‘द जंगल बुक’ रचने वाले मशहूर लेखक रुडयार्ड किपलिंग ने अपनी एक कविता में कहा था कि ‘द फीमेल ऑफ स्पीशीज इज मोर डेडली दैन द मेल.’ इसका भावार्थ यह हुआ कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा खतरनाक, साहसी या ताकतवर होती हैं. इसका एक उदाहरण नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ जारी प्रदर्शनों में भी देखने को मिला. देश भर में चल रहे इन प्रदर्शनों में महिलाओं ने न सिर्फ बराबरी से भाग लिया है बल्कि पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा बुलंदी से आवाज उठाती भी नज़र आईं. क्रिएटिव नारों से भरी तख्तियां लेकर आंदोलन करती महिलाओं की तस्वीरें और वीडियो देश के अलग-अलग कोने से सोशल मीडिया पर आए और खूब वायरल हुए.
Amazing energy at August Kranti Maidan in Mumbai. Haven’t seen this in decades! pic.twitter.com/72nFxzZ4Zx
— Kalpana Sharma (@kalpana1947) December 19, 2019
अगर आंदोलन की शुरूआत यानी जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में हुए विरोध प्रदर्शन की बात करें तो वह तस्वीर सबसे पहले दिमाग में आती हैं जिसमें कई लड़कियां एक लड़के को चारों ओर से घेरकर उसे पिटने से बचाने की कोशिश कर रहीं हैं. इसके अलावा भी छात्र रैलियों में लड़कियां क्रिएटिव स्लोगन से भरे बैनर थामे आगे-आगे चलती दिखाई दीं और मौका मिलने पर उतने ही जोश के साथ उन्होंने अपनी बात भी रखी. उदाहरण के तौर पर जामिया विश्वविद्यालय की छात्राओं सृजन चावला और भूमिका सरस्वती का यह वीडियो देखा जा सकता है.
Students of MCRC, #JamiaMilia -Srijan Chawla and Bhumika Saraswati describe what they saw last evening. Both the girls say students did not indulge in violence. Spoke to them just now at the ongoing protests against #CitizenshipAmendmentAct #CABProtests pic.twitter.com/xlnUqjEfB6
— Shweta Bajaj (@ShwetaBajaj) December 16, 2019
बेहद सामान्य घरों से आने वाली ऐसी छात्राओं में जामिया विश्वविद्यालय से ही लॉ की पढ़ाई कर रही अनुज्ञा भी हैं. हॉस्टल और यूनिवर्सिटी में बिगड़े हालात पर मीडिया से बात करते हुए अनुज्ञा इतनी विचलित थीं कि कैमरे पर भी उनके आंसू बह रहे थे लेकिन इसके बावजूद वे अपना विरोध पूरी मजबूती से दर्ज करवाने से नहीं चूकीं. अनुज्ञा जब चीखकर कहती हैं कि ‘मैं तो हिंदू हूं अंकल लेकिन फिर भी मैं हमेशा फ्रंट रो में खड़ी रही हूं’ तो इस बात का यकीन सा होने लगता है कि इस देश में धर्मों के आपसी ताने-बाने को उधेड़ पाना इतना भी आसान नहीं है. वे लड़कियां जिन्हें भारत में अपने लिए भी खड़े होना नहीं सिखाया जाता, किसी और के लिए इतनी हिम्मत से अपनी बात कहें तो भारतीयता की बुनावट को बारीक और मजबूत ही समझा जाना चाहिए.
जामिया विश्वविद्यालय पर हुई पुलिस कार्रवाई के अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में जिक्र किया था कि हिंसा करने वालों को उनके कपड़ों से पहचाना जा सकता है. छात्र समुदाय ने उनकी इस टिप्पणी पर भी उतने ही रचनात्मक तरीके से नारजगी जताई. इस दौरान हिज़ाब में एक लड़की की तस्वीर खासी वायरल हुई जिसके हाथ में दिख रही तख्ती पर लिखा कि ‘मोदी जी मेरा नाम इंदुबाला है, मुझे मेरे कपड़ों से पहचानिए.’
