सोने की तस्करी की बात चलने पर 70 के दशक की फिल्में याद आती हैं. इनमें अक्सर नायक के पास एक अनजाना फोन आता था और उसे सूचना दी जाती थी कि आज फलां जगह समुद्र के किनारे सोना उतरने वाला है. नायक वहां चटपट पहुंचता था और उसकी खलनायकों से मुठभेड़ होती थी. उसके बाद वह तस्करी का लाया गया सोना जब्त कर लेता था. 70 के दशक में भारत की अर्थव्यवस्था खुली नहीं थी और मुंबई जैसे समुद्र के किनारे बसे शहर सोने की तस्करी का बड़ा केंद्र हुआ करते थे.

1991 में उदारीकरण के बाद अर्थव्यवस्था खुली और खुले व्यापार में सोने की तस्करी की चर्चा कम होने लगी. लेकिन, बीते कुछ सालों में फिर से भारत में सोने की तस्करी के मामले बढ़े हैं. डायरेक्टरेट ऑफ रेवन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) ने इस साल देश के लगभग हर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से बड़ी मात्रा में तस्करी करके भारत लाया जा रहा सोना पकड़ा. आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा वित्तीय वर्ष में डीआरआई ने अब तक इस तरह से भारत लाया जा रहा करीब 1400 किलोग्राम सोना पकड़ा है. 2018-19 में तस्करी के रास्ते आ रहा करीब 4000 किलोग्राम (चार टन) सोना पकड़ा गया था, जिसकी कीमत लगभग 1265 करोड़ रुपये बताई गई थी.

सोने की तस्करी से जुड़े ये आंकड़े काफी बड़े तो हैं. लेकिन, ये भारत में सोने की तस्करी की पूरी तस्वीर साफ नहीं करते हैं. डीआरआई के अधिकारी खुद मानते हैं कि जब्त किया गया सोना तस्करी के रास्ते भारत में आ रहे कुल सोने का सिर्फ 10 फीसदी ही है. यानी कि डीआरआई की मानें तो भारत में तस्करी के रास्ते इस समय कम से कम 10 हजार करोड़ रुपये का सोना हर साल लाया जा रहा है. हालांकि असोसियेशन ऑफ गोल्ड रिफाइनर्स और मिंट्स के मुताबिक यह आंकड़ा इससे काफी बड़ा है. उसके मुताबिक भारत में हर साल 30 से 40 हजार करोड़ का सोना तस्करी के जरिये आता है.

लेकिन इसकी वजह क्या है? भारत, सोना तस्करी का हब क्यों बनता जा रहा है? इसकी एक वजह तो यह है कि भारत एक आभूषण प्रिय देश है और यहां सोने की मांग बराबर बनी रहती है. दूसरा, भारत सोने के आभूषणों को बनाने का एक बड़ा केंद्र भी है. इसके चलते पूरी दुनिया में इधर से उधर होने वाले सोने में से एक तिहाई की आवाजाही भारत से होती है. लेकिन, ये दोनों बातें तो कम-ज्यादा हमेशा ही रही हैं. फिर हाल के कुछ सालों में सोने की तस्करी तेजी से क्यों बढ़ रही है?

मेरठ के सर्राफा बाजार के एक कारोबारी नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में सोने की तस्करी बढ़ने की बड़ी वजह सोने पर बढ़ाया गया आयात शुल्क है. वे कहते हैं, ‘सोने पर पहले दस फीसद का आयात शुल्क था जो अपने आप में पहले से ही ज्यादा था. उसके बाद सरकार ने इसे बढ़ाकर 12.5 फीसद कर दिया है. ऊंचे आयात शुल्क के कारण कारोबारियों को सोना लगातार महंगा पड़ रहा है और उनका मुनाफा घट रहा है. ऐसे में तस्करी के जरिये आना वाला सोना सस्ता पड़ता है. इसलिए सोने की तस्करी तेजी से बढ़ी है.’

