केंद्रीय बजट आ चुका है. सरकार का कहना है कि बजट में ग्रामीण भारत पर खास जोर दिया गया है और इसका असर दिखेगा. बजट में कृषि के लिए बहुत सारी बातें हुईं, लेकिन जिन घोषणाओं ने सुर्खियां बटोरीं उनमें से एक थी पिछले साल आम चुनाव से पहले शुरु की गई पीएम किसान योजना के लिए बजट का आवंटन. पिछले साल इसके लिए 75 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जबकि इस बार इसके लिए सिर्फ 54,370 करोड़ रूपये दिए गए हैं. पीएम किसान योजना के मद में कटौती चौंकाने वाली है. पिछले लोकसभा चुनाव से पहले इसके तहत सिर्फ छोटी जोत के किसानों को साल में तीन किश्तों में छह हजार रूपये की मदद देने की बात कही गई थी. लेकिन, लोकसभा चुनाव के बाद सरकार ने सभी किसानों को इसके दायरे में ला दिया है. सहज बुद्धि कहती है कि किसानों की संख्या बढ़ने के बाद इस योजना के लिए पैसे बढ़ने चाहिए थे, लेकिन इसके बदले पैसे घटा दिए गए हैं.
केंद्र सरकार का इस बारे कहना है कि कई राज्य सरकारों द्वारा किसानों की संख्या का आंकड़ा देने और उन्हें सत्यापित करने में देर हो रही है जिस वजह से इस मद में पिछले साल दी गई काफी रकम का इस्तेमाल नहीं हो सका. जैसे पश्चिम बंगाल सरकार ने अभी तक इस योजना की शुरुआत ही नहीं की है और इसको लेकर राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला जारी है. केंद्र सरकार का कहना है कि बाकी राज्य भी किसानों के पंजीकरण और उनके सत्यापन में देरी कर रहे हैं. अपरोक्ष रूप से जिन राज्यों में गैर भाजपा सरकारें हैं, उन पर कोताही का आरोप लगाया जाता है.
माना जाता है कि पीएम किसान योजना का सबसे ज्यादा लाभ उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों को हुआ है. पीएम किसान के मद में पैसे की कटौती और इसके तकनीकी लेखे-जोखे से अलग जाकर जमीनी पड़ताल करें तो इस बारे में कई दिलचस्प बातें पता चलती हैं. उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले की बदलापुर तहसील में एक गांव है फत्तूपुर. यहां के एक किसान मुलायम यादव बताते हैं कि उनके खाते में अब तक पीएम किसान की सभी किश्तें यानी छह हजार रूपये आ चुके हैं. लेकिन, वे यह भी जोड़ते हैं कि वे इस मामले में भाग्यशाली हैं और ऐसा सभी के साथ नहीं हुआ है. काफी लोगों को पहली किश्त मिलने के बाद फिर पैसा नहीं मिला है. इसकी वजह पूछने पर वे सत्यापन से जुड़ी दिक्कतें बताते हैं. उनके पड़ोस के गांव के बेचन अपने मोबाइल पर पीएम किसान की वेबसाइट का एक स्क्रीन शॉट दिखाते हुए बताते हैं कि उनके पिता जी के खाते में शुरुआत में दो बार पैसा आया फिर उसके बाद बंद हो गया. बेचन के मुताबिक, लेखपाल ने इसकी वजह यह बताई है कि खाता आधार से लिंक नहीं है. बेचन का कहना है कि वे कई बार आधार कार्ड जमा कर चुके हैं, लेकिन अभी तक सत्यापन नहीं हुआ है.

आस-पड़ोस के कई गांवों में लोगों से बातचीत करने पर करीब-करीब ऐसी ही बातें पता चलती हैं. कुछ किसानों को पीएम किसान की सभी किश्तें मिली हैं तो बहुतों की शुरुआती एकाध किश्त आने के बाद पैसे नहीं आए हैं. कुछ ऐसे भी हैं कि जिन्हें इस योजना का एक भी बार लाभ नहीं मिला है. जौनपुर के ऊदपुर गेल्हवा के चक्रधर त्रिपाठी कहतें हैं कि मुझे एक भी किश्त नहीं मिली है. इसकी वजह पूछने पर उन्होंने बताया कि कृषि विभाग के अधिकारी कहते हैं कि खतौनी में दर्ज नाम और बैंक पासबुक का नाम नहीं मिल रहा है. इसके सुधरने के बाद ही पैसा मिल सकेगा.
बाराबंकी के गांव लालपुर-राजपुर के किसान निदाघे के खाते में भी पीएम किसान की एक भी किस्त नहीं आई है. पीएम किसान की वेबसाइट पर उनके विवरण में पहली किस्त जारी होने की बात लिखी है, लेकिन उसके साथ रिमार्क लिखा है कि पेमेंट स्टॉप बाई स्टेट. बाराबंकी के समाजवादी पार्टी के एक स्थानीय नेता सरफराज़ कहते हैं, ‘लोकसभा चुनाव के समय बिना खातों के सत्यापन के पैसे जारी कर दिए गए. उसके बाद हरियाणा और झारखंड के चुनाव तक भी ढील रखी गई. लेकिन उसके बाद खातों के सत्यापन में सख्ती की गई तो पैसे आने बंद हो गए.’
