बजट की चर्चाओं में आयकर सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाली चीज होती है. शनिवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लंबे बजट भाषण के बाद भी ऐसा ही हो रहा है. लेकिन यह चर्चा उससे अलग है जो आम तौर पर आम बजट से पहले या बाद में होती है. अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने आयकर को लेकर जो प्रस्ताव पेश किए वे एक तरह से चौंकाने वाले हैं. आयकर के स्लैब में बदलाव एक पुरानी मांग थी. वित्त मंत्री ने इस बार इनमें बदलाव की घोषणा की है. लेकिन इसके साथ यह शर्त भी जोड़ दी है कि इस नई व्यवस्था में आप किसी तरह की छूट का लाभ नहीं ले सकते. अगर आप छूट चाहते हैं तो आपको पुरानी दरों से ही आयकर चुकाना पड़ेगा. फिलहाल इसे लेकर सुर्खियां कुछ इस तरह की हैं कि ‘मध्यम वर्ग को आयकर में बड़ी राहत’, ‘आयकर की व्यवस्था को सरल किया गया’. अगर बहुत गहराई में गए बिना सिर्फ नए टैक्स स्लैब की दरों को देखें तो ऐसा लगता भी है. लेकिन, सरकार ने आयकर भरने की यह जो दोहरी व्यवस्था की है, वह क्या वाकई उतनी ही सीधी और सरल है जितनी उसे हेडलाइंस में बताया जा रहा है. इस सवाल का जवाब बेहद जटिल है.
पहले तो यह समझ लेते हैं कि वित्त मंत्री ने बजट भाषण में आयकर को लेकर क्या प्रस्ताव किए हैं. वित्त मंत्री ने आयकर के नए टैक्स स्लैब की घोषणा करते हुए कहा कि पांच लाख रूपये तक की आय पर कोई इनकम टैक्स नहीं देय होगा. 5 -7.5 लाख रूपये की आय पर कर की दर 20 से घटाकर 10 फीसद करने की घोषणा की गई है. 7.5 से 10 लाख रुपये की कमाई पर कर की दर 20 के स्थान पर 15 फीसद होगी. 10 से 12.5 लाख रूपये पर 30 के स्थान पर 20. और इसी तरह 12.5 से 15 लाख की कमाई पर भी आयकर की दर 30 से घटाकर 25 फीसद कर दी गई है. 15 लाख से ऊपर की कमाई पर टैक्स की दर पहले जैसे ही 30 फीसद रखी गई है. लेकिन, आयकर की इन नई स्लैब्स के साथ एक शर्त यह भी रखी गई है कि इसमें किसी किस्म की छूट का दावा नहीं कर सकते. यानी नए स्लैब का लाभ उठाने के लिए बीमा, निवेश, घर का किराया, बच्चों की स्कूल फीस आदि जैसे मदों के एवज में इन्कम टैक्स में मिलने वाली छूट को छोड़ना होगा. पहले टैक्स भरते हुए इन सभी चीज़ों की जानकारी देने पर टैक्स में छूट मिला करती थी.
#Budget2020
— PIB India (@PIB_India) February 1, 2020
Finance Minister #NirmalaSitharaman announces big relief for taxpayers; new tax rates made optional.
Check out⬇️ the new #IncomeTax rates.#janjankabudget pic.twitter.com/opywLQ774c
यह तो एक बात हो गई. इस नये प्रस्ताव के साथ वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि अगर कोई आयकर में छूट के प्रावधान चाहता है तो उसे पुराने टैक्स स्लैब के दर से ही अपना कर चुकाना पड़ेगा. यानी कि मान लीजिए कि किसी नौकरीपेशा की आय आठ लाख रूपये सालाना है. अगर वह बिना किसी छूट के दावे के आयकर देने का फैसला करता है तो उसे ढाई से पांच लाख के बीच पांच फीसद और उससे ऊपर ऊपर की आय पर 15 फीसद की दर से टैक्स चुकाना पड़ेगा. लेकिन अगर वह बीमा और हाउस लोन जैसी सुविधाओं के जरिये छूट चाहता है तो उसे पांच लाख से ऊपर की आय पर 20 फीसद की दर से टैक्स चुकाना होगा. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में इस व्यवस्था को आयकर ढांचे को सरल करने के तौर पर बताया. लेकिन, क्या यह दोहरी व्यवस्था वाकई सरल है.