इसी तरह की एक और तस्वीर में हिज़ाब के साथ बिंदी लगाए हुए एक लड़की नज़र आई जिसकी तख्ती पर लिखा है कि ‘आपको मेरे हिज़ाब से ज्यादा नाराज़गी है या हिज़ाब के साथ बिंदी लगाने से.’ यह साफ है कि इस तस्वीर में लड़की न सिर्फ सरकार पर बल्कि बेवजह फतवा निकालने वाले इस्लामिक संगठनों पर भी तंज कर रही थी. इस तरह यह मौका लड़कियों के लिए अपने चेहरे, अपनी पहचान और अपनी आवाज के साथ सामने आने का भी था.
विरोध प्रदर्शनों में महिलाओं के आगे आकर अपनी बात कहने को इस तरह से भी देखा जा सकता है कि आम तौर पर पुलिस उन पर इतनी जल्दी बल प्रयोग नहीं करती है. इसलिए वे सार्वजनिक जगहों पर खुद को ज्यादा सशक्त महसूस करती हैं और ज्यादा आक्रामक हो सकती हैं. लेकिन इसे दूसरी तरह से देखा जाए तो इसका एक पक्ष यह भी है कि किसी भी तरह की हिंसा भड़कने पर महिलाओं को न सिर्फ उससे खतरा होता है बल्कि वे यौनहिंसा और दूसरी तरह की प्रताड़नाओं का शिकार भी हो सकती हैं. हमारा सामाजिक हिसाब-किताब इतना बिगड़ा हुआ है कि किसी महिला का चेहरा पहचान में आने पर, कभी भी वह राह चलते हुए, कुछ और न सही तो वह फिकरेबाज़ी का ही शिकार हो सकती है. महिलाओं के सामने आने वाली ऐसी तमाम छोटी-बड़ी मुश्किलों के चलते उनके घर से बाहर निकलने जैसी छोटी सी कोशिश भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. जबकि यहां तो यह पूरा आंदोलन ही मानो उनके द्वारा ही संचालित हो रहा था.


सीएए का विरोध करने वाली महिलाओं में कुछ ऐसी भी थीं जो अपने कामकाज छोड़कर विरोध करने तो पहुंची ही लेकिन उससे पहले लोगों को साथ लाने की कोशिशों में भी लगी रहीं, उन्हें यह समझाते हुए कि क्यों उन्हें इनका विरोध क्यों करना चाहिए. बीते हफ्ते ट्विटर पर मुंबई लोकल के महिला कोच में महिलाओं से एनआरसी पर बात करती एक लड़की का वीडियो खासा वायरल हुआ था. इस वीडियो में लड़की सीएए के असंवैधानिक होने और व्हाट्सएप फारवर्ड पर भरोसा ना करने की बात कहती नज़र आ रही है.
बैंगलोर से भी एक ऐसी ही युवा लड़की का एक वीडियो चर्चा में रहा था जिसमें वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह को संबोधित कर इस कानून का विरोध करती नज़र आई थीं. नागरिकों के गुस्से का जिक्र करने वाला यह वीडियो (नीचे) दिल्ली का है जिसमें एक महिला भारतीय नागरिक होने का मतलब समझाती नज़र आ रही है. इस वीडियो की खास बात यह है कि जब वह धाराप्रवाह बोल रही है तो उसके पीछे खड़े एक व्यक्ति के चेहरे पर कई तरह के एक्सप्रेशंस आते-जाते दिखाई दे रहे हैं. बहुत सीधेपन और मासूमियत के साथ सिर हिलाते इस मुस्लिम व्यक्ति को देखकर लगता है जैसे उसके मन की बात कही जा रही है और शायद उसका सिर हिलाना ही इस महिला के शब्दों को सार्थकता दे देता है.
Do listen. #CAAProtest #CABProtests pic.twitter.com/XXj6mEnzKo
— Mohammed Zubair (@zoo_bear) December 18, 2019
सीएए का विरोध करने वाली महिलाओं की फेहरिश्त में पांडिचेरी और जाधवपुर यूनिवर्सिटी की उन छात्राओं को भी शामिल किया जा सकता है. जिन्होंने अपने दीक्षांत समारोह के मंच का इस्तेमाल सीएए का विरोध करने के लिए किया. पांडिचेरी विश्वविद्यालय से रबीहा अब्दुर्रहीम ने मास कम्युनिकेशन में एमबीए किया है और उन्हें उनके ही दीक्षांत समारोह से तब तक बाहर रखा गया जब तक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद वहां पर मौजूद थे. इस दौरान रबीहा ने हिज़ाब पहन रखा था और ऐसा माना जा रहा है कि यही उनके साथ हुए भेदभाव की वजह बना. राष्ट्रपति के जाने के बाद वे दोबारा समारोह में शामिल तो हुईं लेकिन अपना गोल्ड मेडल लेने से इंकार कर दिया. रबीहा के मुताबिक ऐसा उन्होंने अपने साथ हुए भेदभाव और नए नागरिकता कानून पर अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए किया.