एक अन्य कारोबारी बताते हैं कि अगर एक एसाइनमेंट पर आयात शुल्क के दस लाख रुपये भी बच जाते हैं तो बेचने वाले से लेकर फुटकर में सोना खरीदने वालों तक सभी को लाभ होता है. वे आगे कहते हैं कि इससे कारोबारी की लागत घट जाती है और वह आभूषणों या आर्डर पर थोड़ा ज्यादा मुनाफा कमा लेता है.

लेकिन, यह तरीका गलत है और इससे सरकार को राजस्व का नुकसान होता है? इस सवाल पर स्वर्ण कारोबारी सरकार की नीतियों को ही जिम्मेदार ठहराते हैं. उनका कहना है कि सोने पर 12.5 फीसद का आयात शुल्क तर्कसंगत नहीं है. सरकार ने टैक्स इतना ऊंचा कर रखा है कि साफ-सुथरा कारोबार करने वाले भी तस्करी का सोना बेचने वाले एजेंट्स से सोना खरीदने को मजबूर हैं. कारोबारी इसकी वजह यह बताते हैं कि सोने की कीमतें पूरी दुनिया में बढ़ीं हैं. उसके ऊपर इतना ऊंचा आयात शुल्क पर आभूषणों की लागत बहुत ज्यादा बढ़ा देता है. ऐसे में सोने की बिक्री में काफी कमी आई है जिसके चलते तस्करी के सोने की मांग सर्राफों की तरफ से भी बढ़ी है.

तस्करी के सस्ते सोने की मांग बढ़ने के कारण सोने के पेशेवर तस्करों के अलावा आम लोग भी इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं. कस्टम अधिकारी भी मानते हैं कि सोने की तस्करी में सामान्य यात्रियों का इस्तेमाल बढ़ा है. देश में सोने की तस्करी का स्तर इस बात से भी समझा जा सकता है कि पिछले दिनों चेन्नई एयरपोर्ट पर एक ही फ्लाइट के 29 लोगों को एक साथ सोने के साथ पकड़ा गया था.

सोने की ऊंची कीमतें, उस पर और ऊंचा आयात शुल्क इसकी तस्करी बढ़ने की सबसे बड़ी वजह है. सर्राफा कारोबारियों के अलावा कर अधिकारी भी इससे सहमति जताते हैं. लेकिन, सोने के धंधे से जुड़े कुछ जानकार इसकी कुछ और भी वजहें बताते हैं. इन जानकारों का कहना है कि भारत में सोने की मांग इसके आभूषणों की मांग, इनकी मैन्युफैक्चरिंग और इसमें निवेश तीनों से जुड़ी हुई है. इसलिए इसकी कीमतें स्थानीय स्तर पर कुछ ऊंची रहती ही हैं. शादी-ब्याह के सीजन में ये कीमतें और ऊंची हो जाती हैं. ऐसे में सोने का प्रवाह कम कीमत वाले देशों से भारत जैसे ऊंचे कीमत वाले देशों की तरफ बढ़ता है.

जानकार बताते हैं कि इस समय मध्य-पूर्व के देशों से भारत में तस्करी के जरिये खूब सोना आ रहा है. इसकी वजह यह है कि भारत और मध्य-पूर्व के देशों में एक तोले सोने (दस ग्राम) की कीमत में तीन से चार हजार रुपये का फर्क है. डीआरआई के आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते नजर आते हैं. देश के विभिन्न हवाई अड्डों पर पकड़े गए स्मग्लिंग के सोने में से ज्यादातर मध्य-पूर्व के देशों से ही आ रहा था.