आम आयकर दाता की उलझन तो नहीं बढ़ जाएगी
सबसे पहले तो आयकर देने की इस दोहरी व्यवस्था में आम आयकरदाता के सामने यह सवाल खड़ा हो जाएगा कि मैं किस नियम के तहत अपना टैक्स अदा करूं. बिना किसी छूट का दावा किए वह विकल्प चुनूं जिसमें आयकर की दरें कम है या मैंने जो बचत, बीमा और हाउस लोन ले रखा है उस पर छूट का दावा करते हुए ज्यादा रेट वाला स्लैब चुनूं. वित्त मंत्री ने कहा कि वह आयकर का ऐसा सीधा स्लैब प्रस्तुत कर रही हैं कि आपको अपने आयकर की गणना के लिए किसी आर्थिक सलाहकार की जरूरत नहीं हैं. उनका इशारा था कि अगर आप आयकर में किसी छूट का दावा नहीं कर रहे हैं तो सीधे अपनी आय के दायरे से अपने आयकर का प्रतिशत निकाल लीजिए. लेकिन, क्या आर्थिक मामलों में ऐसा होता है. इस नई व्यवस्था से यह होगा कि आयकर दाता को अपने आर्थिक सलाहकार से पहला सवाल तो यही पूछना पड़ेगा कि वह किस व्यवस्था से आयकर चुकाए, जिससे उसे फायदा हो.
जीवन बीमा या पीपीएफ जैसी बचत स्कीमें लंबी अवधि के लिए होती हैं. बहुत से लोगों ने इन योजनाओं में बड़ा निवेश इसलिए भी कर रखा है कि उन्हें आयकर पर छूट मिले. अब बहुत से लोगों को सामने यह उलझन खड़ी हो जाएगी कि इन निवेशों को चालू रखते हुए टैक्स में छूट ली जाए या इन्हें बंद कर कम दरों पर टैक्स चुकाया जाए. जाहिर है कि यह दोहरे विकल्प की व्यवस्था एक सामान्य आर्थिक समझ वाले शख्स के लिए उलझन ही पैदा करेगी. एक कंपनी में नौकरी करने वाले सचिन शर्मा कहते हैं, ‘आयकर की यह नई व्यवस्था मेरी समझ में तो नहीं आ रही है. मेरी सालाना सीटीसी करीब सात लाख रूपये है. बजट में टैक्स की दरें तो कम की गईं हैं. लेकिन मैंने एक हाउस लोन ले रखा है अगर उस पर मुझे आयकर में छूट नहीं मिलेगी तो कम रेट पर भी इनकम टैक्स चुकाकर बात तो वहीं आ जाएगी. मुझे तो इन कम दरों का कोई खास फायदा नहीं मिलेगा.’
नोएडा के चार्टर्ड एकाउंटेंट विपिन गुप्ता कहते हैं, ‘आयकर के स्लैब में जिस तरह के बदलाव किए गए हैं और फिर उसके साथ कोई छूट न मिलने की शर्त लगा दी गई है. वह कान को घुमाकर पकड़ने जैसी बात है.’ वे कहते हैं कि औसतन आठ से दस लाख की सालाना कमाई वाले लोग छूट का लाभ लेकर ज्यादा दरों पर आयकर भरें या बिना छूट लिए कम दरों पर आयकर भरें, उनके टैक्स पर बहुत थोड़ा ही फर्क पड़ेगा. वे कहते हैं कि बच्चों की फीस, हाउस लोन की ईएमआई जैसे खर्च कोई एकाएक तो बंद नहीं कर सकता ऐसे में वह छूट लेकर ज्यादा स्लैब में टैक्स चुकाए या बिना छूट लिए कम टैक्स स्लैब में बात लगभग बराबर ही रहेगी.