इस बात में थोड़ा राजनीतिक तड़का जरूर है लेकिन, यह बात गलत नहीं है. क्योंकि पिछले साल नवंबर-दिसंबर से खातों के सत्यापन में तेजी आई है. मेरठ के एक गांव पावली खास के कई किसान बताते हैं कि उनके खाते में पैसे आने का मैसेज तो आ गया, लेकिन बाद में खाते के सत्यापित न होने के मैसेज के साथ पैसे वापस चले गए.
आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं. एक आरटीआई आवेदन के जवाब में कृषि विभाग द्वारा दी गई जानकारी बताती है कि पूरे देश के करीब 25 फीसद किसान ही अभी तक पीएम किसान योजना की सभी किश्तों का लाभ ले सके हैं. आंकड़े बताते हैं कि पीएम किसान की पहली किश्त के लिए देश भर में 8.80 करोड़ लाभार्थी चिन्हित किए गए जिनमें से 8.35 करोड़ को इसका लाभ मिला. दूसरी किश्त में लाभार्थियों की संख्या घटकर 7.51 करोड़ रह गई और तीसरी किश्त पाने वाले किसान 6.12 करोड़ ही रह गए. सत्यापन में सख्ती के साथ यह संख्या और घटी और चौथी किश्त पाने वालों की संख्या 3.01 करोड़ पर ही सिमट गई.
भाजपा के किसान मोर्चे से जुड़े एक नेता भी इस बात को मानते हैं. वे नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि ‘यह समस्या तो है, खातों के सत्यापन के बाद करीब तीस फीसद किसानों की किश्तें नियमित नहीं आई हैं. लेकिन, यह तकनीकी समस्या है, इसे सरकार की मंशा से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.’

लोकसभा चुनाव के बाद पीएम किसान योजना के दायरे में सभी किसानों के आने की वजह से माना जा रहा था कि इससे करीब 14.5 करोड़ किसानों को लाभ होगा. जबकि अब तक इस योजना के तहत सिर्फ 9.5 करोड़ किसानों का ही सत्यापन हुआ है. हालांकि, बंगाल के किसानों के शामिल होने के बाद यह संख्या बढ़ जाएगी. लेकिन, फिर भी 14.5 करोड़ के आकलन से यह संख्या काफी पीछे रह जाती है.
एक सरकारी रिपोर्ट कहती है कि छह फरवरी 2020 तक रजिस्टर्ड किसानों और लाभार्थी किसानों की संख्या में 1.16 करोड़ का अंतर था. इसमें यह भी पेंच यह भी है कि इस रिपोर्ट में लाभार्थी किसे माना गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक जिसे एक भी किश्त मिल गई है, वह लाभार्थी है. यानी साफ है कि यह अंतर सही मायनों में 1.16 करोड़ से बड़ा है क्योंकि बड़ी संख्या में किसानों की तीसरी-चौथी किश्त नहीं आई है. उत्तर प्रदेश में ही पीएम किसान योजना की पहली किश्त का लाभ 2.01 करोड़ किसानों को मिला, लेकिन तीसरी किश्त आते-आते यह संख्या 1.49 करोड़ ही रह गई.
बाराबंकी की दरियाबाद तहसील में वकील राम सुमेर कहते हैं कि बहुत छोटी-छोटी गड़बड़ियों के कारण पैसा रूक रहा है. वे कहते हैं कि बहुत से किसानों के खाते में बैंक का आईएफएससी कोड गलत है, इस वजह से उनका पेमेंट नहीं हो रहा है. ऐसी गलतियों के लिए वे बैंक और प्रशासन को जिम्मेदार मानते हैं. इस तरह की गलतियां कितने बड़े पैमाने पर हैं इसका अंदाजा बरेली के एक स्थानीय अखबार में छपी खबर से लगाया जा सकता है. खबर में कहा गया है कि पीएम किसान के 80 हजार खातों में गड़बड़ि़यां जल्द दूर हो जाएंगी. ऐसा तब है जब हाल ही में यहां के 37 हजार खातों की गड़बड़ियां दूर की गई हैं. महज एक जिले के खातों में गड़बड़ियों की संख्या से पूरे प्रदेश की सूरत-ए-हाल का अंदाजा लगाया जा सकता है. वह भी तब जब यह माना जा रहा है कि अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में इस योजना का क्रियान्वयन बेहतर ढंग से हो रहा है.
उत्तर प्रदेश के कई जिलों की पड़ताल से लगता है कि पीएम किसान योजना के बजट कम हो जाने से पहले यह चर्चा जरूरी है कि इसका क्रियान्वयन ठीक से हो. मेरठ के सतेंद्र चौधरी कहते हैं कि इस योजना के केंद्र में छोटी जोत के सीमांत किसान थे. लेकिन, खातों की गड़बडियां सत्यापन वगैरह का सबसे बड़ा खामियाजा वही भुगत रहे हैं. वे कहते हैं, ‘बैंक की जानकारी रखने वाले पढ़े-लिखे लोगों के ऐसे परिवार तो अपने कागज दुरुस्त करवा ले रहे हैं, जिनके परिवार की आय के दूसरे स्रोत भी हैं. जबकि पूरी तरह से किसानी पर ही निर्भर गरीब आदमी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है.’
तहसीलों और लेखपालों के पास मिलने वाली किसानों की भीड़ काफी हद तक उनकी इस बात की तस्दीक भी करती है.
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