इसी तरह का एक उदाहरण कोलकाता की जाधवपुर यूनिवर्सिटी में भी देखने को मिला जहां देबोस्मिता चौधरी ने दीक्षांत समारोह के मंच पर जाकर नए नागरिकता कानून की प्रति फाड़ी और इंकलाब ज़िंदाबाद का नारा लगाया. यह बताता है कि सामान्य तरीके न हासिल होने पर ये लड़कियां हर जगह, हर मौके, हर मंच का इस्तेमाल अपना प्रतिरोध प्रदर्शित करने के लिए करना जानती हैं. शायद उन्हें मिलने वाले सीमित मौकों के चलते, ऐसा करना अब उनकी आदत में शुमार हो चुका है. यह अच्छा है कि जिन तरीकों का इस्तेमाल अब तक महिलाएं केवल अपने भले की बातों के लिए कर रही थीं, उनका अब देश के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है.
It is these women who are revolutionizing India
— Comrade Rinse Kurian (@rinse_kurian) December 24, 2019
After receiving the gold medal at the #JadavpurUniversity Convocation. #DebsSmitaChaudhary tore the Citizenship Law Amendment (CAA) on stage. #NRC_CAA_Protest @ComradeMallu pic.twitter.com/ea8pOs1Ng5
आखिर में सना गांगुली और ट्विंकल खन्ना के नाम लिये जा सकते हैं. बीते हफ्ते अचानक बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली की बेटी सना गांगुली तब चर्चा में आ गईं, जब उन्होंने इंस्टाग्राम पर मशहूर लेखक खुशवंत सिंह की किताब ‘द एंड ऑफ़ इंडिया’ का एक अंश शेयर किया. इसमें फासीवादी शासन का जिक्र किया गया था जिसे लोगों ने मोदी सरकार और एनआरसी विरोध से जोड़कर देखा. किसी भी राजनीतिक मुद्दे से दूरी बनाकर रखने वाले सौरव गांगुली ने इस पर बचाव की मुद्रा अपनाते हुए कहा कि सना अभी छोटी हैं और राजनीति नहीं समझती हैं.
सना जहां अपने पिता से अलग विचार रखती नज़र आईं थीं वहीं अभिनेत्री और लेखिका ट्विंकल खन्ना भी अपने पति अक्षय कुमार से उलट दिशा में जाती हुई दिखाई दीं. यह बात जगजाहिर है कि अक्षय कुमार भाजपा सरकार के बड़े समर्थक और प्रधानमंत्री के मुरीद हैं. लेकिन ट्विंकल ने न सिर्फ जामिया में हुई पुलिस कार्रवाई का विरोध किया बल्कि बिना किसी भेदभाव वाले लोकतांत्रिक मूल्यों की वकालत करती हुई भी नज़र आईं. यहां पर यह बात साफ तौर पर नज़र आती है. सना के पिता और ट्विंकल के पति जहां संभावित-अपेक्षित राजनीतिक फायदों के लिए या फिर किसी तरह के विवाद से बचने के लिए, इन महत्वपूर्ण मुद्दों से दूरी बनाते दिखे, वहीं इन महिलाओं ने जो उन्हें सही लगा बिना डर के कहा.
That was last week and now add oppressing the voices of our students by using violence and we have crawled even further into the dark tunnel. I stand by a secular, democratic India where peaceful dissent is our… https://t.co/wiZVSq71Nc
— Twinkle Khanna (@mrsfunnybones) December 17, 2019
और हां, यह कहने की तो जरा भी ज़रूरत नहीं है कि यह हौसला हर उम्र की महिलाओं ने दिखाया है.
Lail-in-Nisa, 85-years-old has come in #Jamia protest. She says, never saw this hatred before in this country where she’s living since 1958. Asked till when will she continue protest, she says, “ jab tak jaan hain” (Till there is life in me. ) #CAB_NRC #Delhiprotests pic.twitter.com/0cTBxVWEs7
— Rahiba R. Parveen (@RahibaParveen) December 19, 2019
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