मध्य-पूर्व के के अलावा भारत में सोना तस्करी के कुछ और बहुत पुराने रास्ते भी हैं. कर अधिकारियों के मुताबिक, इन रास्तों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है और इन पर रोक लगा पाना बेहद मुश्किल है. म्यांमार सीमा के जरिये अभी भी भारत में बड़े पैमाने पर सोने की तस्करी हो रही है. इसकी एक वजह तो यह बताई जाती है कि म्यांमार में भी सोने की कीमतें भारत की तुलना में कम है. दूसरे, म्यांमार सीमा के रास्ते भारत में सोना लाकर फिर उसे सड़क के रास्ते दिल्ली, मुबंई और कलकत्ता जैसे केंद्रों पर पहुंचाना आसान है. म्यांमार की सीमा उत्तर-पूर्व के कई राज्यों से जुड़ी है. उत्तर-पूर्व में लंबे समय तक अशांति के कारण यहां हथियार तस्करी के कई रास्ते बन गए. बाद के दिनों में यही रास्ते सोने की तस्करी के लिए भी इस्तेमाल किए जाने लगे. डीआरआई के अधिकारियों के मुताबिक, म्यांमार सीमा से सबसे पहले यह सोना इंफाल आता है. इसके बाद इसे सड़क मार्ग के जरिये दिल्ली और कलकत्ता जैसे शहरों में भेजा जाता है.

मेरठ सर्राफे के सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली में तस्करी के इस रास्ते आना वाला सोना चांदनी चौक में बड़ी मात्रा में खरीदा जाता है फिर एजेंट्स के जरिये इन्हें फुटकर तौर पर सर्राफा कारोबारियों को बेचा जाता है. म्यांमार के अलावा श्रीलंका, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के रास्ते भी बड़ी मात्रा में सोना त़स्करी के द्वारा भारत लाया जाता है. जाहिर है कि इस वजह से सरकार को हर साल हजारों करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होता है. लेकिन कारोबारियों का कहना है कि वैध तरीके से कारोबार को मुश्किल कर देने पर ही अवैध रास्ते खुलते हैं. आयात-निर्यात में यह सामान्य समझ है कि किसी भी चीज पर आयात शुल्क बढ़ा देने से उसकी तस्करी की आशंका बढ़ जाती है.

फिर सरकार सोने पर आयात कर की दरें कम क्यों नहीं करती? क्या सरकार सोने पर आयात कर की दरें बढ़ाकर अपना राजस्व बढ़ाना चाहती है?

आयात कर की दर बढ़ने से राजस्व बढ़ता है, यह सामान्य गणित है. लेकिन सरकारी अधिकारियों का इस बारे में कहना यह है कि सरकार आयात करों की ऊंची दरों के जरिये सोने के आयात को कम करना चाहती है. ताकि, इसमें निवेश घटे और अर्थव्यवस्था के अन्य उत्पादक क्षेत्रों में निवेश बढ़े. माना जाता है कि सोने पर किये जाने वाले निवेश में बड़ी मात्रा में काला धन भी रहता है. इसलिए सरकार ने सोने पर कर की दरों को ऊंचा किया हुआ है.

हालांकि जानकारों का मानना है कि यह बात सिद्दांतत: तो ठीक लगती है, लेकिन इसका व्यवहार में बहुत असर पड़ता हो ऐसा नहीं है. इनका मानना है कि भारत सोने की शाश्वत मांग वाला देश है और यहां इसकी मांग में रातों-रात कमी नहीं की जा सकती. सोने के आयात और उसके निवेश में कमी एक व्यापक और लगातार नीति से ही संभव है. सिर्फ कर दरें बढ़ा देने से वैध तरीके से आने वाला सोना महंगा हो जाता है. जिससे कई बार उसके आयात में कमी मालूम होती है. लेकिन, उसकी भरपाई तस्करी के रास्तों से हो जाती है.

ऐसे हालात में सोनो की स्मग्लिंग को हतोत्साहित करने के लिए सरकार को अपनी नीतियों पर मंथन करना होगा. इसमें सोने पर आयात कर की ऊंची दरों पर पुनर्विचार के साथ-साथ स्वर्ण उद्योग की जरूरतों को समझना भी शामिल है.