स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने उन लोगों के नाम बताने से इनकार कर दिया है जिन्होंने चुनावी बॉन्ड स्कीम के तहत अब तक इलेक्शन में चंदा देने के लिये एक करोड़ मूल्य वर्ग (डिनॉमिनेशन) वाले बॉन्ड खरीदे हैं. महत्वपूर्ण है कि केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने दो दिन पहले ही केंद्र सरकार से यह बताने को कहा था कि किसने चुनावी बॉन्ड स्कीम में दानकर्ता की गोपनीयता की मांग की थी.

पारदर्शिता और जवाबदेही के लिये काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से चार सवाल पूछे थे. इन सवालों में बैंक द्वारा दो जनवरी 2018 के बाद से अब तक बेचे गये कुल चुनावी बॉन्ड, उनकी कुल कीमत, एक करोड़ मूल्य वर्ग (डिनॉमिनेशन) वाले कुल बॉन्डों की संख्या और उन्हें खरीदने वाले लोगों के नाम पूछे गये. ये सवाल उन्होंने एसबीआई की 29 शाखाओं से पूछे थे.

29 में से 23 शाखाओं ने जवाब दिया. इसमें बताया गया कि 5936.7 करोड़ रु कीमत के कुल 11,770 बॉन्ड अब तक बेचे गये हैं. इनमें से 5463 बॉन्ड एक करोड़ डिनॉमिनिशन के हैं. यानी चंदे में दी गई कुल रकम का 92 फीसदी एक करोड़ रु के बॉन्डों से दिया गया. बैंक की छह शाखाओं ने अभी जवाब नहीं भेजा है.

एसबीआई की सभी शाखाओं ने दानकर्ता की गोपनीयता को वजह बताकर जानकारी नहीं दी. उन्होंने इसके लिये आरटीआई क़ानून की 8-1(ई) और 8-1-(जे) धाराओं का हवाला दिया. सत्याग्रह से बात करते हुये अंजलि भारद्वाज ने कहा, ‘जब सरकार चुनावी बॉन्ड स्कीम का खाका तैयार कर रही थी तो पहले इस स्कीम के शुरुआती प्रारूप में यह तय किया गया था कि बॉन्ड किसने खरीदे यह जानकारी सूचना अधिकार के दायरे से बाहर रखी जायेगी. लेकिन हम जानते हैं कि स्कीम के आखिरी प्रारूप (ड्राफ्ट) में यह प्रावधान नहीं है. इसे हटा दिया गया. इससे साफ है कि हमने जो सूचना मांगी वह क़ानून के दायरे में आती है.’

महत्वपूर्ण है कि आठ जनवरी को केंद्रीय सूचना आयोग ने सरकार को यह बताने का निर्देश दिया था कि चुनावी बॉन्ड स्कीम के ज़रिये दानदाताओं का नाम गोपनीय रखने की मांग किसने की थी. सीआईसी ने इस पर कड़ी नाराज़गी ज़ाहिर की थी कि इस संबंध में लगाए गए आरटीआई के अधूरे जवाब दिये जा रहे हैं. आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक की याचिका पर सूचना आयुक्त सुरेश चंद्रा ने वित्र मंत्रालय के आर्थिक और राजस्व विभाग के साथ चुनाव आयोग के जन सूचना अधिकारियों को नोटिस जारी किया था. इसमें कहा गया था कि 30 दिन के भीतर पूरी जानकारी न देने की वजह से क्यों न उन पर जुर्माना लगा दिया जाये.

मोदी सरकार द्वारा जनवरी 2018 में लॉन्च की गई चुनाव बॉन्ड स्कीम के तहत किसी भी व्यक्ति, संस्था, एनजीओ या कॉरपोरेट द्वारा इलेक्शन डोनेशन के लिये पांच अलग-अलग डिनॉमिनेशन के बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं. यह बॉन्ड एक हज़ार, 10 हज़ार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ मूल्य वर्ग के हैं. हालांकि इस स्कीम के तहत दिये जाने वाले कुल चन्दे की कोई सीमा नहीं है.

सामाजिक कार्यकर्ता अमृता जौहरी का कहना है कि बैंक दानकर्ताओं के नाम न बताने के जो कारण दे रहा है वह सही नहीं है. वे कहती हैं, ‘आरटीआई क़ानून में यह साफ है कि अगर मांगी गई जानकारी व्यापक जनहित में है तो उसे बताया जाना चाहिये.’, वे आगे जोड़ती हैं, ‘आज चुनाव पैसे का खेल बन गया है और एक करोड़ के बॉन्ड खरीदने वाले या तो बड़े उद्योगपति होंगे या प्रभावशाली लोग जो चुनाव के बाद सरकार की नीतियों पर असर डाल सकते हैं. इसलिये इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.’

अंजलि भारद्वाज के आरटीआई आवेदन से मिली जानकारी बताती है कि सबसे अधिक बॉन्ड एसबीआई की मुंबई मुख्य शाखा ने बेचे जिनकी कुल कीमत 1879 करोड़ रु थी. इसमें चंदे के लिये 95 फीसदी रकम एक करोड़ डिनॉमिनेशन वाले बॉन्ड से खरीदी गई. उसके बाद कोलकाता, दिल्ली और हैदराबाद की शाखाओं का नंबर है. यहां भी 90 फीसदी से अधिक डोनेशन रकम के लिये एक करोड़ रु से अधिक वाले बॉन्ड खरीदे गये.

चुनाव में पारदर्शिता के लिये काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के मुताबिक अब तक 6,128 करोड़ रु के 12,000 से अधिक बॉन्ड खरीदे जा चुके हैं. वित्त वर्ष 2018-19 में बॉन्ड के ज़रिये जो कुल चंदा दिया गया उसका करीब 60 फीसदी बीजेपी को मिला.

चुनावी बॉन्ड का मामला काफी विवादों में रहा है. हालांकि सरकार कहती रही है कि इस स्कीम से चुनाव में काले धन को रोकने में मदद मिली है. इसी महीने सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई है. और उधर एसबीआई सोमवार से चुनावी बॉन्ड की एक और खरीद विंडो शुरू कर रहा है. इसमें 13 जनवरी से 22 जनवरी तक चुनाव बॉन्ड खरीदे जा सकेंगे. एडीआर के संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर कहते हैं, ‘सीआईसी के ताज़ा निर्देश के बाद बैंकों को चंदा देने वालों के नाम ज़रूर बताने चाहिये. उन्हें नाम बताने भी पड़ेंगे लेकिन वे नाम छुपा रहे हैं इससे साफ है कि इसमें कुछ न कुछ गड़बड़झाला ज़रूर है.’