नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम यानी एनसीएपी को लॉन्च करने के एक साल बाद अब केंद्र सरकार ने बजट में कहा है कि वायु प्रदूषण से लड़ने के लिये इस वित्त वर्ष में वह 4,400 करोड़ रुपये खर्च करेगी. पिछले साल यानी 2019 की जनवरी में मोदी सरकार ने लंबे इंतज़ार के बाद नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम शुरू किया और 2019-20 के बजट में देश के करीब 100 शहरों की हवा को साफ करने के लिये 300 करोड़ देने की बात भी कही. आज देश के 122 शहर नेशनल क्लीन एय़र प्रोग्राम का हिस्सा हैं जिन्हें 2024 तक अपने शहर की हवा की गुणवत्ता को 20 से 30 प्रतिशत सुधारना है. इनमें से 100 से अधिक शहरों ने एक्शन प्लान तैयार कर लिया है.
महत्वपूर्ण है कि वित्तमंत्री ने शनिवार को जब बजट भाषण में प्रदूषित हवा से लड़ने के लिये करीब साढ़े चार हज़ार करोड़ रुपये देने का ऐलान किया तो नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम जैसी किसी योजना का नाम नहीं लिया. वित्तमंत्री ने कहा कि यह पैसा 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में हवा की क्वालिटी सुधारने के लिये है. गौरतलब है कि अभी तमाम कमियों और विवादों के बावजूद नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम ही वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए एकमात्र ढांचागत सरकारी प्रोग्राम है. जानकार यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार को यह स्पष्ट नहीं करना चाहिये था कि इस रकम के आवंटन और योजनाओं के क्रियान्वयन का रोडमैप क्या होगा?
इससे भी बड़ी एक और बात है जिस पर सवाल उठाये जा रहे हैं. निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए 4400 करोड़ रुपये खर्च करेगी. लेकिन पर्यावरण मंत्रालय का कुल बजट ही सिर्फ 3100 करोड़ रुपये है. वैसे एयर क्वालिटी सुधारने की ज़िम्मेदारी कई मंत्रालयों में बंटी हुई है. इनमें प्रकाश जावड़ेकर की मिनिस्ट्री के अलावा वे मंत्रालय भी शामिल हैं जो प्रदूषण फैलाने वाले अलग-अलग कारकों से जुड़े हैं.
इन मंत्रालयों में कोयला मंत्रालय, पावर मिनिस्ट्री, नवीकरण ऊर्जा मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय (जिसके तहत स्मार्ट सिटी जैसे कार्यक्रम हैं) शामिल हैं. बजट में कोयला मंत्रालय को 882.62 करोड़, नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय के लिये 5753 और बिजली मंत्रालय (पावर मिनिस्ट्री) के लिये 15874.82 दिये गये हैं. इसके अलावा सड़क और भूतल परिवहन मंत्रालय के लिये 91823.22 करोड़ रुपये हैं.
इस धनराशि के अलावा सरकार मंत्रालयों के तहत काम करने वाली सरकारी कंपनियों को भी सीधे धनराशि मुहैय्या कराती है. जैसे कोयला मंत्रालय के तहत काम करने वाले एनसीएल इंडिया और कोल इंडिया जैसी कंपनियों के लिये कुल 18467 करोड़ रुपया बजट में आबंटित है. पावर मिनस्ट्री के तहत काम करने वाली एनटीपीसी समेत कुल नौ सरकारी कंपनियों के लिये सरकार ने बजट में 49968.65 करोड़ रखा है. इसी तरह साफ ऊर्जा मंत्रालय से जुड़ी सरकारी कंपनियों को 13726.74 करोड़ रुपया आवंटित किया गया है. सड़क और परिवहन मंत्रालय की पब्लिक सेक्टर कंपनियों को करीब 107500 करोड़ दिये जायेंगे.
जहां वन और पर्यावरण मंत्रालय का काम वायु प्रदूषण के खिलाफ जंग में लगी एजेंसियों के बीच समन्वय यानी तालमेल बनाना है वहीं दूसरे मंत्रालयों के ऊपर इसकी अलग-अलग वजहों पर काबू करने और पैसा खर्च करने की भी ज़िम्मेदारी है.
