिंग और स्टोन क्रशर्स रेड कैटेगरी उद्योगों में रखे गये हैं. इनके लिये सख्त नियम हैं जिनके तहत रिहायशी इलाकों के पास माइनिंग या क्रशिंग की इजाज़त नहीं है. राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के निर्देश के मुताबिक कोई भी क्रशिंग यूनिट आबादी और हाइवे से कम से कम डेढ़ किलोमीटर दूर होनी चाहिये.

इसके बावजूद नीम का थाना से लगी अरावली की पहाड़ियों में तीन साल पहले तक पत्थर निकालने के लिये विस्फोट किये जाते रहे. खनन सुरक्षा निदेशालय के आदेश के बाद अब ब्लास्टिंग रोक दी गई है. लेकिन इस इलाके के कई घरों पर पड़ी दरारें आज भी साफ देखी जा सकती हैं. ग्रामीण इस नुकसान के लिये बड़े पैमाने पर की गई ब्लास्टिंग को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
भराला गांव में 55 साल के प्रकाश सिंह अपने घर की दरारें दिखाते हुये कहते हैं, ‘जब यहां खनन के लिये ब्लास्टिंग की जाती थी तो गांव में भूकंप सा आ जाता था. यह नुकसान उसी (ब्लास्टिंग) की देन है. हमें डर है कि यह फिर शुरू होगा क्योंकि खनन कंपनियां दोबारा इसे शुरू करने की कोशिश में हैं.’
सिंह की तरह दर्जनों परिवारों ने इस संवाददाता को अपने घरों को हुआ नुकसान दिखाया. ‘ब्लास्टिंग से यहां होने वाले वायु प्रदूषण के अलावा हमारे घरों के गिरने का ख़तरा भी रहा है. इस खौफ में कई बार हमें घर छोड़कर जाना भी पड़ा क्योंकि कई मकान काफी पुराने हो चुके हैं’ भराला के ही राजेन्द्र अपने घर को हुये नुकसान को दिखाते हुए बताते हैं.
कभी न खत्म होने वाला संघर्ष
भराला गांव के निवासी 53 साल के कैलाश मीणा अवैध खनन के खिलाफ करीब डेढ़ दशक से लड़ रहे हैं और उन पर कई हमले हो चुके हैं. उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा. लेकिन मीणा के मुताबिक उनके पास लड़ने के अलावा कोई दूसरा कोई रास्ता नहीं है.
‘हम शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध कर रहे हैं. मुझे 15 साल हो गये इस लड़ाई को लड़ते हुये. हमारे कई साथियों की जान भी गई है. कभी हमें लगता है कि यह कभी न खत्म होने वाला संघर्ष है लेकिन यह हमारे लिये जीने-मरने का सवाल भी है’ मीणा कहते हैं.

मीणा हमें रामदास की बणी में ले जाते हैं जोकि एक संरक्षित वन क्षेत्र है. यहां ब्लास्टिंग से बिखरे पत्थर अब भी पड़े हैं. अरावली की पहाड़ियों में हुए धमाकों से टूटकर आये इन पत्थरों का वजन एक किलो से 10-15 किलो तक है.
‘यह पूरा इलाका पशुओं की चरागाह है जो यहां के लोगों के जीवन का आधार है. लेकिन जहां इतने बड़े पत्थर छिटक कर आते हों वहां कौन इंसान या जानवर आयेगा?’ कैलाश मीणा सवाल उठाते हैं.
हवा और जंगलों को नुकसान पहुंचाने के अलावा स्टोन क्रशर्स की वजह से यहां की ऐतिहासिक कृष्णावती (कासावती) नदी भी खत्म हो रही है. टपकेश्वर धाम के पास दो पहाड़ियों के बीच बहने वाली कृष्णावती एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है लेकिन अब इस पर भी संकट छा गया है.

25 साल के महेश सैनी युवाओं में प्राकृतिक संसाधनों और मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का अभियान चलाते हैं. उनका आरोप है कि कंपनियों की प्रशासन से मिलीभगत है. इसके चलते कंपनियों ने नदियों के बहाव और जलागम क्षेत्र को लेकर राजस्थान हाइकोर्ट के ही महत्वपूर्ण आदेश की अनदेखी कर दी है.
‘कासावती इस क्षेत्र की एक बरसाती नदी है और हमारे लिये बहुत अहम है. यहां पर दर्जनों क्रशर्स लगे हैं जिन्होंने इस नदी के बहाव को पूरी तरह अवरूद्ध कर दिया है. इससे यहां पर भू-जल स्तर और गिरने के साथ जलसंकट बढ़ने का खतरा है’ सैनी कहते हैं.
ध्यान हटते ही टूटती हैं गाइडलाइंन
दस्तावेज बताते हैं कि प्रशासन को इस क्षेत्र में हो रहे गैरकानूनी खनन और क्रशिंग की पूरी जानकारी है. इसी साल 15 अक्टूबर को नीम का थाना के एसडीएम ने सीकर के कलक्टेर को पत्र लिखा जो ‘खनन माफियाओं द्वारा ग्रामीणों को झूठे मुकदमों में फंसाने की धमकी एवं ग़लत तथ्यों के आधार पर आवंटित खनन पट्टों की जांच’ को लेकर है.

लेकिन हमने इस बारे में सीकर के जिलाधिकारी यज्ञ मित्र सिंह देव से सवाल किया तो उन्होंने व्यस्तता का हवाला देकर जवाब देने से मना कर दिया. राजस्थान सरकार के एक आला अधिकारी ने इस बात को माना कि नीम का थाना और कोटपुतली क्षेत्र में वायु प्रदूषण ‘बड़े स्तर पर’ है और स्टोन क्रशर्स बार-बार निर्देश जारी किये जाने के बावजूद नियमों का उल्लंघन करते हैं. इस अधिकारी ने बताया कि ‘अधिकारियों का ध्यान हटते ही’ गाइडलाइंस को तोड़ना आम बात बन गई है.
उधर राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की सदस्य सचिव शैलजा डोवल कहती हैं, ‘हमारा काम वायु प्रदूषण पर निगरानी रखना है. हम क्रशिंग यूनिट्स को विंड ब्रेकिंग वॉल बनाने, पानी का छिड़काव करने और नियमों के पालन के लिये लगातार निर्देश देते हैं. जब स्टोन क्रशर्स की शिकायत आती है तो तुरंत कार्रवाई की जाती है. जितना किया जा सकता है हम करने की कोशिश कर रहे हैं.’
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