बजट में आयकर अदा करने के इन दो तरीकों के समर्थन में कहा जा रहा है कि इससे यह फायदा होगा कि जिस साल आपको नकद की जरूरत हो आप बिना बचत किए भी कम टैक्स अदा कर सकते हैं. क्योंकि ऐसे में आपको कम दर पर टैक्स देना होगा. और जिस साल आप बचत करना चाहें तो आप बचत पर आयकर में छूट का सहारा ले सकते हैं. लेकिन, क्या यह वाकई इतना आसान होगा. आदमी में बचत और निवेश के प्रति एक सतत और दीर्घकालीन प्रवृत्ति होती है और आयकर की नई व्यवस्था इसके उलट ही दिखती है.
इसके अलावा यह अभी स्पष्ट नहीं है कि अगर आपने आयकर अदा करने का एक विकल्प चुन लिया है तो आप आगे दूसरे विकल्प पर कैसे और कब जा सकते हैं. मान लीजिए अगर ऐसा भी होता है कि आप हर साल टैक्स देने का बचत में छूट या बिना छूट का विकल्प चुन सकते हैं तो भी क्या यह मुश्किलें पैदा नहीं करेगा. मसलन आप जीवन बीमा और मेडिक्लेम की किश्त हर साल चुकाते हैं तो क्या एक साल टैक्स छूट के लिए उसका लाभ लेंगे और एक साल नहीं लेंगे. और ऐसा होने पर आयकर रिटर्न दाखिल करना जो अभी भी एक जटिल काम है और जटिल नहीं हो जाएगा. इसके अलावा आयकर विभाग भी इन सबका दस्तावेजीकरण कैसे करेगा, यह अलग सवाल है.
अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा
आर्थिक जानकार यह मान रहे हैं कि आयकर की नई व्यवस्था ऐसी है जो बचत को प्रोत्साहित नहीं करती है. आर्थिक जानकार मानते हैं कि सरकार ने इनकम टैक्स की दरें कम की हैं, लेकिन उसमें किसी प्रकार की छूट न देने का फैसला किया है, उससे पहले से ही कम बचत और कम होगी. सीए विपिन गुप्ता कहते हैं कि आम तौर पर लोग जीवन बीमा की पहली पॉलिसी या पीपीएफ अकाउंट तब खरीदते हैं जब वे आयकर के दायरे में आने लगते हैं. बचत की इस कोशिश के पीछे आयकर बचाने की कोशिश भी होती है. लेकिन, टैक्स स्लैब कम होने पर इस प्रवृत्ति में कमी आएगी. आर्थिक जानकारों का मानना है कि इस किस्म के नियम जीवन बीमा के बिजनेस पर बड़ा असर डाल सकते हैं. आयकर के प्रावधानों के बाद शेयर बाजार तेजी से इसलिए भी लडखड़ायें हैं क्योंकि शायद उन्होंने इस बात को पकड़ा है कि आयकर के नए नियम से बीमा और हाउस लोन सेक्टर को झटका लग सकता है, क्योंकि अगर हाउस लोन पर आयकर में छूट नहीं मिलेगी तो बहुत सारे लोग नए घर खरीदने से बचेंगे. यानी यह रियल एस्टेट पर भी फर्क डाल सकता है.
टैक्स की दरें कम की गई हैं, यह बात सही है. लेकिन, इससे आयकर की व्यवस्था सरल हुई है यह कहना सही नहीं है. अब वास्तव में आयकर की पुरानी और नई व्यवस्था दोनों को एक साथ देखा जाए तो साल में पंद्रह लाख तक कमाने वाले आदमी के लिए उसने आयकर स्लैब की संख्या आठ कर दी है. जिसमें कुछ छूट के साथ हैं और कुछ छूट के बिना. आयकरदाता अपनी जरूरत, बचत भविष्य की योजनाओं के साथ किस का चयन करे यह प्रश्न अब पहले से ज्यादा जटिल बन गया है.
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