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के विश्लेषक सुनील दहिया कहते हैं, “रिपोर्ट्स बताती हैं कि हर साल हमारे देश में करीब दो लाख बच्चे वायु प्रदूषण से हो रही बीमारियों से मर जाते हैं. लेकिन वायु प्रदूषण को लेकर हमारी सरकारें कितनी गंभीर हैं इसका अंदाज़ा दिल्ली के मौजूदा चुनाव प्रचार से लग सकता है. जहां राजधानी और उससे सटे इलाकों में लोगों का दम घुट रहा है वहीं देश की राजनीतिक पार्टियां इस मुद्दे पर वोट ही नहीं मांग रही हैं. ऐसे में सरकार धन और संसाधनों के इस्तेमाल में कितनी ईमानदारी बरतती है इस पर हमारी नज़र रहेगी.”
जानकारों का कहना है कि प्रदूषण से निपटने के लिए धन से कहीं अधिक राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए. अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने पुराने कोयला बिजलीघरों का ज़िक्र किया जो स्वास्थ्य की दृष्टि से तय मानकों से कहीं अधिक उत्सर्जन कर रहे हैं. सीतारमण ने कहा कि ऐसे कोयला बिजलीघरों को बंद कर देना चाहिये. पहली नज़र में सरकार का यह रुख स्वागत योग्य है. लेकिन वित्तमंत्री का यह बयान पावर मिनिस्ट्री के रूख से मेल नहीं खाता. हमारे कोयला बिजलीघरों को 2015 में हानिकारक SO2 पर रोक लगाने के लिये टेक्नोलॉजी लगाने को कहा गया था. पिछले चार सालों में दो बार इसकी समय सीमा खत्म हो चुकी है लेकिन आज तक कोल पावर प्लांट्स ने यह टेक्नोल़ोजी नहीं लगाई है और पावर मिनिस्ट्री सख्त कदम उठाने के बजाय इन बिजलीघरों को शह दे रही है.
“लगता है कि वित्त मंत्रालय का कोयला और बिजली मंत्रालय से कोई नीतिगत तालमेल नहीं है. कोयला मंत्रालय को लगता है कि कोयला “भारत की आत्मा” है जबकि पावर मिनिस्ट्री कोयला बिजलीघरों पर सख्ती दिखाने के बजाय बार-बार SO2 एमीशन डिवाइस लगाने की समय सीमा बढ़ाने की बात करती है. भारत को समझना चाहिये कि लोगों की सेहत पर कुल खर्च, पावर प्लांट को अपग्रेड करने पर होने वाले खर्च से कई गुना अधिक है.” पर्यावरण पर काम कर रही संस्था क्लाइमेट ट्रेंड की निदेशक आरती खोसला कहती हैं.
वायु प्रदूषण आज सिर्फ एक पर्यावरण से जुड़ी समस्या ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य से जुड़े सबसे बड़े ख़तरों में भी सबसे बड़ा है. यह बात देश और दुनिया की कई वैज्ञानिक रिपोर्ट बता चुकी है कि हमारे देश में हर साल कम से कम 10 लाख लोग वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से मर रहे हैं. नवजात और स्कूली बच्चों पर इसकी चोट सबसे अधिक है. वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि वायु प्रदूषण के कारण सिर से पैर तक हर अंग की बीमारियां हो रही हैं.
उत्तर भारत के दर्जनों शहरों में लगभग पूरे साल एयर क्वॉलिटी इंडेक्स हानिकारक स्तर पर रहता है. दिल्ली जहां दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में है वहीं दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में कम से कम 20 भारत के हैं. आज दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई शहरों में सांस लेना सामान्य तौर पर दिन में 40 से 50 सिगरेट पीने के बराबर खतरनाक है. ऐसे में केंद्र सरकार की कथनी बजट में दिये गये आंकड़ों से कहीं आगे बड़ी कसौटी पर कसी जायेगी.
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